Bihar Board Class 11th Hindi ek Dikshant bhashan Chapter 9

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Bihar Board Class 11th Hindi Dikshant bhashan Chapter 9

एक दीक्षांत भाषण पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
Class 11th Hindi Dikshant bhashan Chapter 9
प्रश्न 1.
दीक्षांत समारोह में नेताजी का मन क्या देखकर आनंदित हो उठा?
उत्तर-
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में नेताजी (मंत्री महोदय) दीक्षांत भाषण देने को पहुँचते हैं। समारोह स्थल पर छात्रों, पुलिस के सिपाहियों, प्राध्यापकों एवं अन्य श्रोताओं का विशाल जन-समूह उपस्थित था। मंत्री महोदय (नेताजी) यह देखकर गदगद हो गए कि छात्रों की संख्या से अधिक पुलिस सभा स्थल पर मौजूद है। वे इस बात से गर्वित थे कि इस विश्वविद्यालय में यह अत्यन्त सुखद बात है कि छात्रों से पुलिस की संख्या अधिक है।
नेताजी की मान्यता थी कि ऐसी प्रगति तो विश्व के अन्य विश्वविद्यालयों में भी नहीं होगी कि समारोह स्थल पर विद्यार्थियों की अपेक्षा पुलिस के जवान उक्त कार्यक्रम की शोभा बढ़ा रहे हों। नेताजी इसका श्रेय शासन के साथ-साथ छात्रों को भी दे रहे थे। उनके लिए यह एक सुखद अनुभव था कि दीक्षांत समारोह में वर्दीधारी पुलिस कर्मियों की संख्या छात्रों की अपेक्षा कहीं अधिक है। यह दृश्य देखकर वे आनन्दित हो गए।
प्रश्न 2.
विश्वविद्यालय में हूटिंग होने पर भी नेताजी खुश क्यों हैं?
उत्तर-
विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह आयोजित है। नेताजी का धाराप्रवाह भाषण जारी है। बीच-बीच में लड़के शोरगुल अथवा आवाजकशी करके उनकी हूटिंग कर रहे हैं, पर नेताजी को कोई गम नहीं। उल्टे वे खुश हैं कि अनपढ़ जनता के बजाय वे शिक्षित नवयुवकों से हूट हो रहे हैं।
प्रश्न 3.
‘ज्ञानी कायर होता है। अविद्या साहस की जननी है। आत्मविश्वास कई तरह का होता है-धन का, बल का, ज्ञान का। मगर मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।’ इस कथन का व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त कथन हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 के हरिशंकर परसाई लिखित हास्य निबंध ‘एक दीक्षांत भाषण’ का है। हिन्दी के सर्वाधिक सशक्त एवं समर्थ व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का है। इसके माध्यम से उन्होंने मूखों की हठधर्मिता पर व्यंग्य किया है। उक्त कथन में ज्ञानी को कायर कहने से यह अभिप्राय है कि ज्ञानीजन बहुधा किसी बात को लेकर आवश्यकता से अधिक सोच-विचार करने लगते हैं। फलतः निर्णय लिये जाने में देर होती है और उनका जोश ठंडा पड़ जाता है, अतएव वे कोई वीरोचित कदम नहीं उठा पाते हैं।
अविद्या अर्थात् अज्ञान से साहस पैदा होता है। व्यावहारिक जगत् में बहुत बार ऐसा देखा जाता है कि ज्ञान के कारण व्यक्ति काम करने से डर जाता है, जबकि अज्ञानी उस क्षेत्र में साहसपूर्वक आगे बढ़ जाता है। पुनः व्यंग्यकार ने आत्मविश्वास को कई प्रकार का बताते हुए मूखों के आत्मविश्वास पर करारा प्रहार किया है। मूर्ख या नासमझ लोग किसी की बात नहीं मानते उनका हठ दृढ़ नहीं होता है प्रबुद्ध जन समझाने पर समझ जाते हैं, पर मूर्ख लोग तो अपनी ही बात पर अड़े रहते हैं। अत: उनके आत्मविश्वास को व्यंग्य में सर्वोपरि कहा गया है।
प्रश्न 4.
नेताजी के अनुसार वे वर्तमान को बिगाड़ रहे हैं, ताकि छात्र भविष्य का निर्माण कर सकें। इस कथन का व्यंग्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंगात्मक निबंध “एक दीक्षांत भाषण” में अत्यन्त सरस ढंग से यह बताने का प्रयास किया है कि आज के राजनीतिक नेता राष्ट्र के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं तथा उसे क्षति पहुंचाने में व्यस्त हैं, वे इसे खोखला बना रहे हैं।
नेताजी (मंत्री महोदय) दीक्षांत भाषण के क्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि देश के वर्तमान को वे इस उद्देश्य से बर्बाद कर रहे हैं ताकि भविष्य में छात्र उसका पुनर्निर्माण कर सकें। इस प्रकार वे अपने द्वारा किए जाने वाले गलत कार्य को उचित ठहरा रहे हैं। अपने कुकृत्य पर पर्दा डालने के लिए नेताजी इस ढंग की बयानबाजी कर रहे हैं।
नेताजी के उक्त कथन द्वारा वर्तमान समय में व्याप्त भ्रष्टचार उजागर होता है। अपने निजी हित के लिए देश तथा छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने में प्रसन्नता तथा गर्व का अनुभव करते हैं।
प्रश्न 5.
नेताजी ने सच्चे क्रांतिकारियों के क्या लक्षण बताए हैं? .
उत्तर-
विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह के अपने भाषण-क्रम में नेताजी ने सच्चे क्रांतिकारियों के लक्षण बताते हुए कहा है कि जो सच्चे क्रांतिकारी होते हैं, वे बुनियादी परिवर्तन के लिए आंदोलन कभी नहीं करते, बल्कि कंडक्टर, गेटकीपर, चपरासी वगैरह से ही संघर्ष करते हैं। इस प्रकार, नेताजी द्वारा बताये गये क्रांतिकारियों के लक्षण से वर्तमान परिप्रेक्ष्य में होने वाले आंदोलनों और उनके पीछे पड़े रहने वाले तथाकथित आंदोलनकारियों का असली चेहरा उजागर हो जाता है।
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प्रश्न 6.
‘सत्य को इसी तरह दांतों से पकड़ा जाता है।” इस कथन से नेताजी का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक निबंध में हरिशंकर परसाई ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के वर्तमान स्वरूप का युक्तियुक्त विवेचन किया है। लेखक ने आज के नेतागण के कपटपूर्ण व्यवहार को कुशलता से निरूपित किया है।
नेताजी के शब्दकोष में ‘सत्य’ शब्द का अर्थ अवसरवादिता है। उनका सत्य है-ईमान, धर्म इत्यादि सात्विक गुणों का परित्याग करना। प्रत्येक अनैतिक कार्य करने के लिए वे सत्य शब्द का प्रयोग करते हैं। उनके जीवन का सत्य मंत्री बनना था। ईमान तथा धर्म का परित्याग कर अनुचित तरीका का उन्होंने सहारा लिया। सरकार किसी भी दल की रही हो, वे उसमें मंत्री पद पर आसीन हुए। पार्टी बदलने में उन्होंने तनिक भी विलम्ब नहीं किया, क्योंकि वे इस सत्य को पकड़े हुए थे कि उन्हें मंत्री बनना है। उन्होंने छात्रों को परामर्श दिया कि यदि उनको (छात्रों) को सत्य डिग्री लेना है तो वे इसके लिए प्रश्न आउट करके तथा नकल करके डिग्री प्राप्त करें। यदि उनको इस सत्य की रक्षा के लिए अध्यापकों से मारपीट करनी पड़े तो वह भी करें।
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प्रश्न 7.
“मैं जानता हूँ कि यदि मैं मंत्री न होता, तो कानूनी डॉक्टर क्या कंपाउंडर भी मुझे कोई न बनाता।’ इस पंक्ति की सप्रसंग व्याख्या करें।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत व्यंग्यात्मक पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘दिगंत, भाग-1’ में संकलित ‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्य लेख से उद्धृत है। इसके लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई हैं। इस पाठ में लेखक ने मंत्री महोदय के भाषण के माध्यम से आज की राजनीति और शैक्षणिक हकीकत को उजागर करने की भरपूर कोशिश है। प्रस्तुत कथन भाषणांत में नेताजी द्वारा कथित है।
प्रस्तुत पंक्ति में नेताजी दीक्षांत समारोह में भाषण कर रहे हैं। इसी क्रम में अंत में वे यह बताते हैं कि आज इस समारोह में मुझे विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिलने वाली है। हालाँकि मैं इसके काबिल कदापि नहीं। वास्तव में यह मेरे मंत्री बनने का लाभ है। यदि मैं मंत्री न बनता तो मुझे डॉक्टर क्या, कंपाउंडर भी कोई न बनाता। इस प्रकार यह कथन जहाँ नेतावर्ग की योग्यता-क्षमता पर ऊँगली उठाता है, वहीं वर्तमान शैक्षिक जगत् की सिद्धांतविहीनता और पथभ्रष्टता पर भी बड़ा कड़ा प्रहार करता है। इस प्रकार लेखक कहना चाहते हैं कि आज सर्वत्र शक्ति की पूजा होती है निर्बल व्यक्ति को हमेशा उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है।
आज के जीवन पर सरकार तथा सत्ता से जुड़े लोगों की अनावश्यक एवं अतिरिक्त रौब-दाब की झलक भी मिलती है।
प्रश्न 8.
पाठ का अंत ‘ओम शांति ! शांति ! शांति!’ से हुआ है। आपके विचार से लेखक ने ऐसा प्रयोग क्यों किया है? इसका कोई व्यंग्यार्थ भी है? लिखिए।
उत्तर-
हरिशंकर परसाई लिखित ‘एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्य-निबंध का अंत ‘ओऽम शांति ! शांति ! शांति ! के साथ हुआ है। लेखक ने ऐसा प्रयोग जान-बूझकर वर्तमान जीवन में व्याप्त विसंगतियों की हद को पूरी तरह उभरने के प्रयोजन से किया है। हमारे वर्तमान राजनीतिक शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन में अनैतिकता एवं स्वार्थपरता परवान पर है। ये स्थितियाँ अत्यंत चिंताजनक एवं भयावह है। इनसे तमाम आदर्श एवं मूल्य नि:शेष होने को हैं। अत: इन स्थितियों के उत्तरदायी विधायक, स्वार्थपरता, अनैतिकता, सिद्धांतहीनता, कर्त्तव्यविमुखता, सत्तालोलुपता, चाटुकारिता आदि विसंगतियों के शमन एवं समाप्ति के लिए उक्त प्रयोग किया है। इस प्रयोग से वर्तमान जीवन की विसंगतियाँ पूर्णरूपेण स्पष्ट हुई हैं।
प्रश्न 9.
देश की आर्थिक अवस्था पर व्यंग्य करने के लिए लेखक ने क्या कहा है?
उत्तर-
हरिशंकर परसाई लिखित “एक दीक्षांत भाषण’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबंध में देश की आर्थिक अवस्था पर कटाक्ष किया गया है। निबंधकार ने मंत्री के माध्यम से समाज में व्याप्त घोर अव्यवस्था तथा आर्थिक स्थिति की ओर इशारा किया है।
मंत्री महोदय द्वारा छात्रों को संबोधित करते हुए देश के विकास करने का दावा किया जाता है। जब छात्र मंच पर कंकड़-पत्थर फेंकने लगते हैं तो मंत्री जी उन्हें कहते हैं कि पश्चिम के देशों में तो ऐसे समय पर मंच पर अंडे फेंके जाते हैं। मंत्री जी यह भी मानते हैं कि देश की आर्थिक दुर्दशा के कारण यहाँ के छात्रों के पास अंडे खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इसलिए वे ऐसा नहीं कर सकते। साथ ही वह छात्रों को निराश नहीं होने की सलाह देते हैं। साथ ही उन्हें आश्वासन देते हैं कि वह देश का विकास करने में दृढ़-संकल्पित हैं।
इस प्रकार लेखक ने देश की आर्थिक स्थिति पर चुटकीला व्यंग्य किया है। उन्होंने सरकार के कार्यकलाप पर रोचक कटाक्ष किया है।
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