विष के दांत ( गोधूलि भाग-2 गध खंड ) Subjective Question  Vish Ke Dant Subjective Question

विष के दांत ( गोधूलि भाग-2 गध खंड ) Subjective Question  Vish Ke Dant Subjective Question

आपको कक्षा दसवीं हिंदी गोधूलि भाग 2 बिहार बोर्ड के लिए विष के दांत पाठ का सब्जेक्टिव प्रश्न दिया गया है। जो मैट्रिक परीक्षा 2024 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है ।और यहाँ पर  Vish Ke Dant का Objective Question Answer दिया गया है। जिसे आप आसानी से पढ़ सकते है।

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विष के दांत ( गोधूलि भाग-2 गध खंड ) Subjective Question  Vish Ke Dant Subjective Question

 

1 कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने अमीरों की तथाकथित मर्यादा पर व्यंग्य किया है। इस  कहानी में मध्यमवर्गीय  अन्तेर्विरोध को उजागर करता है ।  जहाँ सेन साहब के परिवार ने लिंग आधारित भेदभाव को  दर्शाया गया है | जहाँ सेन साहब के परिवार में  खोखा के लिए अलग शिक्षा  ब्यवस्था है| ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी महल और झोपड़ी की लड़ाई की कहानी है।
प्रश्न 2. सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-सेन साहब के परिवार में उनकी पाँच लड़की थी। सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती सबसे छोटा लड़का  काशू था
सेन साहब  प्यार से खोखा कहते थे। ।
सेन साहब के परिवार में पाँचों लड़कियों के ऊपर काफी अनुशासन था। पांचो लडकियों के लिए अलग शिक्षा व्यस्था था  जबकि खोखा के लिए अलग | वह घर के सभी नियमो के प्रति अपवाद था | लडकियों को खेलने कूदने पर भी पाबन्दी थी |
 प्रश्न 3.खोखा किन मामलों में अपवाद था ?
उत्तर-सेन साहब एक अमीर आदमी थे। अभी हाल में उन्होंने एक नयी कार खरीदी थी। वे किसी को गाड़ी के पास फटकने नहीं देते थे। कहीं पर एक धब्बा दिख जाए तो क्लीनर और शोफर पर शामत आ जाती थी। उनके लड़कियों से मोटर की चमक-दमक का कोई खास खतरा नहीं था। लेकिन खोखा सबसे छोटा लड़का था। वह बुढ़ापे की आँखों का तारा था। इसीलिए मिसेज सेन ने उसे काफी छूट दे रखी थी। दरअसल बात यह थी कि खोखा का आविर्भाव तब हुआ था जब उसकी कोई उम्मीद दोनों को बाकी नहीं रह गई थी। खोखा जीवन के नियम का जैसे अपवाद था और इसलिए यह भी स्वाभाविक था कि वह घर के नियमों का भी अपवाद था। इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो केवल खोखा से ही। घर में मोटर-संबंधी नियम हो या अन्यान्य मामले उसके लिए सिद्धान्त बदल जाते थे।
प्रश्न 4. सेन दंपती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी?
उत्तर-सेन दंपती खोखा में अपने पिता की तरह इंजीनियर बनने की पूरी संभावना देखते थे। उन्होंने उसके शिक्षा के लिए कारखाने से बढ़ई मिस्त्री घर पर आकर एक-दो घंटे तक उसके साथ कुछ ठोंक-ठाक किया करे। इससे बच्चे की उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जाएंगी
प्रश्न 5.सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) लड़कियाँ क्या है, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है।
उत्तर-
‘व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ नलिने विलोचन शर्मा द्वारा लिखित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। यह संदर्भ सेन परिवार में पाली-पोसी जानेवाली लडकियों की चारित्रिक विशेषताओं . से जुड़ा हुआ है।
सेन परिवार मध्यमवर्गीय परिवार है जहाँ की जीवन-शैली कृत्रिमताओं से भरी हयी है।
सेन परिवार में लड़कियों को तहजीब और तमीज के साथ जीना सिखाया जाता है। उन्हें । शरारत करने की छूट नहीं। वे स्वच्छंद विचरण नहीं कर सकतीं जबकि बच्चा के लिए कोई पाबंदी नहीं है। सेन दंपत्ति ने लड़कियों को यह नहीं सिखाया है कि उन्हें क्या करना चाहिए उन्हें ऐसी तालीम दी गयी है कि उन्हें क्या-क्या नहीं करना है, इसकी सीख दी गयी है। इस प्रकार सेन परिवार में लड़कियों के प्रति दोहरी मानसिकता काम कर रही है। जहाँ लड़कियाँ अनुशासन, तहजीब और तमीज के बीच जी रही हैं वहाँ खोखा सर्वतंत्र स्वतंत्र है। लड़का-लड़की के साथ दुहरा व्यवहार विकास, परिवार और समाज के लिए घातक है। अतः लड़का-लड़की के बीच नस्लीय भेदभाव न पैदा कर उनमें समानता का विस्तार करना चाहिए।
(ख) खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेनों ने सिद्धान्तों को भी बदल लिया था।
उत्तर-
व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी हैं। इस कहानी के रचयिता आचार्य नलिन विलोचन शर्माजी हैं। यह पंक्ति सेन परिवार के लाडले
बेटे के जीवन-प्रसंग से संबंधित है।
कहानीकार ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की चेष्टा किया है कि सेन परिवार एक मध्यमवर्गीय सफेदपोश परिवार है। यहाँ कृत्रिमता का ही बोलबाला है। नकली जीवन के बीच जीते ।। हुए सेन परिवार अपने बच्चों के प्रति भी दोहरा भाव रखता है।
सेन परिवार का बेटा शरारती स्वभाव का है। वह बुढ़ापे में पैदा हुआ है, इसी कारण सबका लाडला है। उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में कोई पाबंदी अनुशासन नहीं है। वह बेलौस जीने के लिए स्वतंत्र है। उसके लिए सारे नीति-नियम शिथिल कर दिए गए थे। वह इतना उच्छृखल था कि उसके द्वारा किये गए बुरे कर्मों को भी सेन दंपत्ति विपरीत भाव से देखते थे और उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे।
सेन दंपत्ति बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसी कारण ट्रेनिंग भी वैसी ही दिलवा रहे थे। उसे किंडरगार्टन स्कूल की शिक्षा न देकर कारखाने में बढ़ई मिस्त्री के साथ लोहा पीटने, ठोंकने आदि से संबंधित काम सिखाया जाता था। औजारों से परिचित कराया जाता था। इस प्रकार सेन परिवार अपने शरारती बेटे के स्वभाव के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी और अपने सिद्धांतों को बदल लिया था।
(ग) ऐसे ही लडके आगे चलकर गंडे, चोर और डाक
उत्तर-
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। इसके रचयिता हैं—नलिन विलोचन शर्मा। इस पंक्ति का प्रसंग गिरधारी के बेटे मदन के साथ जुड़ा हुआ है।
एक बार की बात है कि सेन की गाड़ी के पास मदन खड़ा होकर गाड़ी को छू रहा था। जब शोफर ने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह शोफर को मारने दौड़ा लेकिन गिरधारी की पत्नी ने बेटे को संभाल लिया। ड्राइवर ने मदन को धक्के देकर नीचे गिरा दिया था जिससे मदन का घुटना फूट गया था.
शरारत की चर्चा ड्राइवर ने सेन साहब से की थी। इसी बात पर सेन साहब काफी क्रोधित हुए थे और गिरधारी को अपनी फैक्टरी से बुलवाकर डाँटते हुए कहा था कि देखो गिरधारी। आजकल मदन बहुत शोख हो गया है। मैं तो तुम्हारी भलाई ही चाहता हूँ। गाड़ी गंदा करने से मना करने पर वह ड्राइवर को मारने दौड़ पड़ा था और मेरे सामने भी वह डरने के बदले ड्राइवर की ओर मारने के लिए झपटता रहा। देखो, यह लक्षण अच्छा नहीं है, ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। गिरधारी लाल तो जी हाँ, जी हाँ कहने में ही लगा हुआ था। ऐसी सीख देते हुए सेन साहब गिरधरी लाल को बच्चे को सँभालने और शरारत छोड़ने की सीख देते हुए चले गए। यह प्रसंग उसी वक्त का है।
इन पंक्तियों में सेन के चरित्र के दोगलेपन की झलक साफ-साफ दिखती है एक तरफ अपने अनुशासनहीन बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना पालनेवाले सेन को उसकी बुराई नजर नहीं आती लेकिन दूसरी ओर गिरधारी लाल के बेटे में उइंडता और शरारत दिखाई पड़ती है। यह उस मध्यवर्गीय परिवार के जीवन चरित्र की सही तस्वीर है। अपने बेटे की प्रशंसा करते हैं, भले ही वह कुलनाशक है लेकिन निर्धन, निर्बल गिरधरी लाल के बेटे में कुलक्षण ही उन्हें दिखायी पड़ते हैं।
विष के दांत ( गोधूलि भाग-2 गध खंड ) Subjective Question  Vish Ke Dant Subjective Question
(घ) हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया।
उत्तर-
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी हैं जिसके रचियता हैं नलिन विलोचन शर्मा।
यह प्रसंग उस समय का है जब सेन दंपत्ति का बेटा दूसरे दिन शाम के वक्त बँगले के अहाते __ के बगलवाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन (गिरधारी लाल का बेटा) आवारागर्द लड़कों . के साथ लटू नचा रहा था। खोखा ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी भी तबीयत लटू नचाने के लिए ललच गयी। खोखा तो बड़े घर का था यानी वह हंसों की जमात का था जबकि मदन और वे लड़के निम्न मध्यमवर्गीय दलित, शोषित थे। इन्हें कौओं से संबोधित किया गया। इसी सामाजिक भेदभाव के कारण कहा गया कि हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया। यानी कहने का भाव यह है कि खोखा जो अमीर सेन परिवार का वंशज है, गरीबों के खेल में शामिल होकर खेलने के लिए ललक गया किन्तु यह संभव न हो सका क्योंकि पहले दिन उसके पिता ने उसे और उसकी माँ के साथ पिता को भी प्रताड़ित किया था, उसने अपने अपमान को यादकर छूटते ही खोखा से कहा—अबे, भाग जा यहाँ से। बड़ा आया हैलटू खेलनेवाला ! यहाँ तेरा लटू नहीं है। जा, जा, अपने बाबा की मोटर में बैठ।
इन पंक्तियों के द्वारा कहानीकार सामाजिक असमानता, भेदभाव, गैरबराबरी को दर्शाना चाहता है।
 प्रश्न 6.सेन साहब के और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया?
उत्तर-
एक दिन का वाकया है कि ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे। उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबारनवीस थे और सेन के दूर के रिश्तेदार भी होते थे। साथ में उनका लड़का भी था, जो था तो खोखा से भी छोटा, पर बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले कि पत्रकार महोदय : कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया- मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ, और वे ही बातें दुहराकर थकते नहीं थे। पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि वह जेंटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए।
 प्रश्न 7 .मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है ?
उत्तर-
कहानीकार ड्राइवर के रूप में सामन्ती मानसिकता को दिखाया है। मदन एक गरीब का बच्चा है उसके सिर्फ मोटर को स्पर्श करने पर उसे धकेल दिया गया है। जिस कारण उसे चोट आ गया। सामन्ती मानसिकता और एक गरीब के व्यवहार की ओर कहानीकार बसा रहे हैं।
प्रश्न 8. काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था ? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है ?
उत्तर-
काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण था काशू द्वारा मदन से लटू माँगना। मदन देने से इंकार करता है। काशू मारता है फिर मदन भी मारता है।
लेखक इस प्रसंग के द्वारा दिखाने चाहते हैं कि बच्चे में सामन्ती मानसिकता का भय नहीं होता बाद में चाहे जो हो जाय।
प्रश्न 9. ‘महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं।’ लेखक के इस कथन को कहानी से एक उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।
उत्तर-
सेन साहब की नयी चमकती काली गाड़ी को छूने भर के अपराध के लिए मदन न केवल शोफर द्वारा घसीटा जाता है, अपितु बाप गिरधर द्वारा भी बेरहमी से पीटा जाता है। दूसरे दिन खोखा जब मदन की मंडली में लटू खेलने चला जाता है तो मदन का स्वाभिमान जाग उठता है। दोनों की लड़ाई वृहत् रूप ले लेती है। खोखा और. मदन की लड़ाई महल और झोपड़ी की लड़ाई का प्रतीक है। खोखा को मुँह की खानी पड़ती है। इस स्वाभिमान की झगड़ा में झोपड़ी वाले की जीत होती है।
प्रश्न 10. रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करने वाला गिरधर मदन द्वारा काशू की पिटाई करने पर उसे दंडित करने के बजाय अपनी छाती से क्यों लगा लेता है ?
उत्तर-
गिरधर लाल सेन साहब की फैक्ट्री में एक किरानी था और उनके ही बंगले के अहाते के एक कोने में आउट-हाउस में रहता था। सेन साहब द्वारा जब मदन की शिकायत की जाती । तब गिरधर मदन की पिटाई करता था। गिरधर सेन साहब की हर बात को मानने के लिए विवश था। लेकिन एक दिन जब मदन काशू के अहंकार का जवाब देते हुए उस पर प्रहार करके उसके दाँत तोड़ दिये तब उसके पिता उल्लास और गर्व के साथ उसे शाबासी देते हैं। जो काम वह स्वयं नहीं कर पाया था वह उसका पुत्र करके दिखा दिया था। इसलिए वह गौरवान्वित था। मदन शोषण, अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध प्रज्वलित प्रतिशोध का प्रतीक है। उसके निर्भीकता से प्रभावित होकर गिरधर ने उसे छाती से लगा लिया।
प्रश्न 11. सेन साहब, मदन, काश और गिरधर का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
सेन साहब- कहानी में सेन साहब प्रमुख पात्र हैं। नई-नई उन्होंने गाड़ी खरीदी है। इसीलिए गाड़ी छाया से सब दूर रहे। खासकर खोखा-खोखी।
सेन साहब में दिखावा बहुत अधिक है। अपने पुत्र के संबंध में बहुत बढ़ा-चढ़ाकार बातें करते हैं। अपने बेटे के सामने किसी दूसरे लड़के का प्रशंसा पसंद नहीं करते हैं। सेन साहब सामंती मानसिकता के आदमी है। .
मदन – सेन साहब का एक कर्मचारी गिरधर है जो उन्हीं के आहाते में रहता है। मदन उसी का लड़का है। लड़का साहसी और निर्भीक है। बाल सुलभ शरारत भी उसमें विद्यमान है। इसी कारण जब काशू. उससे झगड़ता है तो मदन भी उसी के भाषा में जवाब देता है।
काशू- काशू बाबू सेन साहब का एकमात्र सुपुत्र है। बहुत लाड़-प्यार के बहुत बिगड़ गया है। शरारत करने में माहिर हो गया है। कहानी का नायक काशू ही है।
गिरधर- गिरधर सेन साहब के फैक्ट्री में काम करने वाला एक कर्मचारी हैं। उन्हीं के अहाते में रहता है। गिरधर बेहद सीधा और सरल कर्मचारी। यदा-कदा इसे सेन साहब का गुस्सा झेलना पड़ता है। गिरधर मदन का पिता है।
प्रश्न 12. आपकी दृष्टि में कहानी का नायक कौन है ? तर्कपूर्ण उत्तर दें।
उत्तर-
हमारी दृष्टि में ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी का नायक मदन है। नायक के संबंध में पुरानी कसौटी अब बदल चुकी है। पहले यह धारणा थी कि नायक वही हो सकता है. जो उच्च कुलोत्पन्न हो, सुसंस्कृत, सुशिक्षित, युवा तथा ललित-कला प्रेमी हो। परन्तु नायक के संबंध में ये शर्ते अब मान्य नहीं। कोई भी पात्र नायक पद का अधिकारी है यदि वह घटनाओं का संचालक है, सारे पात्रों में सर्वाधिक प्रभावशाली है और कथावस्तु में उसका ही महत्व सर्वोपरि है। इस दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि इस कहानी का नायक मदन ही है। इसमें मदन का ही चरित्र है जो सबसे अधिक प्रभावशाली है। पूरे कथावस्तु में इसी के चरित्र का महत्त्व है। खोखे के विष के दाँत उखाड़ने की महत्त्वपूर्ण घटना का भी वही संचालक है। अत: निर्विवाद रूप से मदन ही कहानी का नायक है।
प्रश्न 13.
आरंभ से ही कहानीकार का स्वर व्यंग्यपूर्ण है। ऐसे कुछ प्रमाण उपस्थित करें।
उत्तर-
पाँचो लड़कियाँ तो तहजीब और तमीज की तो जीती-जागती मूरत ही हैं।
जैसे कोयल घोंसले में से कब उड़ जाय। चमक ऐसी कि अपना मुँह देख लो।
प्रश्न 14.
‘विष के दाँत’ कहानी का सारांश लिखें।
उत्तर-

विष के दाँत’ आचार्य नलिन विलोचन शर्मा की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सुप्रसिद्ध कहानी है, इसमें सामाजिक भेदभाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुर प्यार-दुलार के कुपरिणामों को दिखाते हुए सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार का स्वर प्रमुखता से उभरा है।

कहानी सेन साहब के परिचय के साथ शुरू होती है। उनके पास एक नई मोटरकार है जो बंगले के सामने बरसाती में खड़ी है। सेन साहब के पाँच लड़कियाँ और एक लड़का है। उनकी लड़कियाँ सीमा, रजनी, आलो, शेफाली और आरती जहाँ तहजीब और तमीज की जीती-जागती प्रतिमाएं हैं, वहीं लड़का काशू उनके अपवाद स्वरूप मनबढू और तुनुकमिजाज है। इसका कारण सेन साहब और उनकी पत्नी का उसके प्रति जरूरत से अधिक प्यार दुलार है। एक दिन की बात है कि सेन साहब के ड्राइंग रूम में उनके कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे। उनमें से एक पत्रकार थे, जिनका होनहार और समझदार बेटा भी साथ था। किसी ने उसकी ज्योंही बड़ाई की, सेन साहब अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनते हुए अपने बेटे को बड़ाई करते हुए उसे इंजीनियर बनने की बात करने लगे इस पर जब किसी ने पत्रकार महोदय से उनके बच्चे के विषय में पूछा तो उन्होंने बड़े संयत किन्तु व्यंग्यात्मक रूप में जवाब दिया कि “मैं चाहता हूँ कि वह Gentleman बस बने और जो कुछ बने, उसका काम है। “सेन साहब कटकर रह गये ‘तभी शोरगुल सुन सभी बाहर निकले। वहाँ सभी देखते हैं कि खेन साहब का शोफर एक औरत से उलझ रहा था, क्योकि उसका बच्चा मदन गाड़ी को छूना चाह रहा था। सेन साहब उस औरत को डाँटकर भगा देते हैं। इसके तुरंत बाद ही लोगों को मालूम होता है कि काशू ने सेन साहब की गाड़ी की पिछली बत्ती को चकनाचूर कर दिया है। इतना ही नहीं, उसने मिस्टर सिंह की गाड़ी की हवा भी निकाल दी हैं किन्तु सेन साहब उसे एक बार भी डाँटते-फटकारते नहीं, उल्टे उसकी बड़ाई करते हैं। जब उनके दोस्त चले गए तो उन्होंने गिरधर लाल जो मदन का पिता और फैक्टरी में किरानी था, को बुलाकर उससे अपने बेटे को सम्भालने की नसीहत देते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। सेन साहब की बात पर गिरधर लाल ने उस दिन रात में अपने बेटे को खूब पिटाई की।

लेकिन, दूसरे दिन अजीब बात हो गई। शाम के समय खोखा यानी काशू खेल-खेल में बंगले से बाहर बगलवाली गली में जा निकला, जहाँ मदन अपने पड़ोसी आवारागर्द छोकरों के साथ लटू नचा रहा था। खोखा को भी लटू नचाने का मन हुआ और उसने बड़े रौब के साथ लट्ट मांगा। पर, मदन पर उसके रोब का कोई असर नही हुआ। तब दोनों में झगड़ा शुरू गया। खाखा मदन का सामना न कर सका और मार खाकर भाग निकला। उधर मदन अपने पिता के डर के कारण दिन भर घर नहीं जाता हैं, इधर-उधर घूमता रहता है। आखिरकार रात होने पर जब वह घर पहुँचता है तो माँ-बाप की कानाफूसी को सुन अचरज में पड़ जाता है। इसी बीच उसका पैर लोटे से टकराता है, जिसकी ठनक सुन गिरधरलाल आकर आशा के विपरीत मदन को गोद में उठा शाबाशी देने लगा और कहा कि शाबाश बेटा!!! तूने तो खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। “इस प्रकार कहानी का बड़ा की अर्धगर्भित अंत हो जाता है।”

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