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कड़बक
कड़बक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘रकत के लेई’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसुओं से अप्लावित की गई है । कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सूफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है । लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने “अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है ।
प्रश्न 2. कवि ने अपनी एक आंख से तुलना दर्पण से क्यों की है ?
उत्तर- महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है ठीक उसी प्रकार कवि की आँख है । कोई भी व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आँख से अंधे होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है । कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते हैं और । करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिम्ब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होता है ।
कड़बक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवि ने अपनी एक आँख से तुलना दर्पण से क्यों की है ?
उत्तर- महाकवि जायसी ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है कि दर्पण जिस प्रकार स्वच्छ और निर्मल होता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आंख है। कोई भी व्यक्ति अपनी छवि जिस प्रकार साफ एवं स्पष्ट रूप से दर्पण में देख पाता है, ठीक उसी प्रकार कवि की आँख भी स्वच्छता और पारदर्शिता का प्रतीक है। एक आँख से अंधे होकर भी कवि काव्य-प्रतिभा से युक्त है, अतः वह पूजनीय है, वंदनीय है। कवि अपनी निर्मल वाणी द्वारा सारे जनमानस को प्रभावित करता है जिसके कारण सभी लोग कवि की प्रशंसा करते है और नमन करते हैं। जैसी छवि वैसा ही प्रतिबिंब दर्पण में उभरता है। ठीक उसी प्रकार कवि की निर्मलता और लोक कल्याणकारी भावना उनकी कविताओं में दृष्टिगत होती है।
कड़बक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 2. पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- अपनी कविताओं में कवि ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है । इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं । कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है ।
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम किया। जिस प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्तियों के सामने उनके एकाध दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं ।
कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव त्रिशूल द्वारा नष्ट किए जाने पर सुमेरू पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों के संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ भानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही यह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है । यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है ।
काँच शब्द को सार्थकता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना धारिया में (सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया जाता है, उसे धारिया कहते हैं) गलाए काँच (कच्चा सोना) असली स्वर्ण रूप को प्राप्त नहीं कर सकता है ठीक उसी प्रकार संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठता नहीं प्राप्त हो सकती है।
कड़बक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 3. पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर- महाकवि जायसी अपनी कुरूपता और एक आँख से अंधे होने पर शोक प्रकट नहीं करते है बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित की बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गुण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करते हैं ।
जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अतः उसका दोष गुण के आगे ओझल हो जाता है |
सुमेरु- पर्वत की यश गाथा भी शिव- त्रिशूल के स्पर्श बिना निरर्थक है । घरिया में तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोष-भाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा की तरह है जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं।
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प्रश्न 4. कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है ? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ ।
उत्तर – कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।
कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे । इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है ।
दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है । इसका कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीर्ति नष्ट न हो । अगर वह केवल लौकिक कथा- मात्र लिखते तो उससे उनकी कीर्त्ति चिरस्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिरस्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकैषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है ।
अंग्रेज कवि मिल्टन ने तो इसे श्रेष्ठ व्यक्ति की अंतिम दुर्बलता कहा है ।
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प्रश्न 5. भाव स्पष्ट करें –
जौ लहि अंबहि डांभ न होइ ।
तौ लहि सुगंध बसाइ न सोई ॥
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक (1) से उद्धृत की गयी हैं । इस कविता के रचयिता मलिक मु० जायसी जी है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभें नहीं निकलती तबतक उसमें सुंगध नहीं आता यानि आम में सुगंधि आने के लिए डाभ युक्त मँजिरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुशबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है ।
काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहाँ पर अत्यंत तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है । यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है । इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है।
इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जबतक पुरूष में दोष नहीं होता तबतक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं ।
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प्रश्न 6.कड़बक में रकत के लेई का क्या अर्थ है ?
उत्तर – यहाँ पर लेखक ने लेई के रूपक से यह बताने की चेष्टा की है कि उसने अपने कथा के विभिन्न प्रसंगों को किस प्रकार एक ही सूत्र में बाँधा है। कवि कहता है कि मैंने अपने रक्त की लेई बनाई है अर्थात् कठिन साधना की है। यह लेई या साधना प्रेमरूपी आँसुओं से अप्लावित की गई है । कवि का व्यंग्यार्थ है कि इस कथा की रचना उसने कठोर सूफी साधना के फलस्वरूप की है और फिर इसको उसने प्रेमरूपी आँसुओं से विशिष्ट आध्यात्मिक विरह द्वारा पुष्ट किया है । लौकिक कथा को इस प्रकार अलौकिक साधना और आध्यात्मिक विरह से परिपुष्ट करने का कारण भी जायसी ने “अपनी काव्यकृति के द्वारा लोक जगत में अमरत्व प्राप्ति की प्रबल इच्छा बताया है ।
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प्रश्न 7. मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा ।
अथवा, यहाँ कवि ने जोरि शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?
उत्तर – मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने जीवन काल में समय-समय पर लिखे गए प्रसंगों को एक व्यवस्थित प्रबंध के रूप में प्रस्तुत किया है । यह जोरि – जोड़ना यानि व्यवस्थित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है ।
कवि ने विविध प्रसंगों या घटनाओं को एक साथ प्रबंध-स्वरूप में व्यवस्थित कर लोक जगत में अपनी काव्यकृति को प्रस्तुत किया है ।
कवि ने अपनी कविता में ‘प्रेमपीर’ की चर्चा की है। सूफी साधना का सर्वस्व है-प्रेमपीर। इस प्रेम पीर की चर्चा सभी सूफी कवियों ने अपनी काव्य कृतियों में की है । जब साधक किसी गुरु की कृपा से उस दिव्य सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा की झलक पा लेता है और उसके पश्चात जब उसकी वृत्ति की संसार की ओर पुनः पुनरावृत्ति होती है तब उसका हृदय प्रेम की पीर या आध्यात्मिक विरह-वेदना से व्यथित हो उठता है। यह विरह वेदना या प्रेय की पीर ही साधक के कल्ब के कालुल्यों को धीरे-धीरे जलाती रहती है और जब कल्ब के कालुष्य नष्ट हो जाते हैं तब वह सरलता से भावना लोक में उस सौंदर्य स्वरूपी परमात्मा के सतत दर्शन करने में समर्थ होते हैं ।
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प्रश्न 8. दूसरे कड़बक का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें
उत्तर- इस प्रश्न का उत्तर भावार्थ में कड़बक 2 का पूरा भावार्थ है |
प्रश्न 9. व्याख्या करें :-
धनि सो पुरुख जस कीरति जासू ।
फूल मरै पै मरैन बासू ॥
उत्तर– प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक के द्वितीय अंश से उद्धृत की गयी हैं ।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किन्तु उसकी सुगन्धि धरती पर परिव्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भुवन में फहरा जाते है। पुष्प सुगंध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्त्तियाँ विनष्ट नहीं होती । बल्कि युग-युगान्तर तक उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है ।
दूसरे अर्थ में पद्मावती की लौकिक कथा को आध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल मंत्रों को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है । इस संसार की नश्वरता की चर्चा लौकिक कथा काव्यों द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सबको रू-ब-रू कराने का काम किया है । यह जगत तो नश्वर है केवल कीर्त्तियाँ ही अमर रह जाती हैं। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है ।