Varn Vichar in Hindi (वर्ण-विचार), Definition, Types, Example

Varn Vichar Examples – वर्ण विचार की परिभाषा, वर्ण विचार के भेद और उदाहरण
Varn Vichar in Hindi
Varn Vichar in Hindi
 
परिभाषा :
 वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है। वर्ण उस ध्वनि को कहते हैं जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते।
 
राम पत्र लिखता है
हिंदी भाषा में इन वर्णों की कुल संख्या चवालीस (44) है। कहीं – कहीं इन वर्णों की संख्या अड़तालीस (48) भी बताई जाती है।
वर्णमाला –  वर्णों के व्यवस्थित रूप को वर्णमाला कहते हैं।       pdf link
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं।
वर्ण के दो भेद हैं
  • स्वर
  • व्यंजन
Varn Vichar in Hindi
स्वर वर्ण :
जिस वर्ण के उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता न लेनी पड़े उसे स्वर वर्ण कहते हैं। ये स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं।
स्वर वर्णों की सँख्या ग्यारह (11) हैं :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
उच्चारण की दृष्टि से स्वर के तीन भेद होते हैं :
  • ह्रस्व स्वर
  • दीर्घ स्वर
  • प्लुत स्वर
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ह्रस्व स्वर : इनके उच्चारण में सबसे कम समय लगता है। ये चार हैं-अ, इ, उ, ऋ।
दीर्घ स्वर: इनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों के उच्चारण से दुगुना समय लगता है। ये सात हैं-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
प्लुत स्वर : इनके उच्चारण में ह्रस्व और दीर्घ स्वरों के उच्चारण से तिगुना समय लगता हैं यानी की तीन मात्राओं का वक़्त लगता हो, उनको प्लुत कहा जाता हैं। 
उदाहरण जैसे : सुनोऽऽ, ओऽऽम्, राऽऽम, इत्यादि। इसे ‘त्रिमात्रिक स्वर’ भी कहते हैं। 
स्वरों की मात्राएँ :
 
हिंदी स्वर वर्ण और उनकी मात्राएँ (उदाहरण सहित)
क्रम संख्या स्वरमात्रामात्रा का स्वरुप उदाहरण (बिना मात्रा)
1अकल
2क + ा = काआसमान
3िक + ि = किइमली
4क + ी = कीईख
5क + ु = कुउल्लू
6क + ू = कूऊन
7क + ृ = कृऋषि
8क + े = केएकैक
9क + ै = कैऐरावत
10क + ो = कोओढनी
11क + ौ = कौऔरत
12अंअंगूर
13अः
व्यंजन :
जिन वर्णो का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है, वे व्यंजन कहलाते हैं। वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या तैंतीस (33) है।
व्यंजन वर्ण के भेद :
  • स्पर्श व्यंजन
  • अंतस्थ व्यंजन
  • ऊष्म व्यंजन
स्पर्श व्यंजन :जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय फेफड़ों से निकलने वाली वायु कंठ, तालु, मूर्धा, दाँत या ओठों का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
क् से लेकर म् तक 25 स्पर्श व्यंजन हैं।
  • क ख ग घ ङ —-कवर्ग
  • च छ ज झ ञ—-चवर्ग
  • ट ठ ड ढ ण —–टवर्ग
  • त थ द ध न —-तवर्ग
  • प फ ब भ म—- पवर्ग
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अंतस्थ व्यंजन : अन्तः यानि की, ‘मध्य/बीच‘, और स्थ यानि की, ‘स्थित‘ होता हैं। अन्तःस्थ व्यंजन, स्वर और व्यंजन के बीच उच्चारित किए जाते हैं।  उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को पूरी तरह स्पर्श नहीं करती। ये चार हैं – य, र, ल, व
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ऊष्म व्यंजन : ऊष्म-गरम। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गरम हवा निकलती है। ये चार हैं – श, ष, स, ह

 

श्वास वायु के आधार पर व्यंजन के भेद :

 

अल्पप्राण : ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में कम समय लगता है और बोलते समय मुख से कम वायु निकलती है उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 20 होती है।
इसमें क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर,

 

चारों अन्तस्थ व्यंजन – य र ल व
याद रखने का आसान तरीका :
वर्ग का 1, 3, 5 अक्षर – अन्तस्थ

 

महाप्राण : ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है। उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 15 होती है।
इसमें क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर, चारों उष्म व्यंजन – श ष स ह
ध्वनि घर्षण के आधार पर व्यंजन भेद :
व्यंजन वर्णों को ध्वनि घर्षण के आधार पर दो भेदों में विभाजित किया जाता है :
1. घोष
2. अघोष
घोष – जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु स्वर – तंत्रियों में कम्पन करती हुई निकलती है, उन्हें घोष कहते हैं। इनकी संख्या 31 होती है।
इसमें सभी स्वर अ से औ तक, प्रत्येक वर्ग के अंतिम तीन व्यंजन यानी ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, और अन्तःस्थ व्यंजन – य, र, ल, व तथा उष्म व्यंजन का ह आते हैं।

 

अघोष : जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु स्वर – तंत्रियों में कम्पन नहीं करती, उन्हे अघोष वर्ण कहते हैं। इनकी संख्या 13 होती है। इसमें प्रत्येक वर्ग के प्रथम दो व्यंजन यानी क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ और उष्म व्यंजन के श, ष, स आते हैं।

 

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संयुक्त वर्ण : वर्णों का मेल वर्ण संयोग कहलाता है। इन वर्णों के अलावा हिंदी भाषा में कुछ संयुक्त वर्णों का भी प्रयोग किया जाता है। ये वर्ण हैं – क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।
जैसे :
  • क्  + ष  =  क्ष 
  • त्  + र   =  त्र 
  • श्  + र   =  श्र 
  • ज्  + अ  =  ज्ञ 
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अनुस्वार : अं- (ां) वर्ण भी स्वरों के बाद ही आता है। इसका उच्चारण नाक से किया जाता है। इसका उच्चारण जिस वर्ण के बाद होता है, उसी वर्ण के सिर पर (ां) बिंदी के रूप में इसे लगाया जाता है; जैसे-रंग, जंगल, संग, तिरंगा आदि।

 

अनुनासिक : इसका उच्चारण नाक और गले दोनों से होता है; जैसे -चाँद, आँगन, आदि इसका चिह्न (ँ) होता है।

 

अयोगवाह : हिंदी व्याकरण में अनुस्वार (अं) एवं विसर्ग (अ:) को ‘अयोगवाह’ के रूप में जाना जाता है। अयोगवाह न तो पूर्ण रूप से स्वर होते हैं और ना ही पूर्ण रूप से व्यंजन होते हैं।
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