तुलसीदास के पद ( Tulshidas ke pad) Question Answer

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प्रश्न 1. “कबहुँक अंब अवसर पाई ।” यहाँ ‘अंब” संबोधन किसके लिए है ? इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें।

उत्तर– उपर्युक्त पंक्ति में ‘अंब’ का संबोधन “माँ सीता” के लिए किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने सीताजी के लिए सम्मानसूचक शब्द ‘अंब’ के द्वारा उनके प्रति सम्मान की भावना प्रदर्शित की है

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प्रश्न 2. प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है ? लिखिए ।

उत्तर– प्रथम पद में तुलसीदास ने अपने विषय में हीनभाव प्रकट किया है। अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि वह दीन, पापी, दुर्बल, मलिन तथा असहाय व्यक्ति हैं। वे अनेकों अवगुणों से युक्त हैं। ‘अंगहीन’ से उनका आशय संभवतः ‘असहाय’ होने से है।

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प्रश्न 3. अर्थ स्पष्ट करें

(क) नाम लै भरे उदर एक प्रभु दासी दास कहाई ।

(ख) कलि कराल दुकाल दारुन, सब कुभाँति कुसाजु ।                  

      नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु ॥

(ग) पेट भरि तुलसि द्वि जेंवाइय भगति-सुधा सुनाजु । 

उत्तर- (क)  प्रस्तुत पद्यांश का अर्थ निम्नांकित है- भगवान राम का गुणगान करके, उनकी कथा कहकर जीवन-यापन कर रहे हैं, अर्थात् सीता माता का सेवक बनकर राम कथा द्वारा परिवार का भरण-पोषण हो रहा है

(ख)  कलियुग का भीषण अकाल का समय असहय है तथा पूर्णरूपेण बुरी तरह अव्यवस्थित समाज कष्टदायी है। निम्न कोटि का व्यक्ति होकर बड़ी-बड़ी (ऊँची) बातें सोचना कोढ़ में खाज के समान है अर्थात् ‘छोटे मुँह बड़ी बात” कोढ़ में खुजली के समान हैं।

(ग)  कवि (तुलसीदास) को भक्ति-सुधा रूपी अच्छा भोजन करा कर उसका पेट भरें अर्थात् क्षुधा की पूर्ति करें। गरीबों के मालिक श्रीराम भगवान से उन्हीं के भक्त तुलसीदास के द्वारा इसमें प्रार्थना की गयी है।

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प्रश्न 4. तुलसी सीता से कैसी सहायता मांगते हैं ?

उत्तर – तुलसीदास माँ सीता से भवसागर पार कराने वाले श्रीराम को गुणगान करते हुए मुक्ति-प्राप्ति की सहायता की याचना करते हैं । हे जगत की जननी ! अपने वचन द्वारा मेरी सहायता कीजिए ।

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प्रश्न 5. तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते थे ?

उत्तर- ऐसा संभवत: तुलसीदास इसलिए चाहते थे क्योंकि – (i) उनको अपनी बातें स्वयं राम के समक्ष रखने का साहस नहीं हो रहा होगा, वे संकोच का अनुभव कर रहे होंगे । (ii) सीता जी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि किसी व्यक्ति से उनकी पत्नी के माध्यम से कार्य करवाना आसान अधिक होता है  (iii) तुलसी ने सीताजी को माँ माना है तथा पूरे रामचरितमानस में अनेकों बार माँ कहकर ही संबोधित किया है। अतः माता सीता द्वारा अपनी बातें राम के समक्ष रखना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा ।

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प्रश्न 6. राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे  का क्या कारण है ? 

उत्तर – गोस्वामी तुलसीदास राम की भक्ति में इतना अधिक निमग्न थे कि वह पूरे जगत को राममय पाते थे – “सिया राममय सब जग जानी ”  उनका मूलमंत्र था। अतः उनका यह दृढ़ विश्वास था कि राम दरबार पहुँचते ही उनकी बिगड़ी बातें बन जाएँगी । अर्थात् राम ज्योंही उनकी बातों को जान जाएँगे, उनकी समस्याओं एवं कष्टों से परिचित होंगे, वे इसका समाधान कर देंगे। उनकी बिगड़ी हुई बातें बन जाएँगी ।

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प्रश्न 7. दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है लिखिए। 

उत्तर – दूसरे पद में तुलसीदास ने अपना परिचय देते हुए बड़ी बड़ी (ऊँची) बातें करनेवाला अधम ( क्षुद्र जीव) कहा है। छोटा मुँह बड़ी बात (बड़बोला) करने वाला व्यक्ति के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया है, जो कोढ़ में खाज (खुजली) की तरह है ।

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प्रश्न 8. दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है ?/प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है

उत्तर – दोनों पदों में भक्ति- रस की व्यंजना हुई है । तुलसीदासजी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगत जननी सीता की स्तुति द्वारा भक्तिभाव की अभिव्यक्ति इन पदों में की है ।

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प्रश्न 9. तुलसी के हृदय में किसका डर है ?

उत्तर – तुलसी की दयनीय अवस्था में उनके सगे-संबंधियों आदि किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की । उनके हृदय में इसका संताप था । इससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें संतों की शरण में जाना पड़ा और उन्हें वहाँ इसका आश्वासन भी मिला कि श्रीराम की शरण में जाने से सब संकट दूर हो जाते हैं । भौतिक अर्थ है – संसार के सुख-दुःख से भयभीत हुए और आध्यात्मिक अर्थ है- विषय वासना से मुक्ति का भय । कवि की उक्त पंक्तियां द्विअर्थी हैं। क्योंकि कवि ने भौतिक जगत की अनेक व्याधियों से मुक्ति और भगवद्-भक्ति के लिए समर्पण भाव की ओर ध्यान आकृष्ट किया है ।

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प्रश्न 10. राम स्वभाव से कैसे हैं ? पठित पदों के आधार पर बताइए । 

उत्तर – प्रस्तुत पदों में राम के लिए संत तुलसीदासजी ने कई शब्दों का प्रयोग किया है। जिससे राम के चारित्रिक गुणों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।

श्रीराम को कवि ने कृपालु कहा है। श्रीराम का व्यक्तित्व जन-जीवन के लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। प्रस्तुत पदों में तुलसी ने राम की कल्पना मानव और मानवेतर दो रूपों में की है । राम के कुछ चरित्र प्रगट रूप में और कुछ चरित्र गुप्त रूप में दृष्टिगत होते हैं । उपर्युक्त पदों में परब्रह्म राम और दाशरथि राम के व्यक्तित्व की व्याख्या की गयी है। राम में सर्वश्रेष्ठ मानव गुण है। राम स्वभाव से ही उदार और भक्तवत्सल हैं । दाशरथि राम का दानी के रूप में तुलसीदासजी ने चित्रण किया है । पहली कविता में प्रभु, बिगड़ा काम बनाने वाले, भवनाथ आदि शब्द श्रीराम के लिए आए हैं । इन शब्दों द्वारा परब्रह्म अलौकिक प्रतिभा संपन्न श्रीराम की चर्चा है ।

दूसरी कविता में कोसलराजु, दाशरथि, राम, गरीब निवाजू, आदि शब्द श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुए हैं। अतः, उपर्युक्त पद्यांशों के आधार पर हम श्रीराम के दोनों रूपों का दर्शन पाते हैं। वे दीनबंधु, कृपालु, गरीबों के त्राता के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। दूसरी ओर कोसलराजा, दसरथ राज आदि शब्द मानव राम के लिए प्रयुक्त हुआ है ।

इस प्रकार राम के व्यक्तित्व में भक्तवत्सलता, शरणागत वत्सलता, दयालुता अमित ऐश्वयं वाला, अलौकिकशील और अलौकिक सौन्दर्यवाला के रूप में हुआ है ।

प्रश्न 11. तुलसी को किस वस्तु की भूख है ?

उत्तर – तुलसीजी गरीबों के त्राता भगवान श्रीराम से कहते हैं कि हे प्रभु , मैं आपकी भक्ति का भूखा जनम-जनम से हूँ। मुझे भक्तिरूपी अमृत का पान कराकर क्षुधा की तृप्ति कराइए ।

प्रश्न 12. पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए। 

उत्तर – प्रस्तुत पद्यांशों में कवि तुलसीदास अपनी दीनता तथा दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए माँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरणों में विनय से युक्त प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं। नाम लै भरै उदर द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम का नाम-जप ही उनके लिए सबकुछ है। नाम-जप द्वारा उनकी लौकिक भूख भी मिट जाती है। संत तुलसीदास अपने को अनाथ कहते हुए कहते हैं कि मेरी व्यथा गरीबी की चिंता श्रीराम के सिवा दूसरा कौन बूझेगा ? श्रीराम ही एकमात्र कृपालु हैं जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे। माँ सीता से तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि हे माँ आप मुझे अपने वचन द्वारा सहायता कीजिए यानि आशीर्वाद दीजिए कि मैं भवसागर पार करानेवाले श्रीराम का गुणगान सदैव करता रहूँ ।

दूसरे पद्यांश में कवि अत्यंत ही भावुक होकर प्रभु से विनती करता है कि हे प्रभु आपके सिवा मेरा दूसरा कौन है जो मेरी सुधि लेगा। मैं तो जनम-जनम से आपकी भक्ति का भूखा हूँ। मैं तो दीन-हीन दरिद्र हूँ। मेरी दयनीय अवस्था पर करुणा कीजिए ताकि आपकी भक्ति में सदैव तल्लीन रह सकूँ ।

प्रश्न 13. ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर हीं ते काजु’- यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है ? 

उत्तर – प्रस्तुत काव्य पंक्ति तुलसी के दूसरे पद से ली गयी हैं। इसमें ‘औरन’ का प्रयोग-दूसरा कोई नहीं के अर्थ में हुआ है। लेकिन भाव राम भक्ति से है। यानि श्रीराम से है।

तुलसी दास कहते हैं कि हे श्रीरामचंद्रजी ! आज सबेरे से ही मैं आपके दरवाजे पर अड़ा बैठा हूँ | रें- रें करके रट रहा हूँ, गिड़गिड़ाकर भीख माँग रहा हूँ, मुझे और कुछ नहीं चाहिए एक कौर टुकड़े से ही काम बन जाएगा। यानि आपकी जरा-सी कृपा दृष्टि से मेरा सारा काम पूर्ण हो जाएगा । यानि जीवन सार्थक हो जाएगा । औरन का प्रयोग भक्ति के लिए प्रभु-कृपा जरूरी है के संदर्भ में हुआ है । यानि श्रीराम ही एकमात्र सहारा है, नहीं है । दूसरा कोई

प्रश्न 14. दूसरे पद में ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया गया ? 

उत्तर – तुलसी ने अपने दूसरे पद में दीनता और दरिद्रता दोनों शब्दों का प्रयोग किया है । शब्दकोश के अनुसार दोनों शब्दों के अर्थ एक-दूसरे से सामान्य तौर पर मिलते-जुलते हैं, किन्तु प्रयोग और कोशीय आधार पर दोनों में भिन्नता है ।

(i) दीनता का शाब्दिक अर्थ है- निर्धनता, पराधीनता, हीनता, दयनीयता आदि ।

(ii) दरिद्रता का शाब्दिक अर्थ है- अपवित्रता, अरुचि, अशुद्धता, दरिद्रता और घोर गरीबी में जीनेवाला । निर्धनता के कारण समाज में व्यक्ति को प्रतिष्ठा नहीं मिलती है इससे भी उसे अपवित्र माना जाता है ।

(iii) दरिद्र दुर्भिक्ष और अकाल के लिए भी प्रयुक्त होता है ।

संभव है तुलसीदासजी अपनी दीन-हीन दशा के कारण अपने को अशुद्ध/ अशुचि के रूप में देखते हैं। एक का अर्थ गरीबी, बेकारी, बेबसी के लिए और दूसरे का प्रयोग अशुद्धि, अपवित्रता के लिए हुआ हो । तीसरी बात भी है- तुलसीदास जी जब इस कविता की रचना कर रहे थे तो उस समय भारत में भयंकर अकाल पड़ा था जिसके कारण पूरा देश घोर गरीबी, भुखमरी का शिकार हो गया था। हो सकता है कि अकाल के लिए भी प्रयोग किया हो । कवि अपने भावों के पुष्टीकरण के लिए शब्दों के प्रयोग में चतुराई तो दिखाते ही हैं । ।

प्रश्न 15. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए । 

उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए प्रथम पद का भावार्थ देखें ।

प्रश्न 16. तुलसदास का कवि परिचय लिखिए ।

उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर के लिए कवि परिचय देखिए |

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