Bihar Board Class 9 Hindi Aa Rahi Ravi Ki Sawari Chapter 6

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BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 6 आ रही रवि के सवारी

Bihar Board Class 9 Hindi आ रही रवि के सवारी Text Book Questions and Answers

Class 9 Hindi Aa Rahi Ravi Ki Sawari
प्रश्न 1.
‘आ रही रवि की सवारी’ कविता का केंद्रीय भाव क्या है? .
उत्तर-
‘आ रही रवि की सवारी’ कविता हमारी पाठ्य पुस्तक से संकलित की गई है। इस कविता के रचनाकार महाकवि हरिबंशराय बच्चन’ जी हैं।
उपरोक्त काव्य पंक्तियों में ‘बच्चन’ जी ने आशावादी भावनाओं को प्रकट करते हुए जीवन में उसके महत्व के प्रति सबका ध्यान आकृष्ट किया है। बच्चन जी की पहली पत्नी के असामयिक मृत्यु के कारण जीवन में निराशा छा गई थी। कवि बच्चन चिंताओं से घिरकर निष्क्रिय बन गए थे। किन्तु कुछ अंतराल के बाद कवि के जीवन में भोर की पहली किरण प्रकट हुई और क्षितिज पर नए सूरज का प्रतिबिंब दिखाई पड़ा। कहने का मूल भाव यह है कि कवि के जीवन में निराशा की जगह आशा की किरणें फूटी एवं नव उत्साह के साथ कवित काव्य सृजन की ओर उन्मुख हुआ। काव्य-सृजन ही नहीं जीवन-सृजन की ओर भी आशा के साथ नए पथ का पथिक बनकर यात्रा का शुभारंभ किया। आ रही रवि की सवारी में विंब प्रयोग भी है, प्रतीकात्मक प्रयोग भी है। सूर्य की सवारी आ रही है-इस पंक्ति का आशय यह हुआ कि प्राची दिशा में सूरज अपनी आभा युक्त किरणों के साथ पृथ्वी पर सवारी के साथ आ रहा है। यानि कवि के जीवन में नयी चेतना, ऊर्जा, उत्साह का स्पंदन हो रहा है। ‘आ रही रवि की सवारी’ का प्रतीक प्रयोग केवल कवि के जीवन में नयी चेतना और नवजागरण के स्फुरण से संबंधित नहीं है। बल्कि राष्ट्र में स्वाधीनता संग्राम एवं राष्ट्र के नवनिर्माण से भी है। प्रकारान्तर से यह कविता केवल कवि के व्यक्तिगत जीवन से न जुड़कर राष्ट्रीय जनजीवन की आजादी और नवनिर्माण से भी जुड़ी हुई है। इस प्रकार इस कविता का मूल केन्द्रीय भाव राष्ट्रीयता से है; स्वाधीनता . से है और जन जीवन के नवनिर्माण से है।
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प्रश्न 2.
कवि ने किन-किन प्राकृतिक वस्तुओं का मानवीकरण किया है?
उत्तर-
कवि ने ‘आ रही रवि की सवारी ‘कविता में ‘रवि’ का मानवीकरण किया है। बादलों का भी सही मानवीकरण का स्वरूप प्रदान कर कविता में नयी जान फूंक दी है। विहग, तारों, रात का राजा यानि चाँद आदि का प्राकृतिक वस्तुओं का कवि ने मानवीकरण कर कविता में नए-सौंदर्य की अभिवृद्धि की है।
नव किरण, कलि-कुसम का भी इस कविता में मानवीकरण किया गया है।
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‘आ रही रवि की सवारी’ कविता में चित्रित सवारी का वर्णन करें।
उत्तर-
आ रही रवि की सवारी’ काव्य-कृति में कवि ने प्राकृतिक वस्तुओं से सुसज्जित सवारी का चित्रण करते हुए सूर्य यानि रवि के आगमन का अपने शब्दों में वर्णन किया है। कलियों एवं फूलों से सुसज्जित एवं सुवासित पथ का निर्माण कवि ने किया है। बादल स्वर्णमयी पोशाक पहनकर अनुचर बनकर भागवानी कर रहे हैं, रवि के आने का संकेत कर रहे हैं। सूर्य का रथ नव किरणों से युक्त यानि नवकिरण रूपी रथ पर नया सूरज सवारी कर धरा पर अवतरित हो रहा है।
पंक्षी-गण बंदी और चारणों की भाँति कीर्ति-गायन कर रहे हैं।
किताबों की अलमारी
सूर्य के आगमन से तारों रूपी फौज आसमान यानि मैदान को छोड़कर भाग चुकी है। कवि के हृदय में विजय का भाव जागरित होता है कि, इस दृश्य पर वह उछले; कूदे, इसकी वंदना करे किन्तु कुछ पल ठिठककर वह पुनः सोचता है कि चंद्रमा जो रात का राजा है, राह में भिखारी के रूप में दृष्टिगत होता है यानि रवि प्रकाश के आगे वह निस्तेज है, प्रभाहीन है। इस प्रकार रवि की सवारी धरा पर अवतरित हो रही है।
प्रस्तुत कविता में प्रतीकात्मक प्रयोगों द्वारा कवि ने अपने मनोभावों के साथ राष्ट्रीय समस्याओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। प्रतीकों का प्रयोग बड़ा ही सटीक ढंग से किया गया है। मानवीकरण द्वारा यथार्थ का चित्रण करने में कवि सफल हुआ है। इस प्रकार प्रकृति चित्रण के साथ मानवीय जीवन एवं राष्ट्रीय जीवन के पुनर्निर्माण एवं आजादी के प्रति संकेत-भाव भी इस कविता का मूल उद्देश्य है।
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प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
चाहता उछलूँ विजय कह
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है राह में बनकर भिखारी!
उत्तर-
उपरोक्त पक्तियों में महाकवि बच्चन ने प्रकृति के स्वरूप का चित्रण करते हुए अपने हृदय के उदगारों को भी प्रकट किया है। इन पंक्तियों में कवि ने ‘विजयोल्लास’ भाव का चित्रण करते हुए हृदय की प्रसन्नता को प्रकट किया है। कवि की हार्दिक इच्छा है कि ‘रवि की जो सवारी आ रही है। उसके प्रति विजय भाव प्रकट करते हुए उछलूँ, कहूँ और वंदना करूँ, खुशियाँ प्रकट करूँ। इन पंक्तियों में आजादी के प्रथम प्रहर पर कवि को खुशी का ठिकाना नहीं है। वह इस आजादी को प्राप्ति पर हर्षातिरेक से गद्गद् है कि इसी के साथ वह ठिठककर सोचता है . . कि यह आजादी तो मिली है किन्तु चंद्रमा पो रात का राजा राह में भिखारी के रूप में खड़ा है यानि इन पंक्तियों में प्रतीकात्मक प्रयोग है। यह आजादी अभी अधूरी है जबतक राष्ट्रीय जीवन में स्वाधीनता के साथ-सा नवनिर्माण का भी सूर्य परिलक्षित न हो।
उपरोक्त पंक्तियों का संबंध कवि के व्यक्तिगत जीवन से भी है क्योंकि पहली पत्नी के असामयिक मृत्यु के बाद कवि के जीवन में निराशा, कुंठा का
साम्राज्य छा गया था किन्तु धीरे-धीरे यह निराशा रूपी कुहरा छंटा और कवि कं __जीवन में नयी आशा की किरणें फूटी और सृजन कर्म का नय अध्याय का सूत्रपात हुआ।
ठीक दसरा अर्थ भी इस पंक्तियों के साथ जटा हआ है, जो राष्टीय समस्याओं एवं राष्ट्रीय जन-जीवन से भी जडां हआ है। इस प्रकार कवि की पंक्तियों में .व्यक्तिगत जीवन के चित्रण के साथ सामाजिकता और राष्ट्रीयता का भी चित्रण है।

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प्रश्न 5.
रवि की सवारी निकलने के पश्चात् प्रकृति उसका स्वागत किस प्रकार से करती है?
उत्तर-
महाकवि बच्चन ने अपनी कविता में प्रकृति चित्रण का अनोखा स्वरूप गढ़ा है। जब रवि को सवारी निकल रही है उसका सजीव चित्रण करते हुए – कवि कहता है कि नए किरणों के रथ पर सूर्य सवारी कर आ रहा है। कलियों एवं फूलों से राह सजा हुआ और सुवासित है। बादल स्वर्ण वस्त्रों में मुसज्जित होकर अनुचर बने हुए हैं। बंदी और चारण के रूप में पक्षीगणः कीर्ति- गायन यानि बंदना कर रहे हैं, अभ्यर्थना कर रहे हैं।
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प्रश्न 6.
रात का राजा भिखारी कैसे बन गया?
उत्तर-
‘रात का राजा’ का अभिप्राय यहाँ चंद्रमा से है! चंद्रमा का अपना – प्रकाश तो नहीं होता है। वह सूर्य-प्रकाश से ही आलोकित होता है।
जब सूर्योदय हो रहा है, रजनी सिमटकर विदा ले रही है। तारों का समूह आकाश से ओझल हो रहा है तब चंद्रमा भी जो सूर्य-प्रकाश से आलोकित है, अब सूर्य प्रकाश के अभाव में निस्तेज पड़ गया है, प्रभाहीन हो गया है। उसकी दशा भिखारी की तरह हो गयी है। यहाँ कवि ने प्रतीकात्मक प्रयोगों द्वारा प्रकृति का अद्भुत मानवीकरण प्रस्तुत किया है। इन पंक्तियों में चित्रण की बारीकी है। यथार्थ का सटीक चित्रण है। प्रकारान्तर से कवि के प्रभाहीन, स्त्री-विहीन जीवन से यह प्रसंग जुड़ा हुआ है। साथ ही राष्ट्रीय नव जागरण, स्वाधीनता एवं नव-निर्माण का भी । सूक्ष्म भाव इन पंक्तियों में छिपा हुआ है। इस प्रकार गुलामी युक्त भारतीय जन जीवन का भी चित्रण है। कवि के व्यक्तिगत जीवन का भी प्रसंग जुड़ा है। इस प्रकार प्रकृति के माध्यम से कवि ने जीवन–प्रसंगों के यथार्थ का सटीक चित्रण किया है।
प्रश्न 7.
इस कविता में ‘रवि को राजा’ के रूप में चित्रित किया गया है। अपने शब्दों में यह चित्र पुनः स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
अपनी कविता में महाकवि ‘बच्चन’ ने ‘रवि को राजा’ के रूप में चित्रित किया है। यहाँ ‘रवि को राजा’ का भाव दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। प्रकृति के रूपों के माध्यम से कवि ने अपने व्यक्तिगत जीवन के यथार्थ-चित्रण के साथ भारत रूपी सूर्य के भी भाग्योदय का चित्रण किया है। कहने का आशय है कि इन कविता में दो भाव छिपे हुए हैं-एक का संबंध कवि-जीवन से एवं दूसरा का संबंध राष्ट्रीय जीवन से है।
पहली पत्नी की मृत्यु के बाद कवि के जीवन में गहरी निराशा और अवसाद का साम्राज्य छा जाता है और कवि व्यथित, पीड़ित होकर कुछ दिनों तक निष्क्रियता की गोद में सो जाता है।
कुछ दिनों के बाद कवि के जीवन में नए सूरज का आगमन होता है, नयी किरणें स्वागत करती हैं। प्रकृति प्रसन्नता की वर्षा करती हैं और कवि नवोल्लास के साथ नयी काव्य रचना की ओर प्रवृत्त हो जाता है। यहाँ रवि को राजा का भाव कवि के जीवन से भी है। कवि आज आशा की किरणों के बीच संभावनाओं के सूरज के साथ दिखाई पड़ता है यानि स्वयं सूर्य सदृश नयी आशा, नए जोश, नए सृजन के साथ जीवन-पथ पर अग्रसर होता है। कहने का भाव यह है कि कवि खुद रवि रूपी राजा है। आज का सूर्य है। दूसरा कविता का भाव यह है कि भारत रूपी सूर्य का भाग्य अब चमक रहा है क्योंकि स्वाधीनता रूपी किरणें अपनी आभा से सारे राष्ट को जगमग-जगमग कर रही है। राष्ट्रीय जीवन में स्वाधीनता एवं नवनिर्माण का भी प्रतीकात्मक प्रयोग सर्य के रूप में हआ है। यानि भारत अब आजाद मल्क के रूप में अन्तरराष्ट्रीय क्षितिज पर उभरा है और नवनिर्माण का सूर्य अपनी नयी किरणों के साथ इस धारा को आलोकित कर रहा है।
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प्रश्न 8.
कवि क्या देखकर ठिठक जाता है और क्यों?
उत्तर-
उपरोक्त काव्य पंक्तियों में कवि आजादी प्राप्ति पर तो खुशियाँ व्यक्त करता है, विजय गान करना चाहता है, उछलना, कूदना चाहता है; किन्तु वह अचानक ठिठक जाता है। ऐसा क्यों कवि करता है? यहाँ एक गढ प्रभाव है। रात का राजा यानि चंद्रमा जो निस्तेज पड़ा है, प्रभाहीन है, दीन-हीन है, दरिद्र के रूप में चित्रित है-स्वयं कवि के जीवन से भी यह प्रसंग जुड़ा हुआ है दूसरा राष्ट्रीय नवनिर्माण से भी संबंधित है। पूरा जन जीवन निस्तेज प्रभाशून्य, बेबसी और लाचारी में जीने के लिए अभिशप्त है। जबतक उनके जीवन में नवनिर्माण की किरणें अपनी आभा नहीं बिखर देती तबतक यह प्रसन्नता, यह आजादी यह विजय-गान अधूरा रहेगा। ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी पत्नी के अभाव में अधूरा है। निराशामय है। कष्टप्रद है। भिखारी के समान है। कवि की पंक्तियों का प्रयोग द्वि-अर्थक है। इनमें मानवीय जीवन की सटीक चित्रण तो हुआ ही है मानवीकरण में भी कवि को सफलता मिली है।
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प्रश्न 9.
सूर्योदय के समय आकाश का रंग कैसा होता है-पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर-
प्रात:कालीन बेला में पूरब दिशा में जब सूर्य क्षितिज पर दिखाई पड़ता है उस समय आकाश का रंग लालिमा-युक्त रूप में दृष्टिगत होता है।
सूर्य की किरणें अपनी आभा से पूरे बादलों को स्वर्णमयी स्वरूप प्रदान करती है। प्रतीत होता है कि आकाश के ये बादल स्वर्णमयी पोशाक पहनकर अनुचर का कार्य कर रहे हैं। सूर्य की नयी किरणें रथ का रूप धारण कर उसमें सूर्य को बिठाकर – धरती पर उतर रही है। धरा की कलियाँ और फूल सूर्य की अगवानी में पथ को सजाकर सुवासित रूप प्रदान कर रहे हैं।
इस प्रकार प्रात:कालीन बेला में सूर्योदय के समय प्राची दिशा में आकाश का रंग लालिमा युक्त, मनोहारी एवं सुखद होता है।
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प्रश्न 10.
‘चाहता उछलूँ विजय. कह’ में कवि की कौन-सी आकांक्षा व्यक्त होती है?
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि बच्चन ने अपने मन के भावोद्गार को प्रकट किया है। नयी चेतना से संपन्न कवि अब अपनी काव्य-सृजन द्वारा हृदय में छिपे हए उत्साह और उमंग को प्रकट करते हुए नए सूरज की वंदना करना चाहता है। कवि कहता है कि मेरी इच्छा होती है कि उछलँ, कुदूं और इस नयी सुबह का विजय गान करूँ। जीवन में जो नए उत्साह और नयी आशा की किरणें प्रस्फुटित हो रही हैं, उससे कवि अतिशय प्रसन्न है। कवि के जीवन में जो नया परिवर्तन हुआ है। निराश की बदली छंट गयी है। निष्क्रियता का साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया है। सक्रिय जीवन के साथ कवि सृजन-कर्म की ओर प्रवृत्त हो गया है। इस प्रकार कवि के जीवन में नए सूरज का आगमन हुआ है। नयी किरणों से सुसज्जित रथ पर सवारी किए हुए प्रकृति द्वारा अभिनदित सूरज की प्रभा से आलोकित जीवन और जगत को देखकर कवि अतिशय प्रसन्न है। इसी प्रसन्नता को वह व्यक्त करना चाहता है।
विजय-गान करना चाहता है।
दूसरा अर्थ भी काव्य पंक्तियों में सन्निहित है। राष्ट्रीय जनजीवन में भी स्वाधीनता रूपी सूर्य का आगमन हुआ है। सारा जन-जीवन पुनर्निर्माण में लगा हुआ है। इस कारण भी कवि का हृदय अत्यंत पुलकित है। दोनों अर्थ अपनी सार्थकता के कारण ध्यातव्य हैं। इस प्रकार कवि के भीतर जो उछाह है, उमंग है वह अवर्णनीय है।
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प्रश्न 11.
‘राह में खड़ा भिखारी’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
उपरोक्त काव्य पंक्तियों में ‘राह में खड़ा भिखारी’ प्रतीकात्मक प्रयोग है। प्रकृति के माध्यम से कवि बहुत बड़ी बात कहना चाहता है।
‘राह में खड़ा भिखारी’ का आशय चंद्रमा से है। चंद्रमा जिस प्रकार सूर्य-प्रभा से श्रीहीन होकर दीनता, हीनता को प्राप्त हो गया है। वह निस्तेज पड़ गया है। उसकी सारी प्रभा समाप्त हो चुकी है। एक दीन-हीन भिखारी सदृश उसकी स्थिति हो गयी है। ठीक उसी प्रकार भारतीय राष्ट्रीय जन-जीवन की भी स्थिति है। यहाँ की जनता श्री संपन्नता से हीन होकर गुलामी की जंजीर में युगों-युगों से आबद्ध है; पीड़ित है,
शोषित है। कवि का ध्यान उधर भी गया है और कवि ने प्रकारान्तर से राष्ट्रीय समस्याओं, विसंगतियों का भी चित्रण किया है।
तीसरी बात भी इस कविता में दृष्टिगत होती है। कवि प्रथम पत्नी के असामयिक देहावसान से भी पीड़ित है, दुःखित है। उसका भी जीवन श्रीहीन है। अभावग्रस्त है। पत्नी-बिछोह से पीड़ित है। हो सकता है आगे चलकर उसके जीवन में ऐसा मोड़ आया हो जिसके कारण जीवन-क्रम का चक्र बदल गया है और नयी चेतना से संपन्न होकर पुनः नए सृजन में प्रवृत्त हुआ हो। इस प्रकार उपरोक्त पंक्तियों में ये सारे भाव परोक्ष रूप से छिपे हुए हैं जिन्हें समझने एवं चिंतन करने के लिए संवेदनशीन होना अत्यावश्यक है।
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प्रश्न 12.
‘छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी’ का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
हरिबंश राय बच्चन हिन्दी साहित्य के चर्चित कवि हैं। इनकी . कविताओं में सरलता, सहजता एवं बोधगम्यता मिलती है। संवेदनशील एवं आत्म-विश्लेषणवाली कविताओं द्वारा कवि ने व्यक्त-वेदना, राष्ट्र चेतना और जीवन-दर्शन के स्वर को बुलंद किया है।
उपरोक्त काव्य पंक्तियों में कवि ने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया है। कविता का भाव-पक्ष बड़ा ही प्रबल एवं प्रभावोत्पादक है। कवि कहता है कि सूर्य . की जब सवारी आ रही है तब तारों की फौज यानि तारों का समूह आकाश रूपी । मैदान को छोड़कर भाग रहा है। यहाँ कवि.ने रूपक अलंकार का प्रयोग करते हुए – युद्ध के दृश्य का चित्रण किया है। इस पंक्तियों में भय का दर्शन होता है। सूर्य के आगमन का समाचार सुनकर तारों की फौज पलायन कर जाती है, मैदान छोड़ देती है। भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों दृष्टियों से कविता प्रभावकारी है। चित्रण में स्पष्टता और सफलता प्राप्त है। अलंकार एवं रस प्रयोग में भी कवि को सफलता मिली है। शब्द चयन में एवं प्रयोग में भी कवि स्वयं को सिद्धहस्त सिद्ध किया है। तारों-की फौज सारी यहाँ दुष्टांत अलंकार के रूप में भी प्रयुक्त हुआ है। इस प्रकार इस प्रयोग में कवि ने स्थायी भाव का प्रयोग करते हुए उत्साहवर्द्धक दृश्यों का चित्रण किया है। इन काव्य पंक्तियों में सूर्य के शौर्य का चित्रण हुआ है। प्रसाद गुण की व्याख्या की गई है।
नीचे लिखे पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।
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1. नव किरण का रथ सजा है
कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी
आ रही रवि की सवारी
विहगबंदी और चारण,
गा रहे हैं कीर्तिगायन,
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी
आ रही रवि की सवारी
(क) कवि और कविता के नाम लिखें।
(ख) यहाँ किस राजा की सवारी का किस रूप में वर्णन किया गया
(ग) ‘नव किरण का रथ सजा है’ कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
(घ) इस पद्यांश में पथ के अनुचरों की, और बंदी चारणों की उपमा किससे किस रूप में दी गई है?
(ङ) ‘छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी’ कथन का अर्थ स्पष्ट करें।
(च) रवि-राजा की सवारी के आगमन का चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
उत्तर-
(क) कवि-हरिवंश राय बच्चन’, कविता-आ रही रवि की सवारी
(ख) यहाँ रवि-राजा की सवारी का वर्णन किया गया है। वह सवारी सूर्य की नई किरणों के रथ पर निकल रही है। प्रातः काल खिली कलियाँ और कुसुम उसके आगमन के सजे पथ हैं। छिटपुट छाए बादलों के रंगीन रूप, स्वर्ण पोशाकधारी अनुचर के रूप हैं। कलरव करते पक्षी यशोगान करते बंदी और चारण
(ग) ‘नव किरण का रथ सजा है’ का अर्थ इस रूप में स्पष्ट है-जब राजा की सवारी निकलती है तब उसके लिए रथ को सजाकर-सँवारकर तैयार किया जाता है। इस पर राजा को बैठाकर सवारी निकाली जाती है। यहाँ राजा के रूप में सूर्य को प्रस्तुत किया गया है और कवि ने सूर्य की निकल रही किरणों को रथ के रूप में चर्चित किया है। रवि राजा की निकल रही सवारी में नव किरणों से सजे रथ के स्वरूप को कवि ने इस रूप में प्रस्तुत किया है।
(घ) इस पद्यांश में पथ की उपमा कलि-कुसुम से, अनुचरों की उपमा बादलों से और बंदी-चाणों की उपमा पक्षी-वृंद से दी गई है। सूर्य राजा की निकल रही सवारी के लिए पथ के रूप में कलि-कुसुम, अनुचरों के रूप में बादलों के खंड और बंदी चारणों के रूप में पक्षी-वृंद लग हुए हैं।
(ङ) इस कथन का मतलब यह है कि सूर्य राजा को प्रकट होते देख दुश्मन रूपी चमकते तारों की पूरी फौज आकाश में देखते-देखते भाग खड़ी होती है।
(च) सूर्य राजा की सवारी आ रही है। वह सवारी रवि की नवकिरणों से सजे रथ पर निकली है। उस रथ का पथ कलियों-फूलों से सजा हुआ है। बादल अनुचर के रूप में उसमें शामिल हैं जो स्वर्णवर्णी पोशाक पहने हुए हैं। उस समय पक्षियों का कलरव-गान बंदियों और चारणों के यशोगान के रूप में गूंज रहा है। रवि की निकली सवारी के स्वरूप का वर्णन कवि ने इसी रूप में किया है।
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2. चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह
रात का राजा खड़ा है राह में बनकर भिखारी
आ रही रवि की सवारी
(क) कवि और कविता के नाम लिखिए।
(ख) ‘चाहता, उछा विजय कह’ कथन में कवि की क्या आकांक्षा व्यक्त हुई है?
(ग) कवि क्या देखकर ठिठक जाता है और क्यों?
(घ) यहाँ रात का राजा किसे कहा गया है और क्यों?
(ङ) राह में कौन भिखारी बनकर खड़ा है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवि-हरिवंश राय बच्चन’, कविता-आ रही रवि की सवारी
(ख) रवि की सवारी तामझाम के साथ निकल रही है। उसके आगमन से उल्लास का प्रकाश सर्वत्र छा जाता है। रात्रि के अंधकार में टिमटिमाते तारों की फौज रवि राजा की सवारी को निकलते देख राजा के डर से भाग खड़ी होती हैं। कवि के मन में भी आनंद और आशा की नई किरण फूटी है और वहाँ से निराशा का अंधकार तिरोहित हो गया है। कवि इस हर्षातिरेक की मनः स्थिति में अंधकार पर प्रकाश की विजय को देख आनंद और उमंग में उछलना चाहता है।
(ग) इस आनंद की मन:स्थिति में कवि उत्साह और अमंग में उछलकर अपना हर्ष व्यक्त ही करना चाहता है कि सामने रात के राजा चंद्रमा को श्रीहीन, हतप्रभ और भिखारी के रूप में उपस्थित देखकर, वह ठिठक जाता है, अर्थात् आश्चर्यचकित हो जाता है।
(घ) यहाँ रात का राजा चंद्रमा को कहा गया है। जब आकाश में सूर्य डूबता है तो संध्या आती है और फिर रात्रि का अंधकार सब जगह पसर जाता है। उस स्थिति में निर्मल, शुभ्र तथा उज्ज्वल प्रकाश में चमकता चाँद आसमान में अपने तेज और दीप्ति में रात के राजा के रूप में अपना परिचय देता है। रातभर रात के उस राजा का तेज, आलोक और प्रकाश सबको एक राजा के रूप में हतप्रभ कराता रहता है। इसीलिए, कवि उसे रात का राजा कहता है।
(ङ) उषा-वेला में प्रकाश-पथ पर रात का राजा चंद्रमा भिखारी के रूप में खड़ा दिखाई देता है। कवि उसे इसलिए भिखारी कहता है कि उस समय वह बेचारा अपना सारा तेज, दीप्ति, आलोक और ज्योति की चमक खोकर दीन हीन व्यक्ति के रूप में उस पथ पर खड़ा दिखाई देता हैं उसके पास अपना प्रकाश, निजी संपत्ति और विभूति के रूप में कुछ बच तो नहीं रहा है! वह तो सूर्य के प्रकाश से ही रात भर राजा के रूप में चमकता-दमकता रहता है। लगता है कि उस समय वह भिखारी के रूप में प्रकाश की भीख माँगने के लिए खड़ा है।

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