खाद्य उत्पादन में वृद्धि की कार्यनीति

प्रश्न 1.मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर
मानव कल्याण में पशुपालन की भूमिका (Role of Animal Husbandry in Human Welfare)-विश्व की बढ़ती जनसंख्या के साथ खाद्य उत्पादन की वृद्धि एक प्रमुख आवश्यकता है। पशुपालन पर लागू होने वाले जैविक सिद्धान्त खाद्य उत्पादन बढ़ाने के हमारे प्रयासों में मुख्य भूमिका निभाते हैं। पशुपालन, पशु प्रजनन तथा पशुधन वृद्धि की एक कृषि पद्धति है। पशुपालन का सम्बन्ध पशुधन जैसे-भैंस, गाय, सुअर, घोड़ा, भेड़, ऊँट, बकरी आदि के प्रजनन तथा उनकी देखभाल से होता है जो मानव के लिए लाभप्रद हैं। इसमें कुक्कुट पालन तथा मत्स्य पालन भी शामिल हैं। मत्स्यकी (fisheries) में मत्स्यों (मछलियों), मृदुकवची (मोलस्क) तथा क्रस्टेशिआई (प्रॉन, क्रैब आदि) का पालन-पोषण, उनको पकड़ना (शिकार) बेचना आदि शामिल हैं। अति प्राचीनकाल से मानव द्वारा मधुमक्खी, रेशमकीट, झींगा, केकड़ा, मछलियाँ, पक्षी, सुअर, भेड़, ऊँट आदि का प्रयोग उनके उत्पादों जैसे- दूध, अण्डे, मांस, ऊन, रेशम, शहद आदि प्राप्त करने के लिए किया जाता रहा है।

डेरी उद्योग (dairying) एक पशुप्रबन्धन है जिससे मानव खपत के लिए दुग्ध तथा इसके उत्पाद प्राप्त होते हैं। कुक्कुट का प्रयोग भोजन (मांस) प्राप्त करने के लिए अथवा उनके अण्डों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। मधुमक्खी पालन शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव है। शहद उच्च पोषक महत्त्व का एक आहार है तथा आयुर्वेद औषधियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। मधुमक्खियों से मोम भी प्राप्त होता है, मोम का प्रयोग कान्तिवर्द्धक सौन्दर्य प्रसाधनों में तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश वाले उद्योगों में किया जाता है। एक गणना के अनुसार विश्व का 70 प्रतिशत से भी अधिक पशुधन भारत तथा चीन में है।

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प्रश्न 2.यदि आपके परिवार के पास एक डेरी फार्म है, तब आप दुग्ध उत्पादन में उसकी गुणवत्ता तथा मात्रा में सुधार लाने के लिए कौन-कौन से उपाय करेंगे?
उत्तर
डेरी फार्म प्रबन्धन से दुग्ध की गुणवत्ता में सुधार तथा उसका उत्पादन बढ़ता है। मूल रूप से डेरी फार्म में रहने वाले पशुओं की नस्ल की गुणवत्ता पर ही दुग्ध उत्पादन निर्भर करता है। क्षेत्र की जलवायु एवं परिस्थितियों के अनुरूप उच्च उत्पादन एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली नस्लों को अच्छी नस्ल माना जाता है। उच्च उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए पशुओं की अच्छी देखभाल, जिसमें उनके रहने के लिए अच्छा आवास तथा पर्याप्त स्वच्छ जल एवं रोगमुक्त वातावरण होना आवश्यक है। पशुओं को भोजन देते समय चारे की गुणवत्ता तथा मात्रा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दुग्धीकरण तथा दुग्ध उत्पादों के भण्डारण और परिवहन के दौरान स्वच्छता तथा पशुओं का कार्य करने वाले व्यक्ति के स्वास्थ्य का महत्त्व सर्वोपरि है। पशु चिकित्सक का नियमित जाँच हेतु आना अनिवार्य है। इन सभी कठोर उपायों को सुनिश्चित करने के लिए सही-सही रिकॉर्ड रखने एवं समय-समय पर निरीक्षण की आवश्यकता होती है। इससे समस्याओं की पहचान और उनका समाधान शीघ्रतापूर्वक निकालना सम्भव हो जाता है।

 

प्रश्न 3.नस्ल शब्द से आप क्या समझते हैं? पशु प्रजनन के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर
नस्ल (Breed) – पशुओं का वह समूह जो वंश तथा सामान्य लक्षणों जैसे- सामान्य दिखावट, आकृति, आकार, संरूपण आदि में समान हों, एक नस्ल के कहलाते हैं।
पशु प्रजनन का उद्देश्य (Objectives of Animal Breeding) – पशु प्रजनन, पशुपालन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। पशु प्रजनन का उद्देश्य पशुओं के उत्पादन को बढ़ाना तथा उनके उत्पादों की वांछित गुणवत्ता में सुधार करना है। कृत्रिम प्रजनन द्वारा उच्च दुग्ध उत्पादन वाली नस्ल की मादाओं तथा उच्च गुणवत्ता वाले मांस (कम वसा वाले मांस) प्रदान करने वाली नस्लों को सफलतापूर्वक जनित किया गया है जिससे अल्पकाल में ही बड़ी संख्या में पशुधन में वृद्धि सम्भव है।

 

प्रश्न 4.पशु प्रजनन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली विधियों के नाम बताएँ। आपके अनुसार कौन – सी विधि सर्वोत्तम है? क्यों?
उत्तर
पशु प्रजनन के लिए आधुनिक समय में निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं –
1. अन्तःप्रजनन (Inbreeding) – एक ही नस्ल के पशुओं के मध्य जब प्रजनन होता है तो वह अन्तःप्रजनन कहलाता है। इस विधि में एक नस्ल से उत्तम किस्म का नर तथा उत्तम किस्म की मादा को पहले अभिनिर्धारित किया जाता है तथा जोड़ों में उनका संगम कराया जाता है। ऐसे संगम से जो संतति उत्पन्न होती है, उस संतति का मूल्यांकन किया जाता है तथा भविष्य में कराए जाने वाले संगम के लिए अत्यन्त उत्तम किस्म के नर तथा मादा की पहचान की जाती है। इससे सामान्यत: जनन क्षमता तथा उत्पादन दोनों को बनाए रखने में सहायता मिलती है।

2. बहिःप्रजनन (Out breeding) – इसमें एक ही नस्ल की या भिन्न-भिन्न नस्लों या भिन्न प्रजातियों के सदस्य भाग लेते हैं। यह निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –

  1. बहिःसंकरण (Out-crossing) – इसमें एक ही नस्ल के ऐसे पशुओं का चयन किया जाता है जो 4-6 पीढ़ियों तक किसी भी वंशावली में संयुक्त (उभय) पूर्वज नहीं होते। इससे अन्तः प्रजनन अवसादन या अवर्नमन (depression) समाप्त हो जाता है। इस संगम के फलस्वरूप प्राप्त संतति बहिःसंकर (out-cross) कहलाती है।

  2. संकरण (Hybridization) – संकरण किसी जीव की ऐच्छिक विशिष्टताओं के संरक्षण एवं प्रसार की महत्त्वपूर्ण युक्ति है। जन्तु संकरण द्वारा मानवोपयोगी पशु-पक्षियों की नस्ल सुधारकर अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जाता है। संकरण दो विभिन्न नस्लों के वांछनीय गुणों के संयोजन में सहायक होता है। इससे नई नस्ल जो वर्तमान नस्लों से श्रेष्ठ होती हैं, प्राप्त की जाती हैं जैसे-हिसरडेल (Hisardale) नस्ल की भेड़ का विकास बीकानेरी भेड़ (ewes) तथा मैरीनो रेम्स (मेढ़ा-rams) से किया गया है।

  3. अन्त:विशिष्ट संकरण (Interspecific hybridization) – जब विभिन्न प्रजातियों के नर तथा मादा पशुओं के मध्य संकरण कराया जाता है तो इसे अन्त:विशिष्ट संकरण (interspecific hybridization) कहते हैं। उदाहरण के लिए-गधा तथा घोड़ा अलग-अलग जाति के पशु हैं, किन्तु इन पशुओं के आपस में संकरण द्वारा खच्चर उत्पन्न कराया जाता है। खच्चर गधे एवं घोड़े से अधिक शक्तिशाली होता है।

कृत्रिम निषेचन (Artificial Insemination) – इस विधि में वांछित गुणों वाले नर पशुओं के वीर्य को वीर्य बैंकों में सुरक्षित रखते हैं तथा आवश्यकतानुसार इच्छित मादा पशु के गर्भाशय में एक विशेष पिचकारी द्वारा वीर्य को पहुँचा दिया जाता है।
भारत में संकरण विधि द्वारा जन्तुओं की नस्ल सुधार हेतु अनेक शासकीय एवं अशासकीय अनुसन्धान संस्थान आई०सी०ए०आर० (ICAR-Indian Council of Agriculture Research) के अधीन कार्यरत हैं। इन संस्थानों में कार्यरत वैज्ञानिकों के शोध एवं प्रयासों द्वारा गाय, भैंस, भेड़, बकरी, घोड़ा, ऊँट, कुक्कुट, मछली आदि जन्तुओं की नस्ल एवं उपयोगिता में गुणात्मक सुधार हुआ है। फलतः अनेक जन्तु उत्पादों में विश्व में भारत को अग्रणी स्थान प्राप्त है। कृत्रिम वीर्य-सेचन सबसे अच्छी (सर्वोत्तम) पशु प्रजनन विधि है। इससे अल्प समय में उच्च गुणवत्ता वाले पशुओं को सफलतापूर्वक जनित किया जाता है।

 

प्रश्न 5.मौन (मधुमक्खी) पालन से आप क्या समझते हैं? हमारे जीवन में इसका क्या महत्त्व है?
या
मधुमक्खियों द्वारा निर्माण किये जाने वाले दो प्रमुख उत्पादों के नाम लिखिए। (2018)
उत्तर
मौन पालन (मधुमक्खी पालन-Bee Keeping)-शहद के उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के छत्तों का रख-रखाव ही मधुमक्खी पालन अथवा मौन पालन (Bee keeping) कहलाता है। मधुमक्खी पालन का व्यवसाय किसी भी क्षेत्र में जहाँ जंगली झाड़ियों, फलों के बगीचों तथा लहलहाती फसलों के पर्याप्त कृषि क्षेत्र या चरागाह हों किया जा सकता है। मधुमक्खी पालन यद्यपि अपेक्षाकृत आसान है, परन्तु इसके लिए विशेष प्रकार के कौशल की आवश्यकता होती है। मधुमक्खी पालन प्राचीनकाल से चला आ रहा एक कुटीर उद्योग है। मधुमक्खियों से शहद तथा मोम प्राप्त होता है। शहद का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है। मोम का उपयोग कान्तिवर्द्धक वस्तुओं की तैयारी तथा विभिन्न प्रकार के पॉलिश वाले उद्योगों में किया जाता है। पुष्पीकरण के समय यदि मधुमक्खी के छत्तों को खेतों के बीच में रख दिया जाए तो इससे पौधों की परागण क्षमता बढ़ जाती है और इस प्रकार फसल तथा शहद दोनों के उत्पादन में सुधार हो जाता है।

 

प्रश्न 6.खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में मत्स्यकी की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर
मत्स्यकी की भूमिका (Role of Fishery) – मत्स्यपालन के अन्तर्गत मछली पालने के तरीकों एवं इनके रख-रखाव और उपयोग के बारे में अध्ययन किया जाता है। मछलियों से मांस (प्रोटीन का स्रोत), तेल इत्यादि प्राप्त होता है। मत्स्यकी एक प्रकार का उद्योग है, जिसका सम्बन्ध मछली अथवा अन्य जलीय जीव को पकड़ना, उनका प्रसंस्करण (processing) तथा उन्हें बेचने से होता है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आहार के रूप में मछली, मछली उत्पादों तथा अन्य जलीय जन्तुओं पर आश्रित है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यकी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह समुद्र तटीय राज्यों में अनेक लोगों को आय तथा रोजगार प्रदान करती है। बहुत-से लोगों के लिए यह जीविका का एकमात्र साधन है। मत्स्यकी की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए इसके उत्पादन को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकें अपनाई जा रही हैं। नीली क्रान्ति (Blue Revolution) मछली उत्पादन से जुड़ी है। इसके अन्तर्गत अलवणीय तथा लवणीय जलीय प्राणियों के उत्पादन में-द्धि की जाती है।

मछली उत्तम प्रोटीन का खाद्य संसाधन है। मछलियों की अलवणीय नस्लों कतला, रोहू, मृगल, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प आदि प्रमुख हैं। कतला मछलियों की वृद्धि सबसे तेज होती है। समुद्री मछलियों के अतिरिक्त झींगा (prawn), केकड़ा (crabs), लॉबस्टर (lobster), ऑयस्टर (oyester) आदि प्रमुख समुद्री खाद्य संसाधन हैं।

प्रश्न 7.
पादप प्रजनन में भाग लेने वाले विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
पादप प्रजनन (Plant Breeding) – पादप प्रजनन कार्यक्रम अत्यन्त सुव्यवस्थित रूप से पूरे विश्व के सरकारी संस्थानों तथा व्यापारिक संस्थानों द्वारा चलाए जाते हैं। फसल की एक नई
आनुवंशिक नस्ल के प्रजनन में निम्नलिखित मुख्य चरण होते हैं –
(क) परिवर्तनशीलता का संग्रहण (Collection of Variability) – किसी भी प्रजनन कार्यक्रम का मूलाधार आनुवंशिक परिवर्तनशीलता है। बहुत-सी फसलों में यह गुण उन्हें अपनी पूर्ववर्ती आनुवंशिक जंगली प्रजातियों से प्राप्त होता है। किसी फसल में पाए जाने वाले सभी जीन्स के विविध ऐलील (alleles) के समस्त संग्रहण (पादप बीजों के रूप में) को उसका जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म) संग्रहण कहते हैं।

(ख) जनकों का मूल्यांकन तथा चयन (Evaluation and Selection of Parents) – पादपों को उनके लक्षणों के वांछनीय संयोजन के साथ अभिनिर्धारित किए जाने के लिए जननद्रव्य (जर्मप्लाज्म) को मूल्यांकित किया जाता है। चयन किए गए पादपों की संख्या वृद्धि कर उनका प्रयोग संकरण की प्रक्रिया में किया जाता है। इस प्रकार वांछनीय एवं शुद्ध वंशक्रम तैयार कर लिया जाता है।

(ग) चयनित जनकों के मध्य संकरण (Cross hybridization among the Selected Parents) – वांछित लक्षणों को बहुधा दो भिन्न जनकों से प्राप्त कर संयोजित किया जाता है। यह संकरण (hybridization) द्वारा सम्भव है कि जनकों के संकरण से वांछित आनुवंशिक लक्षणों का संगम एक पौधे में हो सके। जैसे—उच्च प्रोटीन गुणवत्ता वाले जनक तथा रोग प्रतिरोधक जनक के संयोजन से वांछित (उच्च प्रोटीन-गुणवत्ता एवं रोग प्रतिरोधक) आनुवंशिक लक्षणों वाला पौधा प्राप्त किया जा सकता है।

(घ) श्रेष्ठ पुनर्योगज का चयन तथा परीक्षण (Selection and Testing of Super Recombinant) – प्रजनन उद्देश्य को प्राप्त करने में चयन की यह प्रक्रिया अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत संकरों (hybrids) की संतति से ऐसे पादपों का चयन किया जाता है जिनमें वांछित लक्षण संयोजित हों। स्वपरागण द्वारा शुद्ध लक्षणों को प्राप्त किया जाता है।

(ङ) नए कंषणों का परीक्षण, निर्मुक्त होना तथा व्यापारिकरण (Testing, Release and Commercialization of New Cultivars) – नए चयनित वंशक्रम को उनके उत्पादन तथा अन्य गुणवत्ता; रोगप्रतिरोधकता आदि गुणों के आधार पर मूल्यांकित किया जाता है। मूल्यांकित पौधों को अनुसन्धान वाले खेतों में जहाँ उपयुक्त उर्वरक; सिंचाई तथा अन्य शस्य प्रबन्धन उपलब्ध हों, वहाँ उगाया जाता है तथा उसमें उपर्युक्त गुणों का मूल्यांकन किया जाता है। इसके पश्चात् चयनित पादपों के बीजों को व्यापारिक स्तर पर उगाने के लिए निर्गत कर दिया जाता है।

 

प्रश्न 8.जैव प्रबलीकरण का क्या अर्थ है? व्याख्या कीजिए। (2015, 16, 17)
उत्तर
जैव प्रबलीकरण (Biofortification) – उन्नत खाद्य गुणवत्ता रखने वाली फसलों में पादप प्रजनन को जैव प्रबलीकरण कहते हैं। जैव प्रबलीकरण द्वारा प्राप्त उच्च विटामिन, खनिज, प्रोटीन तथा स्वास्थ्यवर्द्धक वसा वाली प्रजनित फसलें जनस्वास्थ्य को सुधारने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक माध्यम होती हैं। उन्नत पोषक गुणवत्ता के लिए निम्नलिखित को सुधारने के उद्देश्य से प्रजनन किया जाता है –

  1. प्रोटीन की मात्रा तथा गुणवत्ता,

  2. तेल की मात्रा तथा गुणवत्ता,

  3. विटामिन की मात्रा,

  4. सूक्ष्मपोषक तथा खनिज की मात्रा।

जैव प्रबलीकरण के द्वारा ही मक्का, गेहूँ तथा धान की उच्च गुणवत्ता वाली किस्में विकसित की गई हैं। सन् 2000 में विकसित की गई मक्का में ऐमीनो एसिड, लाइसीन तथा ट्रिप्टोफैन की दुगुनी मात्रा विकसित की गई। गेहूं की किस्म (एटलस 66 कृष्य) जिसमें उच्च प्रोटीन मात्रा है, विकसित की गई हैं। धान की उच्च लौह तत्त्व वाली किस्म विकसित की गई, इसमें सामान्यत: प्रयोग में लाई गई किस्मों की तुलना में लौह तत्त्व की मात्रा पाँच गुना अधिक है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली ने प्रचुर मात्रा में विटामिन तथा खनिज वाली सब्जियों की फसलें विकसित की हैं।

 

प्रश्न 9.विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप को कौन-सा भाग सबसे अधिक उपयुक्त है। तथा क्यों?
उत्तर
विषाणु मुक्त पादप तैयार करने के लिए पादप का शीर्ष तथा कक्षीय भाग (विभज्योतक) सबसे अधिक उपयुक्त होता है, क्योंकि यह भाग विषाणु से अप्रभावित रहता है।

 

प्रश्न 10.सूक्ष्मप्रवर्धन द्वारा पादपों के उत्पादन के मुख्य लाभ क्या हैं?
उत्तर
सूक्ष्मप्रवर्धन (Micropropagation) – ऊतक संवर्धन द्वारा हजारों की संख्या में पादपों को उत्पन्न करने की विधि सूक्ष्मप्रवर्धन कहलाती है। इनमें प्रत्येक पादप आनुवंशिक रूप से मूल पादप के समान होते हैं जिससे वे तैयार किए जाते हैं। ये सोमाक्लोन (somaclones) कहलाते हैं। अधिकांश महत्त्वपूर्ण खाद्य पादपों जैसे-टमाटर, केला, सेब आदि का बड़े पैमाने पर उत्पादन इस विधि द्वारा किया गया है।

इस विधि द्वारा अत्यन्त ही अल्प अवधि में हजारों पादप तैयार किए जा सकते हैं। इस विधि का अन्य महत्त्वपूर्ण उपयोग रोगग्रसित पादपों से स्वस्थ पादपों को प्राप्त करना है। यद्यपि पादप विषाणु से संक्रमित है, परन्तु विभज्योतक (शीर्ष तथा कक्षीय) विषाणु से अप्रभावित रहती है। अत: विभज्योतक (मेरिस्टेम) को अलग करके उन्हें विट्रो संवर्धन में उगाया जाता है, ताकि विषाणु मुक्त पादप तैयार हो सकें। वैज्ञानिकों को केला, गन्ना, आलू आदि संवर्धित विभज्योतक तैयार करने में काफी सफलता मिली है।

वैज्ञानिकों ने पादपों से एकल कोशिकाएँ अलग की हैं तथा उनकी कोशिकाभित्ति का पाचन हो जाने से प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरा नग्न प्रोटोप्लास्ट पृथक् किया जा सका है। प्रत्येक किस्म में वांछनीय लक्षण विद्यमान होते हैं। पादपों की दो विभिन्न किस्मों से अलग किया गया प्रोटोप्लास्ट युग्मित होकर संकर प्रोटोप्लास्ट उत्पन्न करता है जो आगे चलकर नए पादप को जन्म देता है। यह संकर कायिक संकर (somatic hybrid) कहलाता है तथा यह प्रक्रम कायिक संकरण (somatic hybridization) कहलाता है।

 

प्रश्न 11.पत्ती में कर्तातक पादप के प्रवर्धन में जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है, उसके विभिन्न घटकों का पता लगाओ।
उत्तर
इस माध्यम के निम्नलिखित घटक होते हैं –

  1. एक्सप्लाण्ट (शीर्षस्थ या कक्षस्थ कलिकाओं का भाग)

  2. संवर्धन माध्यम (सूक्रोज, अकार्बनिक लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल )

  3. वृद्धि नियन्त्रक (ऑक्सिन, साइटोकाइनिन)

प्रश्न 12.शस्य पादपों के किन्हीं पाँच संकर किस्मों के नाम बताएँ, जिनका विकास भारतवर्ष में हुआ है।
उत्तर

  1. शर्बती सोनोरा (गेहूं की किस्म)

  2. गंगा 5 (मक्का की किस्म)

  3. साबरमती BC-S/55 (धान की किस्म)

  4. पूसा-240 (चने की किस्म)

  5. पूसा बोतड (सरसों की किस्म)

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