भारत संसाधन एवं उपयोग (1)

 भारत संसाधन एवं उपयोग (1)

 भारत संसाधन एवं उपयोग (1)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
( i ) कोयला किस प्रकार का संसाधन है ?
( क ) अनवीकरणीय ( ख ) नवीकरणीय ( ग ) जैव ( घ ) अजैव
उत्तर– ( क )

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( i ) सौर ऊर्जा निम्नलिखित में से कौन – सा संसाधन है ? (
क ) मानवकृत ( ख ) पुनः पूर्तियोग्य ( ग ) अजैव ( घ ) अचक्रीय
उत्तर– ( ख )

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( ii ) तट रेखा से कितने किमी क्षेत्र सीमा अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र कहलाता है ?
( क ) 100 ( ख ) 200 ( ग ) 150 ( घ ) 250
उत्तर– ( ख )

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( iv ) डाकू की अर्थव्यवस्था का संबंध है-
( क ) संसाधन संग्रहण से ( ख ) संसाधन के विदोहन से ( ग ) संसाधन के नियोजित दोहन से ( घ ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर– ( ख )

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( v ) समुद्री क्षेत्र में राजनीतिक सीमा से कितनी किमी दूरी तक का क्षेत्र राष्ट्रीय संपदा में निहित है –
( क ) 10.2 ( ख ) 15.5 ( ग ) 12.2 ( घ ) 19.2
उत्तर– ( घ )

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II. लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
1. संसाधन को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर – प्रकृति में पाए जानेवाले सभी पदार्थ जो उपलब्ध प्रौद्योगिकी के आधार पर मानवीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने की क्षमता रखता है , संसाधन कहलाता है । जैसे — सूर्य किरण , हवा , पानी , जीव – जंतु , खनिज पदार्थ इत्यादि । मानव के सामाजिक – आर्थिक विकास में संसाधनों का अमूल्य योगदान होता है ।

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2. संभावी और संचित कोष संसाधनों के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – किसो क्षेत्र में पाए जाने वाले ऐसे संसाधन जिनका उपयोग वर्तमान में किसी कारण विशेष से नहीं किया जाता है , परंतु भविष्य में इनके उपयोग की पूरी संभावनाएँ होती हैं , संभावी संसाधन कहलाते हैं । जैसे राजस्थान एवं गुजरात की पवन एवं सौर – ऊर्जा । ऐसे संसाधन जिसके उपयोग की जानकारी होती है परंतु अभी इसका उपयोग प्रारंभ नहीं हुआ है । भविष्य को पूँजी वाले ऐसे संसाधनों को संचित संसाधन कहा जाता है । जैसे भारत में थोरियम द्वारा बिजली पैदा करना ।

 

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3. संसाधन – संरक्षण की उपयोगिता पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – विश्व स्तर पर संसाधनों का वितरण काफी विषम है । किसी प्रदेश में संसाधन विशेष की अधिकता है तो दूसरे प्रदेश में इसकी कमी होती है जबकि प्रदेश के सर्वांगीण विकास के लिए संसाधनों की जरूरत होती है । विकास के नाम पर मानव ने संसाधनों का अविवेकपूर्ण एवं अनियोजित उपयोग किया है । परिणामस्वरूप , कई पर्यावरणीय समस्याएँ उभरने लगी हैं । साथ ही , कई संसाधन समाप्ति के कगार तक पहुँच चुके हैं । इसलिए , भविष्य में विकास के लिए और विशेषकर सतत् विकास के लिए संसाधनों का संरक्षण जरूरी है , उपयोगी है ।

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4. संसाधन – निर्माण में तकनीक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रकृति द्वारा दिए गए पदार्थों को उपयोग में लाना कई कारकों पर निर्भर करता है । सबसे पहले किसी पदार्थ का उपयोग जानना जरूरी होता है । फिर उस पदार्थ की आवश्यकता महसूस होनी चाहिए । आवश्यकत्ता में वृद्धि के अलावा तकनीकी ज्ञान में बढ़ोतरी होना भी जरूरी है । उचित संभावनाओं और सुविधाओं के बावजूद संसाधन – निर्माण हेतु तकनीकी ज्ञान होना आवश्यक होता है । उदाहरण के लिए , पृथ्वी के गर्भ में छिपे खनिज , संसाधन का रूप तभी ले पाया जब उसके उपयोग की तकनीकी विकसित कर ली गई । गिरते हुए जल से विद्युत पैदा करने की तकनीक विकसित होने के बाद ही जल संसाधन के महत्व में वृद्धि आई अन्यथा यह यूँ ही बहकर बर्बाद हो जाता ।

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III . दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर :
1. संसाधन के विकास में “ सतत् विकास ‘ की अवधारणा को स्पष्ट करें ।
उत्तर – उपभोगवादी संस्कृति तथा आर्थिक विकास के दौर में मानव द्वारा संसाधनों का अति दोहन किया गया है । क्योंकि वर्तमान समय में विकास का मापदंड आर्थिक विकास से है । संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण 1960 में कई यूरोपीय देशों और अमेरिका में इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे । इसी बीच 1968 ई . में ‘ द पोपुलेशन बम ‘ नामक पुस्तक एहरलिन को प्रकाशित हुई तथा 1972 ई . में ‘ द लिमिट टू ग्रोथ ‘ नामक पुस्तकों के प्रकाशन से पर्यावरणविदों का ध्यान आकर्षित हुआ । अंततः संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘ विश्व पर्यावरण विकास आयोग ‘ का गठन कर गरो हरलेष बूटलैंड को इसका अध्यक्ष बनाया गया । इन्होंने सारी समस्याओं का अध्ययन कर 1987 ई . में ‘ आवर कॉमन फ्यूचर ‘ नामक रिपोर्ट पेश की जिसमें ‘ सतत् पोषणीय विकास ‘ पर जोर दिया गया । सतत् विकास , विकास की ऐसी अवधारणा है जिसमें आनेवाली पीढ़ियों को ध्यान में रखकर पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना वर्तमान में विकास करने पर बल दिया गया है । यही कारण है कि विश्व स्तर पर आज सतत विकास की अवधारणा पर जोर दिया जाने लगा है । भारत और बिहार के संदर्भ में सतत विकास के लिए कई सुझाव दिए जाने लगे हैं । सतत विकास के लिए संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग होना जरूरी है । जिसके लिए संसाधनों का नियोजन भी आवश्यक है । संसाधनों का उपयोग इस प्रकार होना चाहिए जिससे पूरे प्रदेश का संतुलित आर्थिक विकास संभव हो सके।

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2. स्वामित्व के आधार पर संसाधन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – संसाधन किसी भी देश के आर्थिक – सामाजिक विकास की कुंजी है । सामान्यत : संसाधन का तात्पर्य ‘ प्राकृतिक संसाधन ‘ से लिया जाता है । परंतु प्रकृति में उपलब्ध सभी पदार्थ जिसमें मानवीय आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने की क्षमता होती है , संसाधन कहलाता है । यह संसाधन कई प्रकार का होता है । इसलिए संसाधनों का वर्गीकरण के कई आधार हैं । इन आधारों में उत्पत्ति , उपयोगिता , विकास एवं स्वामित्व शामिल है । स्वामित्व के आधार पर संसाधन के चार प्रकार होते हैं ( i ) व्यक्तिगत संसाधन — जो संसाधन किसी व्यक्ति विशेष के अधिकार क्षेत्र में होता है , व्यक्तिगत संसाधन कहलाता है । ऐसे संसाधनों के बदले व्यक्ति सरकार को कर भी चुकता करता है । जैसे – भूखंड , मकान , बाग – बगीचा , तालाब इत्यादि ।
( ii ) सामुदायिक संसाधन – जब कोई संसाधन व्यक्ति विशेष का न होकर पूरे समुदाय के अधिकार क्षेत्र में होता है तब उसे सामुदायिक संसाधन कहा जाता है । ऐसे संसाधनों का उपयोग समूह या समुदाय के लिए सुलभ होता है । जैसे – पंचायत भवन , सामुदायिक भवन , मंदिर , मस्जिद , श्मशान भूमि , चारण भूमि , तालाब , विद्यालय , पार्क , खेल मैदान इत्यादि ।
( iii ) राष्ट्रीय संसाधन – वैधानिक तौर पर किसी देश में उपलब्ध सभी प्रकार के संसाधनों को राष्ट्रीय संसाधन कहा जाता है । प्राचीन काल में इन संसाधनों पर राजाओं का अधिकार होता था । वर्तमान समय में यह अधिकार सरकार के पास है । राष्ट्रीय महत्त्व के निर्माण कार्यों जैसे सड़क मार्ग । रेलमार्ग , नहर बनाने , कारखाना स्थापित करने अथवा कार्यालय भवनों इत्यादि के लिए सरकार द्वारा निजी अथवा सामुदायिक संसाधनों का अधिग्रहण कर लिया जाता है तब वह राष्ट्रीय संसाधन बन जाता है । तटीय भाग से समुद्र में 19.2 किलोमीटर दूर तक का भाग राष्ट्रीय संसाधन का अंग माना जाता है ।
( iv ) अंतर्राष्ट्रीय संसाधन – सागर तट से 19.2 किलोमीटर के आगे एवं 200 किलोमीटर तक का समुद्री क्षेत्र संबंधित देश का आर्थिक अपवर्जक क्षेत्र होता है । इसके आगे पाया जानेवाला संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहलाता है जिसके इस्तेमाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की अनुमति लेनी पड़ती है ।

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