कवित्त सारांश ( kavit saransh )

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कवि – भूषण
लेखक-परिचय
जीवनकाल : (1613-1715)
जन्मस्थान : टिकवापुर कानपुर उत्तरप्रदेश
पिता : रत्नाकर त्रिपाठी

उपनाम : कवि भूषण (चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्रसाह द्वारा इन्‍हें ‘कवि भूषण’ की उपाधी प्राप्‍त)

आश्रयदाता : छत्रपति शिवाजी, शिवाजी के पुत्र शाहजी और पन्ना के बुंदेला राजा छत्रसाल

विशेष : रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी और मतिराम भूषण के भाई के भाई के रूप में जाने जाते हैं।

कृतियाँ : शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण हजारा, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास,

यह रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि हैं इनका हिंदी जनता में बहुत सम्मान है। यह एक वीर रस के कवि हैं।

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कवित्त (1)

इन्द्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है 

प्रस्तुत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुए कहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ पर उसी प्रकार राज हैं जिस प्रकार इंद्र का यम पर, समुन्द्र की अग्नि का पानी पर और राम का दंभ से भरे रावण पर है। इन पंक्तियों में भूषण ने शिवाजी के शौर्य की तुलना इंद्र समुन्द्र अग्नि और राम के साथ की है।

पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाहू पर राम द्विज राज है।

प्रस्तत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ पर उसी प्रकार राज हैं जिस प्रकार हवाओं का बादल पर भगवान शिव का रति के पति पर (कामदेव पर) और परशुराम का सहस्रबाहु पर है। इन पंक्तियों में भूषण ने शिवाजी के शौर्य की तुलना हवाओं, शिव और परशुराम के साथ की है।

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दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज है।

प्रस्तत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते हए कहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ पर उसी प्रकार राज हैं जिस प्रकार जंगल की आग का वृक्ष की डालों पर, चीता का हिरणों के झूंड पर और हाथी पर सिंह का राज है। इन पंक्तियों में भूषण ने शिवाजी के शौर्य की तुलना जंगल की आग, चीता और सिंह के साथ की है।

तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौ मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते हए कहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ पर उसी प्रकार राज हैं जिस प्रकार उजाले का अंधेरे पर, कृष्ण का कंस पर राज है। इन पंक्तियों में भूषण ने शिवाजी के शौर्य की तुलना उजाले और कृष्ण के साथ की है।

कवित्त (2)

निकसत म्यान ते मयूखैं, प्रलै-भानु कैसी
फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को।

प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर भूषण द्वारा रचित ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से अवतरित है जिनमें कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता, धीरता और पौरुष का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि छत्रसाल की तलवार म्यान से इसप्रकार निकलती है जैसे प्रलयंकारी सूर्य से उसकी किरणें निकलती है तथा वह गयंद अर्थात हाथियों के जाल को इसप्रकार तितर-बितर कर देती है जैसे सूर्य की किरणें अंधेरे को।

लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को।

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि भूषण द्वारा रचित कवित्त शीर्षक पाठ से अवतरित है जिनमें कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता, धीरता और पौरुष का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि हे राजन ! आपकी तलवार शत्रुओं के गर्दन से नागिन की तरह लिपट जाती है और रुद्र (शिव) को प्रसन्न करने के लिए उन्हे मुंडो (सिर) की माला अर्पित कर रही है।

लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाह बली,
कहाँ लौं बखान करौ तेरी करवाल को।

प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर भूषण द्वारा रचित ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से अवतरित है जिनमें कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता, धीरता और पौरुष का वर्णन किया है। कवि कहते है कि हे बलिष्ठ और विशाल भुजावाले महाराज छत्रसाल ! मैं आपकी तलवार का कहाँ तक बखान करूँ ? आपकी तलवार अत्यंत प्रलयंकारी है जो शत्रुओं के समूह को नष्ट कर रही है।

प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को

प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर भूषण दवारा रचित ‘कवित्त’ शीर्षक पाठ से अवतरित है जिनमें कवि भूषण ने छत्रसाल की वीरता, धीरता और पौरुष का वर्णन किया है | कवि कहते हैं कि हे राजन ! आपकी तलवार अत्यंत प्रलयंकारी है जो शत्रुओं के दल का संहार करती है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे काली को प्रसन्न करने के लिए प्रसाद देती हो।

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