प्रश्न 1. कवि ने शरीर की सकल शिराओं को किस तंत्री के तार के रूप में देखना चाहा है? उत्तर-
मैथिली शरणगुप्त जैसे राष्ट्रभक्त कवि ने अपने शरीर की सकल शिराओं को मातृभूमि की सर्वतोमुखी विकास रूपी तंत्री के तार रूप में देखना चाहा है। कवि सम्पूर्ण संचित ऊर्जा क्षमता को मातृभूमि के कायाकल्प प्रक्रिया में लगा देना चाहा है।
प्रश्न 2. कवि को आघातों की चिन्ता क्यों नहीं है? उत्तर-
कवि राष्ट्र-प्रेम की भावना लोकचित में जागृत करना चाहता है। स्वाधीनता की व्याकुलता में वह स्वाधीनता आन्दोलन को सम्पूर्ण राष्ट्र में अंतर्व्याप्त करना चाहता है। गुलामी से बढ़कर कोई दूसरी पीड़ा नहीं है। स्वाधीनता की उत्कट आकांक्षा कुछ विलक्षण ही होती है। स्वाधीनता की आकांक्षा ने कवि को आघातों की चिन्ता से विमुक्त कर दिया है।
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प्रश्न 3.
कवि ने समूचे देश में किस गुंजार के गमक उठने की बात कही है? उत्तर-
आधुनिक भारत के प्रथम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त में गुलामी की जंजीर में जकड़ी भारत माता को स्वाधीन करने की गहरी व्याकुलता है। कवि गुलाम भारत में आजादी प्राप्ति हेतु शौर्य, पौरुष तथा पराक्रम का संचार करना चाहता है, जिसके बल पर सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का स्वर गुंजारित हो सके। कवि स्वाधीनता आंदोलन में देशवासियों की सक्रिया सहभागिता चाहता है। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के गुंजार का गमक सम्पूर्ण देश में गुंजारित करना चाहता है।
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प्रश्न 4. “कर प्रहार, हाँ कर प्रहार तू, भार नहीं, यह तो है प्यार। यहाँ किससे प्रहार करने के लिए कहा गया है। यहाँ भार को प्यार कहा गया है। इसका क्या अर्थ है? उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित झंकार शीर्षक कविता से ली गयी हैं।सांगीतिक वातावरण में जब संगत करते कलाकार विभिन्न प्रकार के रागों स्वरो, लयों का, अपनी कलाकारिता का इस भाव से प्रदर्शन करे कि सामने वाला कलाकार निरुतर हो जाए। यहाँ प्रहार का यही अर्थ है, यहाँ एक कलाकार कलावत अपने समकक्ष कलाकर को, ताल, राग के माध्यम से प्रहार करने और स्वयं को उसका प्रतिकार करने के लिए प्रस्तुत होने की बात करता है।“विपरीत और विरोधी के बीच ही विकास है” के सूत्र को पकड़े हुए कवि इस प्रहार को प्यार की संज्ञा देता है। जब तक चुनौती नहीं हो निखार नहीं आता। जब तक धधकती आग नहीं गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट हो सोने में कांति नहीं आती है। कवि चुनौतियों, जबावदेहियों, दायित्वों को भार स्वरूप नहीं प्यार स्वरूप स्वीकार करता है।
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प्रश्न 5. निम्नलिखित पंक्तियां की सप्रसंग व्याख्या कीजिए : (क) “मेरे तार तार से तेरी तान-तान का हो विस्तार अपनी अंगुली के धक्के से खोल अखिल श्रुतियों के द्वार।”
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। वीणा से राग स्वर तभी निःसृत होता है तब उसके ऊपर तार अपनी जीवनाहूति देते हैं, अपने को तनवाने (तन्य) के लिए प्रस्तुत होते। स्वर संधान के पूर्व तारों को साधित किया जाता है।कवि स्वर संधान की पूर्व पीठिका बनने को प्रस्तुत है। अपनी शरीर की शिराओं को तार बनाने का सन्नद्ध है और वाँछा करता है, स्वर लहरी दूर-दूर तक गूंजे। प्रवीण अंगुलियों का तारों पर आघात इतना पुरजोर हो कि अखिल सृष्टि में यह कल निनाद सुना जा सके। कवि ठोस आधार पर मसृण कलाकृति का आकाक्षी है।कवि शारीरिक भूख के ऊपर उठकर मानसिक हार्दिक क्षुधा की तृप्ति हेतु आहन करता है।स्पष्ट है गुप्त जी का झुकाव छायावादी विचारधारा की ओर हो चुका है। तार-तार और तान-तान में वीप्सा अलंकार तथा अपनी अंगुली ……………….. अखिल में ‘अ’ वर्ण की आवृति से अनुप्रास अलंकार उपस्थित है।
(ख) ताल-ताल पर भाल झुकाकर माकहत हों सब बारम्बार लघ बँध जाए और क्रम-क्रम से सभ में समा जाए संसार। सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित मैथिलीशरण गुप्त रचित ‘झंकार शीर्षक कविता से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने संगीत की चरम स्थिति की प्राप्ति और उसके प्रभाव की चर्चा की है। संगीत वह भाषा है जिसे अनपढ़ भी समझ लेते हैं। संगीत का जब समां बन्ध जाता है तो हर ताल पर, हर थाप पर प्रत्येक आरोह-अवरोह के साथ श्रोता अपने निजत्व को त्याग कर संगीत के सम्मोहन में बन्धे सिर झुकाते रहते हैं।लालित्य वर्द्धन का आकांक्षी है।प्रस्तुत पंक्तियां में वीप्स और अनुप्रास अलंकार का वर्णन हुआ है।
प्रश्न 6. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-
आधुनिक काल के द्वितीय उत्थान-द्विवेदी युग के प्रमुख कवि हैं मैथिलीशरण गुप्त। वे आधुनिक भारत के प्रथम राष्ट्रकवि तथा नए भारत में हिन्दी जनता के प्रतिनिधि कवि के रूप में सम्मानित हैं।प्रस्तुत कविता में कवि कहता है कि स्वतंत्रता का स्वर इतना ऊचाँ हो कि सम्पूर्ण राष्ट्र एकीभूत होकर देश की आजादी का स्वर गुंजारित करे। प्रकृति आनन्दमय हो जाए, मनुष्य का भाग्य इठलाये। मुक्तिकामना की गमक देश और काल की सीमा का उल्लंघन कर जन-जन के मानस पटल पर गुजारित हो जाए। कविता में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकीभूत मुक्तिकामना की उत्कट और अपूर्व अभित्यक्ति हुई है। राष्ट्र के प्रति प्रणों से बढ़कर राष्ट्र प्रेम तथा कृतज्ञता की आत्मिक अनुभूति इस गीति-गमक रचना में स्वरित होती है। कवि की राष्ट्रीयता, देशप्रेम, यथार्थबोध, आजादी की कामना का उद्देश्य एवं चेतना कविता का मूल स्वर है।
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प्रश्न 7. कविता में सुरों की चर्चा करें। इनके सजीव-साकार होने का क्या अर्थ है? उत्तर-
भारत राष्ट्र के गौरव गायक मैथिलीशरण गुप्त की झंकार शीर्षक कविता संगीत की पृष्ठभूमि में रचित है। संगीत के घटक सुर स्वर हैं। स्वरों का आरोह-अवरोह जब पक्के गायक के गले से नि:सृत होता है तो एक जीवन्त अवलोक का सृजन होता है। ऐसा लगता है कि स्वर केवल कान के माध्यम से ही नहीं सुन रहे बल्कि आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित हैं। स्वरों की सर्वोत्तम प्रेषणीयता ही सजीव-साकार का अर्थ ग्रहण करती है।
प्रश्न 8. इस कविता का स्वाधीनता आन्दोलन से कोई सांकेतिक सम्बन्ध दिखायी पड़ता है। यदि हाँ! तो कैसा? उत्तर-
राष्ट्रकवि मैथिलीशरधा गुप्त की प्रस्तुत कविता ‘झंकार’ में भारतीय स्वतंत्रता-संघर्ष का स्वर नि-संदेह गुंजारित है। इस कविता में कवि की देशभक्ति स्वतंत्रता प्राप्ति की उत्कृष्ट आकांक्षा तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की उत्प्रेरणा का स्वर अनुगुजित है। दिव्यभूमि की आजादी के लिए व्याकुल कवि का हृदय मुक्ति की युक्ति निकालने को तैयार है तथा सम्पूर्ण हिन्द को इस स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़ने का आह्वान करता है जो उसके उत्कृष्ट देशभक्ति रेखांकित एवं विश्लेषित करता है।कविता में गुलामी की बेड़ियों को काटकर भारतमाता को स्वाधीन बनाने की संवेदना-कल्पना का संस्पर्श का एकांत साक्ष्य पेश होता है। कविता में स्वाधीनता आन्दोलन की अंतर्व्याप्ति तथा मुक्ति की प्यास निःसंदेह निर्णायक स्थान प्राप्त कर चुका है। सम्पूर्ण राष्ट्र स्वाधीनता के लिए आन्दोलित होकर सदियों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए कृतसंकल्पित है। इस कविता में सम्पूर्ण राष्ट्र की एकीभूत मुक्तिकामना की गीति-गमक गुंजारित और झंकृत है।
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प्रश्न 9. वर्णनात्मक कविता लिखने के लिए “द्विवेदी युग” के कवि प्रसिद्ध थे। किन्तु इस कविता में छायावादी कवियों जैसी शब्द-योजना, भावाभिव्यक्ति एवं चेतना दिखलायी पड़ती है। कैसे? इस पर विचार करें। उत्तर-
आदर्शवाद की प्रधानता के कारण “द्विवेदी युग’ के कवियों ने वर्णन प्रधान इतिवृत्तात्मक शैली को ग्रहण किया। यह शैली नैतिकता के प्रचार और आदर्शों की प्रतिष्ठा के लिए अत्यन्त उपयुक्त थी। विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक आख्यानों को काव्यबद्ध करने के लिए इस युग में वर्णनात्मक काव्य को प्रधानता मिली। वर्णन-प्रधान शैली होने के कारण इस काव्य में नीरसता और शुष्कता आ गई तथा अनुभूति की गहराई का समावेश हो सका ! वर्णनात्मक काव्य में कोमलकांत पदावली और रसात्मकता का अभाव है।‘द्विवेदी युग’ के कवि का ध्यान प्रकृति के यथातथ्य वर्णन तथा मानव प्रकृति का चित्रण इस समय की कविता का प्रधान विषय बन गई। प्राचीन के प्रति पूज्यभावना और नवीन के प्रति उत्साहपूर्ण भाव की विशेषता, कालानुसरण की अद्भुत क्षमता एवं उत्तरोत्तर बदलती भावनाओं और काव्य प्रणालियों को ग्रहण कर चलने की शक्ति, काव्य में परम्परा और आधुनिकता का द्वंद्व तनाव और समन्वय का यथार्थ समायोजन करने की अद्भुत क्षमता की गीति-गमक ने उन्हें छायावादी कवियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।
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झंकार अति लघु उत्तरीय प्रश्न।
प्रश्न 1. ‘झंकार’ कविता में कवि ने अपने को किस रूप में प्रस्तुत किया है? उत्तर-
‘झंकार’ कविता में कवि ने अपने को वाद्य यन्त्र के रूप में प्रस्तुत किया है और कहा है कि मेरे शरीर के स्नायु तंत्र की सभी नसें ही इस शरीर रूपी वाद्य यन्त्र या तंत्री के तार
प्रश्न 2. कवि कैसी गुंजार की इच्छा व्यक्त करता है? उत्तर-
कवि चाहता है कि वह गुंजर ऐसी हो कि सभी स्थानों तथा सभी समयों में उसकी सत्ता बनी रहे।
प्रश्न 3. श्रुतियों के द्वार खोलने का क्या अभिप्राय है? उत्तर-
‘श्रुति’ शब्द के दो अर्थ हैं। पहला कान और दूसरा सुनकर प्राप्त होने वाला ज्ञान। जब ‘श्रुति’ शब्द का दूसरे अर्थ में लाक्षणिक प्रयोग होता है तो वह वेद-ज्ञान का अर्थ देता है। अतः श्रुतियों के द्वार खोलने का अर्थ है परमात्मा की कृपा से समस्त ज्ञान-विज्ञान का बोध प्राप्त हो जाने की क्षमता प्राप्त होना।
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प्रश्न 4. परमात्मा के संगीत की झंकार से उत्पन्न प्रभाव का कवि ने किस रूप में वर्णन किया है? उत्तर-
कवि के अनुसार परमात्मा के संगीत की झंकृत का प्रभाव गहरा हो। वह सकल श्रुतियों के द्वार खोल दें। उसके ताल-ताल पर संसार मोहित होकर तथा सिर नवाकर उसके प्रभाव का व्यक्त करें तथा सारा संसार उस संगीत के लय से तदाकार हो जाय।
प्रश्न 5. झंकार शीर्षक कविता का केंद्रीय भाव क्या है? उत्तर-
झंकार शीर्षक कविता का केन्द्रीय भाव देशवासियों को उनकी अस्मिता का बोध कराना है।
प्रश्न 6. कवि मैथिलीशरण गुप्त के दृष्टिकोण में स्वाधीनता आन्दोलन में देश का उद्धार कैसे हुआ था? उत्तर-
कवि मैथिलीशरण गुप्त के दृष्टिकाण से स्वाधीनता आन्दोलन में देश का उद्धार सुरों के तालमेल से हुआ था।
प्रश्न 7. वीण की तान से कवि मैथिलीशरण गुप्त क्या कहना चाहते हैं? उत्तर-
वीणा की तान से कवि मैथिलीशरणगुप्त तान का विस्तार करना चाहते हैं तथा जागरण का संदेश देना चाहते है।