Bihar Board Class 9 Hindi Padharo Mhare Desh In Chapter 8

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Class 9 Hindi Padharo Mhare Desh In

प्रश्न 1.
‘हाकड़ो’ राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी क्यों रचा-बसा है?
उत्तर-
भी हाकड़ो शब्द उन पीढ़ियों की लहरों में तैरकोई हजार बरस पुरानी डिंगल भाषा में और आज की राजस्थानी में ता रहा है, जिनके पुरखों ने भी कभी समुद्र नहीं देखा था।

प्रश्न 2.
‘हेल’ नाम समुद्र के साथ-साथ अन्य कौन से अर्थ को दर्शाता है?
उत्तर-
इसका अर्थ समुद्र के साथ-साथ विशालता और उदारता भी है।

प्रश्न 3.
किस रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है?
उत्तर-
थार रेगिस्तान का वर्णन कुछ ऐसा है कि कलेजा सूख जाता है।

प्रश्न 4.
भूगोल की किताबें किनके ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती है और क्यों?
उत्तर-
भूगोल की किताबें प्रकृति को वर्षा को यहाँ अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं और राज्य के पश्चिमी क्षेत्र को इस महाजन का सबसे दयनीय शिकार बताती हैं।

Class 9 Hindi Padharo Mhare Desh I

प्रश्न 5.
राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना क्यों नहीं रोया?
उत्तर-
वातावरण की असमानता के बावजूद भी राजस्थानी समाज ने प्रकृति से – मिलने वाले इतने कम पानी के लिए रोया नहीं अपितु इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और ऊपर से नीचे तक कुछ इस ढंग से खड़ा किया कि पानी का स्वभाव समाज के स्वभाव में बहुत सरल ढंग से बहने लगा।

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प्रश्न 6.
“यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ से समुद्र के इतने नाम मिलते हैं?” इस कथन का क्या अभिप्राय है।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ अनुपम मिश्र द्वारा लिखित “पधारो म्हारे देश” शीर्षक से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने राजस्थानी भाषा का बड़ा ही रोचक वर्णन किया है।
लेखक ने संस्कृत में विरासत से समुद्र के नाम के साथ राजस्थानी लोगों की भाषा में समुद्र के नामों को अंकित किया है जैसे आच, उअह, देधाणा, वडनीर, वारहर, सफरा-भंडार। यह राजस्थान के मन की उदारता है, इसकी दृष्टि भी बड़ी विचित्र रही होगी। सृष्टि की जिस घटना को घटे हुए लाखों बरस हो चुके, जिसे घटने में हजारों बरस लगे, उस सबका जामा घाटा का भी बड़ा विचित्र एवं विचारणीय राजस्थानी भावना का वर्णन किया है।

प्रश्न 7.
जल संग्रह कैसे करना चाहिए?
उत्तर-
राजस्थान के लोगों ने राँको, कुड-कुडियों, बेरियों, जोहड़ों, नाडियो, तालाबों, बावड़ियों और कुएँ, कुँइयों को अखंड हाकड़ों को खंड-खंड कर नीचे उतार कर पानी संचित करने की अनोखी परंपरा का राजस्थान की लोगों ने विकास किया।

प्रश्न 8.
त्रिकूट पर्वत कहाँ है?
उत्तर-
आज के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत है।

प्रश्न 9.
‘धरती धोरां री’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर-
राजस्थान के पुराने इतिहास में मरुभूमि का या अन्य क्षेत्रों का भी वर्णन सूखे, उजड़े और एक अभिशप्त क्षेत्र की तरह नहीं मिलता। रेगिस्तान के लिए आज प्रचलित धार शब्द भी ज्यादा नहीं दिखता। अकाल पड़े हैं: कहीं-कहीं पानी का कष्ट भी रहा है पर गृहस्थों से लेकर जोगियों ने, कवियों से लेकर मांगणियारों ने, लंगाओं ने, हिन्दू-मुसलमानों ने इसे ‘धरती धोरांरी’ कहा है।

10.मरुनायकजी कहकर किसे पुकारा गया है? उनकी भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर-
मरुनायक जी श्रीकृष्ण को कहा गया है। मरुनायक जी का वरदान और फिर समाज के नायकों के वोज, सामर्थ्य का एक अनोखा संजोग हुआ। इस संजोग से बाजलतो-ओजतो यानी हरेक द्वारा अपनाई जा सकने वाली सरल, सुंदर रीति को जन्म मिला।

प्रश्न 11.
राजस्थान में वर्षा का स्वरूप क्या है?
उत्तर-
औसत बताने वाले आंकड़े भी यहाँ का कोई ठीक चित्र नहीं देते। राज्य में एक छोर से दूसरे छोर तक कभी भी एक सी वर्षा नहीं होती। कहीं यह 100 सेंटीमीटर से अधिक है तो कहीं 25 सेंटीमीटर से भी कम।

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प्रश्न 12.
‘रीति’ के लिए राजस्थान में ‘वोज’ शब्द है। यह क्या-क्या अर्थ रखता है?
उत्तर-
‘वोज’ शब्द का अर्थ है रचना, युक्ति और उपाय साथ ही, सामर्थ्य, विवेक और विनम्रता के लिए भी इस शब्द का उपयोग होता रहा है।

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प्रश्न 13.
लेखक ने ‘जसढोल’ शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया है और क्यों?
उत्तर-
‘जस ढोल’ शब्द का अर्थ है प्रशंसा करना। राजस्थान ने वर्षा के जल का संग्रह करने का अपनी अनोखी परंपरा को विकासित किया और उसके जस का कभी ढोल नहीं बजाया।

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प्रश्न 14.
इस फीचर को पढ़कर आपको क्या शिक्षा मिली है? आप, इसका उपयोग कैसे करेंगे?
उत्तर
-इस फीचर को पढ़ने के बाद राजस्थान की समस्या से अवगत होते हुए उसके निदान के लिए वहाँ के लोगों द्वारा किये गये उपायों से हमें क्षा मिलती है कि हम पर्यावरण की रक्षा में आनेवाले दिक्कतों का शक्ति से उन्मान करें। वैज्ञानिक तरीकों या अपनी पुरानी परंपरा से सबक लें।

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प्रश्न 15.
लेखक क्यों ‘पधारो म्हारे देस’ कहते हैं?
उत्तर-
देश पानी के मामले में बिल्कुल ‘ऊँचा’ गाने लगे, सूखे माने गए इस हिस्से राजस्थान में, मरुभूमि में फली-फूली जल संग का भव्य परंपरा का विकास हो। इसलिए लेखक ‘पधारो म्हारे देस’ कहा है

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