उत्तर – कवि द्वारा बिटिया से सवाल किया जाता है – कहाँ, कहाँ लोहा है ? अर्थात् वह जानना चाहता है कि लोहा कहाँ-कहाँ वर्त्तमान है ।
प्रश्न 2. बिटिया कहाँ-कहाँ लोहा पहचान पाती है ?
उत्तर- बिटिया की समझ (जानकारी) में चिमटा, कलछुल, कढ़ाई, सड़सी, दरवाजे की साँकल (सिकरी), कब्जा, पेंच तथा सिटकिनी आदि में लोहा है। इसके अतिरिक्त सेफ्टी पिन, साईकिल तथा अरगनी के तार में भी वह लोहा पाती है ।
प्रश्न 3. कवि लोहे की पहचान किस रूप में कराते हैं ? वही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती हैं ?
उत्तर – कवि तथा उसकी पत्नी ने अलग-अलग रूप में लोहे की पहचान की है। दोनों ने उनके स्वयं के उपयोग में आनेवाली सामग्रियों के आधार पर लोहा को पहचाना है । पुरूषों के उपयोग की वस्तुओं को आधार बनाकर कवि उनका ही विवरण प्रस्तुत करता है । उसके अनुसार फावड़ा, कुदाली, टॅगिया, वसुला, खुरपी, बैलगाड़ी के पहियों का पट्टा, , बैलों के गले में बँधी घंटी के भीतर की गोली आदि लोहा है अर्थात् उक्त वस्तुएँ लोहे से निर्मित हैं । उसी प्रकार महिलाओं के उपयोग तथा गृहस्थी में प्रयुक्त होने वाली सामग्रियों के रूप में लोहे की पहचान उनकी पत्नी द्वारा की गई है। बाल्टी, कुएँ में लगी घिरनी, हँसिया, चाकू आदि को इन्होंने लोहा माना है।
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प्रश्न 4. लोहा क्या है ? इसकी खोज क्यों की जा रही है ?
उत्तर- हर मेहनतकश आदमी लोहा है। हर बोझ उठाने वाली, अथक परिश्रम करने वाली औरत लोहा है। लोहा शक्ति का प्रतीक है। वह स्वयं भी शक्तिशाली होता है बजनदार होता है तथा मेहनतकश लोगों को भी शक्ति प्रदान करता है। लोहा शक्ति तथा ऊर्जा का प्रतीक है। इसका निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। यह निर्माण पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय सभी क्षेत्रों में समान रूप से अनवरत् चल रहा है ।
अतः लोहा की उपयोगिता जो उसकी अपार शक्ति में निहित है, को देखते हुए उसकी खोज की जा रही है ।
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प्रश्न 5. ” इस घटना से उस घटना तक” – यहाँ किन घटनाओं की चर्चा है ?
उत्तर- “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता में “इस घटना से उस घटना तक” उक्ति का प्रयोग दो बार किया गया है ।
पिता अपनी नन्हीं बिटिया से पूछता है कि आसपास लोहा कहाँ-कहाँ है । पुनः वह उसे लोहा के विषय में जानकारी देता है, उसकी माँ भी उसे समझाती है। फिर वह सपरिवार लोहा को ढूँढ़ने का विचार करता है । अतः बेटी को सिखलाने से लेकर ढूँढ़ने तक का अन्तराल – “इस घटना से उस घटना तक ” है । यह सब वह कल्पना के संसार में कर रहा है। पुनः जब उसकी बिटिया बड़ी हो जाती है, तो वह उसके विवाह के विषय में, उसके लिए एक प्यारा सा दूल्हा के लिए सोंचता है। यहाँ पर पुनः कवि – “इस घटना से उस घटना तक” उक्ति की पुनरोक्ति करता है ।
प्रश्न 6. अर्थ स्पष्ट करें
कि हर वो आदमी जो मेहनतकश लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली, लोहा ।
उत्तर – हर व्यक्ति, जो मेहनतकश है, वह लोहा है। वैसी हरेक औरत, जो दबी तथा सतायी हुई है, लोहा है ।
उपरोक्त पंक्तियों का विशेषार्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति जो श्रम – साध्य कार्य करता है, कठोर परिश्रम जिसके जीवन का लक्ष्य है वह लोहे के समान शक्तिशाली तथा ऊर्जावान होता है । उसी प्रकार बोझ उठाने वाली दमन तथा शोषण की शिकार महिला भी लोहे के समान शक्ति तथा ऊर्जा से सम्पन्न होती है ।
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प्रश्न 7. कविता में लोहे की पहचान अपने आस-पास में की गई है । बिटिया, कवि और उनकी पत्नी जिन रूपों में इसकी पहचान करते हैं, ये आपके मन में क्या प्रभाव उत्पन्न करते हैं ? बताइए ।
उत्तर – प्रस्तुत कविता में लोहे की पहचान अपने आस-पास में की गई है अर्थात् अपने आसपास बिखरी वस्तुओं में ही लोहे की पड़ताल की गयी है। पहचान की परिधि में जो वस्तुएँ आई हैं वह तीन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। लड़की द्वारा पहचान की गई वस्तुएँ पारिवारिक उपयोग की हैं। जैसे- चिमटा, कलछुल आदि । कवि द्वारा जिन वस्तुओं का चयन किया गया है उनका व्यवहार अधिकतर पुरुषों द्वारा किया जाता है तथा उनका उपयोग सामाजिक तथा राष्ट्रीय-हित में किया जाता है, जैसे- फावड़ा, कुदाली आदि । कवि की पत्नी ने उन वस्तुओं की ओर संकेत किया है जिसका व्यवहार प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता तथा जिसे वे घर से बाहर धनोपार्जन अथवा पारिवारिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु करती है, जैसे- पानी की बाल्टी, हँसिया, चाकू आदि ।
इस प्रकार कवि, उनकी पत्नी तथा बिटिया द्वारा तीन विविध रूपों में लोहे की पहचान की गई है। ये तीनों रूप पारिवारिक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय मूल्यों तथा आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही मेहनतकश पुरूषों तथा दबी, सतायी मेहनती महिलाओं के प्रयासों को भी निरूपित करता है ।
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प्रश्न 8 मेहनतकश आदमी और दवी – सतायी बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का क्या आशय है ?
उत्तर – लोहा कठोर धातु है । यह शक्ति का प्रतीक भी है। इससे निर्मित असंख्य सामग्रियाँ, मनुष्य के दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। लोहा राष्ट्र की जीवनधारा है । धरती के गर्भ में दबे लोहे को अनेक यातनाएँ सहनी होती हैं। बाहर आकर भी उसे कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ता है ।
कवि मेहनतकश आदमी और दबी – सतायी, बोझ उठाने वाली औरत के जीवन में लोहा के संघर्षमय जीवन की झलक पाता है। उसे एक अपूर्व साम्य का बोध होता है। लोहे के समान ही मेहनकश आदमी और दबी – सतायी, बोझ डठाने वाली औरत का जीवन भी कठोर एवं संघर्षमय है। लोहे के समान ही वे अपने कठोर श्रम तथा संघर्षमय जीवन द्वारा सृजन तथा निर्माण का कार्य कर रहे हैं तथा विविध रूपों में ढाल रहे हैं ।
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प्रश्न 9. यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है पर यह संसार वाह्य निरपेक्ष नहीं है । इसमें दृष्टि और संवेदना, जिजीविषा और आत्मविश्वास सम्मिलित है । इस कथन की पुष्टि कीजिए ।
उत्तर – यह कविता एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें उस परिवार के सदस्यों के जीवन के यथार्थ को चित्रित किया गया है ।
परिवार का मुखिया बिटिया का पिता लोहा के महत्व को रेखांकित करते हुए अपनी बेटी (बिटिया) से पूछ रहा है कि उसके आस-पास लोहा कहाँ-कहाँ है । लड़की प्रत्युत्तर में अपने बाल सुलभ भोलापन के बीच चिमटा, कल्छुल, सड़सी आदि का नाम लेती है । पुनः वह उसे सिखलाते हुए स्वयं फावड़ा, कुदाली आदि वस्तुओं के नाम से परिचित कराते हुए बतलाता है कि उन वस्तुओं में भी लोहा है । माँ द्वारा भी बिटिया को इसी आशय की जानकारी दी जाती है। कुछ अन्य वस्तुओं के विषय में वह समझाती है जिसमें लोहा है । इस प्रकार यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है। किन्तु वहीं तक सीमित नहीं है ।
यह आत्मीय संसार वाह्य निरपेक्ष नहीं है, बाहरी समस्याओं से जुड़ा हुआ है । वाह्य-संसार की घटनाओं का इसपर पूरा प्रभाव पड़ता है। लोहे की खोज के माध्यम से कवि ने जीवनमूल्यों के यथार्थ को रेखांकित किया है। इसमें दृष्टि, संवेदना जिजीविषा और आत्म विश्वास का अपूर्व संगम है। संसार में संघर्षरत् पुरुषों तथा महिलाओं की संवेदना यहाँ मूर्त हो उठी है । जिजीविषा एवं आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति भी युक्तियुक्त ढंग से हुई है । लोहा कदम-कदम पर और एक गृहस्थी में सर्वव्याप्त है। ठोस होकर भी यह हमारी जिन्दगी और संबंधों में घुला – मिला हुआ और प्रवाहित है ।
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प्रश्न 10. बिटिया को पिता सिखलाते हैं तो माँ समझाती है, ऐसा क्यों ?
उत्तर- इस कविता में बिटिया को उसके पिता लोहा के विषय में सिखलाते हैं, वे उसकी को परीक्षा लेते हुए उससे पूछते हैं कि उसके आसपास लोहा कहाँ-कहाँ है । नन्ही बिटिया आत्मविश्वास के साथ उनके प्रश्नों का उत्तर सहज भाव से देती है । पुनः माँ उससे वही प्रश्न पूछते हुए लोहे के विषय में समझाती है तथा कुछ अन्य जानकारी देती है।
इस प्रसंग में पिता उसे सिखलाते हैं जबकि माँ उसे इस विषय में समझाती है। दोनो की भूमिका में स्पष्ट अन्तर है इसका कारण यह है कि यह प्रायः देखा जाता है कि पिता द्वारा अपने बच्चो को सिखलाया जाता है, किसी कार्य को करने की सीख दी जाती है, अभ्यास कराया जाता है। माँ द्वारा उन्हें स्नेह भाव से किसी कार्य के लिए समझाया जाता है ।