Class 12th history chapter 6 question answer
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
Class 12th history chapter 6
1. मनसबदारी प्रथा की मुख्य विशेषता का वर्णन करें। (2014A)
मुगल शासन प्रणाली की सबसे अद्भुत विशेषता मनसबंदारी प्रथा थी। ‘मनसबदार’ शब्द पदाधिकारी के लिए प्रयोग किया जाता था और इस पूरी व्यवस्था को मनसबदारी प्रथा कहा जाता था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अकबर के शासन के तीन प्रमुख अंगों को अर्थात् सामंत, सेना एवं नौकरशाही को एक सामान्य व्यवस्था में संगठित कर दिया था। अकबर द्वारा मनसब में युगल अंक प्रदान किये जाते थे जिसे जात. मनसब और सवार मनसब कहा जाता था। जात मनसब द्वारा किसी व्यक्ति का अधिकारियों के बीच स्थान या उसकी वरीयता का निर्धारण होता था। इसी के अनुसार उसका वेतन भी निर्धारित होता था। सवार मनसब द्वारा किसी व्यक्ति के सैनिक दायित्व का निर्धारण होता था अर्थात् उसके अधीन सैनिकों की संख्या का निर्धारण होता था।
2. अकबर ने जजिया कर क्यों समाप्त कर दिया? [20184]
अकबर हिन्दू, जैनियों और मुसलमानों को एक समान दर्जा देता था। अकबर ये चाहता था कि मेरे राज्य में सभी तरह की शांति और स्थायित्व का स्रोत कायम रहे। इनके बीच मध्यस्थता करता था तथा सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे। इसी क्रम में अकबर ने 1563 में तीर्थकर तथा 1564 में जजिया कर को समाप्त कर दिया।
3. इतिवृत्त क्या है? [2018A]
इतिवृत्त उस जीवन चरित अथवा वंश-चरित को कहा गया है जिसमें लेखक राजकीय प्रलेखों प्रशस्तियों के आधार पर सत्य के अधिक निकट रहकर इतिहास लिखने का प्रयास करता है। इतिवृत्त में कल्पना एवं अलंकार प्रदर्शन कम-से-कम रहता है। राजतरंगिणी एक शासन वंशीय इतिवृत्त है जिसे पूर्ववर्ती इतिवृत्तों, प्राचीन लेखों एवं राजकीय प्रलेखों के आधार पर लिखा गया है।
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4. मुगलकालीन सिंचाई व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। [2009A]
मुगलकाल में सिंचाई के लिए पर्शियन व्हील का प्रयोग होता था। कुएँ से जल निकालने के लिए लिवर का प्रयोग होता था। शाहजहाँ के काल में दो नहरें बनवायी गई। (i) नहर फैज (ii) शाही नहर। इन नहरों से भी बड़े पैमाने पर सिंचाई होती थी। आइन-ए-अकबरी में 17 रबी फसल तथा 26 खरीफ फसलों की सूची मिलती है।
5. अकबर ने यात्रा कर क्यों समाप्त किया? दो कारण लिखें।[2019A]
अकबर ने 1563 ई० हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा कर को समाप्त कर दिया। इसके दो कारण निम्न हैं:
(i) राजनीतिक आवश्यकता अकबर यह मानता था कि हिन्दुस्तांन में हिन्दू बहुसंख्यक है। उन्हें सत्ता के प्रति वफादार बनाने के लिए उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
(ii) वैवाहिक संबंध अकबर के हरम में कई रानियाँ हिन्दू परिवार की थीं। उन रानियों के प्रभाव के कारण भी अकबर धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाते हुए यात्रा कर समाप्त किया।
6. मुगलकालीन चित्रकला की क्या विशेषता थी?
मुगल काल में चित्रकला के क्षेत्र में काफी विकास हुआ। बाबर से लेकर शाहजहाँ के काल तक चित्रकला का काफी विकास हुआ। जहाँगीर का दरबार हमेशा चित्रकारों से भरा रहता था। हुमायूँ जब ईरान के शाह के दरबार में था तो वहाँ वह अनेक चित्रकारों के संपर्क में था। कुछ प्रमुख चित्रकारों में सैयद अलि तवरीजी, ख्वाजा अब्दुल समद, जगन्नाथ, केसूलाल आदि थे। अकबरनामा, पंचतंत्र, महाभारत आदि पुस्तकों को चित्रित किया गया।
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7. मुगलकाल में निर्मित चार स्थापत्य कलाकृतियों के नाम लिखें। 2020A]
मुगलकाल में निर्मित चार स्थापत्य कलाकृतियाँ निम्न हैं:(i) बुलंद दरवाजा अकबर द्वारा
(ii) लाल किला शाहजहाँ द्वारा
(iii) ताजमहल
शाहजहाँ द्वारा
औरंगजेब द्वारा
(iv) बीबी का मकबरा
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8. अकबर के शासन काल में कर निर्धारण की क्या प्रणाली थी? [2021AJ
आईन-ए-अकबरी के अनुसार अकबर के काल में कर निर्धारण की तीन प्रणालियाँ प्रचलित थी- (i) गल्ला बख्शी (ii) जब्ती (iii) नस्क।
9. अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति क्या थी? 2023A)
अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को सुलह-ए-कुल की नीति मानी जाती है। इबादतखाना की चर्चा के बाद अकबर यह महसूस करने लगा था कि विभिन्न धर्मों में अराध्य देवों की विभिन्नता होते हुए भी सभी धर्मों में अनेक अच्छी बातें हैं। इसने महसूस किया कि यदि अनेक धर्मो की अच्छी-अच्छी बातों पर बल दिया जाए तो देश के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों में सद्भावना और मित्रता पैदा होगी। अतः अकबर ने सर्वधर्म समन्वय यानी सुलह-ए-कुल की नीति अपनाई।
10. अकबर को राष्ट्रीय शासक क्यों कहा जाता है? दो कारण दें।[2019A 2021A]
अकबर मुगल वंश का सबसे प्रमुख बादशाह था। इसने धार्मिक संकीर्णता, जातीय द्वेष और सामाजिक पक्षपात से ऊपर उठकर साम्राज्य के अधीन रहने वाले सभी लोगों की भलाई के लिए कार्य किये। इसने आजीवन सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक समरसता स्थापित करने का प्रयास किया। धर्म के आधार पर लगने वाले जजिया तथा तीर्थयात्रा जैसे करों को समाप्त किया। धार्मिक एकता के लिए सुलह-ए-कुल की नीति का अवलंबन किया। इसी कारण अकबर को ‘राष्ट्रीय शासक’ कहा जाता है।
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11. अकबर के शासन में भूमि का वर्गीकरण किस प्रकार किया गया था?
अकबर ने उत्पादकता के आधार पर भूमि का वर्गीकरण किया। इसने पूर्व से चली आ रही भूमि पैमाइश की इकाई गज-ए-सिकंदरी की जगह गज-ए-इलाही की शुरुआत की। भूमि का वर्गीकरण, खालसा, पोलज, बंजर, ऊसर आदि इकाइयों में किया। इससे भू राजस्व के निर्धारण में आसानी होती थी।
12. मुगल दरबार में अभिवादन के कौन से तरीके थे?(2020A 2021A] अथवा, मुगल दरबार में प्रचलित अभिवादन के दो तरीकों का उल्लेख कीजिए। (2023A
[2020A.2021,20220)]
मुगल दरबार में अभिवादन के सिजदा तथा जमींबोस प्रणाली विकसित थी। इसमें सिजदा के रूप में दंडवत् होकर शासक के सामने लेटना होता था। जमींबोस के तहत शासक के सामने झुककर जमीन को चूमना होता था।
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13. जजिया क्या था? [2024]
जजिया गैर-इस्लामी लोगों पर मुगलकाल में लगाये जाने वाले धार्मिक कर था, जिसे 1564 ई० में अकबर ने समाप्त कर दिया।
14. अकबर ने सुलह-ए-कुल के विचार को किस प्रकार अपनी राज्य नीति का आधार बनाया? दो उदाहरण दें।(2025A)
अकबर ने सुलह-ए-कुल के विचार को अपनी राज्य नीति का आधार बनाया, जिसका अर्थ है ‘सभी के साथ शांति’। उन्होंने विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता को बढ़ावा दिया और धार्मिक संवाद को प्रोत्साहित किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए एक समान कर प्रणाली लागू की और जिजिया कर को समाप्त किया, जिससे धार्मिक समानता को बढ़ावा मिला।
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● दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
1. अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना करें। (20134.2005A,2016A/
. मुगल शासन प्रणाली की सबसे अद्भुत विशेषता मनसबदारी प्रथा थी। इसका निर्माता अकबर था। ‘मनसबदार’ शब्द पदाधिकारी के लिए प्रयोग किया जाता था और इस पूरी व्यवस्था को मनसबदारी प्रथा कहा जाता था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अकबर के शासन के तीन प्रमुख अंगों को अर्थात् सामंत, सेना एवं नौकरशाही को एक सामान्य व्यवस्था में संगठित कर दिया था। अकबर द्वारा मनसब में युगल अंक प्रदान किये जाते थे जिसे जात मनसब और सवार मनसब कहा जाता था। जात मनसब द्वारा किसी व्यक्ति का अधिकारियों के बीच स्थान या उसकी वरीयता का निर्धारण होता था। इसलिए हर अधिकारी को निर्धारित संख्या में सैनिक अपने अधीन रखने पड़ते थे। अकबर ने सेना की कार्यकुशलता बनाये रखने के लिए दहविस्ती (10-20) का नियम निर्धारित कर दिया था, जिसके अनुसार प्रत्येक दस सैनिक पर बीस घोड़े अनिवार्य रूप से रखने थे ताकि आवश्यकता पड़ने पर सैनिक के लिए ताजादम घोड़े उपलब्ध रहें। इसी के साथ उसने “दाग” और “तसहीहा” (चेहरा) का नियम भी लागू किया। जिसके अन्तर्गत घोड़े पर शाही मोहर का चिन्ह लगा दिया जाता था और सैनिकों का हुलिया लिख लिया जाता था।
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2. मुगल काल में जमींदारों की स्थिति का वर्णन करें। [2013A, 2016A//
मध्यकाल में कृषि संरचना में जमींदारों का जो स्थान था, वह ग्रामीण समाज में उसकी श्रेष्ठता स्थापित करना था। मुगल काल में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम इलाके के प्रधान के लिए किया जाता था। अकबर के समय में यह पद किसी भी व्यक्ति के उत्पादन से सीधा हिस्सा ग्रहण करने के आनुवंशिक दावों के लिए जाना जाता था। वास्तव में जमींदारों का तात्पर्य भूमी उत्पादन की उस प्रक्रिया से ताल्लुक रखता है, जो ‘दावा’ भू-राजस्व के माँग के साथ-साथ चलता था। यह दावा आनुवंशिक तथा विभाज्य था। जहाँ उत्तर भारत में यह भत्ता 10% था वहीं दक्षिण भारत में 25% था, इसलिए वहाँ यह ‘चौथ वसूली’ के नाम से जाना जाता था। ‘सरदेशमुखी कर’ भी दक्षिण भारत में प्रचलित था तथा वह कुल लगान का 10% होता था। इसके अलावा ‘नजराना’ की प्रथा प्रचलित थी, जिसमें किसानों द्वारा जमींदारों को नजराने भेंट किये जाते थे। यह एक प्रकार का उपकर था। जमींदार लोग उनके क्षेत्र की सीमा से गुजरने वाले व्यापारियों और साप्ताहिक बाजारों से कर वसूला करते थे।
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3. अकबर को एक “राष्ट्रीय सम्राट” क्यों कहा जाता है? [2020A]
अकबर मुगल वंश का सर्वोच्च सम्राट था। यह एक उच्च कोटि का राष्ट्र निर्माता था। यह एक निर्भिक सैनिक, उपकारी तथा बुद्धिमान शासक, उच्च विचारों वाला व्यक्ति और चरित्र का ठोस निर्माता था। इसने धार्मिक संकीर्णता, जातीय द्वेष और सामाजिक पक्षपात से अपने आप को ऊपर रखा। इसने एक सच्चे राष्ट्रीय शासक के रूप में हिंदुओं तथा मुसलमानों को समान समझा। इसने हिन्दुओं के साथ समान व्यवहार करके भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक समरसता तथा समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। योग्यता के आधार पर बीरबल, मान सिंह, टोडरमल आदि हिंदू लोग साम्राज्य के ऊँचे अधिकारी बने। राजपूत कन्याओं से वैवाहिक संबंध स्थापित कर समाज में समरसता का परिचय दिया। हिन्दू पर्व त्योहारों को भी राजमहल में उसी प्रकार मनाया जाता था जैसे मुस्लिम पर्व। इसीलिए अकबर को एक ‘राष्ट्रीय सम्राट’ कहा जाता है।
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4. अकबर की भूमि बन्दोबस्त प्रणाली का मूल्यांकन करें।
4. मुगलकालीन भूराजस्व व्यवस्था को संगठित करने का श्रेय अकबर को है। आरंभ में अकबर ने शेरशाह सूरी के भूमि बंदोवस्त प्रणाली को ही अपना परंतु बाद में इसमें कई परिवर्तन किए।
(1) वार्षिक अनुमान पद्धति की शुरुआत- अकबर ने भूमि बंदोबस्त प्रणाली में वार्षिक अनुमान पद्धति को पुनः चालू किया। इसने कानूनगो को आदेश दिया कि वे वास्तविक उत्पादन खेती की स्थिति आदि की सूचना पाकर ही लगान की दर तय करें।
( ii) करोड़ी पद्धति की शुरुआत-अकबर ने वार्षिक अनुमान पद्धति के दोषों को दूर करने के लिए करोड़ी पद्धति आरंभ की। इसमें सारी खालसा भूमि को ऐसे बराबर भागों में बाँटा जिसके हर भाग की मालगुजारी एक करोड़ दाम होती थी।
(iii) खालसा भूमि का विस्तार, भूमि की पैमाइश वर्गीकरण तथा वास्तविक उपज के आधार पर भूराजस्व तय करना अकबर की तीसरी भूमि चंदोवस्त प्रणाली थी। भूमि की पैमाइश के लिए गज-ए-सिकंदरी को स्वीकार किया।
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5. अकबर की धार्मिक नीति की समीक्षा करें।[2013A,2014A,2015A, 2016A 20224,2024A
अकबर अपने पूर्ववर्ती शासकों की धार्मिक विभेद की नीति के स्थान पर उदार नीति अपनाई तथा सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों में एकता और समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। अकबर की धार्मिक नीति का विकास तीन विभिन्न चरणों में हुआ। प्रथम चरण में अकबर ने हिन्दुओं के प्रति उदार धार्मिक नीति आरंभ की। तीर्थयात्रा कर (1563) और जजिया कर (1564) समाप्त किया। बलात धर्म परिवर्तन पर रोक लगा दी गई। हिन्दुओं को मंदिर बनाने की अनुमति दी गई। दूसरे चरण में इबादतखाना की स्थापना की गई, मजहर की घोषणा की गई तथा ‘दीन-ए-इलाही’ नामक नये धर्म की स्थापना की गई। अंतिम चरण में अकबर ने हिन्दू-मुसलमान समाज एवं धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। इबादतखाना की स्थापना- धार्मिक विषयों पर बाद-विवाद करवाने के
उद्देश्य से अकबर ने 1573 में फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना (प्रार्थना भवन) बनवाने की आज्ञा दी। अकबर स्वयं इन धार्मिक वाद-विवादों में भाग लेता था। अकबर इन वाद-विवादों से यह समझा कि सभी धर्मों का सार एक है, उनमें सिर्फ बाहरी अंतर है।
6. मुगल कालीन भू-राजस्व व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
मुगल कालीन भूराजस्व व्यवस्था को संगठित तथा सुचारू रूप से संचालन का श्रेय अकबर को जाता है। बाबर और हुमायूँ के समय लोदी कालीन ही भू-राजस्व व्यवस्था लागू रही। अकबर के काल में इसमें सुधार किया गया। अकबर ने पुनः वार्षिक अनुमान पद्धति को लागू किया। भू राजस्व के रूप में ऊपज का 1/3 भाग निर्धारित किया गया। यह जींस और नगद दोनों रूपों में लिया जाता था।
अकबर ने वार्षिक अनुमान पद्धति के दोप को दूर करने के लिए करोड़ी पद्धति शुरू किया। खालसा भूमि को ऐसे बराबर भागों में बाँटा गया जिसकी मालगुजारी एक करोड़ दाम होती थी। इसने राजस्व की बढ़ोतरी के लिए खालसा भूमि का विस्तार किया। उत्पादकता के आधार पर भूमि को पोलज, पड़ौती, चाचर तथा बंजर चार रूपों में विभाजित किया। अकबर ने वास्तविक उत्पादन, स्थानीय कीमतें उत्पादकता आदि पर सूचना के आधार पर दहसाला पद्धति की शुरुआत की।
अकबर के बाद जहाँगीर, शाहजहाँ के काल में भू-राजस्व पद्धति अकबर कालीन ही रहा। औरंगजेब के काल में भू-राजस्व बढ़कर 50% तय की गई।
7. अकबर की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।[2023A]
अकबर 1556 ई० में सम्राट बना। आरंभिक कठिनाइयों के बाद अकबर के जीवन की कई उपलब्धियाँ थी जो निम्न हैं-(i) कठिनाइयों का समाधान-शुरू में अल्पायु होने के कारण बैरम खाँ अकबर का संरक्षक था। बाद में इसने विद्रोह कर दिया जिसे दबा दिया गया। इसी प्रकार धाय माँ महम अनगा तथा उसके पुत्र आचम खाँ के विद्रोह को कुचल दिया गया।(ii) विजय अभियान- राज्यारोहण के बाद अकबर ने कुशल विजय नीति अपनाई। 1556 ई० में हेमू को पानीपत के दूसरे युद्ध में पराजित कर दिल्ली और आगरा जीता। 1558 में ग्वालियर, 1560 में अजमेर तथा जौनपुर, 1560 में मालवा, 1561 चुनार का किला, 1564 गोंडवाना; 1572 में गुजरात, 1574 में बंगाल और बिहार; 1585 काबूल विजय, 1595 कंधार विजय तथा 1601 में असीरगढ़ की विजय प्राप्त की।
(iii) राजपूत नीति- अकबर ने भारत में अपनी सत्ता को सुदृढ़ता तथा स्थायित्व प्रदान करने के लिए कुशल राजपूत नीति का अवलंबन किया। मित्रता, वैवाहिक संबंध, ऊँचे ओहदे प्रदान करना इस नीति का मुख्य आधार था। आमेर के शासक भारमल, बीकानेर, मारवाड़, जैसलमेर, रणथम्भौर आदि राज्यों से मित्रता स्थापित हुई है।
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