Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions Chapter 7 Todti Patthar
तोड़ती पत्थर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
Class 11th Todti Patthar
प्रश्न 1.
पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह किया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर वाली मजदूरिन एक साँवली कसे बदन वाली युवती है। वह चिलचिलाती गर्मी की धूप में हथौड़े से इलाहाबाद की सड़क के किनार एक छायाहीन वृक्ष के नीच पत्थर तोड़ रही है। उसके माथे से पसीने की बूंदे दुलक रही हैं। मजदूरिन अपने श्रम-साध्य काम में पूर्ण तन्मयता से व्यस्त है।
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प्रश्न 2.
श्याम तन, भर बंधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन’
निराला ने पत्थर तोड़ने वाली स्त्री का ऐसा अंकन क्यों किया है? आपके विचार से ऐसा लिखने की क्या सार्थकता है?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में एक मजदूरनी के रूप एवं कार्य का चित्रण किया है, जो साँवली और जवान है तथा आँखे नीचे झुकाए पूर्ण तन्मयता एवं निष्ठा से अपने कार्य में व्यस्त है।
किताबों की अलमारी
कवि ने उक्त पत्थर वाली स्त्री के विषय में इस प्रकार चित्र इसलिए प्रस्तुत किया है कि पत्थर तोड़ने जैसे कठिन र्का को सम्पादित करने के लिए सुगठित स्वस्थ शरीर को होना नितान्त आवश्यक है तथा सुगठित शरीर ही श्रमसाध्य कार्य हेतु सक्षम होता है। साथ ही तीक्ष्ण धूप में शरीर का साँवला होना स्वाभाविक है। कवि ने कार्य में उसकी पूर्ण तन्मयता का भी सुन्दर चित्रण किया है। मेरे विचार से ऐसा लिखना सर्वथा उचित है।
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प्रश्न 3.
स्त्री अपने गुरू हथौड़े से किस पर प्रहार कर रही है।
उत्तर-
स्त्री (मजदूरिन) अपने बड़े हथौड़े से समाज की आर्थिक विषमता पर प्रहार कर रही है। वह धूप की झुलसाने वाली भीषण गर्मी के कष्टदायक परिवेश मे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करने वाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। एक ओर उस स्त्री के मार्मिक तथा कठोर संघर्ष की व्यथा-कथा है, दूसरी ओर अमीरों की विशाल अट्टालिकाओं एवं सुखसुविधाओं का चित्रण है।
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इस प्रकार प्रस्तुत पंक्ति देश की आर्थिक विषमता का सजीव चित्रण है। इसके साथ ही इस विषमता पर एक चुभता व्यंग्य भी है।
प्रश्न 4.
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है, ऐसा क्यों?
उत्तर-
कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर देखने लगती है। वह पत्थर तोड़ना बंद कर देती है। वह सामने खड़े विशाल भवन की ओर देखने लगती है। ऐसा कर वह समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता की ओर संकेत करती है। कवि उसके भाव को समझ जाता है।
प्रश्न 5.
‘छिन्नतार’ का क्या अर्थ है? कविता के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी की मार्मिक एवं दारुण स्थिति का यथार्थ वर्णन प्रस्तुत किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि को एक क्षण के लिए देखती है। वह सामने के भव्य भवन को भी देख लेती है और फिर अपने कार्य में लग जाती है। उसकी विवशता ऐसी है मानों कोई व्यक्ति मार खाकर भी न रोए। वह चाहकर भी अपनी व्यथा और विवशता कवि की हृदय-वीणा के तार को छिन्न-भिन्न कर देती है।
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प्रश्न 6.
‘देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
इन पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ महाप्राण “निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता से उद्धत हैं। इन पंक्तियों में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती हुई पत्थर तोड़ने वाली गरीब मजदूरनी का मार्मिक स्थिति को वर्णन किया है। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी पर सहानुभूति पूर्ण नजर डालता है। वह भी एक क्षणिक दृष्टि से कवि की ओर देखकर अपने काम में इस प्रकार मग्न हो जाती है जैसे उसने कवि को देखा ही नहीं।
वह सामने विशाल अट्टालिका पर भी नजर डालकर समाज में व्याप्त अमीरी-गरीबी की खाई से भी कवि को रू-बरू कराती है। उसकी नजरों में संघर्षपूर्ण दीन-हीन जीवन का अक्स सहज ही दृष्टि गोचर होता है। उसकी विवशता ऐसी है मानो कोई मार खाकर भी न रोए। सामाजिक विषमता का दंश मूक होकर सहने को गरीब मजदूरनी अभिशप्त है।
प्रश्न 7.
सजा सहज सितार सुनी मैंने वह नही जो थी सुनी झंकार’ यहाँ किस सितार की ओर संकेत है? इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कविवर ‘निराला’ रचित ‘तोड़ती पत्थर’ कविता की हैं। कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह भी विवश दृष्टि से कवि को एक क्षण के लिए चुपचाप देख लेती है। फिर, अपने कार्य में लग जाती है। वह कुछ बोलती नहीं, फिर भी कवि उसके हृदय सितार से झंकृत वेदना की मार्मिकता को समझ ही लेता है।
कवि मजदूरनी के हृदय सितार से झंकृत वेदना जो सामाजिक विषमता की कहानी कहती हुई प्रतीत होती है, को दर्शाना चाहता है। कवि सहज अपने हृदय के वीणा के तारों से उस शोषण की प्रतिमूर्ति मजदूरनी के हृदय के तारों से जोड़कर उसके दारूण-व्यथा की अनुभूति कर लेता है।
प्रश्न 8.
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधार, [Board Model 2009(A)]
दुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों, कहा
‘मैं तोड़ती पत्थर।’
इन पंक्तियां की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हिन्दी के मुक्तछंद के प्रथम प्रयोक्ता, छायावाद के उन्नायक कवि शिरोमणि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रचित ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। इस कविता में कवि ने शोषण और दमन पर पलती व्यवस्था के अन्याय और वंचनापूर्ण व्यूहों में पिसती ‘ मानवता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।
कवि इलाहाबाद के जनपथ पर भीषण गर्मी में पत्थर तोड़ती मजदूरनी को देखता है। वह बिना छायावाले एक पेड़ के नीचे पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही थी। उसके सामने वृक्षों के समूह और विशाल अट्टालिकाएँ और प्राचीर थे। तेज और तीखी धूप से धरती रूई की तरह जल रही थी। कवि पत्थर तोड़ती मजदूरनी को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह भी कवि पर एक नजर डालकर सामने के भव्य भावना को भी देख लेती है। वह मजदूरनी एक क्षण के लिए सिहर उठती है। उसके माथे से पसीने की बूंदे गिर पड़ती हैं। वह फिर अपने कार्य में चुपचाप लग जाती है और मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है।
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प्रश्न 9.
कविता की अंतिम पंक्ति है- ‘मौ तोड़ती पत्थर’ उससे पूर्व तीन बार ‘वह तोड़ती पत्थर’ का प्रयोग हुआ है। इस अंतिम पंक्ति का वैशिष्ट्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि शिरामणि निराला ने अपनी बहुचर्चित कविता ‘तोड़ती पत्थर’ में एक गरीब मजदूरनी की विवश वेदना और व्यथा का चित्रण किया है। कवि ने इलाहाबाद के जनपथ पर गर्मी की झुलसती लू और धूप में वह मजदूरनी हथौड़े पत्थर से तोड़ती रहती है। कवि उसे सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखता है। वह मजदूरनी कवि को एक क्षण के लिए देखकर भी नहीं देखती और पसीने से लथपथ होकर पत्थर तोड़ती रहती है।
गरीब मजदूरनी अंतिम पंक्ति में मौन होकर भी यह बता देती है कि वह पत्थर तोड़ रही है। उसने परोक्ष रूप से हमारी शोषणपूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था पर व्यंग की करारी चोट भी की है और हमें यह संदेश दिया है कि इस आर्थिक विषमताजन्य स्थिति और परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में सही सोच का परिचय दें। सही सोच से ही समतामूलक अर्थव्यवस्था पर आधारित समाज प्रगति के सोपान पर निरन्तर अग्रसर हो सकता है। मजदूरनी की वे सांकेतिक वैचारिक बिन्दु सचमुच बिन्दु सचमुच सराहनीय है।
प्रश्न 10.
कविता का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविवर निराला रचित एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में कवि ने एक गरीब मजदूरिन की विवशता और कठोर श्रम-साधना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। कवि एक दिन इलाहाबाद के एक राजपथ पर एक पेड़ के नीचे एक दीन-हीन संघर्षरत मजदूरिन को पत्थर तोड़ते देखता है। वह जिस पेड़ के नीचे बैठी है वह छायादार नहीं है। गर्मी के ताप-भरे दिन है। चढ़ती धूप काफी तेज है। दिन का स्वरूप गर्मी से तमतमाया लगता है। लू की झुलसानेवाली लपटे काफी गर्म हैं। भीषण गर्मी में जमीन रूई की तरह जल रही है।
इस कष्टदायक परिवेश में वह बेचारी पत्थर तोड़ने का श्रमसाध्य कार्य कर रही है। वह मजदूरिन श्यामवर्ण युवती है। वह चुपचाप नतनयन हो पत्थर तोड़ने का कार्य कर रही है। उसके सामने ही अमीरों को सुख-सुविधा प्रदान करनेवाली विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी हैं जो उसकी गरीबी पर व्यंग्य करती प्रतीत होती हैं। कवि उस मजदूरिन को सहानुभूति भरी दृष्टि से देखता है। वह मजदूरिन भी एक क्षण के लिए उस सहज मूक दृष्टि से देख लेती है। .
कवि को लगता है कि उसने देखकर भी उसे न देखा हो। कवि उसके टूटे दिल की वीणा की झंकार को सुन लेता है। वह क्षण भर के लिए कांप-सी उठती है। श्रम-लथ उस मजदूरिन के माथे से पसीने की बूंद टपक पड़ती हैं। पसीने की वे बूंदे उसे कठोर श्रम और संघर्ष साधना का परिचय देती है और यह बताती है कि उस गरीब मजदूरिन का यह संघर्ष कितना मार्मिक और कितना कठोर है। संपूर्ण कतिवा हमारे देश की आर्थिक विषमता पर एक चूमता हुआ व्यंग्य है।
तोड़ती पत्थर भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें पथ, पेड़, दिवा, भू, पत्थर, गर्द, सुधार
उत्तर-
पथ-मार्ग, पेड़-वृक्ष, दिवा-दिन भू-पृथ्वी, पत्थर-शिला, गदै-मैला, सुधार-सुरम्य।
प्रश्न 2.
‘देखा मुझे उस दृष्टि से यहाँ ‘दृष्टि’ संज्ञा है या विशेषण।
उत्तर-
संज्ञा।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से विशेष्य, विशेषण अलग करे श्याम तन, नत नयन, गम हथौड़ा, सहज सितार
उत्तर-
विशेष्य – विशेषण
तन – श्याम
नयन – नत
हथौड़ा – गुरू
सितार – सहज
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प्रश्न 4.
कविता से सर्वनाम पदों को चुनकर लिखें।
उत्तर-
जिन पदों का संज्ञा के स्थान पर होता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ शीर्षक कविता में निम्नलिखित सर्वनाम आये हैं- वह, उसे, मैंने, जिसके, कोई, मुझे, उस और जो।
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प्रश्न 5.
‘एक क्षण के बाद वह कॉपी सुधर’ यहाँ सुघर क्या है?
उत्तर-
यहाँ इस पंक्ति में प्रयुक्त सुधर, जिसका अर्थ सुगठित, चतुर, होशियार, सुन्दर, संडोल आदि है। यहाँ प्रयुक्त सुघर शब्द, पत्थर तोड़ती स्त्री के ‘विशेषण’ के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
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प्रश्न 6.
कविता से अनुप्रास, रूपक और उपमा और अलंकारों के उदाहरण चुनकर लिखें।
उत्तर-
तोड़ती पत्थर – अनुप्रास
श्याम तन – रूपक, उपमा (दोनो)
तरु मालिका अट्टालिका प्राकार – अनुप्रास
लू-रूई ज्यों – उपमा
सजा सहज सितार – अनुप्रास
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प्रश्न 7.
कविता एक प्रगीत है। गीत और प्रगीत में क्या अन्तर है?
उत्तर-
शास्त्रीय दृष्टिकोण से गेय पद गीत कहलाते हैं। इनमें शब्द-योजना संगीत के स्वर विधान के अनुरूप होती है। गीतों में मसृण भावों की अभिव्यक्ति होती है। आधुनिक काल में निरालाजी की कृपा से छंदबन्ध टूटने के बाद गीत लिखने का प्रचलन बढ़ गया किन्तु गेयता शून्य हो गयी। प्रगीत गीत की अपेक्षा कुछ विशिष्टता लिये होता है। इसमें किसी समस्या को, विचार को, सशक्त ढंग से संकेतो के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।
गीत और प्रगीत दोनों में तुक का आग्रह होता है। क्योंकि बिना तुक के गेयता संभव नहीं है। गीत जहाँ हृदय को राहत पहुँचाते हैं। प्रगीत हृदय को उद्वेलित करते हैं। मनकों मथ डालते हैं।
गीतों और प्रगीतों के कलेवर की लम्बाई वर्णित विषय की गम्भीरता पर निर्भर है।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
तोड़ती पत्थर लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तोड़ती पत्थर में प्रकृति या ग्रीष्म का रूप बतायें।
उत्तर-
‘तोड़ती पत्थर’ कविता में प्रकृति वर्णन की दृष्टि से ग्रीष्म का वर्णन है। मजदूरनी पत्थर तोड़ती है। धीरे-धीरे दोपहरी हो आती है। प्रचण्ड धूप के कारण दिन का रूप क्रोध में तमतमाये व्यक्ति के समान अनुभव होता है। झुलसाने वाली लू चलने लगती है। धरती रूई की तरह जलती प्रतीत होती है। हवा की झोंकों के कारण उड़ने वाली धूप आग की चिनगारी की तरह तप्त हो जाती है। ऐसी दोपहरी में भी बेचारी मजदूरनी पत्थर तोड़ती रहती है।
प्रश्न 2.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात का चित्रण हुआ है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित प्रगतिवादी कविता है। इस कविता के द्वारा कवि ने शोषित वर्ग का मर्मस्पर्शी चित्रण प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही साथ आर्थिक वर्ग-वैषम्य का भी हृदयग्राही चित्र खींचा है। समाज की अर्थव्यवस्था के आधार पर दो वर्ग हुए हैं-शोषित और शोषक। यहाँ दोनों वर्गों का बड़ा सजीव चित्र निराला ने खींचा है। निराला ने निरीह शोषित वर्ग के प्रति अपनी सारी सहानुभूति उड़ेल दी है। मजदूरिन को प्रचंड गर्मी में पत्थर तोड़ते देख कवि मौन नहीं रह पाता। वह अपनी सारी करुणा और संवेदना प्रस्तुत कविता में प्रकट कर देता है।
तोड़ती पत्थर अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निराला जी ने पत्थर तोड़ने वाली को कहाँ देखा था?
उत्तर-
इलाहाबाद के किसी पथ पर।
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प्रश्न 2.
मजदूरनी की शारीरिक बनावट कैसी थी?
प्रश्न 3.
मजदूरनी को कवि ने कब देखा था?
उत्तर-
निराला जी मजदूरनी को ग्रीष्म ऋतु की दोपहर में (झुलसाने वाली लू के समय) देखा था।
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प्रश्न 4.
मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम क्यों करती थी।
उत्तर-
पेट की भूख मिटाने के लिए मजदूरनी पत्थर तोड़ने का काम कर रही थी।
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प्रश्न 5.
मजदूरनी जहाँ पत्थर तोड़ रही थी वहा कवि ने और क्या देखा?
उत्तर-
कविता ने वहाँ एक विशाल भवन को देखा। इस समय कवि ने देश की खराब आर्थिक स्थिति का अनुभव किया। वह देश की जनता की निर्धनता की प्रति बहुत चिंतित हुआ।
प्रश्न 6.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में प्रगतिवादी चेतना को अभिव्यक्ति हुयी है।
प्रश्न 7.
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में वर्णित मजदूरिन पत्थर कहाँ तोड़ती है?
उत्तर-
कविता में वर्णित मजदूरिन इलाहाबाद की सड़क पर पत्थर तोड़ती है।
प्रश्न 8.
मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से कविता में किस बात पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर-
तोड़ती पत्थर शीर्षक कविता में मजदूरिन के जीवन यथार्थ के चित्रण के माध्यम से अर्थजन्य सामाजिक विषमता और आर्थिक बदहाली पर प्रकाश डाला गया है
