Bihar Board Class 11th meerabai ke pad Chapter 3
प्रश्न 1.
मीरा अपने सच्चे प्रीतम के साथ किस तरह रहने को तैयार हैं?
उत्तर-
मीरा अपने सच्चे प्रीतम के साथ हर परिस्थिति में रहने के लिए तैयार हैं। उसके प्रीतम कृष्ण उसे जो पहनने के लिए देंगे वही पहनने के लिए तैयार है। जो खाने के लिए उसके प्रीतम के द्वारा दिया जाएगा उसी से मीरा अपनी क्षुधा की तृप्ति करेगी, जो स्थान रहने के लिए कृष्ण देंगे वह वहीं निवास करेगी और यदि वे बेच भी दें तब भी वह कृष्ण प्रदत्त नयी स्थिति में रह लेगी।
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प्रश्न 2.
“मेरी उण की प्रीत पुराणी, उण बिन पल न रहाऊँ।”-का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पद सगुण भक्ति धारा की कृष्णोपासक कवयित्री मीराबाई द्वारा रचित है। कृष्ण के प्रति मीरा का एकनिष्ठ अटूट सर्मपण उत्तरोत्तर अतीव वेग से उमड़ते भावों से परिपूर्ण है। मधुर भाव की उत्कट प्रेमानुभूति से वशीभूत मीरा श्रीकृष्ण मीरा श्रीकृष्ण के प्रति सर्वात्म समर्पण करती है। वह श्रीकृष्ण पर लुट चुकी, मिट चुकी है। श्रीकृष्ण के रंग में रंग में रंगी मीरा उनसे पुरानी प्रीति को स्वीकार करते हुए एक पल भी अकेले नहीं रहना चाहती है। मीरा का अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रति सर्वात्म समर्पित प्रेम व्यजित है। मीरा के प्रेम में उमड़ते हुए ऐसे प्रेम-वेग सहज ही दृष्टिगोचर होता है।
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प्रश्न 3.
कृष्ण के प्रति तोड़ने पर भी मीरा प्रीत तोड़ने को तैयार नहीं है। क्यों?
उत्तर-
मीराबाई रूढ़ियों से ग्रसित मध्यकालीन समाज की सामाजिक बंधनों को तोड़कर नटवर नागर (श्रीकृष्ण) की प्रेम दीवानी बनकर उन्हें सच्चा प्रियतम के रूप में अपनाया है। वह तो श्रीकृष्ण के जादुई पाश में इस तरह बँधी है कि उसका अपना अस्तित्व ही उनमें विलीन हो गया है। विधवा मीरा तत्कालीन सामाजिक नियमों के अनुसार सती न होकर श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति की उन्मत घोषणा करती है। उन्होंने श्रीकृष्ण को ही अपना वास्तविक पति और प्रियतम स्वीकार करती है।
पति को वह कैसे छोड़ सकती है जिसके प्रेम में वह अस्तित्वविहीन हो गई है। कृष्ण के द्वारा प्रीत तोड़ देने पर भी वह उनसे प्रीत जोड़ने को मजबूर है। वह श्रीकृष्ण के संग तरुवर और पक्षी, सरवर और मछली, गिरिवर और चारा, चंदा और चकोरा, मोती और धागा तथा सोना और सुहागा के समान रहना चाहती है। वस्तुतः मीरा का किसी भी परिस्थिति में प्रीत नहीं तोड़ने की जादुई पाश में बंध चुकी है।
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प्रश्न 4.
मीरा ने कृष्ण के लिए कौन-कौन-सी उपमाएँ दी हैं? वे कृष्ण की तुलना में स्वयं को किस रूप में प्रस्तुत करती हैं?
उत्तर-
मीरा ने कृष्ण के लिए निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है-तरुवर (पेड़), सरवर (सरोवर), गिरिवर (हिमालय पर्वत), चन्दा (चन्द्रमा), मोती
मीरा ने कृष्ण की तुलना में स्वयं को क्रमशः पंखिया (पारवी, पक्षी), मछिया (मछली), चारा (घास), चकोरा (चकोर, चक्रवाक पक्षी), धागा और सोहागा के रूप में प्रस्तुत किया है।
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प्रश्न 5.
“तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी” में ठाकुर का क्या अर्थ है?
उत्तर-
उपर्युक्त पक्ति में आगत ठाकुर शब्द का अर्थ स्वामी, मालिक, सर्वस्व, सर्वेश, भर्तार आदि है।
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प्रश्न 6.
पठित पद के आधार पर मीरा की भक्ति-भावना का परिचय अपने शब्दों में
उत्तर-
कृष्ण भक्त कवियों में मीराबाई का नाम स्वर्णाक्षरों में भक्ति-शिखर पर अकित है। मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की कृष्ण भक्ति है। इस भक्ति में विनय भावना, समर्पण भावना, वैष्णवी प्रीत, अवधा भक्ति के सभी रंग शामिल हैं। कृष्ण प्रेम में अस्तित्व-विहीन मीरा तरुवर पर पक्षी, सरोवर में मछली, गिरिवर पर चारा, चंदा के साथ चकोर, मोती के साथ धागा और सोना के लिए सोहागा के रूप में रहना चाहती है। तमाम तरह की लोक-मर्यादा को छोड़कर श्रीकृष्ण को पति मानकर कहती है-“तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी”।
मीरा की भक्ति में उद्दामता है, पर अंधता नहीं। उनकी भक्ति के पद आंतरिक गूढ़ भावों के स्पष्ट चित्र हैं। मीरा के पदों में श्रृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्ष पाए जाते हैं, पर उनमें विप्रलंभ शृंगार की प्रधानता है। उन्होंने ‘शांत रस’ के पद भी रचे हैं।
मीरा की भक्ति के सरस-सागर की कोई थाह नहीं है, जहाँ जब चाहो, गोते लगाओ। इसमें रहस्य साधना भी समाई हुई है। संतों के सहज योग को मीरा ने अपनी भक्ति का सहयोगी बना लिया था।
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प्रश्न 7.
“गिरिधर म्हारो साँचो प्रीतम” यहाँ साँचो विशेषण का प्रयोग मीरा ने क्यों किया है?
उत्तर-
कृष्ण भक्त कवयित्री मीराबाई उनकी उपासना प्रियतम (पति) के रूप में करती है। यह रूप अत्यन्त मनोहारी है। उन्होंने श्रीकृष्ण को ही अपना वास्तविक पति और सच्चा प्रियतम बताया-‘गिरिधर म्हारो साँचो प्रीतम’। युवावस्था में विधवा मीरा ने वैधव्यता को, जो उनकी नजर में सांसारिक और झूठा था, को धता बताकर स्वयं को अजर-अमर स्वामी श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया। अर्थात् ‘साँचो’ विशेषण मीरा की कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ अटूट समर्पण की पराकाष्ठा है।
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प्रश्न 8.
मीरा की भक्ति लौकिक प्रेम का ही विकसित रूप प्रतीत होती है। कैसे? यह दोनों पदों के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रेम के दो स्वरूप हैं-
(i) जगतिक या सांसारिक प्रेम और (2) ईश्वरीय या आध्यात्मिक प्रेम। किसी शायर ने कहा है-“हकीकी इश्क से पहले मिजाजी इश्क होता है।” अर्थात् ईश्वर से प्रेम करने या होने के पूर्व सांसारिक प्रेम होता है। जो अपने रक्त सम्बन्धियों से, अपने परिवेश से प्रेम नहीं कर पाएगा वह ईश्वर से क्या खाक प्रेम करेगा।
मीरा कृष्ण को ‘पिया’ संबोधन देती है। पिया अर्थात् पति। भारतीय समाज में पति-पत्नी ‘के सम्बन्ध को अत्यन्त आदरणीय, सम्मानित स्थान प्राप्त है। विशेषकर हिन्दू समाज में जहाँ हर विषम परिस्थिति में यह दाम्पत्य बंधन अटूट बना रहता है। पति-पत्नी एक-दूसरे के व्यक्तित्व के परिपूरक होते हैं। एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम निवेदन एक पत्नी के प्रणय निवेदन की तरह ही है।
