Bihar Board Class 11th Hindi Utari Swapn Pari Bihar Board Chapter 8

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महत्त्वपूर्ण पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या
1. कोसी या उसके किसी अंचल के सम्बन्ध में………….कोसी मैया।
व्याख्या-
‘ पंक्तियों में रेणु जी यह बताना चाहते हैं कि वे कोशी अथवा उसके किसी अंचल के विषय में कुछ लिखना चाहते हैं तो बात व्यक्तिंगत हो जाती है। कुछ कहने या लिखने’ से उनका तात्पर्य है कहानी, उपन्यास,  कविता अर्थात् साहित्य की किसी भी विधा में लेखन।
व्यक्तिगत से उनका तात्पर्य है कि साहित्य जगत या पाठक जगत उस लेखन को रेणु की अपनी बात या अपनी समस्या मान लेता है। इसके दो कारण हैं प्रथम यह कि रेणु उसी अंचल के निवासी हैं। उन्हें अपने क्षेत्र के लोगों से जिन्दगी से प्यार है। अतः जब वे लिखते हैं तो उसे क्षेत्र न मानकर अपना मानकर अर्थात् वे तटस्थ नहीं रह पाते हैं
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2. इस परती के उदास और मनहूस…………..धूसर और वीरान।
व्याख्या-
लेखक बचपन से ही उसे देखता आया है। वह परती जमीन है, उसका रंग बादामी का है। उसे देखकर उदास और मनहूसियत का प्रभाव मन पर छा जाता है। लेखक के शब्दों में वह भूमि नहीं साकार उदासी है।
इस उदास मनहूस भूमि पर केवल बालू ही बालू है। बरसात के मौसम में कुछ निरर्थक किस्म के पौधे उगते हैं और हरियाली छा जाती है। कुछ दिन के बाद वह हरियाली नष्ट हो जाती है और यह धरती पुनः धूसर वर्ण की हो जाती और वातावरण में वीरानी छा जाती है। यहाँ कुछ नहीं उपजता। अत: यह बंध्या धरती है।
3. और इस भरी हुई मिट्टी पर बसे हुए……………सपने कैसे पल सकते हैं?
व्याख्या-
इन पंक्तियों में रेणु जी ने कोशी क्षेत्र की उस भरी हुई धरती के उदास वीरान परिवेश में जीने वाले इंसानों का वर्णन किया है।
 लोग मृत्यु के आंतक के बीच जीने को विवश थे। वे रोग से कराहने और किसी सज्जन के मरने पर रोने के सिवा उनके जीवन में कुछ नहीं था। उनका जीवन रस-उल्लास से रहित था अतः उनके जीवन में सपने भी नहीं थे। रेणु जी ठीक कहते हैं जिनके चेहरों पर सदा रोग और मौत के आतंक की छाया हो, उनकी आँखों में सुनहले सपने कैसे पल सकते हैं?
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4. किन्तु विधाता की सृष्टि में…………….अंधकार से लड़ता रहा है।
व्याख्या-
फणीश्वर नाथ रेणु ने कोशी अंचल में कोशी डैम बन जाने के उपरान्त उस क्षेत्र में हुए परिवर्तन का उल्लेख अपने रिपोर्ताज ‘उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति’ में किया है। उसी रिपोर्ताज से ये पंक्तियाँ ली गयी हैं। इन पंक्तियों में रेणु जी ने यह बताया है मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ सृष्टि है। उसके पास पुरुषार्थ है, पुरुषार्थ को पूरा करने वाला संकल्प है और है विषम से विषम परिस्थितियों से जूझते रहने की असीम शक्ति। इसलिए वह हारना नहीं जानता। निराशा के घोर अन्धकार में भी वह आशा का नन्हा दीप जलाए आगे बढता रहा है, अन्धकार से लड़ता रहा है और अन्ततः अन्धकार पर विजयी होता है। इस रिपोर्ताज का निष्कर्ष भी इसी तत्त्व को सम्पुष्ट करता है।
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5. भाई साहब ! कागज पर रंग की लहरें………..हरियाली ही हरियाली सूझती है।
व्याख्या-
फणीश्वर नाथ रेणु रचित “उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति” रिपोर्ताज टिप्पणी के रूप में है। बात मित्रों की है भाषा रेणु की। कोशी योजना के विषय में जाँच-पड़ताल होने के साथ ही रेणु जी ने उत्साहित होकर अपना दूसरा उपन्यास परती परिकथा लिख कर पूजा कर लिया वह छप भी गया। उसमें कोशी योजना में काम कर रहे लोगों की बातचीत और योजना से उत्साहित रेणु जी ने विश्वास किया कि कोशी अंचल वह धरती का रूप डैम बन जाने के बाद निश्चय ही बदल जायेगा और वह बंजर वीरान उदास धरती शस्य-श्यामला हो जायेगी।
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प्रश: 1.
लेखक ने कोसी अंचल का परिचय किस तरह दिया है?
उत्तर-
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने संस्मरण एवं रिपोर्ताज “उत्तरी स्वप्न परी : हरी क्रांति” में कोसी अंचल का परिचय प्रस्तुत किया है। लेखक के अनुसार कोसी अंचल कोसी नदी का क्षेत्र है। कोसी नदी “बिहार का शोक” कही जाती रही है।
लेखक के अनुसार, कोसी नदी जिधर से गुजरती थी, धरती बाँझ हो जाती थी। सोना उपजाने वाली मिट्टी सफेद बालू के मैदान में बदल जाती थी। लाखों एकड़ बंजर भूमि उत्तर नेपाल की तराई से शुरू होकर दक्षिण गंगा के किनारे तक फैली दिखाई देती है।
लेखक उस वीरान एवं बंजर भूमि को बचपन से ही देखते आये हैं। दूर-दूर तक कहीं हरियाली का नामोनिशान भी नहीं था। लोगों के मुख पर उदासी एवं निर.शा की लकीर स्पष्ट दिखाई देती थी। यह वीरान. दृश्य दिन-रात, सुबह-शाम सबके मुख पर परिलक्षित होता था।
लेखक ने कोशी अंचल की भूमि को मरी हुई मिट्टी की संज्ञा दी है। लेखक ने कोसी क्षेत्र में बसने वाले लोगों को भी सजीव चित्र उपस्थित किया है। कोसी क्षेत्र के लोग बीमार, दुर्बल एवं जर्जर शरीर लिए क्षेत्र की दशा को दर्शाते हैं। लोगों के दिल में कोसी का आतंक और चेहरे ‘ पर उदासी हमेशा देखने को मिलती है।
लेखक स्वयं उसे क्षेत्र के निवासी हैं। उन्हें अपना बचपन याद आता है। हर साल उनके दर्जनों साथी कोसी के प्रकोप से काल के गाल में समा जाते थे। जो लोग दिखाई भी देते थे, तो लगता था; अगले वर्ष वे दिखाई देगे या नहीं।
 प्रश्न 2.
जब लेखक कोसी या उसके किसी अंचल के संबंध में कुछ कहने या लिखने बैठता है तो बात बहुत हद तक व्यक्तिगत हो जाती है। ऐसा क्यों?
उत्तर-
उतरी स्वप्न परी : हरित क्रांति में लेखक ने स्पष्ट स्वीकार किया है कि वह जब कोसी या उसके किसी अंचल के संबंध में कुछ भी कहने या लिखने बैठता है तो वह वर्णन तटस्थ नहीं रह पाता, उसमें लेखक की वैयक्तिकता का सन्निवेश हो ही जाता है। ऐसा संभवतः इसीलिए होता है कि कोसी के साथ लेखक का भावात्मक एवं रागात्मक संबंध है। उसके स्वभाव-संस्कार में कोसी पूरी तरह रची-बसी है। अत: उसके वर्णन-चित्रण में उनकी वैयक्तिकता घुल-मिल जाती है।
प्रश्न 3.
पाठ में लेखक ने कोसी को ‘माई’ भी कहा है और “डायन कोसी’ शीर्षेक से रिपोर्ताज लिखने की चर्चा भी की है। लेखक का कोसी से कौन रिश्ता है?
उत्तर-
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु का कोसी से अटूट रिश्ता था। कोसी को उन्होंने माता (माई) कहकर भी पुकारा है। उनकी दृष्टि में कोसी माई भी है। उनकी नजर में कोसी का जल पवित्र है। इसलिए उन्होंने कोसी को पुण्यसलिला भी कहा है। कोसी को उन्होंने तांत्रिकों की देवी भी माना है। इसलिए वे उसे छिन्नमाता कहकर पुकारते हैं। कोसी के भयानकता एवं भयावहता को देखकर वे उसे ‘भीमा’ और ‘भयानक’ भी कहते हैं। “कोसी की परियोजना” से क्षेत्र के लोगों को बहुत लाभ मिला। लोगों की भी खुशहाली आयी। इसलिए उसे वे प्रभावती भी कहते हैं।
 प्रश्न 4.
‘मानव ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है।’ पाठ के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने संस्मरण एवं रिपोर्ताज “स्वप्न परी : हरी क्रांति” में मानव जीवन के मार्मिम पहलू को स्पर्श किया है। यह एक सर्वविदित्त और सर्वज्ञात तथ्य है कि विधाता की इस सृष्टि में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, उससे ऊपर, अच्छा या उत्तम अन्य कोई प्राणी नहीं। इसी बात को बंगला के सुप्रसिद्ध कवि चंडीदास ने इस प्रकार व्यक्त किया है-‘सुन रे मानसि भाय। सबारि ऊपर मानुस सत्य तार ऊपर किछु नाय।” कवि सुमित्रानंदन पंत की भी पक्ति है-
“सुन्दर है बिहरा सुमन सुंदर मानव तुम सबसे सुंदरतर”।
विवेच्य पाठ में रेणुजी ने भी इसी तथ्य की संपुष्टि की है। उन्होंने बताया है कि यह मनुष्य ही है, जो घोर निराशा . में आशा की लौ जलाए चलता है और अपने उद्योग से प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता है। कोसी नदी जो उत्तर बिहार की अभिशाप मानी जाती है, जिसके कारण हजारों-हजार जिंदगियाँ , पल भर में काल कवलित हो जाती हैं, वहाँ भी आजादी के बाद हरी क्रांति के फलस्वरूप खुशहाली आ गई है।
  प्रश्न 5.
सुदामाजी की किस कथा का उल्लेख ने पाठ में किया है?
उत्तर-
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने पाठ ‘उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति’ में सुदामाजी की कथा का उल्लेख किया है। कोसी परियोजना की सफलता के बाद कोसी अंचल की धरती हरी-भरी हो गई। मक्का, धान, गेहूं की फसलें बंजर भूमि में उगने लगीं।
कोसी के प्रकोप के कारण उस क्षेत्र के बहुत लोग घर-द्वार छोड़कर कहीं बाहर जाकर बस गये थे। उन्हीं लोगों में एक हैं सुदामाजी।
तीस साल पहले की बात है। लेखक को अपने गाँव जाने पर नई एवं रोचक कहानी मिली। लेखक के गाँव का एक व्यक्ति गाँव छोड़कर बंगाल चला गया था। कभी-कभार वह गाँव आ जाता था। एक बार वह आठ वर्षों तक गाँव नहीं आया। बंगाल में ही बस गया था। गाँव में एक-डेढ़ बीघा जमीन थी। उसी को बेचने के लिए वह गाँव आया था।
स्टेशन से उतरकर उसने अपने गाँव की पगडंडी पकड़ी। कुछ दूर जाने के बाद उसने अपने गाँव की ओर निगाह दौड़ाई। लेकिन उसे अपना वीरान गाँव नजर नहीं आया। उसकी परती जमीन नजर नहीं आई। उसे लगा वह रास्ता भूलकर दूसरी जगह आ गया है। जहाँ तक उसकी नजर जाती, लहलहाते धान के खेत नजर आते। चारों ओर हरियाली थी। नहर-आहर, पैन-पुलिया और बाँध दिखाई दे रहे थे।
वह व्यक्ति समझ बैठा कि वह नींद में किसी दूसरे स्टेशन पर उतर गया। वह स्टेशन लौट आया। चिंतित होकर पूछने लगा कि क्या यह वही स्टेशन है? तो उसका गाँव कहाँ चला गया? बाद में पता चला कि वह वही स्टेशन है और वह वही गाँव है जहाँ वह रहता था। गाँव के लड़कों ने उस आदमी का नया नाम दिया-सुदामाजी। जिस प्रकार सुदामाजी जब कृष्ण के दरबार से लौटकर अपने घर आये थे और विशाल महल देखकर आश्चर्यचकित हो गये थे। उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह महल उनका ही घर है।
लेखक के गाँव के सुदामाजी भी अपना गाँव और अपनी जमीन देखकर घबड़ा गये थे। जब वास्तविकता का पता चला तो वे गाँव में फिर से बस गये। अपना परिवार उठाकर फिर गाँव आए। अब वे अपने डेढ़ बीघा जमीन में तीन-तीन फसलें उगाने लगे। लोग उन्हें सुदामाजी कहकर पुकारने लगे।
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प्रश्न 6.
लेखक अपने दूसरे उपन्यास में दूने उत्साह से क्यों लग गया? पहले उपन्यास से इसका क्या संबंध है?
उत्तर-
लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने पहले उपन्यास में कोसी क्षेत्र के लिए एक सुनहरे दिन की कल्पना की थी। उन्होंने कल्पना की थी कि हिमालय की कंदराओं में एक विशाल ‘डैम’ बनाया जा रहा है। पर्वत तोड़े जा रहे हैं। हजारों लोग इस कार्य में लगे हैं। लाखों एकड़ जमीन जो बंजर है, वहाँ की मिट्टी शस्य-श्यामला हो उठेगी। जमीन फसलों से हरी-भरी हो जाएगी। मकई के खेत में बालायें हँसती हुई नजर आयेंगी।
किताबों की अलमारी
लेखक के इस उपन्यास पर उनके मित्र फिर व्यंग्य करना शुरू किये। लेकिन लेखक की कल्पना साकार होने लगी। सरकार द्वारा ‘कोसी योजना’ का आयोजन होने लगा। इंजीनियर कोसी अंचल में घूमने लगे। लेखक ने यह सब देखकर दूने उत्साह से अपना दूसरा उपन्यास “परती : परिकथा” में हाथ लगा दिया। . पहले उपन्यास में लेखक ने कल्पना की थी कि लोगों का दिन लौटेगा।
 प्रश्न 7.
‘जिन्हें विश्वास न हो, वे स्वयं आकर देख जाएँ-प्राणों में घुले हुए रंग धरती पर किस तरह फैल रहे हैं-फैलते ही जा रहे हैं।”-इस उद्धरण की सप्रसंग व्याख्या करें।
उत्तर-
सप्रसंग व्याख्या-प्रस्तुत सारगर्भित पंक्तियाँ हमारे पाठ्य पुस्तक ‘दिगंत, भाग-I’ में संकलित ‘उतरी स्वप्न परी हरी क्रांति’ शीर्षक संस्मरणात्मक रिपोर्ताज से उद्धृत है। इसके लेखक फणीश्वरनाथ रेणु हैं। पाठ के अंत में कोसी क्षेत्र में आये सुंदर बदलावों के मद्देनजर यह लेखक के प्रसन्न मन का सहजा उद्गार है
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कोसी क्षेत्र, जो कभी धूसर, वीरान और बंजर क्षेत्र रहा करता था कि खुशहाली पर प्रसन्नता व्यक्त की गई है। कोसी जहाँ जिंदगियाँ उदास रहती थीं, कब किसकी मौत हो जाए-इसका ठिकाना नहीं रहता था, के दिन बदल गये हैं। कोसी योजना के फलस्वरूप आयी हरी क्रांति ने वहाँ के लोगों के जीवन में खुशहाली जा दी है। लेखक पहले जैसा सोचा करते थे और उस आशा भरी सोच के कारण दूसरों की नजर में उपहास के पात्र होते थे, अब वहाँ वैसी ही सुंदर स्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं।
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 प्रश्न 8.
रेणु के इस रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
“उतरी स्वप्न परी : हरी क्रांति” शीर्षक रिपोर्ताज रेणुजी की एक अनुपम रचना है किसी घटना का ज्यों का त्यों वर्णन करना रिपोर्ताज कहलाता है। ‘रितोर्ताज’ एक विदेशी शब्द है, जिसे फ्रेंच भाषा से हिन्दी में लिया गया है। किसी घटना को अपनी मानसिक छवि में ढालते हुए उसे प्रस्तुत कर देना या मूर्त रूप देना ही रितोर्ताज की प्रमुख विशेषता है। इस प्रकार किसी रिपोर्ट का कलात्मक और साहित्यिक रूप ही रिपोर्ताज है। अचानक घटित होने वाली घटनाओं के साथ अर्थात् यूरोप के युद्ध क्षेत्र में इसका जन्म हुआ। हिन्दी में रितोर्ताज-लेखक की शुरूआत 1940 ई० के आस-पास से हुई। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं-कथात्मक प्रस्तुति, ऐतिहासिक, चित्रात्मकता, विश्वसनीयता, भावावेश प्रधान शैली इत्यादि।
उत्तरी स्वप्न परी : हरी क्रांति भाषा की बात
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