Bihar Board Class 11th Hindi bhoge huye din

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 11 भोगे हुए दिन (मेहरुन्निसा परवेज)

 

भोगे हुए दिन पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर।
Class 11th Hindi bhoge huye din
प्रश्न 1.
जावेद और सोफिया इस कहानी के प्रमुख पात्र हैं, इनका परिचय आप अपने शब्दों में दें। .
उत्तर-
जावेद और सोफिया शांदा साहब की विधवा बेटी की संतान है। शांदा साहब अपने समय के एक लोकप्रिय शायर थे। अब अपनी वृद्धावस्था में अपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। अपर्याप्त आय से गृहस्थी का खर्च कठिनाई से चलता है। बेटी एक उर्दू प्राइमरी विद्यालय में अध्यापन कार्य करती है। शांदा साहब का सौ रुपए सकरार से पेंशन मिलती है। घर के सामने की जमीन पर एक पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी की एक दूकान है। इस सीमित आय से ही वे अपनी पारिवारिक समस्याओं का समाधान कर रहे हैं। अर्थाभाव से बच्चों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं है। जावेद (नाती) एक स्कूल में तीसरे वर्ग में पढ़ रहा है, वह बहुत सुशील एवं अनुशासित. लड़का है। पढ़ाई के अतिरिक्त गृहकार्यों में सहयोग करता है।
किताबों की अलमारी
स्कूल का सामान

पिता के प्यार से वंचित वह अपनी नाना-नानी के संरक्षण में अपने भविष्य का निर्माण करने में व्यस्त है। सोफिया सात साल की उसकी बहन है। अर्थाभाव से उसका नामांकन विद्यालय में नहीं हुआ है। घर पर ही कुछ पढ़ लेती है। जलावन की लकड़ी की दुकान में बैठकर लकड़ी भी बेचती है। घर के अन्य कार्य भी करती है। भोली-भाली वह लड़की अपनी वर्तमान स्थिति से ही सन्तुष्ट है। दोनों ही बच्चे इस दयनीय स्थिति में भी विचलित नहीं हैं। पारिवारिक कार्यों को, दोनों बच्चे अपनी सामर्थ्य के अनुसार कर रहे हैं।
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प्रश्न 2.
पुरानी बातें शांदा साहब को क्यों पीड़ा दे रही थी?
उत्तर-
शांदा साहब का अतीत स्वर्णिम रहा है। वे अपने समय के एक प्रसिद्ध शायर रहे हैं जिन्हें सुनने के लिए अपार जनसमूह एकत्र होता था। कवि सम्मेलनों में उन्हें समम्मान आमंत्रित किया जाता था तथा श्रोतागण मंत्र मुग्ध हो उनकी शायरी का आनन्द लेते थे। महाकवि इकबाल उनके घनिष्ठ मित्रों में थे तथा अनेक मुशायरों (कवि सम्मेलनों) में दोनों एक साथ कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे। दोनों में बराबर पत्राचार भी होता रहता था। शांदा साहब को उस दौर में, देखने तथा उनकी शायरी का आनन्द लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। एक ही शेर (कविता) को अनेकों बार पढ़वाया जाता था, ऐसी दीवानगी थी श्रोताओं में। समय बदला, अब ढलती हुई उम्र में वे अप्रासंगिक हो गए हैं, महत्वहीन हो गए हैं।
ठीक ही कहा गया है कि उगते हुए सूरज की सभी पूजा करते हैं, अस्ताचल में जाते सूर्य की नहीं। यही शांदा साहब की पीड़ा का मुख्य कारण है। उनकी विषादपूर्ण प्रतिक्रिया-उनके द्वारा यह कहा जाना-,”बेटा, मैंने अपनी इन आँखों से दो दौरे देखे हैं, एक वह वक्त जब मेरे नाम से दूर-दूर से लोग आते हैं, एक-एक शेर को हजारों बार पढ़वाया जाता था। दूसरा वक्त अब देख रहा हूँ, वही लोग जो मेरे दीवाने थे, अब मुझे भूल गए हैं।
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प्रश्न 3.
कहपानी में शमीम की भूमिका का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी के शमीम एक पात्र है जो अपने गृह नगर से एक वयोद्धद शायर (कवि) शांदा साहब से मिलने के लिए काफी फासला तय करके आए है। शांदा साहब एक जमाने के अद्वितीय शायर थे। उनको सुनने के लिए सुदूर क्षेत्रों से श्रोतागण कवि सम्मेलनों में उपस्थित होते थे। शमीम उनके प्रशंसकों में थे। अत: उनसे मिलने की तीव्र उत्कंठा लिए शमीश उनके यहाँ पहुँचते हैं। शांदा साहब के महन व्यक्तित्व के ही अनुरूप उनके घर का वातावरण होगा, ऐसी शमीम की धारण थी। किन्तु वहाँ अनुमान के विपरीत सब कुछ था। एक जीर्ण-शीर्ण मकान, उसके अन्दर के फर्नीचर तथा अन्य सामान शांदा साहब की आर्थिक स्थिति का सजीव चित्र प्रस्तुत कर रहे थे। परिवार में उनकी पत्नी, विधवा लड़की, एक नाती तथा एक नातिनी। वहाँ रहने के क्रम में शमीम को वहाँ की स्थिति का पर्याप्त ज्ञान हो गया।
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प्रश्न 4.
‘शायर को उस वक्त मर जाना चाहिए, जब लोग उसे पसंद करते हों, दीवान हों।’ इस कथन के मर्म को अपने शब्दों में उद्घाटित करें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी से उधृत उपरोक्त वाक्य कटु सत्य पर आधारित है। प्रसंग है-शांदा साहब एक लब्धप्रतिष्ठ शायर हैं। एक समय था जब उनके लाखों प्रशंसक थे। श्रोतागण मंत्र मुग्ध होकर उनकी कविता पाठ को सुनते थे। एक-एक कविता को पुनः सुनाने के लिए आग्रः किया जाता था। श्रोताओं की तालियों से पूरा सम्मेलन स्थल गूंज उठता था। महाकवि इकबाल उनके समकालीन थे तथा शांदा साहब के घनिष्ठ मित्र थे। अनेकों कवि-सम्मेलनों एवं अन्य आयोजनों में दोनों व्यक्ति एक साथ सम्मिलित हुए थे।
फ़ैमिली गेम
अनेकों प्रशस्ति पत्र एवं कवि इकबाल के साथ पत्राचार की एक लम्बी श्रृंखला थी तथा उन पत्रों से उनका बक्सा भरा हुआ था। उक्त पत्रों को बक्सा से निकाल कर वह शमीम को पढ़ने को देते हैं। कितने गौरवशाली रहे होंगे वे दिन। अब स्थिति यह है कि समय के थपेड़ों ने उन्हें अशक्त बना दिया है। वृद्धावस्था में अब वह ऊर्जा एवं सामर्थ्य नहीं है। योग्यता है, किन्तु ओजपूर्ण भाषा में सशक्त अभिव्यक्ति की क्षमता का ह्रास हो गया है। अतः अब न वह श्रोताओं और प्रशंसकों की भीड़ है और नहीं उक्त सम्मेलनों के लिए निमंत्रण।

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प्रश्न 5.
“हमलोग तो और नंगे हो गए हैं। बेटा मैंने अपनी इन आँखों से दो दौर देखे हैं।” इस कथन का आशय स्पष्ट करते हुए बताएं कि यहाँ किन दो दौरों की चर्चा है।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी एक शायर के जीवन का सजीव चित्रण है।
शायद जब तक सफलता के सोपान पर निरंतर चढ़ता हुआ प्रसिद्धि के शिखर पर अग्रसर होता जाता है तब तक वह अपने प्रशंसकों तथा श्रोताओं का चहेता बना रहता है। उस समय वह स्वप्न में भी नहीं सोचता कि कभी ऐसे भी दिन देखने पड़ेंगे जब वह ढेला के समान उस गौरवशाली स्थान से पृष्ठभूमि में जा पहुँचेगा। उपेक्षा तथा अनादर का दंश उसे झेलना पड़ेगा।
उपरोक्त परिस्थितियों को याद कर प्रतिक्रिया स्वरूप शायर शांदा साहब उद्विग्न होकर शमीम से अपने विगत जीवन के अनुभव का वर्णन कर रहे हैं। उनके जीवन में दो दौर आए हैं, दोनों में काफी विरोधाभास है। वस्तुतः दोनों में छत्तीस का सम्बन्ध है। एक दौर था उत्कर्ष का जब उन्हें बड़े-बड़े कवि सम्मेलनों में सादर आमंत्रित किया जाता था। उनके श्रोताओं और प्रशंसकों की संख्या लाखों में थी। उनकी शेरों (कविताओं) को सुनने के लिए लोग लालायित रहते थे। उस स्वर्णिम काल में शायर ने कभी स्वप्न में भी यह आशा नहीं की थी कि दुर्दिन की वह घड़ी उसका इन्तजार कर रही है जब वह अप्रासंगिक हो जाएगा तथा लोग उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर गुमनामी के अंधकारपूर्ण धरातल पर ला देंगे।
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प्रश्न 6.
“और मैं सोच रहा था-अगर आज इकबाल होते तो।” इस कथन का क्या अभिप्राय है? अगर आज इकबाल होते तो क्या होता? अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी के एक पात्र शमीम अपने शहर से चलकर वयोवृद्ध, लब्ध प्रतिष्ठ शायर शांदा साहब से मिलने उनके शहर जाते हैं। शादा साहब के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा है। वह शांदा साहब के मुशायरों में शरीक होता रहा है तथा स्वयं भी अपने शहर में उनके कार्यक्रम का उसने आयोजन किया है। इसलिए उनसे मिलने की तीव्र उत्कण्ठा लिए जब उनके घर पर पहुँचता है तो शांदा साहब काफी प्रसन्न होते हैं। शांदा साहब की प्रसिद्धि के प्रतिकूल उनके घर की दयनीय स्थिति देखकर वह चकित हो जाता है।
शायर साहब की धर्मपत्नी एक विधवा बेटी, एक नाती जावेद तथा नातिन सोफिया, यही उनका छोटा-सा परिवार है। अपने दो दिन वहाँ ठहरने के क्रम में शमीम को उनकी कष्टपूर्ण स्थिति का पूरा परिचय मिल गया। शांदा साहब के आय के श्रोत अपर्याप्त हैं। सौ रुपए सरकारी पेंशन, बेटी का उर्दू प्रामइरी स्कूल में अध्यापन द्वारा वेतन तथा घर के सामने की जमीन पर एक वृक्ष के नीचे जलावन की लकड़ी की छोटी-सी दूकान, जिसका तराजू पेड़ के नीचे टंगा है।
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शांदा साहब वृद्ध एवं दुर्बल हो गए हैं। अब उनको कवि सम्मेलन में नहीं बुलाया जाता। वह गुमनामी के दौर से गुजर रहे हैं। जर्जर मकान, में किसी प्रकार गुजर-बसर कर रहे हैं। महाकवि इकबाल उनके विभिन्न मित्र थे। अक्सर साथ-साथ कवि गोष्ठियों में जाया करते थे। उनके बीच पत्राकार भी होता रहता था।
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शमीम साहब वहाँ दो दिन ठहरने के बाद, जब ताँगा पर सवार होकर वापिस लौट रहे थे तो उन्हें लकड़ी तथा तराजू के पास सोफिया बैठी दीख पड़ी। उस समय उनके हृदय में यह विचार आया कि अगर आज इकबाल होते तो……। शमीम इसी उधेड़बुन में थे कि यदि महाकवि इकबाल होते तथा इस पर घर की ऐसी परिस्थिति से अवगत होते तो उनपर इसकी क्या प्रतिक्रिया होती तथा वे क्या कदम उठाते।
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प्रश्न 7.
कहानी के शीर्षक “भोगे हुए दिन” की सार्थकता पर विचार करें। [Board Model 2009(A)] उत्तर-
किसी भी रचना का शीर्षक उसका द्वार है जिसे देखकर ही अन्दर जाने की इच्छा-अनिच्छा होती है। अगर द्वार आकर्षक है तो अन्दर झाँकने या अन्दर की बात जानने का लोभ स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है। अतः रचना का शीर्षक आकर्षक होना अत्यावयक है। दूसरी बात है, उसकी संक्षिप्ततां और रचना के मूल भाव का संवहन करन
इस दृष्टि से हम पाते हैं कि कहानी का “भोगे हुए दिन” शीर्षक अत्यन्त उपयुक्त है। कहानी की कथावस्तु अपने उद्देश्य को परस्पर एक दूसरे में पिरोने में पूर्णतया सफल हुई। “भोगे हुए दिन” का आखिर तात्पर्य क्या है? कौन लोग हैं, जिनसे यह सम्बंधित है तथा उन लोगों का जीवन किन ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों से होकर गुजरा, यह उत्सुकता अन्तस्तल में बनी रहती है। कहानी एक वयोवृद्ध शायर के अपने स्वर्णित अतीत एवं वर्तमान के अभाव और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष एवं पराभव की गाथा। शायर की विधवा बेटी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी दृष्टिपात करती है-यह कहानी।
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प्रश्न 8.
जावेद विद्यालय जाता है। पर सोफिया नहीं क्यों? क्या यह सही है? कहानी के संदर्भ में अपना पक्ष रखें।
उत्तर-
मेहरुन्निसा परवेज लिखित कहानी “भोगे हुए दिन” में कहानीकार ने सफल ढंग से एक मध्यवर्गीय मुस्लिम परिवार एवं परिवार के मुखिया एक शायर के जीवन का चित्रण किया कभी शान-शौकत और शोहरत की जिन्दगी जी रहे शायर शांदा साहब के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है। जब वे अभाव का जीवन जीने को अभिशप्त (विवश) हैं। बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होना स्वाभाविक है। ऐसी स्थिति में शांदा साहब के नाती जावेद तथा नतिनी सोफिया की समुचित शिक्षा नहीं हो पा रही है।
जावेद पढ़ने के लिए विद्यालय जाता है, किन्तु सोफिया नहीं जाती है। इसका मूल कारण घर की दयनीय आर्थिक स्थिति है।
जावेद तथा सोफिया इन दोनों के साथ भेदभाव के एकाधिक कारण हो सकते हैं। पहला कारण यह है कि जावेद लड़का है और सोफिया लड़की। पुरुष प्रधान समाज में लड़कों को लड़कियों से अधिक महत्व दिया जाता है, विशेषकर मुस्लिम समाज में।
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प्रश्न 9.
‘भोगे हुए दिन’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
संकेत-कहानी का सारांश के लिए पाठ का सारांश देखें।
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प्रश्न 10.
“सात साल की लड़की को भी समय ने कितना निपुण बना दिया था।” इस पंक्ति की प्रसंगत व्याख्या करें।
सप्रसंग व्याख्या-
प्रस्तुत सारगर्भित पंक्ति हमारे पाठ्य-पुस्तक “दिगन्त’ भाग-1 में संकलित ‘भोगे हुए दिन’ शीर्षक कहानी से उद्धृत हैं। विदुषी लेखिका मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित उपर्युक्त गद्यांश में एक सात वर्षीय बालिका सोफिया की लगन तथा गृह कार्यों में तन्मतया का वर्णन है।
सोफिया शायर शादा साहब की नतिनी (बेटी की बेटी) है। शांदा साहब पहले एक प्रतिष्ठित शायर थे, लेकिन अब उनकी आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी के लिए अपर्याप्त आय के कारण घर के समस्त कार्य परिवार के सदस्यों को ही निपटाना होता है, सोफिया को विद्यालय पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता है। वह घर के सारे कार्य करती है। इतना ही नहीं, घर के आगे एक पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी की एक दुकान, आय के साधन के रूप में, शांदा साहब ने खोला है। सोफिया उस दुकान को भी चलती है।
इस प्रकार सात वर्षीय वह लड़की इतनी निपुण हो गई, जितना एक वयस्क व्यक्ति हो सकता है। उसकी यह निपुणता वस्तुतः प्रशंसनीय तो है ही, विस्मित करने वाला भी है। इस प्रकार कहानीकार ने प्रस्तुत पंक्ति द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि समय के थपेड़े तथा सतत् अभ्यास, अल्पवयस्क को भी प्रवीण बना देता है।
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प्रश्न 11.
“इस घर का हरेक प्राणी एक-एक क्षण को जीना जानता है।” इस कथन का क्या अर्थ है, स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति मेहरुन्निसा परवेज द्वारा लिखित कहानी “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी में एक प्रतिष्ठित शायर शांदा साहब के पारिवारिक जीवन का वर्णन है।
लब्ध-प्रतिष्ठित वयोवृद्ध शायर शांदा साहब की आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं है। गृहस्थी की व्यवस्था “येन-केन-प्रकारेण’ चल रही है। परिवार का हर सदस्य अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभा रहा है।
शायर साहब से मिलने के लिए एक यहाँ नावागंतुक शमीम आए हैं। वे शायर साहब के बहुत बड़े प्रशंसक रहे हैं। वे शायर की शोहरत एवं लोकप्रियता से काफी प्रभावित थे। वे समझते थे कि प्रसिद्धि के अनुकूल शांदा साहब की हैसियत भी होगी, लेकिन यहाँ आने पर उनकी विपन्नता देखकर उन्हें काफी आश्चर्य एवं निराशा हुई। उन्होंने यह भी पाया कि परिवार का हर सदस्य एक-एक क्षण का सदुपयोग कर रहा है, समय नष्ट नहीं करना चाहता।
शायर की पत्नी दिनभर गृहस्थी के काम में व्यस्त रहती है। उनकी विधवा पुत्री एक उर्दू प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका है तथा प्राइवेट ट्यूशन भी कर लेती है। उसका लड़का जावेद विद्यालय में तीसरा वर्ग का छात्र है, सात वर्षीय पुत्री सोफिया घर के सामने की खुली जगह पर पेड़ के नीचे जलावन की लकड़ी रखकर बेचती है। दोनों बच्चे इसके अतिरिक्त घर के अन्य-कार्यों में भी सहयोग करते हैं।
यह देखकर शमीम को आश्चर्य तथा प्रसन्नता दोनों प्रकार के भाव आते हैं तथा वे सोचने लगते हैं कि इस परिवार का हरेक सदस्य अपने कार्य में व्यस्त है और एक क्षण भी खोना नहीं चाहता है।
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प्रश्न 12.
“तराजू के एक पल्ले पर धूप थी, दूसरे में आम की परछाई पड़ी थी। आम की परछाई वाला पल्ला नीचे था, मानो धूप और परछाई दोनों से तौला जा रहा हो।” यह एक बिंब है। इसका अर्थ शिक्षक की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ मेहरुन्निसा परवेज लिखित “भोगे हुए दिन” शीर्षक कहानी से उद्धत इन पक्तियों में विद्वान कहानीकार मेहरुन्निसा परवेज ने सफलतापूर्वक जीवन के दोनों पहलुओं-सम्पन्नता एवं विपन्नता सुख-दुख को बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रित किया है। जीवन में सुख और दुःख, धूप-छाँव की भाँति आते-जाते हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कहानीकार यह कहना चाहते हैं कि सुप्रसिद्ध शायर शांदा साहब के जीवन में सुख और दुख दोनों प्रकार के दिन आए हैं, अपनी युवावस्था उन्होंने प्रसिद्धि एवं समृद्धि के सुख में व्यतीत किए हैं। वर्तमान में वृद्ध एवं दुर्बल शायर-आर्थिक विपन्नता एवं अभाव के दौर से गुजर रहे हैं। इस प्रकार प्रतीकात्मक ढंग से कहानीकार ने कहानी में अपने भाव व्यक्त किए हैं। शमीम शायर साहब ने मिलने आता है। दरवाजे के सामने के पेड़ पर तराजू टंगा है, उसका एक पलड़ा धूप में है और ऊपर की ओर उठा हुआ है। दूसरा पलड़ा छाँव में झुका हुआ है छाँव में झुका हुआ पलड़ा शायर साहब के समृद्धिशाली दिनों का प्रतिनिधित्व करता है तथा धूप मे ऊपर की ओर उठा हुआ पलड़ा उनके अभावों के वर्तमान दौर को प्रतिबिम्बित करता है।
इस प्रकार यह एक बिम्ब है जिसका प्रयोग कहानीकार ने बड़े ढंग से किया है।

 

 

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