Bihar Board Class11th hindi gav ke bachho ki shiksha
Class11th hindi gav ke bachho ki shiksha
गाँव के बच्चों की शिक्षा पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
“कमारा ल्ये” का देश किस देश का उपनिवेश था? अपनी आत्मकथा के अन्तिम अध्याय में उन्होंने किस प्रसंग का चित्रण किया है? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
कमारा ल्ये’ का देश (पश्चिमी अफ्रीका) फ्रांस का उपनिवेश था। कमारा ल्ये ने अपनी आत्मकथा के अन्तिम अध्याय में उस घटना का विवरण प्रस्तुत किया है। उच्चतर माध्यमिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात एक प्रतियोगिता के लिए उनका चयन हुआ। सौभाग्यवश मेधावी छात्र ‘कमारा’ उक्त प्रतियोगिता में सफल हुए। उत्तीण होने पर उन्हें उच्च-शिक्षा के लिए फ्रांस भेजने का प्रस्ताव हुआ। उन्हें तत्कालीन सरकार द्वारा फ्रांस भेजने एवं अध्ययन (शिक्षण) की व्यवस्था की गई। उस समय एक गुलाम देश में, विदेश जाकर उच्च शिक्षा ग्रहण करना एक विशिष्ट उपलब्धि तथा आश्चर्यजनक बात थी।अनेक प्रयासों के पश्चात माँ ने कहा कि जिस दिन कमारा का प्राथमिक पाठशाला में नामांकन हुआ था, उसी दिन उसकी माँ ने समझ लिया था कि वह (कमारा) उस गाँव में नहीं टिक पाएगा। मैंने पिता एवं चाचा को कमारा की पढ़ाई कराने के लिए मना किया था, किन्तु वे लोग नहीं माने। उनलोगों ने उसको (उसकी माँ को) धोखा दिया। अब पढ़ने के लिए विदेश जाने के बाद कमारा देश में भी नहीं रहेगा। उसकी माँ ने यह भी कहा कि वह कमारा तो उससे बहुत पहले ही, शिक्षा प्राप्त करने के साथ विदाई ले चुका है। केवल उसी से नहीं वरन् पूरे गाँव से उसे छीन लिया गया है। इन पंक्तियों में एक माँ की अन्तर्वेदना स्पष्ट परिलक्षित होती है।
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प्रश्न 2.
‘कमारा ल्ये’ की आत्मकथा किसे समर्पित है?
उत्तर-
‘कमारा ल्ये’ ने अपनी आत्मकथा अपने देश की इन असंख्य अशिक्षित माताओं को समर्पित किया है, जो अफ्रीका के खेतों में काम करती हैं। विदेश में विद्याध्ययन के लिए जाते समय अपनी माँ से विदाई लेते समय उसके द्वारा प्रकट किए गए उद्गार से कमारा अत्यन्त प्रभावित हुआ। माँ के अन्तः वेदना तथा नैराश्य की भावना ने इसकी संवेदना को झकझोर कर रख दिया, जिसकी परिणति उसकी आत्मकथा के समर्पण में स्पष्ट प्रतिबिम्बित होती है।
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प्रश्न 3.
“कमारा ल्ये” की माँ उन्हें क्यों नहीं पढ़ाना चाहती थीं? .
उत्तर-
“कमारा ल्ये’ की माँ को आशंका थी कि यदि वह शिक्षा ग्रहण करने विद्यालय जाएगा तो कालांतर में गाँव छोड़कर अन्यत्र चला जाएगा। गाँव छोड़ना उसकी परिस्थितिजन्य विवशता होगी। जब वह अपना देश छोड़कर उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतु फ्रांस जाने लगा तो उसकी माँ को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब वह अपने देश अफ्रीका में नहीं रह पाएगा, विदेश चला जाएगा। माँ की ममता उसे ऐसा सोचने पर विवश कर रही थी।
प्रश्न 4.
“शिक्षा अपने आप में कोई गुणकारी दवाई नहीं है जिसके सेवन से समाज एकदम रोगमुक्त हो जाएगा या वह कोई एक उपहार हो जो सरकार हमें देने वाली हो या पिछले पचास साल से देती चली आ रही हो।” आखिरकार शिक्षा क्या है? लेखक के इस कथन का अभिप्राय क्या है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक कृष्ण कुमार के मतानुसार हम लोग शिक्षा और साक्षरता के विषय में गलत एवं त्रुटिपूर्ण धारणा से ग्रसित हैं। हम समझते हैं कि शिक्षा का कोई सामाजिक चरित्र नहीं है। हमलोगों की यह मानसिकता है कि शिक्षा स्वयं ऐसी गुणकारी दवाई है जिसके सेवन से समाज एकदम, रोगमुक्त हो जाएगा। हम यह भी मान बैठे हैं कि यह एक उपहार है जो सरकार द्वारा प्रदान किया गया है अथवा पिछले पचास साल से सरकार द्वारा हमें प्राप्त होता रहा है।कृष्ण कुमार ने व्यंग्यात्मक शैली में इसे रेखांकित किया है। लेखक हमारी इस भावना से सहमत नहीं है। उसके अनुसार पिछले पचास सालों से सरकार ऐसे आश्वासन देती आ रही है। इसके बावजूद अभी तक शिक्षा प्रत्येक बच्चे तक नहीं पहुँची है। लेखक के अनुसार वर्तमान समय में शिक्षा का नितान्त प्रतिकूल सामाजिक चरित्र उभरकर सामने आया है। साथ ही बच्चों को शिक्षा के माध्यम से रखना है, उन्हें इस दिशा में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। शिक्षा सार्थक होना चाहिए। इस दिशा में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने के आवश्यकता है।
प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार शिक्षा बच्चों को समाज के सबसे व्यापक सरोकारों से काटने वाला एक प्रमुख अस्त्र बन गई है? लेखक ने ऐसा क्यों कहा है? क्या आप इससे सहमत हैं? आप अपना विचार दें।
उत्तर-
लेखक कृष्ण कुमार की धारणा है कि बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा का वर्तमान स्वरूप बच्चों को समाज के सबसे व्यापक सरोकारों से काटने वाला एक प्रमुख अस्त्र बनकर उभरा है कि विद्वान लेखक ऐसा अनुभव करते हैं कि बच्चे समझते हैं कि शिक्षा का कोई सामाजिक महत्त्व नहीं है। बल्कि वास्तविकता यह भी है कि बच्चों को इस प्रकार की शिक्षा परोसी जा रही है जिसके द्वारा शिक्षा का सामाजिक चरित्र अछूता रह जाता है, उपेक्षित रहता है। अपने सामाजिक दायित्व का बोध बच्चों को नहीं हो पाता है।वर्तमान शिक्षा पद्धति को देखकर लेखक की ऐसी प्रतिक्रिया है। लेखक इस स्थिति से क्षुब्ध दिख पड़ते हैं। वह यह देखते आ रहे हैं कि पिछले पचास वर्षों से शिक्षा की ऐसी ही दयनीय स्थिति चली आ रही है।निश्चित रूप से लेखक महोदय के विचार पूर्णरूपेण तथ्य पर आधारित हैं। निःसंदेह वर्तमान शिक्षा-पद्धति इसी प्रकार के दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुजर रही है। बच्चे अपने सामाजिक दायित्वों को नहीं समझते। वे शिक्षा के सामाजिक-चरित्र की उपेक्षा करते हैं। इसकी दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य केवल पुस्तकों के ज्ञान तक ही सीमित है।
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प्रश्न 6.
आर्थिक उदारीकरण से आप क्या समझते हैं? इसके क्या दुष्परिणाम हुए हैं?
उत्तर-
आर्थिक उदारीकरण को आमतौर पर आर्थिक सुधार के रूप में जाना जाता है। इसे राष्ट्र की आर्थिक स्थिति के उन्नयन हेतु एक सुदृढ़ औजार के तौर पर समझा जाने लगा है। इसके परिणामस्वरूप पूँजीवाद देश के कोने-कोने में पहुंच रहा है। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की अवधारणा का भ्रामक विचार सरकार के मानस-पटल पर पल्लवित हो रहा है।किन्तु वास्तविकता यह है कि यह उदारीकरण राष्ट्र को जर्जर बना रहा है। इस प्रक्रिया द्वारा जमीन, जंगल, पानी, खनिजों तथा अन्य मानव-संसाधनों का दोहन हो रहा है। आम आदमी से छीनकर इन्हें कुछ पूँजीपति घरानों तथा विदेशी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। देश के कोने-कोने से आम आदमी अपनी जीवन से विस्थापित हो रहे हैं, अपने बच्चों से दूर जाकर अन्यत्र रोजी-रोटी कमाने के लिए विवश हैं। अभागे लोग इस तथ्य से भली-भांति परिचित हैं कि आर्थिक उदारीकरण देश को किस ओर ले जा रहे हैं। इस स्थिति द्वारा इससे (उदारीकरण से) उपजे दुष्परिणाम का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
प्रश्न 7.
लेखक ने प्रस्तुत पाठ में देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर आक्षेप किये हैं। उनके विचार से देश की राजनीतिक व्यवस्था में कौन-सी समस्याएँ प्रवेश कर चुकी हैं?
उत्तर-
लेखक कृष्ण कुमार देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था से क्षुब्ध है। सर्वत्र हिंसा एवं अपराध का बोलबाला हो गया। यूँ कहा जाए कि अपराध का राजनीतिकरण तथा राजनीति का अपराधीकरण हो गया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्तमान में अपराध राजनीति का हिस्सा बन चुका है। हम इसकी गहराई में जितना जाएँगे हमें क्रमशः इसके विस्तार की जानकारी प्राप्त होगी। हिंसा एवं अपराध राजनीति का धार्मिक अंग हो गया है जो राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों में अबाध गति से प्रवाहित हो रहा है। राजनीति में ही नहीं, सामाजिक संबंधों तक भी इसने अपने पाँव पसार लिये हैं।
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प्रश्न 8.
“पंचायती राज में एक तरफ चिंगारी और रोशनी झाँकती है, वहीं ढेरों आशंकाओं का अँधेरा भी दिखाई देता है।” यहाँ किन रोशनी और आशंकाओं की ओर संकेत है?
उत्तर-
‘गाँव के बच्चों की शिक्षा’ शीर्षक कहानी के लेखक कृष्ण कुमार के अनुसार देश के सर्वांगीण विकास के लिए पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना एक सार्थक कदम है। लेखक पंचायती राज व्यवस्था को राष्ट्र के उत्थान का एक सशक्त माध्यम मानता है। उसे इस व्यवस्था में आशा की एक किरण दिख पड़ती है, राष्ट्र एवं समाज में परिवर्तन की एक छोटी, किन्तु ऊर्जावान चिंगारी दृष्टिगोचर हो रही है। किन्तु वह पूर्ण आश्वस्त नहीं है। वह यह देखकर निराश है कि पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं, वरन् केवल औपचारिकता मात्र है।उन्हें समुचित प्रशासनिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। अनेक प्रदेशों में पंचायतों के चुनाव नहीं हुए हैं। ग्राम सभाएँ केवल नाममात्र की उपस्थिति दर्शाती हैं। वे किसी भी मुद्दे पर चर्चा भर कर सकती हैं, फैसले नहीं ले सकतीं, पंचायतों के महत्त्वपूर्ण अधिकारों से वंचित रहने के कारण पीड़ित, शोषित एवं बुनियादी सुविधाओं से रहित जनता की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है। महिलाओं की स्थिति भी वैसी ही दयनीय है।लेखक पंचायती राज व्यवस्था को राष्ट्र एवं समाज के सर्वांगपूर्ण विकास की सशक्त कड़ी मानता है, साथ ही लेखक को यह देखकर निराशा होती है कि पंचायतों का चुनाव एवं गठन होने के बावजूद व्यावहारिक रूप से उसे नाममात्र के अधिकार दिए गए हैं। स्थानीय स्तर पर मची खलबली एवं अराजकता को नियंत्रित करने की स्थिति में हमारी पंचायतें नहीं हैं। यह कैसी विडम्बना है। लेखक यह देखकर हतप्रभ है।
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प्रश्न 9.
प्राथमिक शिक्षा को अधिक कारगर बनाने के लिए लेखक ने कौन-से दो क्षेत्र सुझाए हैं?
उत्तर-
वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति संतोषप्रद नहीं है। इसके अनेक कारण हैं। एक प्रमुख कारण यह है कि प्राथमिक पाठशाला का शिक्षक उपेक्षित एवं प्रताड़ित है। एक ओर बालकों तथा बालिकाओं का पाठशाला में नामंकन के पश्चात ऐसी परिस्थितियाँ सृजित की जाती हैं कि वे बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। बच्चों को उपेक्षा तथा अपमान का चूंट पीना पड़ता है। प्रारम्भिक कक्षाओं में उन्हें प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। एक और बड़ी कठिनाई यह भी है कि शिक्षकों को समुचित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। शिक्षा का तीव्र गति से अवमूल्यन हो रहा है।लखक कृष्ण कुमार के कथनानुसार कुछ प्रदेशों में शिक्षकों को 500 रुपए वेतन पर नियुक्त किया जा रहा है। अल्प वेतन भोगी शिक्षक कभी भी सही ढंग से अध्यापन कार्य नहीं कर सकते।प्राथमिक शिक्षा को कारगर बनाने के लिए शिक्षकों के प्रति उपेक्षा-भाव का परित्याग करना होगा। उन्हें समुचित वेतनमान दिया जाना चाहिए। साथ ही उनके प्रशिक्षण की यथेष्ट योजना कार्यान्वित करने की आवश्यकता है। पाठशालाओं में ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा ताकि बच्चे स्कूल जोन के लिए प्रोत्साहित हो। उनके लिए कुछ आकर्षक कार्यक्रम तैयार करना श्रेयस्कर है। विद्यालयों को पर्याप्त वित्तीय सहायता भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण है।शिक्षा में सुधार एवं उन्नयन के लिए बड़ी-बड़ी गोष्ठियाँ, सेमिनार आदि आयोजित करना, शिक्षाविदों की कमिटी गठित कर कंसलटेंसी फीस का भारी-भरकम भुगतान इस दिशा में एक अनुपयुक्त प्रयास है।
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प्रश्न 10.
नौकरशाही ने प्राथमिक शिक्षा को किस प्रकार नुकसान पहुँचाया है?
उत्तर-
शिक्षा पर नौकरशाही के प्रभुत्व के प्राथमिक शिक्षा को पर्याप्त नुकसान पहुँचाया है। नौकरशाही इसके विकास के सामने एक दीवार बनकर खड़ी है। वह प्रायः हर अच्छे कार्यक्रम का विरोध करती है। इस दिशा में गहराई तक जाने पर यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है। पंचायतें इसकी मूक गवाह हैं। बड़ी-बड़ी कमिटियों और कमीशनों द्वारा सुझाए गए शैक्षिक सुधार नौकरशाही द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिए जाते हैं, अच्छे से अच्छे सुझाव और संभावनाएँ कुचल दी जाती हैं। इसके मूल में अफसरों की मानसिकता अपने प्रभुत्व को बनाए रखने की होती है। वह अपनी ताकत कम होते देखना नहीं चाहता। विडम्बना यह है कि शिक्षा की विफलताओं का सारा दोष प्राथमिकशाला के निरीह शिक्षकों पर थोप दिया जाता है, जबकि वे हमारे साथी हैं, शत्रु नहीं।
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प्रश्न 11.
प्राथमिक शिक्षा की असफलता का दोष किन्हें दिया जाता है?
उत्तर-
प्राथमिक शिक्षा की असफलता का दोषारोपण प्राथमिकशाला के शिक्षकों पर किया जाता है। पिछलो कई पीढ़ियों से इस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। परंतु अभी तक इसमें कोई सुधार नहीं हुआ है।
प्रश्न 12.
प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी धन के आगमन की अन्तिम परिणति महिलाओं पर हिंसा के रूप में होनी है? कैसे?
उत्तर-
देश में आज प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी धन के आगमन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं, जिसकी अन्तिम परिणति महिलाओं पर हिंसा के रूप में प्रकट हुई है। आर्थिक उदारीकरण की विवशताओं के फलस्वरूप प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में विदेशी धन आ रहा है। विधायक, मंत्री और अफसर दिन-रात इसके बंदरबाँट में लगे हैं तथा इसकी सत्तर प्रतिशत से अधिक की राशि उनके पेट में चली जाती है। स्पष्ट है कि यह पैसा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को जन्म दे रहा है। यह निर्विवाद तथ्य है कि भ्रष्टाचार हिंसा की जननी है, हिंसा का प्रणेता है और जहाँ हिंसा होगी उसकी शिकार विशेषकर महिलाएँ होगी।अत: यह पूर्णतया सत्य है कि प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विदेशी धन की अन्तिम परिणति नारी-उत्पीड़न है जो हिंसा का रूप भी अक्सर धारण कर लेता है।
प्रश्न 13.
लेखक के प्राथमिकशाला के शिक्षकों से संबंधित विचार संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
प्राथमिक शिक्षा को अधिक बनाने की दिशा में लेखक कृष्ण कुमार ने सारगर्भित सुझाव व्यक्त किए हैं। लेखक के मतानुसार प्राथमिक-शिक्षा कोई अजूबा या दूर की कौड़ी नहीं है, बल्कि उसी संदर्भ में जन्म लेती है जो हमारे ईद-गिर्द रचा जा रहा है। प्राथमिकशाला के शिक्षकों के साथ चलकर शिक्षा की समस्याओं तथा उसकी लाचारी को समझा जा सकता है। शिक्षकों की व्यक्तिगत विवशताओं का समाधान आवश्यक है। अल्प वेतन भोगी प्राथमिक शिक्षक निष्ठापूर्वक अध्यापन कार्य नहीं कर सकते। उनकी लाचारी, मजबूरी एवं विपन्नता का समाधान आवश्यक है। इसके अतिरिक्त उनको स्वाभिमान एवं स्वतंत्र रूप में निर्णय लेने का अधिकार देना होगा।इस प्रकार लेखक ने वर्तमान में प्राथमिकशालाओं के अध्यापकों की दुरावस्था एवं निराकरण का सुझाव प्रस्तुत किया है।
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प्रश्न 14.
साधना बहन के हरित-क्रांति के सम्बन्ध में क्या विचार हैं?
उत्तर-
साधना बहन ने हरित क्रांति के नाम पर तथाकथित खेती में क्रांतिकारी परिवर्तन के प्रति अपनी निराशा तथा असंतोष प्रकट किया है। उसके द्वारा सोयाबीन की खेती से होने वाले दुष्प्रभाव तथा खेती पर होने वाली विपरीत स्थितियों का अत्यन्त सजीव चित्रण किया गया है। उनके अनुसार साठ के दशक में प्रारम्भ की गई हरित क्रांति गरीबी तथा विषमता में वृद्धि का कारण बनी है। इधर गाँवों में विषमता एवं गरीबी में उत्तरोत्तर वृद्धि एवं दूसरी ओर धनी लोग पहले से अधिक अमीर तथा समृद्ध हुए हैं। इस तथाकथित हरित क्रांति का दुष्परिगाम यह हुआ है कि हमारे गाँवों की कृषि योग्य भूमि नष्ट हुई है।नई-नई फसलों, जिनका हमारी जलवायु से कोई संबंध नहीं है, यहाँ की परिस्थितियों में अनुपयुक्त हैं, नकदी फसलों का प्रलोभन देकर, खेती करने को प्रोत्साहित किया गया। रासायानिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंप प्रयोग से पानी और मिट्टी के विषाक्त होने का खतरा उपस्थित हो गया है। गाँवों की कृषि को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है सोयाबीन की खेती ने, जिसके परिणामस्वरूप देश की मिट्टी अनेक स्थानों पर अनुर्वर होने के कगार पर पहुंच गई है। इससे हमारी खेती की व्यापक क्षति हुई है।पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण और समाज में समता के मूल्यों को स्थापित करके ही हम राष्ट्र के विकास की आशा कर सकते हैं। अन्यथा विनाश की ओर तेजी से बड़ते कदम हमारी कृषि के लिए अत्यन्त अहितकर होगा।अतः हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है अन्यथा वर्तमान शिक्षा इस दिशा में अधिक विध्वंसकारी परिणाम लाएगीसाधना बहन ने उपर्युक्त तथ्यों को रेखांकित करते हुए अपना आन्तरिक क्षोभ प्रकट किया है। साथ ही उन्होनें हमें उक्त प्रयासों से बचने का परामर्श दिया है।
प्रश्न 15.
“यदि हम पर्यावरण, प्रकृति-सरंक्षण और समाज में समता के मूल्यों को स्थापित करने की बात नहीं करेंगे तो शिक्षा इस विनाश को और भी तेजी से फैलाएगी।” लेखक के इस कथन का अभिप्राय स्पष्ट करें। आखिरकार शिक्षा इस विनाश को कैसे तेजी से फैलाएगी?
उत्तर-
‘गाँव के बच्चों की शिक्षा’ के लेखक कृष्ण कुमार का यह कटु अनुभव है कि हम केवल बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते हैं, उपलब्धियों की चर्चा करते हैं, किन्तु राष्ट्र के विकास के प्रमुख कारक (कार्य), यथा पर्यावरण की सुरक्षा, प्रकृति-संरक्षण तथा समाज में समता के मूल्यों की स्थापना के प्रति सचेष्ट नहीं हैं। हम इनकी नितान्त उपेक्षा कर रहे हैं। वर्तमान शिक्षा इसमें सार्थक योगदान नहीं कर रही है। इसकी परिणति व्यापक विनाश को आमंत्रित करेगी।वास्तविकता यह है कि उच्च स्तर पर मंत्रियों की चाटुकारिता तथा विभागीय अफसरों द्वारा खुशामद में तलवे चाटने की प्रवृत्ति इन बुराइयों का मूल कारण है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप शिक्षा दर्शन ही समाप्त हो जाता है। समुचित मार्गदर्शन के अभाव में हम लक्ष्य से भटक गए हैं।शिक्षक वर्तमान दयनीय स्थिति तथा वर्तमान शिक्षा प्रणाली से अत्यन्त क्षुब्ध तथा हतोत्साहित है। इसकी आन्तरित इच्छा है कि वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन लाये बिना हम समाज में समता एवं विकास के लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकते।
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प्रश्न 16.
गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा क्या थी?
उत्तर-
गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा शिक्षा को ग्रामीण जीवन तथा गाँव के पारम्परिक उद्योगों से जोड़ना था। गाँधीजी आज की शिक्षा विशेष तौर से प्राथमिक शिक्षा में नवजीवन का संचार करना चाहते थे। वस्तुत: वे ऐसा करने में पूर्ण सक्षम थे। बुनियादी तालीम की गांधीजी की कल्पना, उनके ग्राम-स्वराज्य के सपनों की आधारशिला थी। इसके माध्यम से ग्रामों की स्वायत्तता तथा ग्रामीणों को सम्मानपूर्वक जीने का हौसला देना, उनका लक्ष्य था। इस प्रक्रिया में बुनियादी तालीस की उनकी रूपरेखा आज भी प्रेरणादायक है तथा इस संदर्भ में कार्य करने को दिशा दे सकने में समर्थ है। शिक्षा के सामाजिक चरित्र पर सीधे प्रहार बिना शिक्षा और विनाशकारी विकास के बंधन को हम तोड़ नहीं सकते।गांधी की बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा उपर्युक्त तथ्यों को रेखांकित करती है। इसके द्वारा हम आसानी से समझ सकते हैं। आज की शिक्षा ग्रामीण समाज की पुनर्रचना करने में पूर्णतया अक्षम है। हमें बुनियादी शिक्षा के माध्यम से प्राथमिक शिक्षा को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचाना होगा जहाँ गाँवों को स्वायत्तता, ग्रामीणों को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार तथा गांवों के पारंपरिक उद्योगों को संरक्षण प्राप्त हो सके।
गाँव के बच्चों की शिक्षा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हरित क्रांति के प्रभाव को लिखें। ,
उत्तर-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। स्वतंत्रता के समय भारतीय कृषि पिछड़ी हुयी थी। इसीलिए कृषि की पिछड़ेपन को दूर करने और उसे उन्नतशील बनाने के लिए खेती में एक नयी क्रांति को लागू किया गया, जिसे हरित क्रांति कहा गया। हरित क्रांति के माध्यम से भारतीय कृषि को हरी-भरी बनाने का लक्ष्य रखा गया। इस क्रांति से देश में कृषि की उत्पादकता में वृद्धि हुयी और हमारा देश खाद्यान्न फसलों के दृष्टिकोण से आत्म-निर्भर बन चुका है। प्रस्तुत निबंध में भी साधना बहन ने हरित क्रांति का भारतीय कृषि पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है।
प्रश्न 2.
बुनियादी शिक्षा के महत्व को बतलाएँ।
उत्तर-
भारत में बुनियादी शिक्षा का महत्व बहुत अधिक है। इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी बुनियादी शिक्षा का समर्थन किया था। उन्होंने यह कहा था कि बुनियादी शिक्षा की रूपरेखा शिक्षा को ग्रामीण जीवन तथा गाँव के पारम्परिक उद्योगों से जोड़ना था। वे प्राथमिक शिक्षा को देश के अनुकूल बनाना चाहते थे। जिससे कि ग्रामीण स्वराज्य के सपनों को साकार किया जा सके। वे कृषि के साथ-साथ कुटीर उद्योगों का समर्थन करते थे। इसीलिए उन्होंने चरखा उद्योग का समर्थन किया।
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गाँव के बच्चों की शिक्षा अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक निबंध के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक निबंध के लेखक कृष्ण कुमार हैं।
प्रश्न 2.
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक पाठ किस प्रकार की रचना है?
उत्तर-
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक पाठ एक विचारोत्रेजक रचना है।
प्रश्न 3.
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक पाठ में लेखक की चर्चा हुयी है?
उत्तर-
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक पाठ में कमारा ल्ये नामक लेखक की चर्चा हुयी है।
प्रश्न 4.
गाँव के बच्चों की शिक्षा में किनकी बुनियादी शिक्षा की अवधारणा पर वि किया गया है?
उत्तर-
गाँव के बच्चों की शिक्षा नामक पाठ में गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की अवधारणा पर विचार किया गया है।
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प्रश्न 5.
प्राथमिक शिक्षा भारत में असफल रहा है?
उत्तर-
भारत में प्राथमिक शिक्षा धन के लूट-खसोट के कारण असफल रहा है। इसमें भ्रष्टाचार अधिक है। इसलिए अपेक्षा के अनुसार यह अधिक सफल नहीं हो सका है।
गाँव के बच्चों की शिक्षा वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
I. सही उत्तर का सांकेतिक चिह्न (क, ख, ग या घ) लिखें।
प्रश्न 1.
‘गांव के बच्चों की शिक्षा’ व्याख्यान कहाँ से लिया गया है?
(क) शिक्षा और ज्ञान
(ख) त्रिकाल दर्शन
(ग) आज नहीं पढ़ेगा
(घ) स्कूल की हिन्दी
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
‘नीली आंखों वाले बगुले’ किसकी रचना है?
(क) मोहन राकेश
(ख) कृष्ण कुमार
(ग) मेहरुन्निसा परवेज
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख)
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प्रश्न 3.
शिक्षाशास्त्रियों में किस विषय पर प्राय: वाद-विवाद होते रहते हैं?
(क) शिक्षा का माध्यम
(ख) वयस्क शिक्षा
(ग) गाँव नगरों का शिक्षा
(घ) साहित्यिक विधाएँ
उत्तर-
(ग)
प्रश्न 4.
कुमारल्ये का देश किस देश का उपनिवेश था?
(क) इंगलैंड
(ख) फ्रांस
(ग) अमेरिका
(म) जर्मनी
उत्तर-
(ख)
प्रश्न 5.
कुमारल्ये की आत्मकथा किसे समर्पित है?
(क) अपनी माँ को
(ख) अपनी पुत्र को
(ग) अफ्रीका के असंख्य अशिक्षित माताओं को
(घ) अफ्रीकी बुद्धिजीवियों को
उत्तर-
(ग)
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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।
प्रश्न 1.
आज शिक्षा का बहुत ही…….सामाजिक चरित्र उभर आया है।
उत्तर-
प्रतिकूल
प्रश्न 2.
पंचायती राज का पुनरुदय एक…………..प्रक्रिया है।
उत्तर-
ऐतिहासिक
प्रश्न 3.
देश में आज प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में काफी……..आया हुआ है।
उत्तर-
विदेशी
प्रश्न 4.
हरित क्रांति की वजह से हमारे गाँव की जमीनें……………………हुई हैं।
उत्तर-
बर्बाद।
गाँव के बच्चों की शिक्षा लेखक परिचय – कृष्ण कुमार (1951)
आधुनिक हिन्दी गद्य-साहित्य में कृष्ण कुमार मूलतः प्रखर विचारक के रूप में प्रख्यात हैं। एक विचारक के रूप में अपने लेखन के माध्यम से नारी-मुक्ति व नारी की आजादी आदि कई मानवीय चिन्ताओं के प्रति अपनी सजगता का परिचय देते हुए विचार जगत में उद्वेलन पैदा करने की दिशा में उनके प्रयास, उनकी चेतना और संवेदना को एक नया आयाम प्रदान करते हैं।कृष्ण कुमार का जन्म सन् 1951 ई० में हुआ था। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे अध्यापन-कार्य से जुड़ गये। सम्प्रति दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग (सी.आई.ई.) में प्रोफेसर एवं पूर्व संकायाध्यक्ष हैं।शिक्षा शास्त्री के रूप में सत्तर के दशक में प्रकाशित शैक्षिक प्रश्नों पर केन्द्रित ‘राज, समाज और शिक्षा’ प्रो. कुमार की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। यह कृति आज पूर्व के परिवर्तनों के आलोक में शिक्षा की दशा और दिशा के संदर्भ में अपेक्षित जानकारी देने में सहायक है।आधुनिक हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत कृष्ण कुमार को लेखक और विचारक के रूप में विशिष्ट पहचान प्राप्त है। भारतीय शिक्षा और उसके अनुपयुक्त रूपों में अवस्थाओं के गहन पर्यालोचन में उनका चिंतन अपने वैशिष्ट्रय के साथ प्रकट हुआ है। राष्ट्रीय नवजागरण से लेकर समसामयिक मुद्दों, यथा-भूमंडलीकरण, बाजारवाद, उपभोक्तावाद, दलित एवं नारी विमर्श आदि विभिन्न वैचारिक संदर्भो में समसामयिक भारतीय शिक्षा पर उनकी सोच पूर्णतया उजागर हुई है।उनका जन्म सन् 1951 में मध्य प्रदेश राज्य के टीकमगढ़ में हुआ था। ऊँची शिक्षा उन्हें मध्यप्रदेश के सागर विश्वविद्यालय और टोरंटो विश्वविद्यालय, कनाडा से प्राप्त हुई। सम्प्रति वे एन.सी.ई.आर.टी., नई दिल्ली के निदेशक है।हिन्दी साहित्य उनकी कहानियों, यात्रा वृत्तांत और निबंधों से जहाँ समृद्धि हुआ है वहीं उनका शिक्षा दर्शन भी उनके शिक्षा सम्बंधी आलेखों में पूरी तरह से उजागर हुआ है।उनकी कृतियों में नीली आँखों वाले बगुले, त्रिकालदर्शन, अब्दुल मजीद का छुरा, विचार का.. डर, स्कूल की हिन्दी, राज, समाज और शिक्षा आदि प्रमुख हैं।भारतीय लोकतंत्र के मूल्यों, प्रतिमानों, रूपों आदि के संदर्भ में उनके शिक्षा-चिंतन विशेष महत्त्व रखते हैं। अपने शिक्षा चिंतन के अन्तर्गत उन्होंने शिक्षा के स्वरूप, प्रक्रिया और प्रविधि में स्थानीय जरूरतों और संसाधनों की अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व दिया है।उनके अब तक के चिंतन में भारतीय लोकतांत्रिक शिक्षा का एक आधुनिक रूप उभरता दिखलायी पड़ता है।
Class11th hindi gav ke bachho ki shiksha
गाँव के बच्चों की शिक्षा पाठ का सारांश।
प्रस्तुत पाठ “गाँव के बच्चों की शिक्षा” कृष्ण कुमार द्वारा लिखित एक सशक्त हिंदी निबंध है।कृष्ण कुमार लिखित “गाँव के बच्चों की शिक्षा” एक ही देश और समाज में सामान्य शिक्षा के चल रहे अनेक रूपों को प्रस्तुत करते हुए गाँव के बच्चों की शिक्षा की व्यापक समीक्षा एवं तदनुरूप उसकी विसंगतियों के निराकरण की दिशा में विद्वान लेखक ‘कृष्ण कुमार’ का एक सार्थक प्रयास है। शिक्षा के स्वरूप, प्रक्रिया और प्रविधि में स्थानीय जरूरतों, संसाधनों आदि पर प्रस्तुत निबंध में विशेष जोर दिया गया है। गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा की अवधारणा तथा शिक्षा के अपेक्षतया सर्वांगीण रूप के युक्तियुक्त विवेचन की सफल प्रस्तुति इस लेख में की गई है।विद्वान लेखक अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु पाठकों को फ्रांस द्वारा शासित पश्चिमी अफ्रीका के एक छोटे-से प्रदेश में ले जाते हैं। वहाँ कमारा-ल्ये नामक एक लेखक हुए हैं। लेखक ने कमारा-ल्ये की आत्मकथा के कुछ अंशों के माध्यम से उनके जीवन के संघर्षों का सजीव चित्रण किया है, ग्रामीण परिवेश में प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का क्रमिक उल्लेख उनकी आत्मकथा में वर्णित है। औपनिवेशिक वातावरण में उनका शिक्षण वस्तुतः प्रशंसनीय था। ग्रामवासी उनकी अप्रत्याशित सफलता से प्रसन्न एवं गौरवान्वित थे, किन्तु उनकी माँ पुत्र के उनसे दूर चले जाने की संभावना से दुःखी थीं।लेखक ने कमारा ल्ये का दृष्टान्त अपने यहाँ व्याप्त शैक्षणिक वातावरण के संदर्भ में दिया है। लेखक को ऐसा लगता है कि वर्तमान शिक्षा का मानो कोई सामाजिक चरित्र नहीं है। एक प्रतिकूल सामाजिक चरित्र उभर कर सामने आया है। – लेखक की दृष्टि में पंचायती राज का पुनरुदय एक ऐतिहासिक घटना है। उसे इस बात का दु:ख भी है कि पूँजीवाद का प्रसार देश के कोने-कोने में हो रहा है। जमीन, जंगल, पानी, खनिज एवं अन्य मानव संसाधनों पर पूँजीपतियों एवं विदेशी कंपनियों का कब्जा हो गया है।ग्रामीण समाज की छवि प्रस्तुत न कर समाज में शासक वर्गों के जीवन की प्रस्तुति निन्दनीय है। प्रस्तुत पाठ के अनुसार इन विसंगतियों का मूल कारण, पिछले कई दशक से चली आ रही यह प्रक्रिया एवं तथाकथित मनोवृत्ति है।।लेखक ने महिला पंचों के एक सम्मेलन में अप्रैल, 1997 में इस व्याख्यान द्वारा उक्त विचार प्रकट किए जिन्हें “शिक्षा और ज्ञान” निबंधमाला में संग्रहीत किया गया है। उन्होंने महिलाओं से शिक्षा, कृषि और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर चर्चा की। कृषि में कीटनाशकों एवं रासायनिक खाद, पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण, समाज में समानता, प्राथमिक शिक्षा तथा महात्मा गाँधी की बुनियादी शिक्षा मुख्य विचार बिन्दु थे।यह पाठ रचनात्मक समझ जगाने के साथ-साथ एक विचारोत्तेजक बहस की प्रस्तावना भी करता है।
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