Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता पीयूषम् भाग 2 | Sanskrit Objective Question 2025

Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता पीयूषम् भाग 2 | Sanskrit Objective Question 2025
Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता पीयूषम् भाग 2 | Sanskrit Objective Question 2025

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड संस्‍कृत कक्षा 10 पाठ बारह कर्णस्य दानवीरता (Karnasya

danveerta sanskrit) के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ के साथ उसके वस्‍तुनिष्‍ठ और विषयनिष्‍ठ प्रश्‍नों के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

1.कर्ण की दानवीरता कैसे प्रकट होती है ? उत्तर दें।

उत्तर⇒ कर्ण ब्राह्मवेशधारी इन्द्र को विनम्रतापूर्वक सर्वप्रथम भौतिक वस्तुएँ प्रदान करना चाहते यथा-गौ, हाथी, पृथ्वी । यहाँ तक कि अपने अग्निष्टों फल भी देना चाहते हैं और अन्ततः अपना सिर तक अर्पित करने के लिए उद्यत हो उठते हैं। परन्तु ब्राह्मणवेशधारी शक्र (इन्द्र) तो दृढ़ संकल्पित कुछ अन्य वस्तु के प्रति थे । कर्ण उनकी मनोदशा को समझकर अपनी रक्षार्थ शरीर से जुड़े कवच-कुण्डल को दान दे देते हैं। इतना बड़ा दान कर्ण को सम्पूर्ण ब्राह्मण्ड का दानवीर सिद्ध करता है।

2.कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर⇒ कर्ण सूर्यपुत्र है। जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच कुण्डल है तब तक वह अजेय है । उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच, कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच कुंडल दे देता है।

3. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर⇒ यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है । इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अङ्गराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।

4. कर्ण कौन था ? उसकी क्या विशेषता थी ?

उत्तर⇒ कर्ण कुंती का पुत्र था, परंतु महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। उसके शरीर पर जन्मजात कवच और कुंडल था । जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर से अलग नहीं होता, तब तक कर्ण की मृत्यु असंभव थी ।

5. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी, और क्यों ?

उत्तर⇒ इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी । अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक कर्ण की मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।

6. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया ?

उत्तर⇒ इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कुंडल देने से पर्व कर्ण ने इन्द्र से अनरोध किया कि वे सहस्त्र गाएँ, बहुसहस्त्र घोड़े, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि) ग्रहण करें।

7. कर्ण की दानवीरता क्यों प्रसिद्ध है ?

उत्तर⇒ कर्ण महान दानवीर के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने अभेद्य कवच और कुंडल भी इन्द्र को दे दिया । कर्ण जानता था कि जब तक उसके पास कवच और कुंडल विद्यमान है, तब तक उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कर्ण को यह आभास हो गया था कि कृष्ण ने इन्द्र के माध्यम से कवच और कुंडल माँगा है। कृष्ण चाहते थे कि पाण्डव विजयी हों । यह जानते हुए भी कर्ण ने कवच और कुंडल का दान किया । इसलिए उसकी दानवीरता विश्व-प्रसिद्ध है।

8.कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घाय होने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ?

उत्तर⇒ इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्यंभावी है । कर्ण को द दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता । कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता । इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।

9. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ कहाँ से उद्धत है ? इसके विषय में लिखें।

उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है । महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल माँगकर पांडवों की सहायता करते हैं।

10. भास के नाटकों की क्या विशेषता है ?

उत्तर⇒ भास के तेरह नाटक हैं, जिनमें कर्णभार नाटक सबसे सरल और अभिनय-योग्य है। इनके नाटकों की विशेषता यह है कि साधारण जनता भी उनका अभिनय कर सकती है। इसके नाटकों की कथाएँ विशेष रूप से महाभारत से ली जाती है।

11. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।

उत्तर⇒ कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं । इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाता है। बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहते हैं, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।

12. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?

उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ में कर्ण ने इन्द्र को जन्मजात कवच और कुंडल दान किया। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं. जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है । इसलिए शरीर का मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।

13. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया ?

उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।

14. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें।

उत्तर⇒ दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कुण्डल उसका प्राण-रक्षक है लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।

 

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