Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता पीयूषम् भाग 2 | Sanskrit Objective Question 2025
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड संस्कृत कक्षा 10 पाठ बारह कर्णस्य दानवीरता (Karnasya
danveerta sanskrit) के प्रत्येक पंक्ति के अर्थ के साथ उसके वस्तुनिष्ठ और विषयनिष्ठ प्रश्नों के व्याख्या को पढ़ेंगे।
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12. कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)
पाठ परिचय- यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित है। इसमें महाभारत के प्रसिद्व पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गई है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य ( मुंगेर तथा भागलपुर ) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।
पाठ 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)
अयं पाठः भासरचितस्य कर्णभारनामकस्य रूपकस्य भागविशेषः। यह पाठ ‘भास‘ रचित कर्ण भार नामक नाटक का भाग विशेष है।
अस्य रूपकस्य कथानकं महाभारतात् गृहीतम्। इस नाटक की कहानी महाभारत से ग्रहण किया गया है।
Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12
महाभारतयुद्धे कुन्तीपुत्रः कर्णः कौरवपक्षतः युद्धं करोति। महाभारत युद्ध में कुन्तीपुत्र कर्ण कौरव के पक्ष से युद्ध करते हैं।
कर्णस्य शरीरेण संबद्ध कवचं कुण्डले च तस्य रक्षके स्तः। कर्ण के शरीर में स्थित कवच और कुण्डल से वह रक्षित था।
यावत् कवचं कुण्डले च कर्णस्य शरीरे वर्तेते तावत् न कोऽपि कर्णं हन्तुं प्रभवति। जब तक कवच और कुण्डल कर्ण के शरीर में है। तबतक कोई भी कर्ण को नहीं मार सकता है।
अतएव अर्जुनस्य सहायतार्थम् इन्द्रः छलपूर्वकं कर्णस्य दानवीरस्य शरीरात् कवचं कुण्डले च गृह्णाति। इसलिए अर्जुण की सहायता के लिए इन्द्र छलपुर्वक दानवीर कर्ण के शरीर से कवच और कुण्डल लेते हैं।
कर्णः समोदम् अङ्गभूतं कवचं कुण्डले च ददाति। कर्ण खुशी पूर्वक अंग में स्थित कवच और कुण्डल दे देता है।
भासस्य त्रयोदश नाटकानि लभ्यन्ते। भास के तेरह नाटक मिले हैं।
तेषु कर्णभारम् अतिसरलम् अभिनेयं च वर्तते। उनमे कर्णभारम् अति सरल अभिनय है।
Chapter 12 कर्णस्य दानवीरता (कर्ण की दानवीरता)
(ततः प्रविशति ब्राह्मणरूपेण शक्रः) (इसके बाद प्रवेश करता है ब्राह्मण रूप में इन्द्र)
शक्रः- भो मेघाः, सूर्येणैव निवर्त्य गच्छन्तु भवन्तः। (कर्णमुपगम्य) भोः कर्ण ! महत्तरां भिक्षां याचे। इन्द्र- अरे मेघों ! सुर्य से कहो आप जाएँ। (कर्ण के समीप जाकर) बहुत बड़ी भिक्षा माँग रहा हुँ।
कर्णः- दृढं प्रीतोऽस्मि भगवन् ! कर्णो भवन्तमहमेष नमस्करोमि। कर्ण- मैं खुब प्रसन्न हुँ। कर्ण आपको प्रणाम करता है।
शक्रः- (आत्मगतम्) किं नु खलु मया वक्तव्यं, यदि दीर्घायुर्भवेति वक्ष्ये दीर्घायुर्भविष्यति। यदि न वक्ष्ये मूढ़ इति मां परिभवति। तस्मादुभयं परिहृत्य किं नु खलु वक्ष्यामि। भवतु दृष्टम्। (प्रकाशम्) भो कर्ण ! सूर्य इव, चन्द्र इव, हिमवान् इव, सागर इव तिष्ठतु ते यशः। इन्द्र- ( मन में ) क्या इस व्यक्ति के लिए बोला जाए, यदि दिर्घायु हो बोलता हुँ तो दिर्घायु हो जायेगा, यदि ऐसा नहीं बालता हुँ तो मुझको मुर्ख समझेगा। इसलिए दोनों को छोड़कर क्यों न ऐसा बोलूँ आप प्रसन्न हों। ;खुलकरद्ध ओ कर्ण ! सुर्य की तरह, चन्द्रमा की तरह, हिमालय की तरह, समुद्र की तरह तुम्हारा यश कायम रहे।
कर्णः- भगवन् ! किं न वक्तव्यं दीर्घायुर्भवेति। अथवा एतदेव शोभनम्। कर्ण- क्या दिर्घायु हो ऐसा नहीं बोलना चाहिए। अथवा यहीं ठीक है
व्यक्ति को धर्म की रक्षा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि राजा का एश्वर्य साँप की जीभ की तरह चंचल होता है। इसलिए प्रजापालन करने वाले राजा प्राण देकर भी प्रजा की रक्षा करते हैं तथा यश धारण करते हैं। अतः कर्ण के कहने का भाव है कि राजा अपने सुख के लिए नहीं जते हैं, प्रजा की रक्षा करने के लिए देह धारण करते हैं। धन या एश्वर्य तो आते जाते हैं, किन्तु यश तथा सुकर्म चिर काल तक कायम रहते हैं।
भगवन्, किमिच्छसि! किमहं ददामि। भगवन् ! आप क्या चाहते हैं ? मैं क्या दूँ ?
शक्रः- महत्तरां भिक्षां याचे। इन्द्र- बहुत बड़ी भिक्षा माँगता हूँ।
Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12
कर्णः- महत्तरां भिक्षां भवते प्रदास्ये। सालङ्कारं गोसहस्रं ददामि। कर्ण- मैं आपको बहुत बड़ी भिक्षा दूँगा। आभूषण सहित एक हजार गाय देता हूँ।
शक्रः- गोसहस्रमिति। मुहूर्तकं क्षीरं पिबामि। नेच्छामि कर्ण ! नेच्छामि। इन्द्र- एक हजार गाय। मैं थोड़ी दुध पीऊँगा। नहीं चाहिए कर्ण, नहीं चाहता हूँ।
कर्णः- किं नेच्छति भवान्। इदमपि श्रूयताम्। बहुसहस्रं वाजिनां ते ददामि। कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? यहीं भी तो बताएँ। हजारों घोड़े आपको देता हूँ।
शक्रः- अश्वमिति। मुहूर्तकम् आरोहामि। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि। इन्द्र- घोड़े ही। थोड़ी देर मैं सवारी करुँगा। नहीं चाहता हूँ कर्ण, नहीं चाहता हूँ।
कर्णः- किं नेच्छति भगवान्। अन्यदपि श्रूयताम्। वारणानामनेकं वृन्दमपि ते ददामि। कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? दूसरा भी सुनें ! हाथियों का अनेक समुह आपको देता हूँ।
शक्रः- गजमिति। मुहूर्तकम् आरोहामि। नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि। इन्द्र- हाथी ही। थोड़ी चढूँगा । नहीं चाहता हूँ कर्ण। नहीं चाहता हूँ।
कर्णः- किं नेच्छति भवान्। अन्यदपि श्रूयताम्, अपर्याप्तं कनकं ददामि। कर्ण- आप क्या चाहते हैं ? और भी सुनें ! जरूरत से अधिक सोना देता हूँ।
शक्रः- गृहीत्वा गच्छामि। ( किंचिद् गत्वा ) नेच्छामि कर्ण! नेच्छामि। इन्द्र- लेकर जाता हूँ। ;थोड़ी दूर जाकरद्ध मैं नहीं चाहता हूँ कर्ण। मैं नहीं चाहता हूँ।
कर्णः- तेन हि जित्वा पृथिवीं ददामि। कर्ण- तो जीतकर भूमि देता हूँ।
शक्रः- पृथिव्या किं करिष्यामि। इन्द्र- भूमि लेकर क्या करुँगा ?
कर्णः- तैन ह्यग्निष्टोमफलं ददामि । कर्ण- तो अग्निष्टोम फल देता हूँ।
शक्रः- अग्निष्टोमफलेन किं कार्यम् । इन्द्र- अग्निष्टोम फल लेकर क्या करुँगा।
कर्णः- तेन हि मच्छिरो ददामि। कर्ण- तो मैं अपना सिर देता हूँ।
शक्रः- अविहा अविहा। इन्द्र- नही-नहीं, ऐसा मत करो।
Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 12
कर्णः- न भेतव्यं न भेतव्यम्। प्रसीदतु भवान्। अन्यदपि श्रूयताम्। कर्ण- डरो नहीं, डरो नहीं, आप प्रसन्न हो जाएँ। और भी सुनें।
कर्ण ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र से कहता है कि मेरा जन्म इन कवच कुण्डलों के साथ हुआ है। यह कवच देवता और असुरों के द्वारा भेद नही है, फिर भी यदि आपको यहीं कवच और कुण्डल लेने की इच्छा है तो मैं प्रसन्नता पूर्वक देता हूँ। अर्थात् कर्ण अपने दानवीरता की रक्षा के लिए कवच कुण्डल देने को तैयार हो जाता है।
शक्र – (सहर्षम्) ददातु, ददातु। इन्द्र- (प्रसन्नतापूर्वक) दे दीजिए।
कर्णः-(आत्मगतम्) एष एवास्य कामः। किं नु खल्वनेककपटबुद्धेः कृष्णस्योपायः। सोऽपि भवतु। धिगयुक्तमनुशाचितम्। नास्ति संशयः। (प्रकाशम्) गृह्यताम्। कर्ण- (मन-ही-मन) यहीं इसकी इच्छा है। निश्चय ही कपटबुद्धिवाले श्रीकृष्ण की योजना है। वह भी हो। धिक्कार है अनुचित विचार करना। ;प्रकट रुप सुनाकरद्ध ले लीजिए।
शल्यः- अङ्गराज ! न दातव्यं न दातव्यम्। शल्यराज- हे अंगराज ! मत दीजिए, मत दीजिए।
कर्णः- शल्यराज ! अलमलं वारयितुम् । पश्य – कर्ण- मत रोको ! मत रोको । देखो-
शिक्षा क्षयं गच्छति कालपर्ययात् सुबद्धमूला निपतन्ति पादपाः। जलं जलस्थानगतं च शुष्यति । हुतं च दत्तं च तथैव तिष्ठति।
समय बीतने पर शिक्षा नष्ट हो जाती है। मजबुत जड़ो वाले वृक्ष गीर जाते हैं। नदी तालाब के जल सुख जाते हैं। लेकिन दिया गया दान और दी गई आहूति हमेशा स्थिर रहती है। अर्थात् हवन करने तथा दान करने से प्राप्त होनेवाले पुण्य हमेशा अमर रहता है।
तस्मात् गृह्यताम् (निकृत्त्य ददाति)। ग्रहण कीजिए। (निकाल कर दे देता है।)
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प्रश्न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता‘ पाठ किस ग्रंथ से संकलित है ? (A) कर्णभार से (B) वासवदत्त से (C) हितोपदेश से (D) पुरूषपरिक्षा कथा ग्रंथ से
show answer
(A) कर्णभार से
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प्रश्न 2 ‘महत्तरां भिक्षा याचे‘ यह किसकी उक्ति है ? (A) कर्ण की (B) शल्य की (C) कृष्ण की (D) इन्द्र की
प्रश्न 8. कर्ण किस देश का राजा था ? (A) अंग (B) मगध (C) मिथिला (D) काशी
show answer
(A) अंग
प्रश्न 9. कर्ण किसका पुत्र था ? (A) कुंती (B) कौशल्या (C) कैकेयी (D) शकुन्तला
show answer
(A) कुंती
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प्रश्न 10. भिक्षुक किस वेश में आया था ? (A) राजा (B) भिखारी (C) मंत्री (D) ब्राह्मण
show answer
(D) ब्राह्मण
प्रश्न 11. कवच और कुण्डल किसके पास था ? (A) इन्द्र (B) भीष्म (C) कृष्ण (D) कर्ण
show answer
(D) कर्ण
प्रश्न 12. कर्ण के कवच-कुण्डल की क्या विशेषता थी? (A) वह बड़ा था (B) वह सोने के था (C) वह बहुत चमकिला था (D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।
show answer
(D) उसे भेदा नहीं जा सकता था।
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12. कर्णस्या दनवीरता Subjective Questions
लघु-उत्तरीय प्रश्नोनत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्ततरीय प्रश्न 1. ‘कर्णस्य दानवीरता’मेंकर्ण के कवच और कुण्डल की विशेषताएँ क्या थीं? (2018A) उत्तर-कर्ण का कवच और कुण्डल जन्मजात था। जब तक उसके पास कवच और कुण्डल रहता, दुनिया की कोई शक्ति उसे मार नहीं सकती थी। कवच और कुण्डल उसे अपने पिता सूर्य देव से प्राप्त थे, जो अभेद्य थे।
प्रश्न 2. दानवीर कर्ण के चरित्र पर प्रकाश डालें ? अथवा, कर्णकी चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन करें। (2020AІ, 2018A) उत्तर- दानवीर कर्ण एक साहसी तथा कृतज्ञ (उपकार माननेवाला) आदमी था । वह सत्यवादी और मित्र का विश्वास पात्र था। दुर्योधन द्वारा किए गए उपकार को वह कभी नहीं भूला। उसका कवच-कुण्डल अभेद्य था फिर भी उसने इंद्र को दानस्वरूप दे दिया। वह दानवीर था। कुरुक्षेत्र में वीरगति को पाकर वह भारतीय इतिहास में अमर हो गया।
प्रश्न 3. कर्ण कौन था एवं उसके जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है? (2020AІ) उत्तर-कर्ण कुंती का पुत्र था। महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की । इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न 4. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें। (2011C) अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताएं। (2016A) उत्तर-दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।
प्रश्न 5. ‘कर्णस्यदानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया? (2011A) उत्तर—’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।
प्रश्न 6. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखें। (2011A,2015A) अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। (2018A) उत्तर-इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सशंकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए। Chapter 12 Karnasya danveerta sanskrit
प्रश्न 7. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें। अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान के महत्व का वर्णन करें। (2016A, 2018C) उत्तर– कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगतेहैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इस पर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।
प्रश्न 8. कर्णस्यणदानवीरता पाठ कहाँ से उद्धत है। इसके विषय में लिखें। उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए, इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवचऔर कुंडल मांगकर पांडवों की सहायता करते हैं।
प्रश्न 9. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद क्यों नहीं कहा? उत्तर-इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्य संभव है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता। इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने काआशीर्वाद दिया।
प्रश्न 10. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूपलेने के लिए आग्रह किया? (2018A) उत्तर-इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कुंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कंडल देने से पूर्व कर्ण ने इन्द्र से अनुरोध किया कि वे सहस्र गाएँ, हजारों घोडें, हाथी, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि), अग्निष्टोम फल या उसका सिर ग्रहण करें।
प्रश्न 11. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है? उत्तर- ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न 12. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें। (2012C) उत्तर-यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवच कुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अंगराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।
प्रश्न 13. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी और क्यों? उत्तर-इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी। अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।
प्रश्न 14. शास्त्रं मानवेभ्यः किं शिक्षयति? (2018A) उत्तर-शास्त्र मनुष्य को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराता है। शास्त्र ज्ञान का शासक होता है। सुकर्म-दुष्कर्म, सत्य-असत्य आदि की जानकारी शास्त्र से ही मिलती है।
प्रश्न 15. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। (2011C,2014A,2015C) उत्तर-कर्ण सूर्यपुत्र है । जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जब तक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच और कुंडल दे देता है।
1.कर्ण की दानवीरता कैसे प्रकट होती है ? उत्तर दें।
उत्तर⇒ कर्ण ब्राह्मवेशधारी इन्द्र को विनम्रतापूर्वक सर्वप्रथम भौतिक वस्तुएँ प्रदान करना चाहते यथा-गौ, हाथी, पृथ्वी । यहाँ तक कि अपने अग्निष्टों फल भी देना चाहते हैं और अन्ततः अपना सिर तक अर्पित करने के लिए उद्यत हो उठते हैं। परन्तु ब्राह्मणवेशधारी शक्र (इन्द्र) तो दृढ़ संकल्पित कुछ अन्य वस्तु के प्रति थे । कर्ण उनकी मनोदशा को समझकर अपनी रक्षार्थ शरीर से जुड़े कवच-कुण्डल को दान दे देते हैं। इतना बड़ा दान कर्ण को सम्पूर्ण ब्राह्मण्ड का दानवीर सिद्ध करता है।
2.कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर⇒ कर्ण सूर्यपुत्र है। जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है। जबतक कर्ण के शरीर में कवच कुण्डल है तब तक वह अजेय है । उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन इन्द्रपुत्र हैं। इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता है। इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच, कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच कुंडल दे देता है।
3. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर⇒ यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है । इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अङ्गराज्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।
4. कर्ण कौन था ? उसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर⇒ कर्ण कुंती का पुत्र था, परंतु महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पक्ष से लड़ाई की। उसके शरीर पर जन्मजात कवच और कुंडल था । जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर से अलग नहीं होता, तब तक कर्ण की मृत्यु असंभव थी ।
5. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा माँगी, और क्यों ?
उत्तर⇒ इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी । अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे, क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक कर्ण की मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूँकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।
6. कर्ण ने कवच और कंडल देने के पूर्व इन्द्र से किन-किन चीजों को दानस्वरूप लेने के लिए आग्रह किया ?
उत्तर⇒ इन्द्र कर्ण से बड़ी भिक्षा चाहते थे। कर्ण समझ नहीं सका कि इन्द्र भिक्षा के रूप में उनका कवच और कंडल चाहते हैं। इसलिए कवच और कुंडल देने से पर्व कर्ण ने इन्द्र से अनरोध किया कि वे सहस्त्र गाएँ, बहुसहस्त्र घोड़े, अपर्याप्त स्वर्ण मुद्राएँ और पृथ्वी (भूमि) ग्रहण करें।
7. कर्ण की दानवीरता क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर⇒ कर्ण महान दानवीर के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि उसने अभेद्य कवच और कुंडल भी इन्द्र को दे दिया । कर्ण जानता था कि जब तक उसके पास कवच और कुंडल विद्यमान है, तब तक उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता । कर्ण को यह आभास हो गया था कि कृष्ण ने इन्द्र के माध्यम से कवच और कुंडल माँगा है। कृष्ण चाहते थे कि पाण्डव विजयी हों । यह जानते हुए भी कर्ण ने कवच और कुंडल का दान किया । इसलिए उसकी दानवीरता विश्व-प्रसिद्ध है।
8.कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घाय होने का आशीर्वाद क्यों नहीं दिया ?
उत्तर⇒ इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्यंभावी है । कर्ण को द दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता । कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता । इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
9. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ कहाँ से उद्धत है ? इसके विषय में लिखें।
उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है । महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं। इसलिए इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल माँगकर पांडवों की सहायता करते हैं।
10. भास के नाटकों की क्या विशेषता है ?
उत्तर⇒ भास के तेरह नाटक हैं, जिनमें कर्णभार नाटक सबसे सरल और अभिनय-योग्य है। इनके नाटकों की विशेषता यह है कि साधारण जनता भी उनका अभिनय कर सकती है। इसके नाटकों की कथाएँ विशेष रूप से महाभारत से ली जाती है।
11. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।
उत्तर⇒ कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं । इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाता है। बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहते हैं, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।
12. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ में कर्ण ने इन्द्र को जन्मजात कवच और कुंडल दान किया। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है। वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं. जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है । इसलिए शरीर का मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।
13. ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार कौन हैं ? कर्ण किनका पत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में क्या दिया ?
उत्तर⇒ ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के नाटककार ‘भास’ हैं। कर्ण कुन्ती का पुत्र था तथा उन्होंने इन्द्र को दान में अपना कवच और कुण्डल दिया।
14. दानवीर कर्ण ने इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दें।
उत्तर⇒ दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कुण्डल उसका प्राण-रक्षक है लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया ।