बहुत दिनों के बाद(नागार्जन)(Bahut dino ke baad nagarjan
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ घुमक्कड़ कवि की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना का एक दुलर्भ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण बहुत दिनों के बाद कवि अपने ग्रामीण वातावरण में आकर पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखकर आह्वादित हो जाता है। का धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाता है। उसका जन अ। . उल्लसित हो जाता है।
Bahut dino ke baad nagarjan
प्रश्न 2.
कवि ने अपने गाँव की धूल को क्या कहा है? और क्यों?
उत्तर-
कवि नागार्जुन ने अपने गाँव की धूल को चन्दनवर्णी कहा है। ऐसा कहने के पीछे कवि का आशय है कि जिस तरह चन्दन स्निग्धता, सुगंध और शीतलता देता है। ठीक उसी तरह कवि के गाँव की धूल जिसका रंग चंदन की तरह ही है, जिससे ऐसी सोंधी महक आ रही है, उसका स्पर्श चन्दवत्, स्निग्ध और शीतलता प्रदान कर रहा है।
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प्रश्न 3
कविता में ‘बहुत दिनों के बाद’ पंक्ति बार-बार आयी है। इसका क्या औचित्य है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का होने के कारण कवि ‘बहुत दिनों के बाद’ अपने गाँव का उल्लासपूर्ण वातावरण देखकर मंत्र-मुग्ध है। प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल में हरियाली देखकर कवि का हृदय कल्पना को ऊँची उड़ान भरने लगता है। बहुत दिनों के बाद कवि को पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान तथा धान कूटती नवयौवनाओं की सुरीली तान सुनने को मिलता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल के सुवास कवि के नासारन्ध्रों में समाती है। प्रकृति की मेहरबानी से गन्ने, ताल-मखाना की हरी-भरी फसलें लहलहाते हुए देखकर कवि ताल-मखाना खाता है और गन्ना चूसता है।
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प्रश्न 4.
पूरी कविता में कवि उल्लसित है। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता घुमक्कड़ कवि नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदनाओं का एक दुर्लभ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। कवि बहुत दिनों के बाद पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान जी-भर देखता है। धान के उपज की प्रचुरता से कोकिल कंठी नवयौवन द्वारा धान कूटते हुए मधुर संगीत फिजाँ में फैला हुआ है जिसे सुनकर कवि मंत्र-मुग्ध हो जाता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल भी सूंघने को मिलती है
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प्रश्न 5.
“अब की मैंने जी-भर भोगे गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर” इन पंक्तियों का गर्भ उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, सहृदय साहित्यसेवी कवि नागार्जुन रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी इन पंक्तियाँ में तृप्ति का आख्यान हुआ है। मानव जीवन मृग मरीचिका में व्यतीत हो रहा है। सुख की वांछा में व्यक्ति अपनी जड़ों से कट कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ सारा कुछ मानव निर्मित, कृत्रिम होता है। चाँदनी होती है, चाँद नहीं होता। खूशबू आती है, फूल कागजी होते हैं, रूप मोहित करता है लेकिन मेकअप की मोटी परत चुपड़ी हुई है। भेद खुलने पर, छले जाने पर काफी दुःख होता है, क्लेष होता है और मानव मन अपनी जड़ की ओर लौटता है
जीवन शहरों और महानगरों जैसे अजगर के गुंजलक में किस स्थिति में है, सभी जानते हैं। उगता सूरज, डूबता सूरज के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। भागमभाग लगा रहता है। इसी भागमभाग से ऊबकर, भाग कर या निजात पाकर कवि अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटा जहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रातरानी, रजनीगंधा जैसे सुगंध बिखेरने वाले फूलों का सान्निध्य मिला, हृदय तृप्त हुए। प्रकृति के विभिन्न अंगों के प्रकृत रूप देखकर धूल धूसरित बालक को देखकर, धान रोपती, काटती, कूटती किशोरियों को गीत गाते देखकर मन को तृप्ति मिली।
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प्रश्न 6.
इस कविता में ग्रामीण परिवेश का कैसा चित्र उभरता है?
उत्तर-
मार्क्सवादी विचार के कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता में ग्रामीण परिवेश अपनी पूर्ण वस्तुवाचकता और गुणवाचकता के साथ उपस्थित है। उत्तर बिहार के नेपाल से सटे मिथिलांचल जिसे ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, में ही बाबा नागार्जुन का गाँव है, जवार है, अपना परिवेश है। यहाँ धान की पकी सुनहली फसल से भरे खेत हैं। धान से चावल निकलाने के लिए श्रमसाध्य उद्योग है और इसी से जुड़ा है श्रम परिहार हेतु “धान कूटनी” का गीत।
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प्रश्न 7.
“धान कूटनी किशोरियों की कोकिल-कंठी तान” में जो सौन्दर्य चेतना दिखलाई पड़ती है, उसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
अपने गाँव से गहरे जुड़े सरोकर रखनेवालं वैताली कवि नागार्जुन ग्रामीण सौंदर्य के सूक्ष्म द्रष्टा, पारखी और प्रस्तोता हैं।
धान कूटने के लिए ओखल-मूसल या फिर ढेकुली का प्रयोग होता है। ओखल धान रखकर बार-बार मूसल को बीच से पकड़ते हुए हाथ को शिर के ऊपर तक उठाना फिर कुछ झुकतं हुए धान पर प्रहार करना। चूड़ियों की खनखन, आपस में चूहल करती किशोरियों, नारियों और उनके गले से निकले ग्राम्य गीत के बोल, लगे जैसे किसी अमराई में कोयल पंचम का आलाप ले रही हो। यह सारा वातावरण ऐन्द्रिक, चाक्षुष और घ्राण बिम्बों को कोलाज़, प्रस्तुत करता है। कवि का कथन संक्षिप्त है किन्तु उसका सौन्दर्य अति सचेत, चेतनायुक्त और प्रभावी है।
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प्रश्न 8.
कविता में जिन क्रियाओं का उल्लेख है वे सभी सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर-
देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना के ध्वजावाहक प्रकृतिप्रेमी कविवर नागार्जुन ने चिंतन रचना, आचरण के धरातल पर बैठकर जनहित से संबंधित विषयों को कविता के माध्यम से उद्घाटित किया है। कवि के अनुसार शहरी जीवन के सीलन-भरी जिन्दगी की अपेक्षा प्रकृति की उन्मुक्त वातावरण, ग्रामीण परिवेश, सहज, सरस तथा आनन्ददायक होता है। इसकी बोधगम्यता ‘सकर्मक क्रिया’ के सुनियोजित प्रयोग करने में सहज और स्वाभाविक द्रष्टव्य होती है। पात्रों के कार्यों में जीवंतता प्रदान करने के लिए सार्थक क्रियाओं का प्रयोग करना कवि की कल्पना को। यथार्थ से दृढ़तापूर्वक संवेदित करता है।
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प्रश्न 9.
कविता के हर बंद में एक-एक ऐन्द्रिय अनुभव का जिक्र है और अंतिम बंद में उन सबका सारा-समवेत कथन है। कैसे? इसे रेखांकित करें।
उत्तर-
“बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता के हर बंद में एक ऐंद्रिय अनुभव है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं, जिनके माध्यम से सृष्टि का वस्तुमय साक्षात्कर होता है।
प्रथमबंद में पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखने का, दूसरे बंद में धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान सुनने का, तीसरे बंद में मौलसिरी के ताजे टटके फूल सूंघने का, चौथे बंद में गवई पगडंडी के चन्दनवर्णी धूल का स्पर्श करने का, पाँचवें बंद में ताल मखाना खाने और गन्ना चूसने का ऐन्द्रिय अनुभव वर्णित है और अंतिम बंद में भोगने शब्द कार प्रयोग करते हुए कवि ने समवेत ढंग से ऊपर के ही ऐन्द्रिय अनुभवों को सान्द्रित रूप से प्रस्तुत किया है। गंध का संबंध नाक से, रूप का आँख से, रस का जीभ से, शब्द का कान से, स्पर्श का त्वचा से, अनुभव का भोग होता है। अतः अंतिम बंद ऐन्द्रिय अनुभवों का सारांश ही है।
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प्रश्न 1.
कोकिलकंठी, चंदनवी में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
कोकिलकंठी और चंदनवर्णी में रूपक और उदाहरण अलंकार प्रयोग भेद से उपस्थित है।
प्रश्न 2.
‘मैंने’ सर्वनाम के किस भेद के अंतर्गत है?
उत्तर-‘
मैंने’ सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम के अन्तर्गत उत्तम पुरुष के अंतर्गत आता है जिसका कारक ‘कर्ता’ है। मैंने का प्रयोग भूतकाल के निम्न भेदों में आते हैं।सामान्य भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी।
आसन्न भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी है।
पूर्ण भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी थी।वैसे पंजाब-हरियाणा में मैंने का प्रयोग वर्तमान काल में होता है, जहाँ इसका अर्थ मुझे, मुझको लिया जाता है।मैंने खाना है (मुझे खाना है)।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज समूहों में विभक्त करें
पगडंडी, तालमखाना, गंध, मौलसिरी, टटका, फूल, मुसकान, फसल, स्पर्श, गवई, गन्ना
उत्तर-
तत्सम-गंध, स्पर्श
तद्भव-फूल, पगडंडी, मौलसिरी।
देशज-तालमखाना, टटका, गवई, गन्ना।
विदेशज-मुस्कान, फसल।।
प्रश्न 4.
सकर्मक और अकर्मक क्रिया में क्या अंतर है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर-
सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की संभावना हो अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्त्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर अर्थात् कर्म पर पड़े। जैसे-राम आम खाता है। जिन क्रियाओं पर व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-राम सोता है।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के लिए प्रयुक्त विशेष्य बताइए
(i) कोकिल-कंठी,
(ii) पकी सुनहली,
(iii) गँवई,
(iv) चंदनवर्णी,
(v) ताजे-टटकी,
(vi) धान कूटती।
उत्तर-
(i) तान,
(i) फसलों,
(iii) पगडंडी,
(iv) धूल,
(v) फूल,
(vi) किशोरियाँ।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता का परिचय दीजिए।
उत्तर-
नागार्जुन की यह कविता मिथिला की धरती तरौनी जो कवि की जन्मभूमि रही है, की सुरभि से सुरभित है। कवि यथार्थ का शिल्पी और रागात्मक संवेदनाओं का अमर गायक रहा है। अपने गाँव-जवार की प्रति कवि के मन में प्रगाढ़ स्नेह एवं दुलार है। ग्रामीण परिवेश की टटकी छवियों का चित्रांकन ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में सफलतापूर्वक किया गया है। पठित कविता में कवि की सहृदयता, सौन्दर्यानुभूति एवं विशिष्ट रागात्मक संवेदना उकेरी गई है। कवि की संवेदना मानव-जीवन के चित्रण में शहर की अपेक्षा गाँवों के प्रति अधिक उभरी है।
कवि जब रोजी-रोटी की तलाश में देश-देशान्तर की खाक छान रहा था, तब उसे अपने ग्राम ‘तरउनी’ की याद सताने लगती है। यह कविता घुमक्कड़ कवि की ग्रामीण प्रकृति और घरेलू संवेदना का दुर्लभ अहसास कराती है। ‘तरउनी’ मिथिला का एक अदना-सा गाँव है, इस गाँव का अदना कवि यहाँ की मिट्टी से इतना प्रभावित है कि उसे वह गाँव स्वर्ग-तुल्य लगता है। यह कविता उनकी ‘सतरंगे पंखों वाली’ काव्यकृति में संकलित है। कृति का प्रकाशन 1950 ई. में हुआ था
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु को देखकर आँखों का सुख प्राप्त किया? .
उत्तर-
पकी सुनहली फसलों की मुस्कान को देखकर।
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प्रश्न 2.
बहुत दिनों के बाद कवि को क्या सुनने का सुख प्राप्त हुआ?
उत्तर-
गाँव में धान कूटती हुई किशोरियों के कोकिल कंठ से निकली तान सुनकर।
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प्रश्न 3.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु की गन्ध का सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
मौलश्री के ढेर सारे टटके फूलों की गन्ध का।
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प्रश्न 4.
बहुत दिनों के बाद कवि ने कहाँ की धूल का स्पर्श-सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
अपने गाँव की चन्दनवर्णी धूल को स्पर्श करने का सुख प्राप्त किया।
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प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु का स्वाद प्राप्त किया?
उत्तर-
ताल मखाने को खाने और गन्ने को चूसने का।
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प्रश्न 6.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति हुयी है।
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प्रश्न 7.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन हुआ है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कवि नागार्जुन ने गाँव की प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।
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प्रश्न 8.
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में कौन-सा बिंब दिखाई पड़ता है?
उत्तर-
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में स्राय बिंब दिखाई पड़ता
1. बहुत दिनों के बाद ………………. साथ-साथ इस भू पर। .
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि नागार्जुन की कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी है। कवि ने इस कविता में बहुत दिनों के बाद गाँव में रहकर विविध वस्तुओं का सुख भोगने की स्थिति का वर्णन किया है।
कवि कहता है कि बहुत दिनों के बाद इस बार गाँव में रहकर रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श का भरपूर सुख लिया। कवि ने कविता के प्रथम छन्द में पकी सुनहली फसल की मुस्कान का सुख भोगने की बात कही है जो नये सुख के अन्तर्गत आता है। अतः रूप है। दूसरे छन्द में गाँव की किशोरियों द्वारा धान कूटने के समय कोकिल कंठ से गीत गाने या मधुर वार्तालाप करने का वर्णन किया है जो श्रवण सुख का विषय है। यही शब्द है। तीसरे छन्द में मौलश्री के ताजा पुष्पों की गंध सूंघने का वर्णन है जो घ्राण सुख का विषय है अतः गन्ध है।