bihar board class 12th Political Science chapter 5

12th Political Science chapter 5

1 . कांग्रेस-विरोधवाद क्या है?

[2015A]

1964 ई० में पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद काँग्रेस पार्टी में चमत्कारिक, कुशल एवं कुशाग्र बुद्धि के नेतृत्वकर्ता का अभाव का दौर गुजर रहा था। इस बात का लाभ कांग्रेस के विरोधी पार्टियों ने उठाना चाहा। काँग्रेस के तमाम विरोधी पार्टी एकजुट होकर यह नारे देने लगे कि किसी भी कीमत पर कांग्रेस को सत्ता में नहीं आने देना है। कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने का निर्णय जो सभी विरोधियों ने एकजुट होकर लिया, कांग्रेस के विरोध में नारे लगाए। कांग्रेस पार्टी का विरोध ही काँग्रेस विरोधावाद है।

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2. दल-बदल विरोधी कानून के मुख्य बिन्दु क्या हैं?
[2015A)

भारतीय संविधान का 52 वाँ संशोधन दल-बदल विरोधी कानून संसद ने पारित किया। इस कानून के तहत कोई भी दल का सदस्य यदि पार्टी गतिविधि या दल के अध्यक्ष का उल्लंघन करता है तो पार्टी दो तिहाई

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4. भारतीय राजनीति में ‘काँग्रेस प्रभुत्व’ से आप क्या समझते हैं?

स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत सुनिश्चित थी। इसका कारण था कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका काफी सराहनीय थी। परिणामस्वरूप 1925 के आम चुनाव में कुल 489 सीटों में 364 सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीती। 1957 में देश का दूसरा आम चुनाव हुआ। इस आम चुनाव में भी लोकसभा के लिए निर्धारित 494 स्थानों में कांग्रेस को 371 स्थान प्राप्त हुए। इतनी बड़ी संख्या में लोकसभा में कांग्रेस की जीत से कांग्रेसी नेता काफी खुश थे और ऐसा लगने लगा कि अगले कई दशकों में कांग्रेस के प्रभुत्व में शायद ही कमी आएगी लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आती गई। 1962 के आम चुनावों में सभी लोकसभा के 494 स्थानों में कांग्रेस को 361 स्थान मिले। उल्लेखनीय है कि इन तीनों आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी भारतीय राजनीति पर हावी रही।

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3. कांग्रेस व्यवस्था की पुनः स्थापना का क्या अर्थ है?

[2015A,2016A]

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी सत्ता में बनी रही। 1964 ई० में पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद काँग्रेस पार्टी में चमत्कारी व कुशल नेतृत्व का अभाव रहा। फलस्वरूप 1967 ई० के चुनाव में केंद्र में कांग्रेस पार्टी की इंदिरा गाँधी की सरकार बनी रही। लेकिन राज्यों के विधान सभा चुनाव में काँग्रेस के विरोधी पार्टियों ने एक जुटकर सत्ता में आए और सरकार बनाई। जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा एवं उड़ीसा में कांग्रेस के विरोधी पार्टी की सरकार बनी। लेकिन 1971 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पुनः विशाल बहुमत मिला। केंद्र में कांग्रेस की मजबूत सरकार बनी। 1972 ई० के विधान-सभा चुनावों में राज्यों में कांग्रेस ने पुनः विशाल बहुमत प्राप्त कर सत्ता प्राप्त की। इस प्रकार कांग्रेस ने अपनी खोई हुई जनाधार को पुनः प्राप्त कर ली, इसे ही कांग्रेस व्यवस्था की पुनः स्थापना या प्रभुत्व कहा गया।

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[2017A)

5. गैर-कांग्रेसवाद से आप क्या समझते हैं?

समाजवाद्गी नेता राममनोहर लोहिया ने गैर-कांग्रेसवाद शब्द का प्रयोग किया। 1967 के आमचुनाव के दौरान ऐसी सभी राजनीतिक दल जो कांग्रेस के विरोधी थे सभी राज्यों में चुनावी तालमेल किए और एकजूट होने का आह्वान किया। ऐसी सभी दलों का एकही नारा था कांग्रेस को हराना है। इसी भावना को गैर-कांग्रेसवाद के नाम से जाना जाता है।

[2011A,2014A,2017A,2019A)

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6. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ क्या है?

[2021A]

. विधायी शक्ति के अंतर्गत राष्ट्रपति को कानून निर्माण के क्षेत्र में व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई है। विधायी शक्ति के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद की बैठक बुलाता है और उसकी समाप्ति की घोषणा करता है। संसद के दोनों सदनों मतभेद उत्पन्न होता है तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है। राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्य और लोकसभा में 02 सदस्यों को मनोनीत करता है। राष्ट्रपति विशेष परिस्थिति में अध्यादेश भी जारी करता है। राष्ट्रपति के स्वीकृति के बाद ही लोकसभा में धनविधेयक पेश होता है।

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1. राष्ट्रपति शासन से आप क्या समझते हैं?

 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 में राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की अवस्था में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था की गयी है। यदि किसी राज्य के राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या राष्ट्रपति को लगे कि ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रपति, राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा राज्य में कर सकता है।

संविधान के अनुसार संघीय सरकार को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया. है कि वह प्रत्येक राज्य की बाहरी आक्रमण तथा आन्तरिक अशांति से रक्षा करेगा तथा वह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाई जाए। अनु० 356 के अनुसार अगर राष्ट्रपति को राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्य किसी प्रकार से समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो गई है कि किसी राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है तो वह संकटकाल की घोषणा कर सकता है, इसे अन्य शब्दों में अनु० 356 के अंतर्गत की गई घोषणा के निम्नलिखित संवैधानिक परिणाम होंगे-

(i) राष्ट्रपति यह घोषित कर सकता है कि किसी राज्य की विधायिका शक्ति का प्रयोग केंद्रीय संसद करेगी। संसद ऐसे व्यवस्थापन की शक्ति अथवा यह अधिकार दे सकती है कि वह यह शक्ति किसी और अधिकारी को प्रदान कर दे

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