Class 12th history chapter 12 question answer

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लघु  उत्तरीय प्रश्न (short Answer Type Questions)
1. कांग्रेस में उग्रवादियों की भूमिका का परीक्षण करें। [2014A]
19वीं शताब्दी के अंतिम चरण और 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में उग्रवादी आन्दोलन का विकास हुआ। इस आन्दोलन का केन्द्र बंगाल था, यद्यपि भारत के अन्य भागों में यह आन्दोलन प्रभावशाली था। इस आन्दोलन में अधिकांश शिक्षित मध्यम वर्ग के युवा शामिल थे। इसमें महाराष्ट्र के चापेकर बंधु बंगाल के अरबिन्दु घोष, पंजाब के लाला लाजपत राय, लाला हरदयाल प्रमुख थे। इन्होंने अपने त्याग, बलिदान और देश प्रेम की भावना से भारतीयों में एक नई आशा और उत्साह का सृजन किया। उनका प्रभाव राष्ट्रीय आन्दोलन पर व्यापक रूप से पड़ा।
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2. असहयोग आंदोलन के कारणों का प्रकाश डालें। [2015A]
असहयोग आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे-
(i) रौलेट एक्ट-गाँधी को असहयोग आंदोलन शुरू करने के कारणों में सबसे महत्त्वपूर्ण कारण रौलेट एक्ट था। इस एक्ट के अंतर्गत सरकार मात्र संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर मुकदमा चला सकती थी। इसे काला कानून भी कहा गया था।
(ii) जालियाँवाला बाग हत्याकांड- असहयोग आंदोलन शुरू करने में सबसे महत्त्वपूर्ण घटना जालियाँवाला बाग हत्याकांड थी। 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जालियाँवाला बांग में सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया था। शांतिपूर्ण सभा पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी के गोली चलाने का आदेश दिया जिसमें हजारों व्यक्ति मारे गये थे।
(iii) खिलाफत का प्रश्न- प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय मुसलमानों का सहयोग लेने के लिए ब्रिटिश सरकार ने आश्वासन दिया था कि युद्ध समाप्ति के बाद टर्की साम्राज्य को छिन्न-भिन्न नहीं करेगा लेकिन अंग्रेज अपने वायदों से मुकर गयी और टर्की साम्राज्य को विखंडित कर दिया। ज्ञातव्य हो कि टर्की का सुल्तान विश्व के मुसलमानों का खलीफा था।
3. स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए। [2014A,2017A]
स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने 1917 ई० में चंपारण आंदोलन से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में प्रवेश किया। 1919 ई० में रॉलेट सत्याग्रह, 1920 ई० असहयोग आंदोलन, 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा 1942 ई० में भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। गाँधी जी राजनीतिक आंदोलन के साथ-साथ स्वदेशी, हिन्दू मुस्लिम प्रचलन पर बल दिया। देश में सांप्रदायिक सौहार्द की स्थापना के लिए हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया। सामाजिक कुरुतियों छुआछूत, अशिक्षा, महिला उत्पीड़न आदि को खत्म करने पर बल दिया। गाँधीजी के नेतृत्व में ही चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया। इन्हीं के प्रयासों से ही अंततः भारत को 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतंत्रता मिली।
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4. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के योगदान किस प्रकार महत्वपूर्ण थे?
गाँधीजी का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। गाँधीजो सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, संप्रदायिक सद्भाव आदि आधारभूत सिद्धांतों के आधार पर राष्ट्रीय आंदोलन को चलाया। गाँधीजी से पहले काँग्रेस भद्रजनों की संस्था मानी जाती थी। इन्होंने इसे जनाधारित किया। काँग्रेस से आम जनता का लगाव बढ़ने लगा। देश में जैसे जैसे काँग्रेस का आधार बढ़ा वैसे-वैसे दिनों-दिन राष्ट्रीय आंदोलन और विस्तृत हुआ।
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5. साइमन कमीशन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।[2015A,2017A] [2018A]
जॉन साइमन की अध्यक्षता में 1927 में भारतीय संवैधानिक आयोग की स्थापना की गयी थी। इसका उद्देश्य था 1919 के अधिनियम तहत उत्तरदायी शासन की स्थापना की दशा में किये गये कार्यों की समीक्षा करना था। इस आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज थे। इसमें एक भी भारतीय सदस्य नहीं थे। इसे भारतीयों ने पूरे राष्ट्र का अपमान माना। इसलिए 1928 में जब कमीशन भारत आया तो इसका स्वागत काले झंडों से किया गया और ‘साइमन वापस जाओ’ का नारा बुलंद किया गया। लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए लाला लाजपत राय पुलिस की लाठी से जख्मी हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। साइमन कमीशन अपनी रिपोर्ट में द्वैध शासन-व्यवस्था को समाप्त कर प्रान्तीय स्वायतता स्थापित करने का सुझाव दिया था।
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6. रॉलेट एक्ट पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। [2015A,2016A,2019A]
6. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक राजद्रोह समिति का गठन किया। इस समिति के सुझाव पर 1919 में रॉलेट ऐक्ट पारित किया गया। इसके अनुसार क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न व्यक्तियों को मात्र संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता था। ऐसे व्यक्तियों पर गुप्त रूप से मुकदमे चलाने एवं इसके विरुद्ध अपील स्वीकृत नहीं करने की व्यवस्था थी। भारतीयों में इस कानून की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। इसे काला कानून की संज्ञा दी गयी। भारतीयों ने इस कानून के विरोध में “कोई वकील नहीं, कोई दलील नहीं, कोई अपील नहीं” का नारा दिया। इस कानून के विरोध में जिन्ना, मदनमोहन मालवीय और मजरूल हक ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा से त्यागपत्र दे दिया। अनेक स्थानों पर हड़ताल एवं प्रदर्शन हुये। इसी कानून के विरोध में कांग्रेस ने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू किया।
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7. सविनय अवज्ञा आंदोलन के दो कारण लिखें।[2019A]
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दो कारण निम्नलिखित हैं-
(1) आर्थिक शोषण-अंग्रेजों द्वारा भारत का बड़े पैमाने पर आर्थिक शोषण किया जा रहा था। नमक जैसे नैसर्गिक चीजों पर भी कर बढ़ा दिए। इससे भारतीयों में असंतोष बढ़ने लगा।
(ii) क्रांतिकारी घटनाओं का प्रभाव असहयोग आंदोलन के बाद देश में क्रांतिकारी घटनाओं की वृद्धि होने लगी थी। भारत के नवयुवकों में हिंसा की राजनीति घर करने लगी। इससे उबरने के लिए गाँधीजी द्वारा अहिंसक तरीके से 1930 ई० में सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।
8. चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे? [2015A, 2018A,2019A, 2020A, 2024A]
भारत में महात्मा गाँधी अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत चम्पारण सत्याग्रह से की थी। उत्तर बिहार के चम्पारण में नील की खेती होती थी। 19 वीं सदी के प्रारंभ में यूरोपीय बागान मालिकों ने चम्पारण के किसान के साथ एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे ‘तिनकठिया पद्धति’ कहा जाता था। किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के किसान राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। चम्पारण पहुँचकर उन्होंने किसानों की समस्याओं को सुना और सही पाया। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों कि स्थिति की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अन्त में गाँधीजी की विजय हुई और तिनकठिया पद्धति समाप्त हुई।
9. कब और क्यों साइमन कमीशन भारत आया?[2020A]
साइमन कमीशन भारत 3 फरवरी, 1928 ई० को आया था। साइमन कमीशन के भारत आगमन का मुख्य कारण था भारत में संविधानिक सुधारों का अध्ययन करना। इसमें कोई भारतीय सदस्य नहीं था। इसी कारण साइमन कमीशन का पूरे देश में विरोध हुआ।
10. अंग्रेजों ने भारत क्यों छोड़ा ? किन्हीं दो कारणों की चर्चा करें।[2020A]
अंग्रेजों ने 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्र कर दिया। अंग्रेजों द्वारा भारत के छोड़े जाने के दो कारण निम्न हैं
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन को काफी आर्थिक हानि हुई थी। अब उसके पास इतने संसाधन नहीं थे कि भारत पर प्रभावी नियंत्रण बना सके।
(ii) भारतीय लोगों में राष्ट्रीय जागृति आ चुकी थी। वे किसी भी कीमत पर भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करना चाहते थे।
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11. गाँधी जी के प्रारंभिक आंदोलन कहाँ-कहाँ हुए थे और क्यों?[2021A]
गाँधीजी के प्रारंभिक आंदोलन 1917 ई० किसानों की समस्या को दूर करने के लिए चंपारण आंदोलन हुए। इसका मुख्य कारण अंग्रेज नील मिल मालिकों द्वारा किसानों का शोषण करना था। 1918 ई० में अहमदाबाद के सूती वस्त्र उद्योग के मजदूरों की समस्या को दूर करने के लिए आंदोलन किये। 1918 ई० में ही गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों द्वारा अधिक भू लगान के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। गाँधीजी के प्रारंभिक तीनों आंदोलन स्थानीय थे तथा इसमें इन्हें सफलता मिली थी।
12. पूना पैक्ट के बारे में आप क्या जानते हैं? [2021A]
पूना पैक्ट अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच पुणे की यरवदा जेल में 1932 को हुआ था। इसमें अंग्रेजी सरकार की सांप्रदायिक पंचाट को अस्वीकार किया गया क्योंकि इसमें हरिजनों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की बात की गई थी। इसकी जगह पूना पैक्ट में हरिजनों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा दी गई थी।
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13. महात्मा गाँधी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त विवरण दें। [2021A]
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई० को पोरबंदर में हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी एवं माता का पुतली बाई था। इन्होंने इंग्लैंड से वकालत की पढ़ाई की सर्वप्रथम सत्याग्रह का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका से की। 1915 ई० में दक्षिण अफ्रीका से भारत आए। यहाँ चंपारण आंदोलन, खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। इनके प्रयासों से ही अंततः भारत को स्वतंत्रता मिली।
14. कम्यूनल अवार्ड क्या था? [2022A]
कम्यूनल अवार्ड अंग्रेजों द्वारा हिन्दू समाज को विभाजित करने का एक षड्यंत्र था। इसके तहत अछूतों को पृथक निर्वाचन के रूप में अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार दिया गया था। इसमें दलितों को दो वोट एक अपने प्रतिनिधि तथा दूसरा सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार दिया गया था। बाद में 1932 ई० में पुना समझौता के तहत इसे रद्द कर दिया गया।
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15. क्रिप्स मिशन भारत कब आया? इस मिशन के अध्यक्ष कौन थे? [2022A]
क्रिप्स मिशन भारत द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1942 ई० में भारत आया था। इस मिशन के अध्यक्ष सर स्टैफोर्ड क्रिप्स थे। इसने युद्ध के बाद भारत में संवैधानिक सुधार का प्रस्ताव दिया जिसे भारतीय नेताओं ने अस्वीकार कर दिया था।
16. 1929 ई० में आयोजित कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन किन दो कारणों से महत्त्वपूर्ण माना जाता है? [2023A]
. 1929 ई० में आयोजित कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन दो कारणों से महत्त्वपूर्ण माना जाता है-
(i) इस अधिवेशन में ही कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य को अपना मुख्य लक्ष्य घोषित किया था।
(ii) इसी अधिवेशन में गाँधीजी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने की घोषणा की गई थी।
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17. भारत छोड़ो आंदोलन के दो कारण बताइए। [2023A]
भारत छोड़ो आंदोलन के दो कारण निम्न थे-
(i) द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों द्वारा भारत को शामिल करना
(ii) क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण भी भारत छोड़ो आंदोलन
शुरू हुआ।
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18. चार उग्रवादी नेताओं के नाम लिखें। [2024A]
चार उग्रवादी नेताओं के नाम-
(i) लाला लाजपत राय
(ii) बाल गंगाधर तिलक
(iii) विपिन चन्द्र पाल
(iv) अरविन्द घोष
19. चौरी चौरा घटना क्या थी? [2025A,2024A]
5 फरवरी, 1922 को गोरखपुर जिले (उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर निहत्थे आंदोलनकारियों पर स्थानीय पुलिस ने लाठी चार्च किया, जिसके प्रतिक्रियास्वरूप भीड़ ने थाने पर हमला करके 22 पुलिस कर्मियों को जिन्दा जला दिया। इसी घटना को चौरी-चौरा घटना कहते हैं।
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20. स्वराज पार्टी की स्थापना कब हुई और किसने की? [2024A]
चितरंजनदास और मोतीलाल नेहरू ने 1 जनवरी, 1923 ई० को इलाहाबाद में स्वराज्य पार्टी की स्थापना की।
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21. दूसरा गोलमेज सम्मेलन क्यों असफल हुआ? [2025A]
दूसरा गोलमेज सम्मेलन साम्प्रदायिक मुद्दों के कारण विफल रहा। दलित समुदाय के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र की माँग पर डॉ० बी० आर० अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच मतभेद हो गया था। कांग्रेस ने पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया, लेकिन अन्य प्रतिनिधियों और दलों ने इस दावे को स्वीकार नहीं किया।
22. सरदार वल्लभभाई पटेल ने अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव का विरोध क्यों किया? [2025A]
सरदार पटेल ने पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा था कि यह विषय देश की पूरी राजनीति में गहराई से प्रवेश कर चुका है और इसके चलते राष्ट्र का बंटवारा भी हो चुका है। उन्होंने माना कि अगर देश में स्थायी शांति कायम करनी है तो इस प्रणाली को तुरंत खत्म करना जरूरी है।
23. जलियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ? [2025A]
रॉलेट ऐक्ट का विरोध गाँधी सहित देश के अन्य नेताओं द्वारा विभिन्न भागों में किया गया। इसी एक्ट द्वारा पंजाब के दो लोकप्रिय नेता डॉ. सनपाल एवं डॉ. किचलु के गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के जालियाँवाला बाग में हजारों लोग शांतिपूर्ण ढंग से सभा कर रहे थे। बिना चेतावनी दिए पंजाब के तत्कालीन सैन्य अधिकारी डायर ने गोलियाँ चलाने का आदेश दिया। इस बाग में केवल एक ही सँकरा दरवाजा था। इससे जनता में अफरा-तफरी मच गयी और लोग वाहर नहीं निकल सकें। इस गोलीकाण्ड में करीब 379-1500 लोग मारे गये और हजारों की संख्या में घायल हुये। इस घटना से पूरा देश स्तब्ध रह गया और इसके विरोध में गाँधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन शुरू की गई।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
1. गोलमेज सम्मेलन क्यों आयोजित किए गये? इनके कार्यों की विवेचना करें।
1. साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में संबैधानिक प्रश्नों पर भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बुलाने का सुझाव दिया था। अतः पहला गोलमेज सम्मेलन लंदन में 1930-31 ई० में हुआ। इस सम्मेलन को कांग्रेस ने बहिष्कार किया क्योंकि उसके प्रायः सभी नेता जेल में बंद थे। अल्पसंख्यकों और अछूतों के प्रश्न पर मतभेद होने के कारण पहला गोलमेज सम्मेलन विफल हो गया। वैसे भी बिना कांग्रेस के भाग लिये हुये कोई भी समझौता बेइमानी होती। मार्च 1931 में गाँधी इरविन समझौंता हो जाने के बाद, सितम्बर 1931 में गाँधी जी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। पहली गोलमेज सम्मेलन की तरह दूसरे गोलमेज सम्मेलन भी असफल रहा। इस सम्मेलन में भी साम्प्रदायिक प्रश्नों को ही प्रमुखता दी गयी। गाँधीजी को निराश होकर वापस हिन्दुस्तान लौटना पड़ा। तीसरा गोलमेज सम्मेलन भी लंदन में 17 नवम्बर, 1932 से 24 दिसम्बर, 1932 तक चला। इसमें भी कांग्रेस ने भाग नहीं लिया। सच तो यह है कि ब्रिटिश अनुदारवादी सरकार भारत को कुछ देना नहीं चाहती थी यह तो दिखावा मात्र था। मार्च, 1933 में ब्रिटिश सरकार ने एक श्वेतपत्र प्रकाशित किया जिसमें भारत के भावी संविधान की रूपरेखा बतायी गयी, जो कि तीनों गोलमेज सम्मेलनों के निर्णय पर आधारित था। इन्हीं के आधार पर 1935 का भारत शासन अधिनियम ब्रिटिश संसद ने पास किया।
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2. भारत छोड़ो आंदोलन के कारणों का उल्लेख करें।
क्रिप्स मिशन की असफलता से भारतीयों में निराशा और क्षोभ व्याप्त हो गया। इस बीच द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्रराष्ट्रों की स्थिति कमजोर पड़ गयी थी। ऐसी स्थिति में भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा और बढ़ते जा रही थी। इन सभी कारणों से भारतीयों में आतंक और बेचैनी बढ़ गई। गाँधीजी के मन में यह बात आयी कि जनता को इस निराशा और घबराहट से उबारने का एक मात्र उपाय यह है कि एक अहिंसक आन्दोलन शुरू किया जाए। उन्होंने सरकार से ‘भारत छोड़ने’ और सता भारतीयों को तत्काल सौंपने की माँग की। इसके लिए बम्बई में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ और इसी अधिवेशन के अवसर पर 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का प्रस्ताव पास हुआ और गाँधीजी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू करने की घोषणा की गई। भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा होने के साथ ही अगले दिन 9 अगस्त, 1942 को कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इन घटनाओं ने जनता को अनियंत्रित और क्रोधित कर दिया। फलतः गुस्से में जनता ने हिंसा और विरोध का सहारा लिया। सरकार की दमनात्मक कार्रवाइयों ने गुस्से की लहर और भी तीव्र कर दी। डाकखानों में आग लगाना, रेल की पटरियों को उखाड़ना, टेलीफोन के तारों को काट देना इत्यादि आन्दोलनकारियों के नियमित कार्य बन गये। अनेक जगहों पर आन्दोलनकारियों ने समानान्तर सरकारें स्थापित कर ली।</h6>
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3. गाँधीजी के जीवन एवं कार्यों का संक्षिप्त विवरण दें। [2017A]
महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट रियासत के दीवान थे। आरम्भिक
शिक्षा समाप्त कर गाँधी जी बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन गये, उसके पश्चात् भारत लौटकर उन्होंने बम्बई में वकालत आरम्भ की। 1893 में एक मुकदमें के सिलसिले में दक्षिण अफ्रिका गये। वहीं पर उन्होंने पहली बार सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया और अंग्रेजों को प्रजातीय विभेद की नीति त्यागकर भारतीयों को कुछ सुविधायें दिलाने में सफल हुए।भारत की राजनीति में गाँधीजी का प्रवेश- प्रथम विश्वयुद्ध आरम्भ होने पर 1915 में गाँधीजी भारत वापस आये और गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाकर भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। प्रथम विश्वयुद्ध में गाँधीजी ने अंग्रेजों को तन-मन-धन से सहायता की थी परंतु युद्ध के बाद सरकार द्वारा अपने वायदों की उपेक्षा करने और रॉलेट एक्ट व जालियाँवाला बाग हत्याकांड ने गांधीजी को राजभक्त से राजद्रोही बना दिया। असहयोग आंदोलन- 1920 से गाँधीजी ने खुले रूप से सरकार को चुनौती देते हुए प्रथम असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया। इस आन्दोलन के द्वारा गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को जनआंदोलन बना दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन- 1928 के बाद देश में उत्तेजना और निराशा का वातावरण फैल रहा था। अतः गाँधीजी ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। यह आन्दोलन दाण्डी मार्च से प्रारंभ हुआ और गाँधीजी 12 अप्रैल को डांडी तट पर स्वयं नमक बनाकर कानून का उल्लंघन कर सत्याग्रह प्रारम्भ किया। गाँधी इरविन समझौता के पश्चात् आंदोलन स्थगित कर दिया गया। 1932 को पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया गया क्योंकि दूसरे गोलमेज सम्मेलन द्वारा ब्रिटिश सरकार भारतीय समस्या का हल नहीं निकाल पायी, उलटे उसने साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा की। भारत छोड़ो आंदोलन- कांग्रेस ने 8 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया। गांधी ने इस अवसर पर कहा मैं स्वतंत्रता के लिए और अधिक प्रतिक्षा नहीं कर सकता और ‘करो या मरो’ का नारा दिया। अगले ही दिन गाँधी जी गिरफ्तार कर लिये गये, मगर आन्दोलन चलता रहा और सरकार ने इससे घबड़ाकर भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया तथा अन्त में 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिल गई। संक्षेप में, भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति में गाँधीजी के योगदान को सभी पक्
षों द्वारा स्वीकार किया जाता है। ये महात्मा गाँधी ही थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को जो बौद्धिक वर्ग तक सीमित आन्दोलन था, एक क्रांतिकारी जन आन्दोलन का रूप प्रदान किया।
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4. अंग्रेजों ने भारत क्यों छोड़ा? कारणों की विवेचना करें। [2018]
अथवा, भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति में सहायक तत्त्वों पर प्रकाश डालिए। 201.5A)
. अंग्रेजों द्वारा 1947 में भारतीयों को सत्ता सौंपना भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह स्वतंत्रता भारतीयों के एक लंबे संघर्ष और बलिदान का परिणाम था। अंग्रेजों द्वारा भारत छोड़ने के निम्नलिखित कारण थे।
(i) भारतीयों में राष्ट्रप्रेम की भावना में अपार वृद्धि-वीसवीं सदी के चौथे दशक में देश के सभी राजनीतिक दलों और समाज के सभी वगों में देश की स्वतंत्रता की माँग फैल गयी। हिंदू, मुसलमान, सिख, राजनीतिक नेता और सरकारी अधिकारी भी विदेशी सरकार से मुक्त होना चाहते थे। इसके अतिरिक्त भारत छोड़ो आंदोलन, INA के अफसरों के मुकदमों और नौ सेना के सैनिकों में विद्रोह से यह स्पष्ट होता था कि अव अंग्रेज अधिक समय तक भारत को अधीन रखने के योग्य नहीं रह गये थे। उनका भारत छोड़कर जाना निश्चित था।
(II) दूसरे महायुद्ध के पश्चात् ब्रिटेन की दुर्बल स्थिति- दूसरे महायुद्ध के परिणामस्वरूप इंगलैंड की स्थिति दुर्बल हो गयी थी। इससे अर्थव्यवस्था भंग हो चुकी थी और उसको जान-माल की बहुत हानि हुयी थी। ब्रिटेन के बड़े-बड़े उद्योग ठप्प हो गये थे। ब्रिटेन के पास अब भारत पर नियंत्रण बनाये रखने के साधनों का अभाव था। इस कारण 1945 ई० के पश्चात् भारत छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा।
(iii) एशिया के देशों में राष्ट्रीय भावना की जागृति दूसरे महायुद्ध के बाद एशिया के बहुत से देशों में राष्ट्र प्रेम की भावना बहुत तीव्र हो गयी। इन देशों के लोग अब अधिक समय तक पश्चिमी देशों के अधीन नहीं रह सकते थे।
(iv) ब्रिटेन के जनमत का भारत के पक्ष में होना इस समय ब्रिटेन की जनमत भारत की स्वतंत्रता की माँग के पक्ष में हो गये। इस देश के लोग भारतीयों की स्वतंत्रता की माँग को उचित समझकर उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करने लगे।
(v) ब्रिटेन पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव- विश्व के बड़े-बड़े देशों के नेताओं ने भी भारत की स्वतंत्रता की माँग का भरपूर समर्थन किया।
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5. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी के योगदान का वर्णन करें। [2013A,2015A,2016,20191)
गाँधीजी ने राष्ट्रीय आंदोलन के स्वरूप को निम्नलिखित विचारों, तरीकों, विचारधाराओं, कार्यप्रणाली, आंदोलन आदि के द्वारा बदल डाला-
(1) गाँधीजी स्वदेश आए और 1915 से लेकर जनवरी 1948 तक अपने दर्शन और विचारधारा से लोगों को विभिन्न माध्यमों से अवगत कराते रहे।
(ii) जब वह 1915 में दक्षिण अफ्रिका से स्वदेश लौटे तो उस समय कांग्रेस पार्टी वास्तव में मध्यवर्गीय शिक्षित लोगों की पार्टी थी और उसका प्रभाव कुछ शहरों और कस्बों तक सीमित था। गाँधीजी भली-भाँति जानते थे कि भारत गाँवों का देश है और यह राष्ट्र ग्रामीण लोगों, श्रमिकों, सर्वसाधारण, महिलाओं, युवाओं आदि में निहित है। जब तक ये सभी लोग राष्ट्रीय संघर्ष से नहीं जुड़ेंगे तब तक ब्रिटिश सत्ता को शांतिपूर्ण, अहिंसात्मक आंदोलनों, सत्याग्रहों, प्रदर्शनों, लेखों आदि से हटाना मुश्किल था।
(iii) गाँधीजी ने अपने भाषणों, पत्र-पत्रिकाओं में लिखे लेखों, पुस्तकें आदि के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ताधारियों को यह जता दिया कि भारत में जो सर्वत्र दरिद्रता, भुखमरी, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, अंधविश्वास और सामाजिक फूट देखने को मिलती है उसके लिए ब्रिटिश शासन ही उत्तरदायी है क्योंकि अंग्रेजों ने वर्षों से भारत का न केवल राजनैतिक शोषण किया है बल्कि इसका आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शोषण भी किया है।
(iv) गाँधीजी जानते थे कि जब तक वह किसानों, मजदूरों और सर्वसाधारण के प्रति सरकार, जमींदार, साहूकार, ताल्लुकेदारों आदि के द्वारा किए जा रहे अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज नहीं उठाएँगे तब तक सभी वर्ग के लोग उन्हें अपने में से एक नहीं समझेंगे और वे उनके आह्वान पर तुरंत शामिल नहीं होंगे। इसलिए गाँधीजी ने चंपारण में नील के खेतों में काम कर रहे गरीब किसानों, अहमदाबाद के वस्त्र-मिलों में काम करने वाले मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने और खेड़ा जिले के किसानों पर प्राकृतिक विपत्तियों के बावजूद, ऊँचे भू-राजस्व और कठोरता से की जा रही राजस्व वसूली के विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई।
(v) गाँधीजी हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते थे। वे कहते थे कि दोनों संप्रदाय के लोग उनकी दायीं और बायीं आँख के समान है। जैसे कोई मानव अपनी आँखों में भेदभाव नहीं करता, उसी प्रकार वह भी हिन्दू और मुसलमानों में कोई भेदभाव नहीं करते थे।
(vi) गाँधीजी पुरुष और स्त्री को समान मानते थे। वह नारी को महान होने के साथ-साथ एक बड़ी शक्ति के रूप में देखते थे। उन्होंने उनके हितों की बात की, उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होना, चरखा कातने, खादी का प्रचार करने, नशाबंदी और शराबबंदी का विरोध करने के साथ-साथ उन दुकानों पर धरणा देने के लिए आह्वान किया जो शराब, विदेशी कपड़े, विदेशी सामान आदि बेचती थीं। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा ग्राम पंचायतों का समर्थन किया। गाँधीजी ने समाज के दलित वर्ग को न्याय दिलाने के लिए उन्हें हरिजन नाम दिया। गाँधीजी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और पुराने ऑटोमन साम्राज्य की माँगों को सहयोग आंदोलन से भी अधिक महत्त्वपूर्ण बताया। जब कभी भी देश में धार्मिक घृणा अथवा देंगे हुए उन्होंने कई बार आमरण अनशन किया, दंगाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया और अपने प्रभाव और व्यक्तित्व का प्रयोग सभी संप्रदाय के लोगों और नेताओं को समझने के लिए इस्तेमाल किया।
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6. असहयोग आंदोलन की प्रकृति एवं परिणामों का वर्णन करें। [2014A,2015A.2017.2020,20241)
भारतीय राजनीति में प्रवेश करने के पश्चात गाँधीजी ने देशब्यापी आंदोलन ‘असहयोग आंदोलन’ चलाया। इस आंदोलन ने गाँधीजी को राष्ट्रीय आंदोलन का सर्वमान्य नेता बना दिया। असहयोग आंदोलन के कारण- प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात उत्पन्न आर्थिक असंतोष, अकाल, महामारी से किसानों; मजदूरों एवं अन्य वगों में असंतोष फैल रहा था। 1919 के सुधार अधिनियम में शिक्षित भारतीय भी संतुष्ट नहीं हो सके। क्रांतिकारी आंदोलन का विकास हो रहा था। सरकार ने इसका बहाना बनाकर दमनात्मक कार्रवाइयाँ आरंभ कर दी। इसी का एक परिणाम रौलेट एक्ट कानून का पारित होना था। इस ‘काला कानून’ की भारतीयों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। इसके विरोध में होने वाले प्रदर्शनों को दबाने के क्रम में जालियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ जिसने गाँधीजी जैसे अहिंसक व्यक्ति को हिलाकर रख दिया। अंग्रेजी न्यायप्रियता में उनका विश्वास समाप्त हो गया। उन्होंने 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन आरंभ करने की घोषणा कर दी। खिलाफत कमिटी ने भी 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया। असहयोग आंदोलन का महत्त्व असहयोग आंदोलन की शुरुआत का प्रस्ताव सितम्बर, 1920 ई० में कलकत्ता में काँग्रेस के विशेष अधिवेशन में पास हुआ। इसमें सरकारी स्कूलों, सरकारी उपाधियों, अदालतों तथा धारा सभाओं के बहिष्कार का प्रस्ताव पास किया गया। इस आंदोलन का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विशेष महत्त्व है। इस आंदोलन ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों जैसे किसानों, मजदूरों, छात्रों तथा शिक्षकों, महिलाओं तथा व्यापारी को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। इसका प्रचार-प्रसार देश के विभिन्न भागों में हुआ। इसी आंदोलन के दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल मिला। आम जनता के सहयोग से इस आंदोलन को काफी जन समर्थन मिला। इसने जन-साधारण में राष्ट्रीय संचेतना का विकास किया। यह गाँधीजी के नेतृत्व में चलाया गया पहला जन आंदोलन साबित हुआ। इसमें राष्ट्रवाद के प्रसार के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी वस्त्र, स्वदेशी संस्थाओं एवं राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। खिलाफत्त आंदोलन से जुड़े रहने के कारण हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल मिला। लोगों में विदेशी समान के बहिष्कार की आदत पड़ने लगी। लोगों में स्वदेशी सामान के उपयोग से देश में पुनः स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिला।
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7. गाँधी जी की दाण्डी यात्रा के क्या उद्देश्य थे? (2020,20211]
गाँधीजी की दाण्डी यात्रा का मुख्य उद्देश्य था नमक जैसी नैसर्गिक वस्तु पर अंग्रेजी सरकार द्वारा टैक्स बढ़ाकर जनता के आर्थिक शोषण से मुक्ति दिलाना। गाँधीजी का मानना था कि नमक समुद्र के पानी से बनाया जाता है। अंग्रेजी सरकार समुद्री पानी से नमक बनाकर उसे ऊँचे टैक्स लगाकर जनता का आर्थिक शोषण कर रही है। इसी आर्थिक शोषण से मुक्ति हेतु गाँधीजी ने दाण्डी यात्रा की। गाँधीजी ने दांडी यात्रा की शुरुआत 12 मार्च, 1930 ई० को अपने 78 अनुयायियों के साथ साबरमती आश्रम से की। लगभग 200 मील लंबी यात्रा तय कर 6 अप्रैल, 1930 ई० को समुद्र किनारे दाण्डी नामक स्थल पर समुद्र के जल से नमक बनाकर गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की। दाण्डी यात्रा से शुरू हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन पूरे देश में फैल गया। गाँवों में बिना कर दिए नमक बनाया गया। महिलाओं ने शराब की दुकानों, विदेशी वस्त्र की दुकानों पर धरना दिया; विद्यार्थियों, अध्यापकों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिये, सरकारी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी छोड़ दी। यानी दाण्डी यात्रा से भारत में एक विशाल जन आंदोलन की शुरुआत हुई।
8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन पर टिप्पणी लिखें। [20221]
8. असहयोग आंदोलन के बाद गाँधी जी ने दूसरा व्यापक आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया। यह आंदोलन पहले आंदोलन की तुलना में अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुआ।
आंदोलन के कारण
(1) भारत की राजनीतिक स्थिति- 1922 में असहयोग आंदोलन समाप्त होने और 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ होने के मध्य भारत की राजनीतिक स्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ। स्वतंत्रता की माँग बढ़ने लगी। अतः राष्ट्रीय आंदोलन को सही और अहिंसक मार्ग पर चलाने के लिए गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा का नया अस्त्र व्यवहार किया।
(ii) आर्थिक मंदी का प्रभाव 1930-32 के विश्व आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत पर भी पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी।
इससे जनसामान्य का आक्रोश सरकार के विरुद्ध बढ़ा। गाँधीजी ने इस आक्रोश को अहिंसक रूप से सरकार के विरुद्ध उपयोग में। लाने का निश्चय किया।
(iii) कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वराज्य की माँग-कांग्रेस का युवा वर्ग औपनिवेशिक स्वराज्य से संतुष्ट नहीं था। यह पूर्ण स्वराज्य चाहता था। लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की माँग रखी। 26 जनवरी, 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। पूरे देश में एक नया उत्साह का संचार हो रहा था और स्वतंत्रता प्राप्ति की ललक बढ़ी।दाँडी मार्च-गाँधीजी 12 मार्च, 1930 को अपने सहयोगियों के साथ सावरमती आश्रम से प्रस्थान किया। 6 अप्रैल, 1930 को दांडी में समुद्र के जल से नमक बनाकर उन्होंने नमक कानून भंग किया। इसी के साथ पूरे देश में असहयोग और बहिष्कार आंदोलन पुनः आरंभ हो गया। 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। इसके अनुसार सरकार ने राजनीतिक बंदियों की रिहाई और नमक बनाने की माँग को स्वीकार कर लिया। बदले में गाँधीजी सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेने और द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमत हो गये।आंदोलन का महत्त्व असहयोग आंदोलन की तरह ही सविनय अवज्ञा आंदोलन भी विना निर्णायक मोड़ पर पहुँचे समाप्त हो गया। गाँधीजी कोई महत्त्वपूर्ण माँग नहीं मनवा सके। यहाँ तक कि भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी भी नहीं रोकी जा सकी। गाँधी जी की सिर्फ यही सफलता रही कि पहली बार अपने आंदोलन के माध्यम से उन्होंने सरकार को समझौता करने को बाध्य कर दिया। यही सविनय अवज्ञा आंदोलन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
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9. गाँधी के जीवन में निम्नलिखित चार वर्षों का महत्व बतायें: [20221]
गाँधी के जीवन में निम्नलिखित चार वर्षों का काफी महत्त्व हैं
(a) 1915 गाँधीजी इस वर्ष दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आ गये थे।
(b) 1920-गाँधीजी इसी वर्ष पूरे देश में असहयोग आंदोलन की शुरुआत
की थी। यह भारत का गाँधीजी के नेतृत्व का पहला जन आंदोलन था।
(c) 1930-गांधीजी इस वर्ष गुजरात के दांडी नामक जगह से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की थी।
1948-गाँधीजी को इसी वर्ष मृत्यु हुई थी।
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10. क्रिप्स मिशन की असफलता के कारणों की व्याख्या कीजिए। [2023A]
अंग्रेजी सरकार द्वारा 1942 ई० में कैबिनेट मंत्री स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा। इसका मुख्य उद्देश्य था। द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को शामिल किये जाने को लेकर भारतीय नेताओं से सहमति प्राप्त करना। परंतु क्रिप्स मिशन को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका मुख्य कारण निम्न था
(1) सरकार की फिरंगी नीति तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने क्रिप्स मिशन भारतीयों को स्वतंत्रता देने के लिए नहीं भेजा था। विदेशी ताकतों के दवाब में चर्चिल ने क्रिप्स मिशन भेजा था।
(ii) जिन्ना का अड़ियल रूख मो० अली जिन्ना अलग पाकिस्तान की माँग पर अड़े थे। क्रिप्स मिशन में इसकी कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया था। अतः मुस्लिम लीग ने इसे अस्वीकृत कर दिया।
( iii) काँग्रेस की नीति काँग्रेस देश को स्वतंत्रता के पक्ष में था। काँग्रेसियों का कहना था कि जब हम खुद परतंत्र हैं तो दूसरे की स्वतंत्रता के लिए कैसे लड़ सकते हैं। अतः काँग्रेस ने क्रिप्स मिशन से स्वतंत्रता की माँग की। यह माँग नहीं मानी गई। अतः काँग्रेस ने गाँधीजी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कर दी। अंततः क्रिप्स मिशन असफल हो गया।
11. 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के महत्त्व पर प्रकाश डालें। (2025A)
भारत के आजादी की नींव रखी। ब्रिटिश सरकार को हिंसक चुनौती दी। भारतीयों में आत्मविश्वास बढ़ाया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता एकजूट हुई। स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया। महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। छात्रों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद समाजवादियों और नौजवानों ने सफलतापूर्वक आंदोलन चलाया। इससे स्पष्ट हो गया कि अब भारत को स्वतंत्र होने से रोका नहीं जा सकता है
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