Bihar Board Class 9th France ki kranti

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Class 9th France ki kranti

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की राजक्रांति किस ई० में हुई ?
(क) 1776
(ख) 1789
(ग) 1776
(घ) 1832
उत्तर-
(ख) 1789

प्रश्न 2.
बैस्टिल का पतन कब हुआ?
(क) 5 मई, 1789
(ख) 20 जून, 1789
(ग) 14 जुलाई, 1789
(घ) 27 अगस्त, 1789
उत्तर-
(ग) 14 जुलाई, 1789

प्रश्न 3.
प्रथम एस्टेट में कौन आते थे?
(क) सर्वसाधारण
(ख) किसान
(ग) पादरी
(घ) राजा
उत्तर-
(ग) पादरी

प्रश्न 4.
द्वितीय एस्टेट में कौन आते थे?
(क) पादरी
(ख) राजा
(ग) कुलीन
(घ) मध्यमवर्ग
उत्तर-
(ग) कुलीन ।

  प्रश्न 5.
तृतीय एस्टेट में इनमें से कौन थे?
(क) दार्शनिक
(ख) कुलीन
(ग) पादरी
(घ) न्यायाधीश
उत्तर-
(क) दार्शनिक

 प्रश्न 6.
बोल्टेमर क्या था?
(क) वैज्ञानिक
(ख) गणितज्ञ
(ग) लेखक
(घ) शिल्पकार
उत्तर-
(ग) लेखक

 प्रश्न 7.
रूसो किस सिद्धान्त का समर्थक था?
(क) समाजवाद
(ख) जनता की इच्छा
(ग) शक्ति पृथक्करण
(घ) निरंकुशता (General Will)
उत्तर-
(ख) जनता की इच्छा

 प्रश्न 8.
मांटेस्क्यू ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
(क) समाजिक संविदा
(ख) विधि का आत्मा
(ग) दास केपिटल
(घ) वृहत ज्ञानकोष
उत्तर-
(ख) विधि का आत्मा

प्रश्न 9.
फ्रांस की राजक्रांति के समय वहाँ का राजा कौन था ?
(क) नेपोलियन
(ख) लुई चौदहवाँ
(ग) लुई सोलहवाँ
(घ) मिराब्यो
उत्तर-
(ग) लुई सोलहवाँ

प्रश्न 10.
फ्रांस में स्वतंत्रता दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 4 जुलाई
(ख) 14 जुलाई
(ग) 21 अगस्त
(घ) 31 जुलाई
उत्तर-
(ख) 14 जुलाई

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I. रिक्त स्थान की पूर्ति करें-

1. लुई सोलहवाँ सन् …………… ई० में फ्रांस की गद्दी पर बैठा।
2. …………… लुई सोलहवाँ की पत्नी थी। 3. फ्रांस की संसदीय संस्था को …………… कहते थे।
4. ठेका पर टैक्स वसूलने वाले पूँजीपतियों को …………… कहा जाता था।
5. …………. के सिद्धन्त की स्थापना मांटेस्क्यू ने की।
6. ………….. की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ है।
7. 27 अगस्त, 1789 को फ्रांस की नेशनल एसेम्बली ने …………… की घोषणा थी।
8. जैकोबिन दल का प्रसिद्ध नेता …………… था।
9. दास प्रथा का अंतिम रूप से उन्मूलन …………… ई० में हुआ।
10. फ्रांसीसी महिलाओं को मतदान का अधिकार सन् ……….. ई० में मिला।
उत्तर-
1.1774,
2. मेरी अन्तोयनेत,
3. स्टेट जेनरल,
4. टैक्सफार्मर,
5. शक्ति पृथक्करण,
6. रूसो,
7. मानव और नागरिकों के अधिकार,
8. मैक्समिलियन राब्स पियर,
9. 1848,
10. 1946

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति के राजनैतिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के राजनैतिक कारण निम्नलिखित थे।
(i) निरंकुश राजशाही। (ii) राज-दरबार की विलासिता । (iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार। (iv) संसद की बैठक 175 वर्षों तक नहीं बुलाई गयी। (v) अत्यधिक केन्द्रीयकरण की नीति। (vi) स्वायत्त शासन का अभाव। (vii) मेरी अन्तोयनेत का प्रभाव।
इन्हीं कारणों से फ्रांस की राज्य क्रान्ति हुई।

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प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रांति के सामाजिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस में समाज तीन वर्गों में विभक्त था- (i) प्रथम एस्टेट में पादरी (ii) दूसरे एस्टेट में अभिजात वर्ग । (iii) तीसरे एस्टेट में सर्वसाधारण । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त थे। फ्रांस की कुल भूमि का 40% इन्हीं के पास थी। 90 प्रतिशत जनता तीसरे एस्टेट में थी, जिनको कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं था वे अपने स्वामी की सेवा घर एवं खेतों में काम करना । डाक्टर, वकील, जज, अध्यापक भी इसी वर्ग में थे। इन लोगों में भारी असंतोष था। यही वर्ग क्रांति का कारण बना।

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प्रश्न 3.
क्रांति के आर्थिक कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-

  • फ्रांस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसे सुधारने के लिए वहाँ की जनता पर करों का बोझ लाद दिया गया था।

  • करों का विभाजन दोष पूर्ण था । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त था, जबकि जनसाधारण को कर चुकाने पड़ते थे ।

  • किसानों पर भूमि पर, धार्मिक कर, सामन्ती कर आदि लगे थे। दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर भी कर देने पड़ते थे।

  • औद्योगिक क्रांति शुरू होने से मशीनों का उपयोग शुरू हुआ और बेरोजगारों की संख्या बढ़ने लगी।

  • व्यापारियों पर अनेक तरह के कर लगाए गए थे। जैसे—गिल्ड की पाबन्दी, सामन्ती कर, प्रान्तीय आयात कर इत्यादि । इस कारण यहाँ का व्यापार का विकास नहीं हो पाया। ये सभी कारण क्रांति को प्रोत्साहित किया।

ques4.
फ्रांस की क्रांति के बौद्धिक कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रान्ति के विषय में कहा जाता है कि यह एक मध्यम वर्गीय क्रान्ति थी । फ्रांस की स्थिति बड़ी गंभीर थी इस स्थिति को समझने या स्पष्ट करने में दार्शनिकों ने बड़ा योगदान दिया। फ्रांस के अनेक दार्शनिक, विचारक और लेखक हुए । इन लोगों ने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया । जनता इनके विचारों से गहरे रूप से प्रभावित हुए और क्रांति के लिए तैयार हो गई। इनमें प्रमुख मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो थे।

    • मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘विधि की आत्मा’ में सरकार के तीनों अंगों-कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका–को एक ही हाथ । में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए ऐसा होने से शासन निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी नहीं होगा। ऐसा बताकर उन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का पोषण किया।

    • रूसो पूर्ण परिवर्तन चाहते थे। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ में जनमत को ही सर्व शक्तिशाली माना । अतः जनतंत्र का समर्थक था।

    • अन्य बुद्धिजीवी जिनमें ददरों प्रमुख थे । इन्होंने ‘वृहत ज्ञानकोष’ के लेखों से फ्रांस में क्रांन्तिकारी विचारों का प्रचार किया। फ्रांस के अर्थशास्त्रियों क्वेजनों एवं तुर्गों ने समाज में आर्थिक शोषण एवं नियंत्रण की आलोचना की और मुक्त व्यापार का समर्थन किया ।

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ques-5.
‘लेटर्स-डी-केचेट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
लेटर्स-डी-केचेट’ से फ्रांस में बिना अभियोग के गिरफ्तारी वारंट होता था । फ्रांस में सभी तरह की स्वतंत्रताओं का अभाव था। भाषण, लेखन, विचार की अभिव्यक्ति तथा धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था । वहाँ राजधर्म कैथोलिक था और प्रोटेस्टेंट धर्म के मानने वालों को कठोर सजा दी जाती थी। ऐसे धर्मावलवियों को राजा बिना अभियोग के रिरफ्तारी वारंट देता था। उसे ही लेटर्स-द-केचेट (Letters-decachet) कहते थे।

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प्रश्न 6.
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में लफायते के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था। उन्होंने वहाँ देखा था कि अमेरिका के 13 उपनिवेशों ने कैसे औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर लोकतंत्र की स्थापना की थी।

स्वदेश वापस लौटकर उनलोगों ने देखा कि जिन सिद्धान्तों की रक्षा के लिए वे अमेरिका में युद्ध कर रहे थे उनका अपने देश में ही अभाव था। वे सैनिक फ्रांस में क्रांति का अग्रदूत बनकर लोकतंत्र का संदेश फैलाने लगे ।  अंत में वह फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बन गया ।

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प्रश्न 7.
‘मानव एवं नागरिकों के अधिकार से’ आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
14 जुलाई, 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र के लिए राजा बना रहा और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी।इसमें समानता, स्वतंत्रता, संपत्ति की सुरक्षा तथा अत्याचारों से मुक्ति के अधिकार को नैसर्गिक और अहरणीय’ माना गया । व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस एवं भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी ।

अब राज्य किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार नहीं कर सकता था। तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता था। इन अधिकारों की सुरक्षा करना राज्य का दायित्व माना गया । मध्यम वर्ग के लिए सबसे महत्वूपर्ण घोषणाएँ थीं। 90% सामान्य जनता को उन समस्याओं से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया जिनका सामना उन्हें निरंकुश राजशाही में करना पड़ता था।

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प्रश्न 8.
फ्रांस की क्रांति का इंग्लैण्ड पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति का प्रभाव सिर्फ फ्रांस पर ही नहीं बल्कि यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा । नेपोलियन फ्रांस में सुधार के कार्यों को करते हुए अपने विजय अभियान के दौरान जब इटली और जर्मनी आदि देशों में पहुँचा, तब उसे वहाँ की जनता भी ‘क्रांति का अग्रदूत’ कहकर स्वागत किया ।

फलस्वरूप सन् 1832 ई० में इंग्लैण्ड में ‘संसदीय सुधार अधिनियम’ पारित हुआ; जिसके द्वारा वहाँ के जमींदारों की शक्ति समाप्त कर दी गयी और जनता के लिए अनेक सुधारों का मार्ग खुल गया । भविष्य में, इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के विकास में इस क्रांति का बहुत योगदान रहा ।

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प्रश्न 9.
फ्रांस की क्रांति ने इटली को प्रभावित किया, कैसे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति ने इटली को बहुत प्रभावित किया । इटली इस समय कई भागों में बँटा हुआ था । फ्रांस की इस क्रान्ति के बाद इटली के विभिन्न भागों में नेपोलियन ने अपनी सेना एकत्रित कर लड़ाई की तैयारी की और ‘इटली राज्य’ स्थापित किया। एक साथ मिलकर युद्ध करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और इटली में भावी एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 10.
फ्रांस की क्रांति से जर्मनी कैसे प्रभावित हुआ?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति से जर्मनी भी अछूता नहीं रहा। जर्मनी भी उस समय छोटे-छोटे 300 राज्यों में विभक्त था, जो नेपोलियन के ही प्रयास से 38 राज्यों में सिमट गया । इस क्रान्ति में ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ एवं ‘बन्धुत्व’ की भावना को जर्मनी के लोगों ने अपनाया और आगे चलकर इससे जर्मनी के एकीकरण करने में बल प्राप्त हुआ।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति के क्या कारण थे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति 1789 ई० में हुई। इसके निम्नलिखित कारण थे
(i) सामाजिक कारण-फ्रांस में समाज तीन वर्गों-उच्च मध्यम तथा निम्न । प्रथम दोनों श्रेणियों में बडे सामन्त, पादरी तथा कुलीन वर्ग के व्यक्ति थे । इन्हें किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं देना पड़ता था और 40% जमीन के भी यही मालिक थे।

(ii) राजनीतिक कारण-फांस का राजा अपने को ही राज्य मानता था। उसका कथन था ‘मैं ही राज्य हूँ।” यह कथन लुई चौदहवाँ का कथन था। शासन की एकरूपता नहीं थी 1 पादरी और कुलीन लोगों के लिए कानून अलग थे । जनसाधारण के लिए अलग ।

प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रांति के परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए

  • इस क्रान्ति ने पुरातन व्यवस्था (Anceient Regime) को समाप्त कर दिया । आधुनिक युग का आरम्भ हुआ 

  • क्रान्ति के फलस्वरूप धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हुई। बुद्धिवाद का उदय हुआ और जनता को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई।

  • फ्रांस की क्रान्ति ने राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त को समाप्त कर दिया तथा जनतंत्र की स्थापना की।

  • 1791 ई० में फ्रांस के नेशनल एसेम्बली ने पहली बार नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की घोषणा की तथा स्वतंत्रता एवं समानता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया

  •  क्रान्ति ने समाजवाद का बीजारोपण किया । जैकोबिनों ने बहुसंख्यक गरीबों को अनेक सुविधाएँ दी। अमीरी-गरीबी का भेद मिटाने का प्रयास हुआ। खाद्य-पदार्थों के मूल्य निर्धारित किए गए।

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प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रांति एक मध्यमवर्गीय क्रांति थी, कैसे?
उत्तर-
फ्रांस में सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था जिसका सबसे बड़ा कारण यह था कि सुयोग्य एवं सम्पन्न होते हुए भी उन्हें कुलीनों जैसा सामाजिक सम्मान प्राप्त नहीं था । सम्पन्नता और उन्नति के बावजूद भी वे सभी तरह के राजनैतिक अधिकारों से वंचित थे । राज्य में सभी बड़े पद कुलीनों के लिए सुरक्षित थे ।

उनका मानना था कि सामाजिक ओहदे का आधार योग्यता होनी चाहिए, न कि वंश ।मध्यम वर्ग के साथ कुलीन वर्ग के लोग बहुत बुरा और असमानता का व्यवहार करते थे। यह बात उन्हें बहुत अपमानजनक लगती थी।  फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों ने फ्रांस में बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात किया ।। इसीलिए फ्रांस की क्रान्ति को मध्यमवर्गीय क्रान्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
फ्रांस की क्रांति में वहाँ के दार्शनिकों का क्या योगदान था?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति में वहाँ के दार्शनिकों का महत्त्वपूर्ण योगदान था। फ्रांस में अनेक दार्शनिक हुए जिन्होंने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया। उनमें मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो प्रमुख थे।

(i) मांटेस्क्य-यह उदार विचारों वाला दार्शनिक था । इसने राज्य और चर्च दोनों की कटु आलोचना की वे जानते थे कि जीवन, संपत्ति एवं स्वतंत्रता मानव के जन्मसिद्ध अधिकार है। मॉटेस्क्यू की सबसे बड़ी देन शक्ति के पृथक्करण का सिद्धान्त है।

(ii) वाल्टेयर-इसने भी चर्च की आलोचना की। अपने क्रान्ति विचारों के कारण वह जाना जाता था। उसका सिद्धन्त था कि राजतंत्र प्रजाहित में होना चाहिए।

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प्रश्न 5.
फ्रांस की क्रांति की देनों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति 1789 ई० में हुई थी। इस क्रान्ति से न केवल फ्रांस बल्कि संसार के समस्त देश इसके देनों से स्थाई रूप से प्रभावित हुए । वास्तव में इस क्रान्ति के कारण एक नये युग का उदय हुआ। इसके तीन प्रमुख सिद्धान्त समानता, स्वतंत्रता और मातृत्व की भावना पूरे विश्व के लिए अमर वरदान सिद्ध हुए । इन्हीं आधारों पर संसार के अनेक देशों में एक नये समाज की स्थापना का प्रयत्न किया गया । यह महान देन है ।

    •  स्वतंत्रता-स्वतंत्रता फ्रांसीसी क्रान्ति का एक मूल सिद्धान्त था । इस सिद्धान्त से यूरोप के लगभग सभी देश बड़े प्रभावित हुए । 

    • समानता-सभी के लिए समान कानून बना ।

    • लोकतंत्र-फ्रांस की क्रान्ति ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर दिया 

प्रश्न 6.
फ्रांस की क्रांति ने यूरोपीय देशों को किस तरह प्रभावित किया।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति का विश्वव्यापि प्रभाव पड़ा संसार का कोई भी देश अछूता न रहा । खासकर यूरोप तो इसके व्यापक प्रभाव में आया ।

  • फ्रांस की क्रान्ति की देखा-देखी सामंती व्यवस्था को मिटाने के लिए एवं समानता के सिद्धान्त को लागू करने का प्रयास किया गया ।नेपोलियन ने यूरोपीय राष्ट्रों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत कर दी। इसलिए इटली के भावी एकीकरण की नीव पड़ी।

  • नेपोलियन ने पोलैंड के लोगों के सामने भी एक संयुक्त तस्वीर रखी जो प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पूरी हुई।

  • जर्मनी में कुल 300 राज्य थे । नेपोलियन के प्रयास से 38 राज्य रह गए सबों को मिलाकर एक कर दिया ।

  • द्वितीय ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में भी फ्रांसीसी क्रान्ति का योगदान था । इससे प्रेरणा लेकर ही इंग्लैण्ड में 1832 ई० का रिफार्म एक्ट (Reform Act) पारित हुआ । इससे संसदीय प्रणाली में सुधार हुआ ।

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ques 7.
‘फ्रांस की क्रांति एक युगान्तकारी घटना थी’ इस कथन की पुष्टि
करें।
उत्तर-
सन् 1789 की फ्रांस की क्रांन्ति यूरोप के इतिहास में एक युगान्तकारी घटना थी, जिसने एक युग का अंत और दूसरे युग के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया और दूसरे युग के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया । सन 1789 के पूर्व फ्रांस में जो स्थिति व्याप्त थी उसे प्राचीन राजतंत्र के नाम से जाना जाता है इस समय सामन्ती व्यवस्था थी। समाज तीन वर्गों में विभाजित था(i) कुलीन वर्ग (ii) पादरी वर्ग (iii) साधारण वर्ग । इसमें प्रथम और द्वितीय वर्ग को किसी प्रकार के टैक्स नहीं देने पड़ते थे। राजा स्वेच्छाचारी था । फ्रांस में प्रतिनिधि संस्थाओं का सर्वथा अभाव था। 

ques-8.

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फ्रांस की क्रांति के लिए लुई सोलहवाँ किस तरह उत्तरदायी था?
उत्तर-
लुई चौदहवाँ के बाद फ्रांस की गद्दी पर लुई सोलहवाँ गद्दी पर बैठा, जो अयोग्य और निरंकुश था । फ्रांस की क्रान्ति के लिए निम्नलिखित बातों के कारण उत्तरदायी था
(i) निरंकुश राजशाही-फ्रांस की क्रान्ति के समय में लुई सोलहवाँ गद्दी पर था । राजा के हाथों में सारी शक्ति केन्द्रित थी लुई सोलहवाँ का कहना था कि ‘मेरी इच्छा ही कानून है।’ इस व्यवस्था में राजा की आज्ञा नहीं मानना एक अपराध था।

(ii) मेरी अन्तोयनेत का प्रभाव-लुई सोलहवाँकी पत्नी मेरी अन्तोयनेन थी जो फिजूलखर्ची के लिए प्रसिद्ध थी। यह उत्सवों में काफी रुपये लुटाती थी, और अपने खास आदमियों को ओहदे दिलाने के लिए राजकार्य में दखल देती रहती थी। 

(iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार-राजा के सलाहकार और अधिकारी भ्रष्ट थे । राजा के वर्साय स्थित राजा महल में पन्द्रह हजार अधिकारी एसे थे जो को भी काम नहीं करते थे, मगर अपार धन राशि वेतन के रूप में लेते थे ।

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प्रश्न 9.
फ्रांस की क्रांति में जैकोबिन दल का क्या भूमिका थी?
उत्तर-
सन् 1791 ई० में नेशनल एसेम्बली ने संविधान का प्रारूप तैयार किया। इसमें शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। यद्यपि लुई सोलहवाँ ने इस सिद्धान्त को मान लिया, परन्तु मिराव्या की मृत्यु के बाद देश में हिंसात्मक विद्रोह की शुरुआत हो गयी। इसमें समानता के सिद्धान्त की अवहेलना की गई बहुसंख्यकों को मतदान से वंचित रखा गया था सिर्फ धनी लोगों को ही यह अधिकार दिया गया । इस तरह बुर्जुआ वर्ग का प्रभाव बढ़ा इस बढ़ते असंतोष की अभिव्यक्ति नागरिक राजनीतिक क्लबों में जमा होकर करते थे। । 

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ques10.
नेशनल एसेम्बली और नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए कौन-कौन से सुधार पारित किए ?
उत्तर-
(क) नेशनल एसेम्बली द्वारा किये गए सुधार इस प्रकार हैं-14 जुलाई, सन् 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र का राजा रह गया और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी।

  • 21 अगस्त, 1789 को ‘मानव और नागरिकों के अधिकार’ (The Declaration of the rights of Man and citizen) की स्वीकार कर लिया । इस घोषणा से प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने और अपनी इच्छानुसार धर्मपालन करने के अधिकार का मान्यता मिली।

  • शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। ये सभी घोषणाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।

  • मतदान का अधिकार-21 वर्ष से अधिक उम्र वालों को मतदान का अधिकार मिला । चाहे उसके पास सम्पति हो या न हो।

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