class 12 history chapter 8 qeuestion answer

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1. सगुण एवं निर्गुण भक्ति में क्या अंतर है?

सगुण भक्ति वाले भक्त भगवान को मनुष्य या उनके कई रूपों में मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करते हैं। निर्गुण भक्ति में भक्त भगवान को अद्वैत, अविनाशी, चराचर का रचनाकार मानते हुए इनके अविनाशी स्वरूप की आराधना करते हैं।

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[2020A)

2. मीराबाई का संक्षिप्त परिचय दें।

 मीराबाई का जन्म 1498 ई० में पाली के कुड़की गाँव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर हुआ था। ये बचपन से ही कृष्ण भक्त थी। इनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में हुआ था। उदयपुर के राजा भोजराज इनके पति थे। पति की मृत्यु के बाद इन्होंने कृष्ण को अपना पतिस्वरूप मानकर संत बन गई। इन्होंने रैदास से दीक्षा ली थी। भक्ति संतों में सगुण भक्ति की महान संत थी।

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[2021A]

3. उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का प्रारंभ किसने किया था? उनका जीवन परिचय दें।

उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का प्रारंभ रामानंद, कबीर, नानक, नामदेव, चैतन्य आदि प्रमुख संतों ने किया था। संत रामानंद का जन्म प्रयाग में 1299 ई० में हुआ था। इन्होंने समाज के चारो वर्षों को भक्ति का उपदेश दिया। इनके शिष्यों में कबीर, पीपा, सधना आदि प्रमुख थे। कबीर का जन्म 1425 ई० में वाराणसी में हुआ था। ये निर्गुण भक्ति के उपासक थे। नानक का जन्म 1469 ई० में तलवण्डी में हुआ था। इन्होंने एकेश्वरवाद पर बल दिया। नामदेव का जन्म 1270 ई० में हुआ था। इनका भक्ति काव्य मराठी में है। चैतन्य का जन्म 1486 ई० में बंगाल में हुआ था। इन्होंने कृष्ण भक्ति के मार्ग को चुना।

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4. खालसा पंथ की स्थापना किसने और कब की?

खालसा पंथ की स्थापना सिख धर्म के दसवें एवं अंतिम गुरु गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 ई० में वैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब में की थी। इस दिन इन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। इसी के साथ सिख धर्म में गुरु का स्थान ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में स्थापित कर दिया गया।

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[2022AJC

5. नयनार कौन थे?

दक्षिण भारत के शासक पल्लव काल में शैव धर्म के प्रचार-प्रसार करने वाले भक्तों/अनुयायी को नयनार कहते थे।

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[2022A)

6. महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के किन्हीं दो सन्तों के नाम लिखें।

 महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन के दो सन्तों के नाम निम्नलिखित थे-(i) नामदेव और (ii) तुकाराम

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(2024A)

7. किन्हीं चार अलवार संतों के नाम लिखें।

 चार प्रमुख अलवार संतों के नाम हैं- अंडल, तोंडारडिप्पोडि, तिरुमंगई और पेरीयालवार।

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(2024A]

8. सगुण भक्ति परम्परा क्या है?

सगुण भक्ति परंपरा वह धारा है जिसमें ईश्वर को साकार रूप में माना जाता है और उनके अवतारों की पूजा की जाती है। इसमें कर्मकांडों और वर्ण व्यवस्था पर विश्वास किया जाता है। इसकी दो मुख्य शाखाएँ हैं- कृष्ण भक्ति और राम भक्ति। इस परंपरा के प्रमुख संतों में तुलसीदास और सूरदास शामिल हैं।

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[2025A]

(2025A)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

[2018A]

18A,2023A]

2. भक्ति आंदोलन के महत्व एवं प्रभाव की समीक्षा करें।

जिस नाम से पुकारा जाए लेकिन उसका स्वरूप एक ही होता है। इन्होंने, राम, राहीम, कृष्ण, विष्णु एवं अल्लाह को ईश्वर का समान रूप बताया।

(ii) धार्मिक सरलता पर बल भक्ति आंदोलन के संतों ने धर्म को अंधविश्वास, रूढ़िवादी कर्मकांडों तथा ढकोसलों से अलग करने की प्रेरणा दी। इनके अनुसार सच्चा धर्म सरल, मानव कल्याण तथा नैतिकता पर आधारित होता है। इन्होंने लोगों में सच्चाई, ईमानदारी, न्याय, सहयोग, दया का गुण अपनाने का संदेश दिया।

(iii) गुरु की भक्ति एवं मूर्तिपूजा का विरोध-भक्ति संतों ने गुरु की महिमा को गोविंद से भी बढ़कर बतलाया। इन्होंने मूर्त्तिपूजा का भी जोरदार, खंडन किया।

(iv) जनसाधारण की भाषा का विकास-भक्ति संतों ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए आम लोगों की भाषा अपनाई। इससे कई स्थानीय भाषाओं जैसे अवधी, मागधी, ब्रजभाषा का विकास हुआ।

आत्म समर्पण की भावना का प्रसार भक्ति संतों ने लोगों को काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार को त्यागकर भाईचारे का संदेश दिया। ईश्वर के प्रति सच्चा समर्पण के लिए लोगों को शुद्ध नैतिकता (v) का पाठ पढ़ाया।

(vi) समाज सुधार अधिकांश भक्ति संत समाज सुधारक थे। इन्होंने जाति-प्रथा, अस्पृश्यता, सतीप्रथा, दासप्रथा, कन्यावध, आर्थिक विषमता आदि का विरोध किया।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्ति आंदोलन के प्रभाव से समाज में समन्वय की स्थापना हुई। गंगा-यमुनी संस्कृति का विकास हुआ। बाह्य आडंबर, जाति प्रथा, अस्पृश्यता आदि पर काफी प्रहार हुआ। नए क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ।

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1. भक्ति आन्दोलन के परिणामों का वर्णन करें।

2. मध्यकालीन भारत में कई धार्मिक विचारकों तथा सुधारकों ने भारत के सामाजिक-धार्मिक जीवन में सुधार लाने के उद्देश्य से भक्ति को साधन बनाकर एक आंदोलन प्रारंभ किया जो भक्ति आंदोलन के नाम से जाना जाता है। भक्ति आंदोलन का प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों में देखा गया है

(अ) सामाजिक प्रभाव-

(i) हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला।

(ii) समाज में स्त्रियों को सम्मान बढ़ा।

(iii) जाति प्रथा की कठोरता में कमी आयी।

(iv) हिन्दुओं में एक नई आशा का संचार हुआ।

(ब) धार्मिक प्रभाव-

(i) गुरु का महत्त्व जो कि समाप्त हो रहा था, फिर से बढ़ने लगा।

(ii) ब्राह्मणों कर्मकांडों व संस्कार को धक्का लगा।

(iii) कर्म का महत्त्व पुनः प्रतिस्थापित किया गया।

(iv) धार्मिक उदारता की भावना का विकास हुआ।

(v) भिन्न-भिन्न मतों का उदय हुआ।

(स) राजनैतिक प्रभाव-

(i) पंजाब में सिक्ख जाति का जन्म हुआ, जिसने हिन्दू समाज की रक्षा के लिए मुगलों को नाको चने चबवा दिये।

(ii) दक्षिण में शिवाजी जैसे वीर का जन्म हुआ तथा महाराष्ट्र के धर्म का उदय हुआ। मराठों ने मुगलों के अतिरिक्त अंग्रेजों को भी भारतीय शक्ति का परिचय दिया।

(द) साहित्यिक प्रभाव –

(3) हिन्दी भाषा का अत्यधिक विकास हुआ, तुलसी, कबीर, सूरदास, मीरा जैसे- कवि इस काल की देन हैं।

(ii) प्रान्तीय भाषायें भी पिछड़ी न रही, मराठी तथा गुजराती साहित्य की विशेष उन्नति हुई।

(iii) संतों ने जनसाधारण की भाषा में पद रचना की थी।

इस प्रकार भक्ति आंदोलन ने जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित किया। सत्य तो यह है कि भक्ति आंदोलन ने ही पतनोन्मुख हिन्दू-संस्कृति तथा हिन्दू जाति की रक्षा कर हिन्दू धर्म का प्रचार किया।

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[2017A]

गम के

अथवा, भक्ति आन्दोलन के प्रमुख प्रभावों का वर्णन करें।

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[2025A, 2014A,2015A,2019A]

2A,2023A]

3. सूफीवाद पर संक्षिप्त लेख लिखें।

इस्लामी इतिहास में सूफी रहस्यवाद की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी के आस-पास हुई थी। सूफी मत इस्लाम में रहस्यवादी विचारों तथा उदार प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। कुरान के उपदेशों की उदार व्याख्या का आधार तरीकत है, जो सूफी मत का आधार है। कालांतर में सूफी मत अनेक

सम्प्रदायों में बँट गया तथा इन सम्प्रदायों ने संगठित होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया।

सूफी पत के सिद्धान्त-

(1) सूफी मत के लोग रहस्यवादी थे और अल्लाह के रहस्यों की खोज करना अपना मुख्य उद्देश्य समझते थे।

(ii) सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी सांसारिक भांग-विलास तथा वैभव के घोर विरोधी थेत्तथा सादगी पर बल देते थे।

(iii) सूफी लोग मनुष्य के कर्म, शुद्ध तथा सरल जीवन और संयम को ईश्वर की प्राप्ति का मुख्य साधन मानते थे।

(iv) सूफी सम्प्रदाय एकेश्वरवादी था, वह अल्लाह की एकता में विश्वास रखता था तथा मुक्ति का उपदेश देता था।

(v) सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी मानवता की सेवा पर विशेष जोर देते थे, उनका विश्वास था कि मानवता की सेवा से ईश्वर की प्राप्ति होती है।

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[2013A,2015A, 2016A, 2018A, 2020A]

 भक्ति आंदोलन पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।

 भक्ति आंदोलन मुख्यतः मानव और ईश्वर के मध्य रहस्यवादी संबंधों को स्थापित करने पर बल दिया। इसकी शुरुआत दक्षिण भारत में नयनार (शैव) तथा अलवार (वैष्णव) संतों द्वारा की गई थी। मध्यकाल में यह आंदोलन काफी व्यापक हुआ।

भक्ति आंदोलन का मुख्य कारण था हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियाँ। इसमें हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिया गया। शंकराचार्य के अद्वैतवाद अर्थात् निर्गुण ब्रह्म की उपासना तथा ज्ञान द्वारा मोक्ष प्राप्ति इसे संबल प्रदान किया। भक्ति एवं सूफी संतों के प्रचार-प्रसार से इसे वल मिला।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में रामानुज, रामानंद, चैतन्य महाप्रभु, कबीर, गुरुनानक, दादू, रैदास, वल्लभाचार्य आदि हैं। इन्होंने अपने समय में उपदेशों द्वारा इसे आगे बढ़ाया।

इस आंदोलन में धार्मिक सरलता पर बल दिया गया। कई भक्ति संतों ने मूर्ति पूजा, जात-पात, ऊँच नीच आदि की आलोचना की। इसमें जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया जिससे जनमानस का जुड़ाव बढ़ता गया। इसमें ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण पर बल दिया गया। इसके संत मानव को मानव से प्रेम की शिक्षा देते थे। इसमें कई सामाजिक कुरीतियों जैसे स्त्रियों की दयनीय स्थिति, सती प्रथा, कन्यावध, दास प्रथा, जाति प्रथा आदि का विरोध किया गया था

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[2021A]

[2023A]

5. गुरु नानक देव पर एक लेख लिखें।

 गुरु नानक का जन्म पंजाब के गुजरानवाला जिले में 1469 ई० में रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी (ननकाना साहिब) नामक ग्राम में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है। कबीर की भाँति नानक ने भी धार्मिक आडम्बरों, कर्मकांडों, अवतारवाद, मूर्तिपूजा, ऊँच-नीच आदि का विरोध किया और निर्गुण एवं निराकार ईश्वर की पूजा पर बल दिया।

हिन्दू-मुस्लिम एकता के वे प्रवल समर्थक थे। उन्होंने सिक्ख धर्म की स्थापना की। शारीरिक श्रम द्वारा जीविकोपार्जन पर आधारित नई समाज की स्थापना नानक द्वारा की गई। नानक की वाणी ने कालांतर में गुरु गोविन्द सिंह को व्यापक सिद्धांतों के आधार पर एक नये धर्म की स्थापना के लिए प्रेरित किया। नानक के उपदेशों का संग्रह ‘गुरु ग्रन्थ साहब’ में है, जो सिक्खों का धर्म ग्रन्थ है।

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[2022A]

6. सूफीवाद पर एक संक्षिप्त लेख लिखें।

6. इस्लामी. इतिहास में सूफी रहस्यवाद की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी के आस-पास हुई थी। सूफी मत’ इस्लाम में रहस्यवादी विचारों तथा उदार प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। कुरान के उपदेशों की उदार व्याख्या का आधार तरीकत है, जो सूफी मत का आधार है। कालांतर में सूफी मत अनेक सम्प्रदायों में बँट गया तथा इन सम्प्रदायों ने संगठित होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया।

सूफी मत के सिद्धान्त-

(i) सूफी मत के लोग रहस्यवादी थे और अल्लाह के रहस्यों की खोज करना अपना मुख्य उद्देश्य समझते थे।

(ii) सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी सांसारिक भोग-विलास तथा वैभव के घोर विरोधी थे तथा सादगी पर बल देते थे।

(iii) सूफी लोग मनुष्य के कर्म, शुद्ध तथा सरल जीवन और संयम को ईश्वर की प्राप्ति का मुख्य साधन मानते थे।

(iv) सूफी सम्प्रदाय एकेश्वरवादी था, वह अल्लाह की एकता में विश्वास रखता था तथा मुक्ति का उपदेश देता था।

(v) सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी मानवता की सेवा पर विशेष जोर देते थे, उनका विश्वास था कि मानवता की सेवा से ईश्वर की प्राप्ति होती है।

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