sipahi ki maa saransh

लेखक- मोहन राकेश
लेखक परिचय
जन्म- 8 जनवरी 1925 मृत्यु- 3 दिसंबर 1972
जन्म स्थान- जंडीवाली गली, अमृतसर, पंजाब
बचपन का नाम- मदन मोहन गुगलानी।
माता-पिता : बच्चन कौर और करमचंद गुगलानी।
शिक्षा- एम.ए.(संस्कृत) लाहौर। ओरिएंटल कॉलेज, जालंधर से एम.ए. (हिंदी)
वृति– दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन।
कृतियाँ- इंसान के खंडहर, नए बादल, जानवर और जानवर, एक और जिंदगी, फौलाद का आकाश, वारिस, आसाढ़ का एक दिन, न आनेवाला कल।
sipahi ki maa saransh
‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी के एकांकीकार मोहन राकेश द्वारा लिखित “अंडे के छिलके तथा अन्य एकांकी” से ली गई है। इस एकांकी में एक माँ (नाम-बिशनी) अपनी एकमात्र बेटी (नाम-मुन्नी) की शादी के लिए पैसे के लिए परेशान है। एकमात्र बेटा (नाम-मानक) कमाने गया है । लड़ाई में उसके मारे जाने का भी भय है । मोहन राकेश की इस मार्मिक रचना में निम्न मध्यम वर्गीय परिवार की एक ऐसी माँ-बेटी की कथावस्तु प्रस्तुत है जिनके घर का इकलौता लड़का सिपाही के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर बर्मा में लड़ने गया है । वह अपनी माँ का इकलौता बेटा और विवाह के लिए तैयार अपनी बहन का इकलौता भाई है । उसी पर घर की पूरी आशा टिकी हुई है । वह लड़ाई के मोर्चे से कमाकर लौटे तो बहन के हाथ पीले हो सकें अर्थात बहन की शादी हो सकेगी। माँ एक देहाती भोली स्त्री है, वह यह भी नहीं जानती कि बर्मा उसके गाँव से कितनी दूर है और लड़ाई कैसी और किनसे किसलिए हो रही है। उसका अंजाम ऐसा भी हो सकता है कि सब कुछ खत्म हो जाए ऐसा वह सोच भी नहीं सकती। लेकिन माँ को अपने बेटे के चिट्ठी का इन्तेजार दिन रात रहता है|
sipahi ki maa saransh
लेकिन माँ को बेटा का चिट्ठी भी प्राप्त नही होता है| सपने में बिशनी को मानक देखाई देता है| वह उससे बातचीत करती है| वह बुरी तरह घायल है और बताता है कि दुश्मन उसके पीछे लगा है| बिशनी उसे लेटने को कहती है पर वह पानी मांगता है| तभी वहां एक सिपाही आता है और वह उसे मरा हुआ बताता है| यह सुनकर बिशनी सहम जाती है लेकिन तभी मानक कहता है कि मैं मरा नहीं हूं। वह सिपाही मानक को मारने की बात कहता है लेकिन बिशनी कहती है कि मैं इसकी मां हूं और इससे मरने नहीं दूंगी। सिपाही मानक को वहशी तथा खूनी बताता है। लेकिन बिशनी उसकी बात को नकार देती है। वह कहती है कि यह बुरी तरह घायल है और इसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है। इसलिए तू इसे मारने का विचार त्याग दें। जवाब में सिपाही कहता है कि अगर मैं इसे नहीं मारूंगा तो यह मुझे मार देगा। बिशनी विश्वास दिलाती है की यह तुझे नहीं मारेगा तभी मानक खड़ा होता है और उस सिपाही को मारने की बात कहता है। बिशनी उसे समझाती है लेकिन वह नहीं मानता है और उसकी बोटी-बोटी करने की बात कहता है| यह सुन बिशनी चिल्लाकर बैठती है| वह जोर-जोर से मानक ! मानक ! कहती है। उसकी आवाज सुनकर मुन्नी आती है। मां की स्थिति देखकर वह कहती है कि तुम रोज भैया के सपने देखती हो जब कि मैंने तुमसे कहा था कि भैया जल्दी आएंगे। फिर वह अपने मां की गले लग जाती है। बिशनी उसका माथा चूमकर उसे सो जाने को कहती है और मन ही मन कुछ गुनगुनाने लगती है।
