प्रश्न 1.रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
(क) मानव …… उत्पत्ति वाला है। (अलैगिक/लैगिक)
उत्तर
लैंगिक।
(ख) मानव हैं। अण्डप्रजक, सजीवप्रजक, अण्डजरायुज)
उत्तर
सजीवप्रजक।
(ग) मानव में …….. निषेचन होता है। (बाह्य/आन्तरिक)
उत्तर
आन्तरिक।
(घ) नर एवं मादी ……. युग्मक होते हैं। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
अगुणित।
(ङ) युग्मनज ……. होता है। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर
द्विगुणित।
(च) एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को …… कहते हैं।
उत्तर
अण्डोत्सर्ग (ovulation)
(छ) अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) …… नामक हॉर्मोन द्वारा प्रेरित (इन्ड्यूस्ड) होता है।
उत्तर
ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH)
(ज) नर एवं मादा युग्मक के संलयन (फ्यूजन) ……. को हैं।
उत्तर
निषेचन।
(झ) निषेचन …….. में संपन्न होता है।
उत्तर
अण्डवाहिनी नली के संकीर्ण पथ व तुंबिका के संधिस्थल।
(ज) युग्मनज विभक्त होकर …….. की रचना करता है जो गर्भाशय में अंतरोपित (इंप्लांटेड) होता है।
उत्तर
ब्लास्टोसिस्ट (कोरकपुटी)।
(ट) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को …….. कहते हैं।
उत्तर
अपरा (placenta)।
प्रश्न 2पुरुष जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 3.स्त्री जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 4.वृषण तथा अण्डाशय के बारे में प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
वृषण के कार्य
-
वृषण में जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन (spermatogenesis) द्वारा शुक्राणुओं (sperms) का निर्माण होता है।
-
वृषण की सर्टोली कोशिकाएँ (Sertoli cells) शुक्रजन कोशिकाओं तथा शुक्राणुओं का पोषण करती हैं।
-
वृषण की अन्तराली कोशिकाओं से एन्ड्रोजन (androgens) हॉर्मोन्स स्रावित होते हैं, ये द्वितीयक लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास को प्रभावित करते हैं।
अण्डाशय के कार्य
-
अण्डाशय की जनन कोशिकाओं से अण्डजनन द्वारा अण्डाणुओं (ova) का निर्माण होता है।
-
अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका (Graafian follicle) से एस्ट्रोजन हॉर्मोन (estrogen hormone) स्रावित होता है, यह अण्डोत्सर्ग (ovulation) को प्रेरित करता है।
-
अण्डाशय में बनी संरचना कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) से स्रावित प्रोजेस्टेरोन (progesterone) हॉर्मोन गर्भाशय में निषेचित अण्डाणु को स्थापित करने में सहायक होता है।
प्रश्न 5.शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुक्रजनक नलिका
वृषण का निर्माण अनेक शुक्रजनक नलिकाओं (seminiferous tubules) से होता है। शुक्रजनक नलिकाओं के मध्य संयोजी ऊतक में स्थान-स्थान पर अन्तराली कोशिकाओं (interstitial cells) के समूह स्थित होते हैं। इन्हें लेडिग कोशिकाएँ (Leydig’s cells) भी कहते हैं। इनसे स्रावित नर हॉर्मोन्स (testosterone) के कारण द्वितीयक लैंगिक लक्षण विकसित होते हैं।
प्रत्येक शुक्रजनक नलिका पतली एवं कुण्डलित होती है। यह दो पर्यों से घिरी रहती है। बाहरी पर्त को बहिःकुंचक (tunica propria) तथा भीतरी पर्त को जनन एपिथीलियम (germinal epithelium) कहते हैं। जनन एपिथीलियम का निर्माण मुख्य रूप से जनन कोशिकाओं (gem cells) से होता है। इनके मध्य स्थान-स्थान पर सटली कोशिकाएँ (Sertoli cells or nurse cells) पायी जाती हैं। जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शुक्राणु सटली कोशिकाओं से पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं। वृषण की शुक्रजनक नलिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं। शुक्रवाहिकाएँ अधिवृषण (epididymis) में खुलती हैं। अधिवृषण से एक शुक्रवाहिनी निकलकर वंक्षण नाल (inguinal canal) से होती हुई उदर गुहा में प्रवेश करती है। शुक्रवाहिनी मूत्रवाहिनी के साथ फंदा बनाकर मूत्रमार्ग के अधर भाग में खुलती है।
प्रश्न 6.शुक्राणुजनन क्या है? संक्षेप में शुक्राणुजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर
नर युग्मक (शुक्राणुओं) की निर्माण प्रक्रिया, शुक्रजनन कहलाती है। वृषण की जनन उपकला के अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणु बनते हैं। यह क्रिया निम्न प्रकार होती है –
(अ) स्पर्मेटिड का निर्माण – यह क्रिया अग्रलिखित उप चरणों में पूरी होती है –
-
गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) – प्राथमिक जनन कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन के द्वारा विभाजित होती हैं तथा स्पर्मेटोगोनिया बनाती हैं। ये सभी कोशिकाएँ द्विगुणसूत्री (diploid) होती हैं।
-
वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – स्पर्मेटोगोनिया नर्सिंग कोशिकाओं से खाद्य पदार्थ ग्रहण करके आकार में बड़ी हो जाती हैं तथा इस अवस्था को प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। यह अवस्था भी द्विगुणसूत्री होती है।
-
परिपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase) – प्राथमिक स्पर्मेटोसाईट में एक अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे द्विगुणित कोशिकाएँ बनती हैं जिन्हें द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट कहते हैं। प्रत्येक द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट में समसूत्री विभाजन होता है। अतः प्रत्येक प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट से 4 कोशिकाएँ बनती हैं, जिन्हें स्पर्मेटिड कहते हैं।
(ब) स्पर्मेटिड का कायान्तरण – स्पर्मेटिड में कुछ परिवर्तन होते हैं जिनके द्वारा शुक्राणु बनता है। ये परिवर्तन निम्न हैं –
-
न्यूक्लिअस ठोस हो जाता है। स्पर्मेटिड से RNA निकलने के कारण केंद्रक आगे की तरफ नुकीला हो जाता है, न्यूक्लिओलस (nucleolus) तथा प्रोटीन खत्म हो जाती है।
-
माइटोकॉण्ड्रिया (mitochondria) दूरस्थ सेन्ट्रीओल के चारों तरफ एकत्रित होकर एक आवरण बना लेता है जो शुक्राणुओं को ऊर्जा देता है। गॉल्जीकाय केंद्रक के अग्र भाग पर
एक्रोसोम में परिवर्तित हो जाता है।
-
दूरस्थ सेन्ट्रीओल एक्सोनीमा बनाता है।
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अधिकतर कोशिकाद्रव्य नष्ट हो जाता है, लेकिन इसका कुछ भाग शुक्राणु की पूँछ के चारों तरफ एक पर्त बना लेता है।
उपर्युक्त सभी क्रियाएँ सटली कोशिकाओं के जीवद्रव्य में होती हैं। परिपक्व शुक्राणु शुक्रजनक नलिका की गुहा में छोड़ दिए जाते हैं तथा वहाँ से निकलकर लगभग 18-24 घण्टे एपीडाइडीमस (epididymus) में रहते हैं।
प्रश्न 7.शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए।
उत्तर
शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में निम्न हॉर्मोन शामिल होते हैं –
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गोनेडोट्रॉपिन रिलीजिंग हार्मोन (GRH)
-
ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH)
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फॉलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन (FSH)
-
एन्ड्रोजेन (Androgen)
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इनहिबिन
प्रश्न 8.शुक्राणुजनन एवं वीर्यसेचन (स्परमिएशन) की परिभाषा लिखिए।
उत्तर
शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) – वृषण में शुक्राणुजन कोशिकाओं से शुक्राणुओं (sperms) के बनने की क्रिया शुक्राणुजनन कहलाती है। शुक्राणुजन कोशिकाओं से अचल स्पर्मेटिड्स का निर्माण तीन अवस्थाओं में होता है, इन्हें क्रमशः गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था तथा परिपक्वन प्रावस्था कहते हैं। अचल स्पर्मेटिड्स (Spermatids) के चल शुक्राणुओं (motile sperms) में बदलने की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन या शुक्राणु-कायान्तरण (spermiogenesis) कहते हैं।
वीर्यसेचन (Spermiation) – शुक्राणु कायान्तरण के पश्चात् मुक्त शुक्राणुओं के शीर्ष सली कोशिकाओं (sertoli cells) में अन्त:स्थापित (embedded) हो जाते हैं। शुक्रजनक नलिकाओं से शुक्राणुओं के मोचित (released) होने की प्रक्रिया को वीर्यसेचन (spermiation) कहते हैं।
प्रश्न 9.शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाइए।
उत्तर
प्रश्न 10.शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या हैं?
उत्तर
अधिवृषण (epididymis), शुक्रवाहक (vas deferens), शुक्राशय (seminal vesicle), पुरःस्थ ग्रन्थियों (prostate gland) तथा बल्बोयूरेथल ग्रन्थियों के स्राव शुक्राणुओं को गतिशील बनाए रखने तथा इन्हें परिपक्व बनाने में सहायक होते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से शुक्रीय प्रद्रव्य (seminal plasma) कहते हैं। शुक्राणु तथा शुक्रीय प्रदव्य मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं। शुक्रीय प्रद्रव्य में मुख्यतः फ्रक्टोस, कैल्सियम तथा एन्जाइम होते हैं।
प्रश्न 11.पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर
पुरुष की सहायक नलिकाओं के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
-
ये वृषण से शुक्राणुओं को मूत्र मार्ग द्वारा बाहर लाती हैं।
-
ये शुक्राणुओं का संग्रह करती हैं।
पुरुष की सहायक ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य निम्न हैं –
-
पुरस्थ द्रव का स्राव करना जो शुक्राणुओं को सक्रिय करता है।
-
काउपर्स ग्रन्थि चिपचिपा तरल स्रावित करती है जो योनि को चिकना बनाता है।
-
नर हार्मोन उत्पन्न करना।
प्रश्न 12.अण्डजनन क्या है? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या करें।
उत्तर
स्त्री के अण्डाशय के जनन एपीथिलियम की कोशिकाओं से अण्डाणुओं का निर्माण, अण्डजनन कहलाता है। अण्डजनन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –
(i) प्रोलीफेरेशन प्रावस्था (Proliferation Phase) – इस अवस्था की शुरुआत उस समय से होती है जब मादा फीट्स (foetus) माँ के गर्भ में लगभग 7 माह की होती है। जनन कोशिकाएँ विभाजित होकर अण्डाशय की गुहा में कोशिका गुच्छ बना देती हैं जिसे पुटिका (follicle) कहते हैं। पुटिका की एक कोशिका आकार में बड़ी हो जाती है तथा इसे ऊगोनियम (ooagonium) कहते हैं।
(ii) वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) – यह अवस्था भी उस समय पूरी हो जाती है जब मादा माँ के गर्भ में होती है। इस अवस्था में ऊगोनियम पोषण कोशिकाओं से भोजन एकत्रित करते समय आकार में बड़ी हो जाती है। उसे प्राथमिक ऊसाइट (primary 0ocyte) कहते हैं।
(iii) परिपक्व प्रावस्था (Maturation Phase) – यह क्रिया पूरे जनन काल (11-45) वर्ष में लगातार होती रहती है। प्राथमिक ऊसाइट में पहला अर्द्धसूत्री विभाजन होता है तथा दो असमान कोशिकाएँ बन जाती हैं। बड़ी कोशिका द्वितीयक ऊसाइट (secondary 0ocyte) कहलाती है, जबकि छोटी कोशिका को प्रथम ध्रुवीकाय (first polar body) कहते हैं। यह विभाजन अण्डोत्सर्ग से पहले होता है। दूसरा समसूत्री विभाजन अण्डवाहिनी में, अण्डोत्सर्ग के बाद होता है जिसके फलस्वरूप एक अण्डाणु तथा एक द्वितीयक ध्रुवीकाय (second polar body) बनती है। सभी ध्रुवीकाय नष्ट हो जाती हैं तथा इस सम्पूर्ण क्रिया में एक अण्डाणु प्राप्त होता है। ध्रुवीकार्य का निर्माण अण्डाणुओं को पोषण प्रदान करने के लिए होता है।
प्रश्न 13.अण्डाशय की अनुप्रस्थ काट (ट्रांसवर्स सेक्शन) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 14.ग्राफी पुटिका (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाएँ।
उत्तर
प्रश्न 15.निम्नलिखित के कार्य बताइए –
-
पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम)
-
गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम)
-
अग्र पिंडक (एक्रोसोम)
-
शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल)
-
झालर (फिम्ब्री)
उत्तर
-
पीत पिंड (कॉर्पस ल्यूटीयम) – यह प्रोजेस्ट्रॉन, एस्ट्रोजेन, रिलेक्सिन नामक हार्मोन का स्राव करता है जो गर्भाशय के अन्तः स्तर को बनाए रखते हैं।
-
गर्भाशय अन्तः स्तर (एन्डोमेट्रियम) – यह निषेचित अण्डे के प्रत्यारोपण तथा सगर्भता के लिए आवश्यक है। मासिक चक्र के दौरान इसमें परिवर्तन आता है। यह अपरा निर्माण में भी सहायक है।
-
अग्र पिंडक (एक्रोसोम) – इसमें उपस्थित एन्जाइम, निषेचन में सहायक होते हैं।
-
शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) – यह शुक्राणु के गमन में सहायता करती है।
-
झालर (फिम्ब्री) – यह अण्डोत्सर्ग के समय; अण्डाशय से निकले अण्डाणु के संग्रह में सहायता करती है।
प्रश्न 16.सही अथवा गलत कथनों को पहचानें –
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पुंजनों (एन्ड्रोजेन्स) का उत्पादन सटली कोशिकाओं द्वारा होता है। (सही/गलत)
-
शुक्राणु को सटली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है। (सही/गलत)
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लीडिंग कोशिकाएँ, अण्डाशय में पायी जाती हैं। (सही/गलत)
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लीडिंग कोशिकाएँ पूंजनों (एन्ड्रोजेन्स) को संश्लेषित करती हैं। (सही/गलत)
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अण्डजनन पीत पिंड (कॉपर्स ल्यूटियम) में सम्पन्न होता है। (सही/गलत)
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सगर्भता (प्रेगनेंसी के दौरान आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) बंद होता है। (सही/गलत)
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योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वर्जिनिटी) या यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है।(सही/गलत)
उत्तर
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गलत
-
सही
-
गलत
-
सही
-
गलत
-
सही
-
सही।
प्रश्न 17.आर्तव चक्र क्या है? आर्तव चक्र (मेन्स्ट्रअल साइकिल) का कौन-से हार्मोन नियमन करते हैं?
उत्तर
मादाओं (प्राइमेट्स) में अण्डाणु निर्माण 28 दिन के चक्र में होती है जिसे आर्तव चक्र अथवा मासिक चक्र या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं। प्रत्येक स्त्री में यह चक्र 12-13 वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो जाती है तथा 45-55 वर्ष की आयु में खत्म हो जाता है। यह चक्र अण्डाशय में अण्डाणु निर्माण को दर्शाता है तथा इसके प्रारम्भ होने के साथ ही मादा गर्भधारण में सक्षम हो जाती है। आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) का नियमन निम्न दो हामोंन करते हैं-(i) LH हार्मोन (ii) FSH हॉर्मोन।
प्रश्न 18.प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-से हॉर्मोन शामिल होते हैं?
उत्तर
गर्भकाल पूरा होने पर पूर्ण विकसित शिशु का माता के गर्भ से बाहर आना, प्रसव (पारट्यूरिशन) कहलाता है। इस दौरान गर्भाशयी तथा उदरीय संकुचन होते हैं व गर्भाशय फैल जाता है। जिससे गर्भस्थ शिशु बाहर आ जाता है। प्रसव का प्रेरण ऑक्सिटोसिन, एस्ट्रोजेन व कॉर्टिसोल नामक हार्मोन करते हैं।
प्रश्न 19.हमारे समाज में पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएँ कि यह क्यों सही नहीं है?
उत्तर
स्त्री में XX गुणसूत्र तथा पुरुष में XY गुणसूत्र पाये जाते हैं। जब स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का Y गुणसूत्र मिलते हैं तो पुत्र (XY) उत्पन्न होता है। इसके विपरीत स्त्री का X गुणसूत्र तथा पुरुष का X गुणसूत्र मिलने पर पुत्री (XX) उत्पन्न होती है। अतः उत्पन्न संतान का लिंग निर्धारण पुरुष के गुणसूत्र द्वारा होता है न कि स्त्री के गुणसूत्र से। चूंकि पुरुष में 50% X तथा 50% Y गुणसूत्र होते हैं। अतः पुरुष के गुणसूत्र का X या Y होना ही सन्तान के लिंग के लिए उत्तरदायी है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुत्रियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को देना सर्वदा गलत है।
प्रश्न 20.एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअण्ड यमज थे?
उत्तर
एक माह में मानव अण्डाशय से सिर्फ एक अण्डा मोचित होता है। समरूप जुड़वाँ बच्चों का जन्म होने पर भी एक माह में एक ही अण्डा मोचित हुआ होगा। द्विअण्ड यमज के सन्दर्भ में एक माह में दो अण्डे मोचित हुए होंगे।