भारतीयसंस्काराः

1. भारतीय संस्कार का वर्णन किस रूप में हुआ है ?

उत्तर- भारतीय संस्कृति अनूठी है। जन्म के पूर्व संस्कार से लेकर मृत्यु के बाद अन्त्येष्टि संस्कार का अनुपम उदाहरण संसार के अन्य देशों में नहीं है। यहाँ की संस्कृति की विशेषता है कि जीवन में यहाँ समय-समय पर संस्कार मनाये जाते हैं। आज संस्कार सीमित एवं व्यंग्य रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं । संस्कार व्यक्तित्व की रचना करता है। प्राचीन संस्कृति का ज्ञान संस्कार से ही उत्पन्न होता है । संस्कार मानव में क्रमशः परिमार्जन दोषों को दूर करने और गुणों के समावेश करने में योगदान करते हैं

2. भारतीय जीवन में संस्कार का क्या महत्व है ?

उत्तर- भारतीय जीवन में प्राचीन काल से ही संस्कार ने अपने महत्व को संजाये रखा हुआ है। यहाँ ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के सभी मुख्य अवसरों में वेदमंत्रों का पाठ, वरिष्ठों का आशीर्वाद, हवन एवं परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। संस्कार दोषों का परिमार्जन करता है। भारतीय जीवन दर्शन का महत्वपूर्ण स्रोत स्वरूप संस्कार है।

3. भारतीय संस्काराः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- भारतीय जीवन-दर्शन में चौल कर्म (मुंडन), उपनयन, विवाह आदि संस्कारों की प्रसिद्धि है। छात्रगण संस्कारों का अर्थ तथा उनके महत्त्व को जान सकें, इसलिए इस स्वतंत्र पाठ को रखा गया है जिससे उन्हें भारतीय संस्कृति के एक महत्त्वपूर्ण पक्ष का व्यवस्थित परिचय मिल सके ।

4. ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ के आधार पर ऋषियों की कल्पना का वर्णन करें।

उत्तर- ऋषियों की कल्पना थी कि जीवन के प्रायः सभी मुख्य अवसरों पर वेदमंत्रों का पाठ, बड़े लोगों का आशीर्वाद, हवन और परिवार के सदस्यों का सम्मेलन होना चाहिए। ऐसा करने से संस्कारों का पालन होता है।

5. संस्कार कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन ?

उत्तर- संस्कार सोलह प्रकार के हैं। इन सोलह संस्कारों को मुख्य पाँच प्रकारों में बाँटा गया है-तीन जन्म से पूर्ववाले संस्कार, छह शैशव संस्कार, पाँच शिक्षा-संबंधी संस्कार, एक विवाह के रूप में गृहस्थ संस्कार तथा एक मृत्यु के बाद

अंत्येष्टि संस्कार । कुल मिलाकर सोलह संस्कार हैं।

6. शिक्षासंस्कार का वर्णन करें।

उत्तर- शिक्षासंस्कारों में अक्षरारंभ, उपनयन, वेदारंभ, मुण्डनसंस्कार और समापवर्तन संस्कार आदि आते हैं। अक्षरारंभ में बच्चा अक्षर-लेखन और अंक-लेखन आरंभ करता है। उपनयनसंस्कार में गुरु के द्वारा शिष्य को अपने घर में लाना होता है। वहाँ शिष्य शिक्षा नियमों का पालन करते हुए अध्ययन करते थे । गुरु के घर में ही शिष्य वेदारंभ किया करते थे। केशान्त (मुण्डन) संस्कार में गुरु के घर में प्रथम क्षौरकर्म, अर्थात मुण्डन होता था। समापवर्तन संस्कार का उद्देश्य शिष्य का गुरु के घर से अलग होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना होता था।

7.विवाहसंस्कार का वर्णन करें।

उत्तर- विवाहसंस्कार से ही लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है, जिसमें अनेक प्रकार के कर्मकाण्ड होते हैं । उनमें वाग्दान, मण्डप-निर्माण, वधू के घर में वर पक्ष का स्वागत, वर-वधू का परस्पर निरीक्षण, कन्यादान, अग्निस्थापन, पाणिग्रहण, लाजाहोम, सिन्दूरदान इत्यादि कई कर्मकांड शामिल हैं। सभी क्षेत्रों में समान रूप से विवाहसंस्कार का आयोजन होता है।

8.’भारतीयसंस्काराः’ पाठ में लेखक का क्या संदेश है ?

उत्तर- ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ में लेखक का संदेश है कि भारतीयों के व्यक्तित्व का निर्माण संस्कारों से होता है। जीवन में सही समय पर संस्कारों का अनुष्ठान होना चाहिए । विदेशी भी भारतीय संस्कारों के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु है ।

9. ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ में लेखक का क्या विचार है ?

उत्तर- भारतीयसंस्कार पाठ में लेखक का विचार है कि मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण सुसंस्कार से ही होता है इसलिए विदेशी भी सुसंस्कारों के प्रति उन्मुख और जिज्ञासु है।

10. ‘भारतीयसंस्काराः’ पाठ में लेखक क्या शिक्षा देना चाहता है ?

उत्तर- लेखक इस पाठ से हमें यह शिक्षा देना चाहता है कि संस्कारों के पालन से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। संस्कारों का उचित समय पर पालन करने से गुण बढ़ते हैं और दोषों का नाश होता है। भारतीय संस्कृति की विशेषता संस्कारों के कारण ही है । लेखक हमें सुसंस्कारों का पालन करने का संदेश देते हैं।

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