प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)

प्‍यारे नन्‍हें बेटे को (pyare nanhe bete saransh)

प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)
प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)
कवि- विनोद कुमार शुक्‍ल
लेखक-परिचय
जन्म : 1 जनवरी 1937
जन्मस्थान : राजनांदगाँव (छतीसगढ़)
वृति : इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर
सम्मान : रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान(1997), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999)
कृतियाँ : लगभग जयहिंद (प्रथम कविता संग्रह), वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह (1981), सबकुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2001), नौकर का कमीज, पेड़ पर कमरा
प्यारे नन्हें बेटे को
कंधे पर बैठा
मैं दादा से बड़ा हो गया
सुनना यह ।
प्यारी बिटिया से पूछंगा
बतलाओ आसपास
कहाँ-कहाँ लोहा है
चिमटा,करकुल सिगड़ी
समसी दरवाजे की साँकल कब्जे
खिला दरवाजे में फँसा हआ
वह बोलेगी झटपट।
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प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से ली गई है जिसमें कवि ने अपने नन्हें बेटे को कंधे पर बैठाया है। बेटा कहता है कि वह अब दादा से भी बड़ा हो गया है।
कवि प्यारी बिटिया से पूछता है कि बताओ हमारे आसपास लोहा कहाँ है ? बिटिया झटपट बोलेगी लोहा चिमटा, करछुल, लोहे की कड़ाही, सँड़सी, दरवाजे की जंजीर और दरवाजे में लगे कब्जे में है लोहा दरवाजे में लगी मोटी कांटी में भी है।
रुककर वह फिर याद करेगी।
एक तार लोहे का लंबा
लकड़ी के दो खंबों पर
तना बधा हआ बाहर
सुख रही जिस पर
भैय्या की गीली चडडी !
फिर-एक सैफटी पिन साइकिल पूरी 

आसपास वह ध्यान करेगी 
सोचेगी
दुबली पतली पर
हरकत में तेजी कि
कितनी जल्दी
जान जाए वह
आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है 
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमे कवि अपनी प्यारी बेटी से पूछता कि आसपास लोहा कहाँ है और वह कुछ सोचकर जवाब देती है लकड़ी के दो खंभो पर तना बंधा तार लोहे का है जिसपर नन्हें भाई के गीले कपड़े सूख रहे हैं। इसके अलावा सेफ़्टी पिन और पूरी साईकिल लोहे की बनी है।
पुनः वह अपने आसपास ध्यान करेगी सोचेगी। वह शरीर से भले ही दुबली पतली हो लेकिन वह सजग है। वह बहुत जल्द जान लेती है कि आसपास लोहा कहाँ है।
मैं याद दिलाऊँगा
जैसे सिखलाऊँगा बिटिया को
फावड़ा, कुदाली
टँगिया, बसुला, खुरपी
पास खड़ी बैलगाड़ी के
चक्‍के का पट्टा,
बैलों की गले में
काँसे की घंटी के अंदर
लोहे की गोली।
पत्नी याद दिलाएगी
जैसे समझाएगी बिटिया को
बाल्टी सामने कुएं में लगी लोहे की घिर्री
छत्ते की काड़ी-डंडी और घमेला
हँसिया चाकू और
भिलाई बलाडिला
जगह जगह लोहे के टीले 

प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)

प्रस्तत पंक्तियाँ विनोद कमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी को याद दिलाता है कि फावड़ा, कुदाल, टंगीया, बसुला और खुरपी सब लोहा है। पास खड़ी बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा और बैलों के गले में कांसे की घंटी के अंदर लोहे की गोली है।
पुनः लेखक की पत्नी याद दिलाती है जैसे अपनी प्यारी बेटी को समझाती हो कि बाल्टी और सामने के कुएं में लगी लोहे की घिरनी, छते की काड़ी, डंडी और घमेला, हंसियाँ, चाकू सब लोहा है। भिलाई और बलाडिला में जगह-जगह लोहे के टीले है।
इसी तरह
घर भर मिलकर
धीरे धीरे सोच सोचकर
एक साथ ढूँढेंगे
कहाँ-कहाँ लोहा है-
इस घटना से
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी से कहते हैं कि घर के सभी लोग मिलकर सोचेंगे और एक साथ ढूँढ़ेंगे कि लोहा कहाँ-कहाँ है। कवि को महसुस होता है लोहा कदम-कदम पर व्याप्त है। कवि महसूस करता है कि हर वो व्यक्ति जो परिश्रम के सहारे अपनी जीविका चलता है लोहा है।
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली, लोहा !
जल्दी जल्दी मेरे कंधे से
ऊंचा हो लड़का
लड़की का हो दुल्हा प्यारा
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली लोहा 

प्‍यारे नन्‍हें बेटे को सारांश( pyare nanhe bete saransh)

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल दवारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमे कवि अपनी प्यारी बेटी कहते हैं कि वो प्रत्येक औरत जो अत्याचार सह रही है जो दुखों का बोझ उठा रही है लोहा है।
प्यारी बिटिया का पिता सोचता है कि उसका बेटा जल्दी से बड़ा हो जाए और उसकी लड़की को प्यारा सा दूल्हा मिल जाए, जिसके साथ उसकी शादी हो सके। इस प्रकार कवि महसूस करता है कि हर वो व्यक्ति जो परिश्रम के सहारे अपनी जीविका चलता है लोहा है। जो सतायी जा रही है लोहा है।

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