नागरी लिपि

नागरी लिपि

Whatsapp Group
youtube

 

प्रश्न 1. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है ?
उत्तर-
करीब दो सदी पहले पहली बार इस लिपि के टाइप बने और इसमें पुस्तकें छपने लगीं, इसलिए इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई है।

 

 

 प्रश्न 2.
देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं ?
उत्तर-
देवनागरी लिपि में नेपाल की नेपाली (खसकुरा) व नेवारी भाषाएँ मराठी भाषा की लिपि तथा संस्कृत एवं हिन्दी की लिपि देवनागरी है।

 

 

 प्रश्न 3. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है।
उत्तर-
लेखक ने गुजराती और बंगला लिपि से देवनागरी का संबंध बताया है।

 प्रश्न 4. नंदी नागरी किसे कहते हैं ? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है ?
उत्तर-
विद्वानों का यह भी मत है कि वाकाटकों और राष्ट्रकूटों के समय के महाराष्ट्र के प्रसिद्ध नंदिनगर (आधुनिक नांदेड़) की लिपि होने के कारण इसका नाम नदिनागरी पड़ा।

दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए नागरी लिपि का व्यवहार होता था। दरअसल, दक्षिणभारत की यह नागरी लिपि नंदिनागरी कहलाती थी। कोंकण के शिलाहार, मान्यखेट के राष्ट्रकूट, देवगिरि के यादव तथा विजयनगर के शासकों के लेख नंदिनागरी लिपि में हैं। पहले-पहल । विजयनगर के राजाओं के लेखों की लिपि को ही नंदिनागरी नाम दिया गया था।

 

 

प्रश्न 5.
नागरी लिपि में आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं ? उनके विवरण दें।
उत्तर-
नागरी लिपि के आरंभिक लेख हमें दक्षिण भारत से ही मिले हैं। राजराजा व राजेन्द्र जैसे प्रतापी चोल राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर देखने को मिलते हैं। दक्षिण भारत में नागरी लिपि के लेख आठवीं सदी से मिलने लग जाते हैं और उत्तर भारत में नौवीं सदी से।

 

नागरी लिपि

 प्रश्न 6. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है ?
उत्तर-
मुप्त काल की ब्राह्मी लिपी तथा बाद की सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोन हैं। लेकिन नागरी लिपि की मुख्य पहचान यह है कि इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरें बन जाती हैं और ये शिरोरेखाएँ उतनी ही लंबी रहती हैं जितनी कि अक्षरों की चौड़ाई होती है।

 

 

 प्रश्न 7. उत्तर भारत के किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
उत्तर भारत के इस्लामी शासन की नींव डालनेवाली महमूद गजनवी के लाहौर के टकसाल में ढाले गए चाँदी के सिक्कों पर भी हम नागरी लिपि के शब्द देखते हैं। मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, अकबर आदि शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी शब्द खुदवाए थे।

 

 

 प्रश्न 8. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं ? लेखक इस संबंध में क्या बताता है ?
उत्तर-
पादताडितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र (पटना) को नगर कहते थे। हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को ‘नागर शैली’ कहते हैं। अतः ‘नागर’ या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। असंभव नहीं कि यह बड़ा नगर प्राचीन पटना ही हो। चंद्रगुप्त (द्वितीय) “विक्रमादित्य’ का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ भी कहा जाता होगा। देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया होगा।

 

 

प्रश्न 9. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है ? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है ?
उत्तर-
इतना ध्रुवसत्य है कि यह नागरी शब्द किसी नगर अर्थात् किसी बड़े शहर से संबंधित है। ‘पादतादितकम्’ नामक एक नाटक से जानकारी मिलती है कि पाटलिपुत्र अर्थात् पटना को नगर नाम से पुकारते थे। अतः हम यह भी जानते हैं कि स्थापत्य की उत्तर भारत की एक विशेष शैली को नागर शैली कहते हैं। अतः नागर या नागरी शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंध रखता है। विद्वानों के अनुसार उत्तर भारत का यह बड़ा नगर निश्चित रूप से पटना ही होगा। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम देव था। इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को देवनगर भी कहा जाता था देवनगर की लिपि होने से उत्तर भारत की प्रमुख लिपि को बाद में देवनागरी नाम दिया गया था।

 

नागरी लिपि

 प्रश्न 10. नागरी लिपि कब तक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर-
ईसा की 8वीं-11वीं सदियों में हम नागरी लिपि को पूरे देश में व्याप्त देखते हैं। उस समय यह एक सार्वदेशिक लिपि थी।

 

 

प्रश्न 11.
नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है ? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है ?
उत्तर-
नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाएँ भी जन्म लेती हैं। आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिंदी साहित्य मिलने लग जाता है। इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ, मराठी, बंगला आदि जन्म ले रही थीं।

 

 

प्रश्न 12. गुर्जर प्रतीहार कौन थे?
उत्तर-
अनेक विद्वानों का मत है कि ये गुर्जर-प्रतीहार बाहर से भारत आए थे। ईसा की आठवीं सदी की पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में इन्होंने अपना शासन खड़ा किया और बाद में कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया था। मिहिर भोज, महेन्द्रपाल आदि प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए। मिहिर भोज (1840-81) ई. की ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि (संस्कृत भाषा) में है।

 

 

 प्रश्न 13. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
निबंध के आधार पर कालक्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण इस प्रकार मिलते हैं – ग्यारहवीं सदी में राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागर अक्षर देखने को मिलते हैं। बारहवीं सदी के केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में अकित हैं। दक्षिण से प्राप्त वरगुण का पलयम ताम्रपत्र भी नागरी लिपि में नौवीं सदी की है। एक हजार ई. के आसपास मालवा नगर में नागर लिपि का इस्तेमाल होता था।

विक्रमादित्य के समय पटना में देवनागरी का प्रयोग मिलता है। ईसा की आठवीं से ग्यारहवीं सदियों में नागरी लिपि पूरे भारत में व्याप्त थी। आठवीं सदी में दोहाकोश की तिब्बत से जो हस्तलिपि मिली है, वह नागरी लिपि में है। पाँच सौ चौअन ई० में राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में प्राप्त हुआ है। 850 ई. में जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार संग्रह की रचना मिलती है जो नागरी लिपि में है।

नागरी लिपि
youtube channel
Whatsapp Channel
Telegram channel
Scroll to Top