मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव

प्रश्न 1.जीवाणुओं को नग्न आँखों द्वारा नहीं देखा जा सकता, परन्तु सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। यदि आपको अपने घर से अपनी जीव विज्ञान प्रयोगशाला तक एक नमूना ले जाना हो और सूक्ष्मदर्शी की सहायता से इस नमूने से सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति को प्रदर्शित करना हो तो किस प्रकार का नमूना आप अपने साथ ले जाएँगे और क्यों?
उत्तर
हम अपने घर में आसानी से उपलब्ध होने वाले दही को प्रयोगशाला में नमूने के रूप में ले जा सकते हैं व सूक्ष्मजीव की उपस्थिति को प्रदर्शित कर सकते हैं क्योकि दूध का दही में परिवर्तन या किण्वन लैक्टोबैसिलस जीवाणु की सहायता से होता है। इसलिए दही में ये सूक्ष्मजीव उपस्थित होते हैं।

Whatsapp Group
youtube

 

प्रश्न 2.उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव गैसों का निष्कासन करते हैं; उदाहरण द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर
चावल, आटा, दाल का बना नरम-नरम आटा जिसका प्रयोग डोसा व इडली बनाने में होता है। जीवाणु द्वारा किण्वित होता है। इस आटे का फूला हुआ दिखना CO2 के उत्पादन के कारण होता है।
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare img-1
इसी तरह ब्रैड का सना हुआ आटा यीस्ट द्वारा किण्वित होता है।

 

प्रश्न 3.किस भोजन (आहार) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया मिलते हैं? इनके कुछ लाभप्रद उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया लैक्टिक अम्ल उत्पन्न करके दुध को दही में बदल देता है। यह दूध की शर्करा लैक्टोज को लैक्टिक एसिड में बदलता है। लैक्टिक अम्ल दूध की प्रोटीन केसीन को जमाकर दही में परिवर्तित कर देता है। यह जीवाणु दूध से लैक्टोज को निकाल देता है परंतु बहुत-से व्यक्तियों को बिना लैक्टोज के दूध पीने पर एलर्जी होती है। ये जीवाणु महत्त्वपूर्ण विटामिन B12 उत्पन्न करते हैं तथा ये सड़ाने वाले जीवाणु व हानिकारक सूक्ष्मजीवों की वृद्धि को रोकते हैं।

 

प्रश्न 4.कुछ पारम्परिक भारतीय आहार जो गेहूं, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से बनते हैं और उनमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग शामिल हो, उनके नाम बताइए।
उत्तर
गेहूं, चावल तथा चना (अथवा उनके उत्पाद) से सूक्ष्मजीवों का प्रयोग करके भटूरा (गेहुँ से), डोसा व इडली (चावल व उड़द की दाल) इत्यादि से बनते हैं।

प्रश्न 5.हानिप्रद जीवाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले रोगों के नियन्त्रण में किस प्रकार सूक्ष्मजीव महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं?
उत्तर
प्रतिजैविक (antibiotic) सूक्ष्मजीवधारियों (microbes) के उपापचयी व्युत्पन्न होते हैं। ये किसी अन्य सूक्ष्म जीवधारी जैसे-जीवाणु के लिए हानिकारक अथवा निरोधी होते हैं। प्रतिजैविक, प्रतियोगिता निरोध द्वारा रोगों को ठीक करते हैं। अधिकतर प्रतिजैविक बैक्टीरिया से ही प्राप्त होते हैं। प्रतिजैविक जैसे- पेनिसिलिन (Penicillin) का उत्पादन सूक्ष्मजीवों (कवक) द्वारा किया जाता है। यह प्रतिजैविक हानिकारक रोगों को उत्पन्न करने वाले सूक्ष्मजीवों को मारने के काम आते हैं। प्रतिजैविक संक्रमित रोग जैसे- डिफ्थीरिया, काली खाँसी तथा न्यूमोनिया की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पेनिसिलिन सर्वप्रथम प्राप्त प्रतिजैविक है। इसकी खोज एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने की थी।

 

प्रश्न 6.किन्हीं दो कवक प्रजातियों के नाम लिखिए, जिनका प्रयोग प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक्स) के उत्पादन में किया जाता है।
उत्तर

  1. रैमाइसिन को म्यूकर रैमोनियास नामक कवक से।

  2. पेनिसिलिन को पेनिसिलियम नोटेटम नामक कवक से प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 7.वाहित मल से आप क्या समझते हैं? वाहित मल हमारे लिए किस प्रकार से हानिप्रद है?
उत्तर
प्रतिदिन नगर व शहरों से व्यर्थ जल की बहुत बड़ी मात्रा जनित होती है। इस व्यर्थ जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल-मूत्र है। नगर में इस व्यर्थ जल को वाहित मल (सीवेज) कहते हैं।

  1. वाहित मल (सीवेज) में कार्बनिक पदार्थों की बड़ी मात्रा तथा सूक्ष्मजीव पाये जाते हैं, जो अधिकांशतः रोगजनकीय होते हैं।

  2. वाहित मल में ऑक्सीजन की कमी होती है। इसलिए कार्बनिक पदार्थों का विघटन भी नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप वाहित मल वातावरण को प्रदूषित करते हैं।

प्रश्न 8.प्राथमिक तथा द्वितीयक वाहित मल उपचार के बीच पाए जाने वाले मुख्य अन्तर कौन-से हैं?
उत्तर
वाहित मल का उपचार वाहित मल संयन्त्र में किया जाता है जिससे यह प्रदूषण मुक्त हो सके। यह उपचार दो चरणों में सम्पन्न होता है –

1. प्राथमिक उपचार (Primary treatment) – प्राथमिक उपचार में मुख्यत: बड़े-छोटे कणों को भौतिक क्रियाओं; जैसे- अवसादन (sedimentation), निस्यंदन (filtration), प्लवन आदि द्वारा अलग किया जाता है। सबसे पहले तैरते हुए कूड़े-करकट को नियंदन द्वारा हटा दिया जाता है। इसके बाद ग्रिट (grit) मृदा तथा छोटे कणों को अवसादन द्वारा पृथक् किया जाता है। बारीक कण प्राथमिक स्लज (primary sludge) के रूप में नीचे बैठ जाते हैं और प्लावी बहिःस्राव (supernatant effluent) का निर्माण होता है। बहि:स्राव को प्राथमिक उपचार टैंक से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।

2. द्वितीयक उपचार (Secondary treatment) – द्वितीयक उपचार में सूक्ष्मजीवधारियों का उपयोग किया जाता है। जैसे-ऑक्सीकरण ताल एक उथला जलाशय होता है जिसमें वाहित मल एकत्रित किया जाता है। इसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक होने के कारण शैवाल और जीवाणुओं की अच्छी वृद्धि होने लगती है।

जीवाणु अपघटन करते हैं और शैवाल उनसे उत्पन्न कार्बन डाइ ऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण में उपयोग करते हैं। प्रकाश संश्लेषण में विमोचित ऑक्सीजन जल को दूषित होने से बचाती है। इस प्रकार ऑक्सीकरण ताल, शैवाल और जीवाणुओं के बीच सहजीविता का उदाहरण है। ऑक्सीजन ताल में होने वाली क्रियाओं द्वारा संक्रामक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं और कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के पश्चात् केवल नुकसान न देने वाले पदार्थ ही रह जाते हैं। द्वितीयक उपचार के पश्चात् प्लान्ट से बहि:स्राव सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे-नदियों, झरनों आदि में छोड़ दिया जाता है अथवा तृतीयक उपचार हेतु रासायनिक क्रियाविधियों द्वारा इससे नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस लवणों को पृथक् करने के पश्चात् बहि:स्राव को जलाशयों में मुक्त कर दिया जाती है।

 

प्रश्न 9.क्या सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है? यदि हाँ, तो किस प्रकार से? इस पर विचार करें।
उत्तर
हाँ, सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ऊर्जा के स्रोतों के रूप में भी किया जा सकता है। बायोगैस एक प्रकार से गैसों (मुख्यतः मीथेन) का मिश्रण है जो सूक्ष्मजीवी सक्रियता द्वारा उत्पन्न होती है। गोबर में पादपों के सेलुलोजीय व्युत्पन्न प्रचुर मात्रा में होते हैं। अतः इसका प्रयोग बायोगैस को पैदा करने में किया जाता है। गोबर में मुख्य रूप से मिथेनोबैक्टीरियम पाया जाता है, जो मीथेन का उत्पादन करते हैं। बायोगैस (गोबर गैस) संयन्त्र का उपयोग मुख्य रूप से गाँवों में खाना बनाने एवं प्रकाश उत्पन्न करने में किया जाता है।

 

प्रश्न 10.सूक्ष्मजीवों का प्रयोग रसायन उर्वरकों तथा पीड़कनाशियों के प्रयोग को कम करने के लिए भी किया जा सकता है। यह किस प्रकार सम्पन्न होगा? व्याख्या कीजिए। (2014, 15, 16, 17, 18)
उत्तर
जैव नियन्त्रण (Bio Control) – पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियन्त्रण के लिए जैववैज्ञानिक विधि (biological methods) का प्रयोग ही जैव नियन्त्रण (bio control) है। आधुनिक समाज में ये समस्याएँ रसायनों, कीटनाशियों तथा पीड़कनाशियों के बढ़ते हुए प्रयोगों की सहायता से नियन्त्रित की जाती हैं। ये रसायन मनुष्यों तथा जीव-जन्तुओं के लिए अत्यन्त ही विषैले तथा हानिकारक होते हैं। विषाक्त रसायन खाद्य श्रृंखला के माध्यम से जीवधारियों के शरीर में पहुंचते हैं। ये पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं।

जैव उर्वरक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as biofertilizers) – जैव उर्वरकों का मुख्य स्रोत जीवाणु, कवक तथा सायनोबैक्टीरिया होते हैं। लेग्यूमिनस पादपों की जड़ों पर उपस्थित ग्रंथियों का निर्माण राइजोबियम (Rhizobium) जीवाणु के सहजीवी सम्बन्ध द्वारा होता है। ये जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिरीकृत कर कार्बनिक रूप में परिवर्तित करते हैं। मृदा में मुक्तावस्था में रहने वाले अन्य जीवाणु जैसे-एजोस्पाइरिलम (Azospirilum) तथा एजोटोबैक्टर (Azotobacter) भी वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर मृदा में नाइट्रोजन अवयव की मात्रा को बढ़ाते हैं।

कवक अनेक पादपों के साथ सहजीवी सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस सम्बन्ध को माईकोराइजा (Mycorrhiza) कहते हैं। ग्लोमस (Glomus) जीनस के बहुत-से कवक सदस्य माइकोराइजा बनाते हैं। इस सम्बन्ध में कवकीय सहजीवी मृदा से जल एवं पोषक तत्वों का अवशोषण कर पादपों को प्रदान करते हैं और पादपों से भोजन प्राप्त करते हैं।
सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) स्वपोषित सूक्ष्मजीव हैं जो जलीय तथा स्थलीय वायुमण्डल में विस्तृत रूप से पाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों के रूप में स्थिर करके मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। जैसे-ऐनाबीना (Anabaena), नॉस्टॉक (Nostoc) आदि। धान के खेत में सायनोबैक्टीरिया महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक की भूमिका निभाते हैं।

पीड़क तथा रोगों का जैव नियन्त्रण (Biological Control of Pests & Diseases) – जैव नियन्त्रण विधि से विषाक्त रसायन तथा पीड़कनाशियों पर हमारी निर्भरता को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बैक्टीरिया बैसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis) को प्रयोग बटरफ्लाई कैटरपिलर नियन्त्रण में किया जाता है। पिछले दशक में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की सहायता से वैज्ञानिक बैसीलस थूरिनजिएन्सिस टॉक्सिन जीन को पादपों में पहुँचा सके हैं। ऐसे पादप पीड़के द्वारा किए गए आक्रमण के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। Bt-कॉटन इसका एक उदाहरण है जिसे हमारे देश के कुछ राज्यों में उगाया जाता है। ड्रेगनफ्लाई (dragonflies), मच्छर और ऐफिड्स (aphids) आदि Bt-कॉटन को क्षति नहीं पहुंचा पाते।

जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण के तहत कवक ट्राइकोडर्मा (Trichoderma) का उपयोग पादप रोगों के उपचार में किया जाता है। यह बहुत-से पादप रोगजनकों का प्रभावशील जैव नियन्त्रण कारक है। बेक्यूलोवायरसिस (Baculoviruses) ऐसे रोगजनक हैं जो कीटों तथा सन्धिपादों (आर्थोपोड्स) पर हमला करते हैं। अधिकांश बैक्यूलोवायरसिस जो जैव वैज्ञानिक नियन्त्रण कारकों की तरह प्रयोग किए जाते हैं, वे न्यूक्लिओपॉलिहीड्रोवायरस (nucleopolyhedrovirus) प्रजाति के अन्तर्गत आते हैं। यह विषाणु प्रजाति-विशेष; सँकरे स्पेक्ट्रम कीटनाशीय उपचारों के लिए अति उत्तम मानी जाती हैं।

 

प्रश्न 11.जल के तीन नमूने लो, एक-नदी का जल, दूसरा-अनुपचारित वाहित मल जले तथा तीसरा-वाहित मल उपचार संयन्त्र से निकला द्वितीयक बहिःस्राव; इन तीनों नमूनों पर ‘अ’, ‘ब’, ‘स’ के लेबल लगाओ। इस बारे में प्रयोगशाला कर्मचारी को पता नहीं है कि कौन-सा क्या है? इन तीनों नमूनों ‘अ’, ‘ब’, ‘स’ का बी०ओ०डी० रिकॉर्ड किया गया जो क्रमशः 20 mg/L, 8 mg/L तथा 400 mg/L निकाला। इन नमूनों में कौन-सा सबसे अधिक प्रदूषित नमूना है? इस तथ्य को सामने रखते हुए कि नदी का जल अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ है। क्या आप सही लेबल का प्रयोग कर सकते हैं?
उत्तर
BOD (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) ऑक्सीजन की उस मात्रा को संदर्भित करता है जो जीवाणु द्वारा एक लीटर पानी में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की खपत निश्चित समय-काल में करता है। तथा उन्हें ऑक्सीकृत करता है।

अनुपचारित वाहित मल जल सबसे अधिक प्रदूषित होता है क्योंकि इसमें मनुष्य का मल-मूत्र, कपड़े की धुलाई से उत्पन्न जल, औद्योगिक तथा कृषि अपशिष्ट आदि उपस्थित रहता है, इसलिए इस जल का BOD सबसे अधिक होगा। नदी का जल साफ होता है क्योंकि इसमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बहुत कम होती है, अत: इस जल को BOD सबसे कम होगा। इसलिए ये निम्नलिखित प्रकार से लेबल किए जा सकते हैं –
UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 10 Microbes in Human Welfare img-2

प्रश्न 12.
उन सूक्ष्मजीवों के नाम बताओ जिनसे साइक्लोस्पोरिन-ए (प्रतिरक्षा निषेधात्मक औषधि) तथा स्टैटिन (रक्त कोलिस्ट्रॉल लघुकरण कारक) को प्राप्त किया जाता है।
उत्तर

  1. साइक्लोस्पोरिन-ए का उत्पादन ट्राइकोडर्मा पॉलोस्पोरम नामक कवक से किया जाता है।

  2. स्टैटिन (लोभास्टैटिन) का उत्पादन मोनॉस्कस परफ्यूरीअस से किया जाता है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में सूक्ष्मजीवियों की भूमिका का पता लगाएँ तथा अपने अध्यापक से इनके विषय में विचार-विमर्श करें –

  1. एकल कोशिका प्रोटीन (SCP)

  2. मृदा।

उत्तर
1. एकल कोशिका प्रोटीन (Single Cell Protein) – शैवाल (algae); जैसे- स्पाइरुलिना, क्लोरेला तथा सिनेडेस्मस एवं कवक (fungi); जैसे- यीस्ट सैकेरोमाइसीटी, टॉरुलाप्सिस तथा कैंडिडा का उपयोग एकल कोशिका प्रोटीन के रूप में किया जा रहा है।

2. मृदा (Soil) – यह एक अकेला निवास स्थल है जिसमें विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव तथा प्राणिजात उपस्थित रहते हैं और उच्च पादपों को यांत्रिक सहायता एवं पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं, जिस पर मनुष्य की सभ्यता आधारित है। पौधे के विकास पर राइजोस्फीयर सूक्ष्मजीवों का लाभदायक प्रभाव पड़ता है। राइजोस्फीयर में सूक्ष्मजीवों द्वारा प्रतिक्रिया के फलस्वरूप CO2 तथा कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है जो पौधे में अकार्बनिक पोषकों को घुलाते हैं। कुछ राइजोस्फीयर सूक्ष्मजीव वृद्धि उत्तेजक पदार्थ भी उत्पादित करते हैं। जीवाणु, कवक, सायनोबैक्टीरिया आदि जैव उर्वरक मृदा की पोषक
गुणवत्ता को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित को घटते क्रम में मानव समाज कल्याण के प्रति उनके महत्त्व के अनुसार संयोजित करें; महत्त्वपूर्ण पदार्थ को पहले रखते हुए कारणों सहित अपना उत्तर लिखें- बायोगैस, सिट्रिक एसिड, पेनिसिलिन तथा दही
उत्तर

  1. पेनिसिलिन – यह एक प्रतिजैविक है। इसका उपयोग बहुत-से जीवाणु-जनित रोगों; जैसे- सिफलिस, गठिया, डिफ्थीरिया, फेफड़े का संक्रमण आदि के उपचार में किया जाता है।

  2. बायोगैस – इसका उपयोग खाना बनाने एवं प्रकाश पैदा करने में किया जाता है। गोबर गैस निर्माण के उपरान्त उपयोग की गई गोबर की स्लरी का प्रयोग उर्वरक के रूप में किया जाता है।

  3. सिट्रिक एसिड – इसका उपयोग बहुत-से भोज्य पदार्थों के परिरक्षण के रूप में किया जाता है। सिट्रिक अम्ल का उत्पादन ऐस्परजिलस नाइजर नामक कवक द्वारा किया जाता है।

  4. दही – यह एक दुग्ध उत्पाद है जिसका उपयोग हम प्रतिदिन करते हैं। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।

प्रश्न 15.
जैव- उर्वरक किस प्रकार से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं?
उत्तर
जैव-उर्वरक का निर्माण विभिन्न प्रकार के जीवों; जैसे- नील- हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया, जीवाणु एवं कवक से होता है।
सायनोबैक्टीरिया की कई जातियाँ; जैसे- नॉस्टॉक, ऐनाबीना, टोलीप्रोथ्रिक्स आदि वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस को ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन यौगिकों में परिणत कर देती हैं। इनमें हेट्रोसिस्ट नामक विशेष कोशिका पायी जाती है, जो नाइट्रोजन-स्थिरीकरण में मुख्य भूमिका निभाती हैं तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं।

सहजीवी जीवाणु; जैसे- राइजोबियम मटर कुल के पौधों की जड़ों में ग्रंथियाँ बनाते हैं और वायुमण्डल से नाइट्रोजन गैस ग्रहण कर इसे नाइट्रोजन के यौगिकों के रूप में परिणत करते हैं। इससे मृदा की पोषक शक्ति की वृद्धि होती है।
भूमि में पाए जाने वाले मुक्तजीवी जीवाणु; जैसे-एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम भी वायुमण्डल के नाइट्रोजन को स्थिरीकृत करते हैं।
माइकोराइजा के कवक पौधों को पोषक तत्त्व प्रदान करते हैं। कवक के तन्तु मृदा से फॉस्फोरस तथा अन्य पोषकों को ग्रहण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं।

youtube channel
Whatsapp Channel
Telegram channel

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top