प्रश्न 1. हरचरना कौन है ? उसकी क्या पहचान है ?
उत्तर – हरचरना ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता में एक आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है। वह एक स्कूल जानेवाला बदहाल गरीब लड़का है। राष्ट्रीय त्योहार के दिन झंडा फहराए जाने के जलसे में राष्ट्रगान दुहराता है । हरचरना की पहचान ‘फटा सुथन्ना’ पहने एक गरीब छात्र के रूप में है ।
प्रश्न 2. हरचरना ‘हरिचरण’ का तद्भव रूप है। कवि ने कविता में ‘हरचरना’ को रखा है, हरिचरण’ को नहीं; क्यों ?
उत्तर- ‘हरचरना’ हरिचरण का तद्भव रूप है। कवि रघुवीर सहाय ने अपनी कविता ‘अधिनायक’ में ‘हरचरना’ शब्द का प्रयोग किया है, ‘हरिचरण’ नहीं । यहाँ कवि ने लोक संस्कृति की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए ठेस तद्भव शब्द का प्रयोग किया है। इससे कविता की लोकप्रियता बढ़ती है। कविता में लोच एवं उसे सरल बनाने हेतु ठेठ तद्भव शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त हरचरना उपेक्षित गरीब बालक का प्रतीक है ।
प्रश्न 3. अधिनायक कौन है ? उसकी क्या पहचान है ?
उत्तर – कवि के अनुसार ‘अधिनायक’ आज बदले हुए तानाशाह हैं। वे राजसी ठाट-बाट में रहते हैं। उनका रोब-दाब एवं तामझाम भड़कीला है। वे ही अपना गुणगान आम जनता से करवाते हैं। आज उनकी पहचान जनप्रतिनिधि की जगह ‘अधिनायक’ अर्थात् तानाशाह की पहचान बन गई है।
प्रश्न 4. “जय जय कराना” का क्या अर्थ है ?
उत्तर – कवि के अनुसार सत्ता पक्ष के जन प्रतिनिधियों ने आज अधिनायक का रूप ले लिया हैं। वे ही आज राष्ट्रीय गान के समय आम आदमी को जुटाकर अपनी जय-जयकार मनवाते हैं । माला पहनते हैं और जन-जन के प्रतिनिधि होकर अपने को जनता का भाग्य विधाता मानते हैं ।
प्रश्न 5. ‘डरा हुआ मन बेमन जिसका / बाजा रोज बजाता है । यहाँ ‘बेमन’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – कविता की इस पंक्ति में ‘बेमन’ का अर्थ बिना रूचि’ से है । आज राष्ट्रीय गान गाने में आम जनता की कोई रूचि नहीं है । वे बिना मन से एक चली आती हुई परम्परा का निर्वहन करते हैं ।
प्रश्न 6. हरचरना अधिनायक के गुण क्यों गाता है ? उसके डर के क्या कारण हैं ?
उत्तर- ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता में ‘हरचरना’ एक गरीब विद्यार्थी है। राष्ट्रीय गान वह गाता है, लेकिन उसे यह पता नहीं कि वह राष्ट्रीय गान क्यों गा रहा है । इस गान को वह एक सामान्य प्रक्रिया मानकर गाता है। एक गरीब व्यक्ति के लिए राष्ट्रीय गान का क्या महत्व ! देशभक्ति, आजादी आदि का अर्थ वह नहीं समझ पाता । उसकी आजादी और देशभक्ति का दुश्मन तो वे व्यक्ति हैं जो गरीबों की कमाई पर आज शासक बने हुए हैं । वे तानाशाह बन गये हैं। आम जनता उनसे डरती है। कोई उनके खिलाफ मुँह नहीं खोलता । हरचरना के डरने का कारण हैं । मुँह खोलेगा तो उसे दंड भोगना होगा । । ।
प्रश्न 7. ‘बाजा बजाना’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर – कविता ‘अधिनायक’ में कवि रघुवीर सहाय ने ‘बाजा बजाना’ शब्द का प्रयोग गुणगान’ करने के अर्थ में किया है। आम जनता जो गरीब एवं लाचार है, बाहुबली राजनेताओं के भय से उनके गुणगान में बेमन से लगी रहती है । कवि ने आधुनिक राजनेताओं पर कठोर व्यंग्य किया है । –
प्रश्न 8. “कौन-कौन है वह जन-गण-मन अधिनायक वह महाबली” कवि यहाँ किसकी पहचान कराना चाहता है ?
उत्तर – कवि रघुवीर सहाय अपनी कविता ‘अधिनायक’ में प्रस्तुत पंक्ति की रचना कर उस सत्ताधारी वर्ग के जन प्रतिनिधियों की पहचान कराना चाहता है जो राजसी ठाट-बाट में जी रहे हैं। गरीबों पर, आम आदमी पर उनका रोब-दाब है। वे ही अपने को जनता का अधिनायक मानते हैं। वे बाहुबली हैं। लोग उनसे डरे-सहमे रहते हैं। कवि उन्हीं की पहचान उक्त पंक्तियों में कराना चाहता है।
प्रश्न 9. “कौन-कौन’ में पुनरुक्ति है। कवि ने यह प्रयोग किसलिए किया है।
उत्तर – कवि रघुवीर सहाय ने अपनी कविता ‘अधिनायक’ के अंतिम पद में कौन-कौन का प्रयोग किया है। यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि आज देश में अधिनायकों एवं तानाशाहों की संख्या अनेक है। अनेक बाहुबली आज जनता के भाग्यविधाता बने हुए । इसीलिए कविता के अंतिम भाग में ‘कौन-कौन’ पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया ।
प्रश्न 10. भारत के राष्ट्रगीत ‘जन-गण-मन-अधिनायक जय हे’ से इस कविता का क्या संबंध है ? वर्णन करें ।
उत्तर – रघुवीर सहाय द्वारा रचित “अधिनायक” शीर्षक कविता एक व्यंग्यात्मक कविता है। इस कविता में कवि ने सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधियों को आधुनिक भारत के अधिनायक अर्थात् मानाशाह के रूप में चित्रित किया है। आज राष्ट्रीय गान के समय इन्हीं सत्ताधारियों का गुणगान किया जाता है । जब भी राष्ट्रीय त्योहारों पर “जन-गण-मन-अधिनायक जय है” का राष्ट्रीय गान गाया जाता है तो आम आदमी जो गरीब और लाचार एवं फटेहाल जीवन बिता रहा है, इस राष्ट्रगीत का अर्थ नहीं समझता । वह उसी राजनेता को जनता का अधिनायक मानकर इस राष्ट्रगीत को गाता है । वह समझता है कि वह उन्हीं राजनेताओं का गुणगान कर रहा है ।
कवि का यह तर्क सही भी है। वास्तव में आज राष्ट्रगीत का महत्व राष्ट्रीयता से नहीं आंका जाता। कौन नेता कितना बड़ा बाहुबली है, कितना प्रभावशाली है उसी आधार पर उस राष्ट्रगीत के महत्व को आंका जाता है। कवि की यह सोच युक्तिसंगत और समसामयिक है । आज राष्ट्रगान की केवल खानापूरी होती है। देशभक्ति से इसका सम्बंध नहीं है ।
प्रश्न 11. कविता का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें |
उत्तर – ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता रघुवीर सहाय द्वारा लिखित एक व्यंग्य कविता है । इसमें आजादी के बाद के सत्ताधारी वर्ग के प्रति रोषपूर्ण कटाक्ष है। राष्ट्रीय गीत में निहित ‘अधिनायक’ शब्द को लेकर यह व्यंग्यात्मक कटाक्ष है। आजादी मिलने के इतने वर्षों के बाद भी आम आदमी की हालत में कोई बदलाव नहीं आया। कविता में ‘हरचरना’ इसी आम आदमी का प्रतिनिधि है।
हरचरना स्कूल जाने वाला एक बदहाल गरीब लड़का है । कवि प्रश्न करता है कि राष्ट्रगीत में वह कौन भारत भाग्य विधाता है जिसका गुणगान पुराने ढंग की ढीली-ढाली हाफ पैंट पहने हुए गरीब हरचरना गाता है । कवि का कहना है कि राष्ट्रीय त्योहार के दिन झंडा फहराए जाने के जलसे में वह ‘फटा-सुथन्ना’ पहने वही राष्ट्रगान दुहराता है जिसमें इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी न जाने किस ‘अधिनायक’ का गुणगान किया गया है।
कवि प्रश्न करता है कि वह कौन है जो मखमल, टमटम, वल्लभ, तुरही के साथ माथे पर पगड़ी एवं चँवर के साथ तोपों की सलामी लेकर ढोल बजाकर अपना जय-जयकार करवाता है। अर्थात् सत्ताधारी वर्ग बदले हुए जनतांत्रिक संविधान से चलती इस व्यवस्था में भी राजसी ठाठ-बाट वाले भड़कीले रोब-दाब के साथ इस जलसे में शिरकत कर अपना गुणगान अधिनायक के रूप में करवाये जा रहा है |
कवि प्रश्न करता है कि कौन है वह जो सिंहासन (मंच) पर बैठा है और दूर-दूर से नंगे पैर एवं नरकंकाल की भाँति दुबले-पतले लोग आकर उसे (अधिनायक) तमगा एवं माला पहनाते हैं । कौन है वह जन-गण-मन अधिनायक महावली जिससे डरे हुए लोग रोज जिसका गुणगान बाजा बजाकर करते हैं ।
इस प्रकार इस कविता में रघुवीर सहाय ने वर्तमान जनप्रतिनिधियों पर व्यंग्य किया है। कविता का निहितार्थ प्रतीत होता है कि इस सत्ताधारी वर्ग की प्रच्छन्न लालसा ही सचमुच अधि नायक अर्थात् तानाशाह बनने की है।
प्रश्न 12. व्याख्या करें
पूरब पश्चिम से आते हैं नंगे – बूचे नर कंकाल, सिंहासन पर बैठा, उनके तमगे कौन लगाता है
उत्तर- व्याख्या – प्रस्तुत पद्यांश रघुवीर सहाय द्वारा विरचित ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता से लिया गया है । इसमें कवि ने सत्तावर्ग के द्वारा जनता के शोषण का जिक्र किया है। यह एक व्यंग्य – कविता है ।
कवि के अनुसार राष्ट्रीय त्योहारों के अवसर पर सभी दिशाओं से जो जनता आती है वह नंगे पांव है । वह इतनी गरीब है कि केवल नरकंकाल का रूप हो गयी है। उसकी गाढ़ी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा सिंहासन परठा जनप्रतिनिधि हड़प लेता है। गरीब जनता के पैसे से ही वह मेडल पहनता है। मंच पर फूलों की माला पहनता है । वह राज- सत्ता का भोग करता है। शेष जनता गरीबी की मार से परेशान है ।
कवि रघुवीर सहाय ने उक्त पंक्तिनों में सत्ता-वर्ग के तानाशाहों का व्यंग्यात्मक चित्रण बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। स्वतंत्र देश की यह दुर्दशा राजनेताओं की ही देन हैं । वे स्वयं राज-योग में लिप्त हैं और जनता गरीबी और लाचारी की मार झेल रही है।