छंद के भेद और उदाहरण (Chhand in hindi)

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छंद की परिभाषा | Chhand ki paribhasha
अक्षरों की संख्या, मात्रा, गणना, गति को क्रमबद्ध तरीके से लिखना छंद (Chhand kya hai in hindi) कहलाती हैं। छंद शब्द ‘चद’ धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – खुश करना।

जैसे – चौपाई, दोहा, शायरी आदि।

 

छन्द का विवेचन | Chhand ka vivechan in hindi

इन्द्रवज्रा
उपेन्द्रवज्रा
वसन्ततिलका
मालिनी मजुमालिनी
मन्दाक्रान्ता
शिखरिणी
वंशस्थ
द्रुतविलम्बित
मत्तगयन्द (मालती)
सुन्दरी सवैया

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छंद के उदाहरण | Chhand ke udaharan

जय हनुमान ग्यान गुन सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।

राम दूत अतुलित बलधामा।

अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।

मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय।

जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय। ।

 

छंद के भेद -;

मात्रिक छंद 
वर्णिक छंद 
मुक्तक छंद 

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मात्रिक छन्द में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है। इनमें चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा आदि मुख्य हैं।

दोहा छंद
सोरठा छंद
रोला छंद
गीतिका छंद
हरिगीतिका छंद
उल्लाला छंद
चौपाई छंद
बरवै (विषम) छंद
छप्पय छंद

मात्रिक छंद के भेद
सम मात्रिक छंद 
अर्धसम मात्रिक छंद 
विषम मात्रिक छंद 

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सम मात्रिक छंद 

जिन छंद के चारों चरणों की मात्राएं एवं वर्ण एक-समान हो, वे सम मात्रिक छंद  कहलाते हैं।

हरिगीतिका (इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती है)
अहीर (इसके प्रत्येक चरण में 11 मात्राएं होती हैं)

अर्द्ध-सम मात्रिक छंद 

जिन छंद के पहले और तीसरे तथा दूसरे और चौथे चरणों की मात्राओं या वर्णों में समानता हो, वे अर्द्धसम मात्रिक

छंद  कहलाते हैं।

दोहा (इसके विषम चरण में 13 मात्राएं एवं सम चरण में 11 मात्राएं होती हैं)
सोरठा (इसके विषम चरण में 11 मात्राएं एवं सम चरण में 13 मात्राएं होती हैं)

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विषम मात्रिक छंद 
जिन छंद में चार से अधिक छह चरण हो, और वह एक-समान न हो, तो वे विषम मात्रिक छंद  कहलाते हैं।

कुण्डलिया (यह दोहा + रोला को जोड़कर बनता है)
छप्पय (यह रोला + उल्लाला को जोड़कर बनता है)

चौपाई छंद की परिभाषा |
चौपाई एक सम मात्रिक छंद है इसमें चार चरण होते हैं, और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती है। इसके पहले चरण की  दूसरे चरण से, तीसरे चरण की तुक, चौथे चरण से मिलती है। इसके प्रत्येक चरण के अंत में यति होती है। 

उदाहरण-

निरखि सिद्ध साधक अनुरागे।

सहज सनेहु सराहन लागे।।

होत न भूलत भाउ भरत को।

अचर-सचर चर-अचर करत को।।

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दोहा छंद की परिभाषा | 
दोहा एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएं, दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएं होती हैं। चरण के अंत में यति होती है। इसके पहले और तीसरे चरणों के अंत में जगण  नहीं होना चाहिए। दूसरे और चौथे (सम) चरणों के अंत में लघु होना चाहिए। इसके सम चरणों में तुक भी होना चाहिए।

 

उदाहरण-

मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।

जा तन की झाई परे, श्याम हरित दुति होय।।

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सोरठा छंद की परिभाषा | 
सोरठा एक अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएं, दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएं होती हैं। यति चरण के अंत में होती है। विषम चरण के अंत में लघु होना चाहिए। सम चरण के आरंभ में जगण  नहीं होना चाहिए। इसके विषम चरण में तुक भी होती है। यह दोहे का उल्टा होता है।

 

उदाहरण-

कुंद इंद सम देह, उमा रमन करुना अयन।

जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन।।

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वर्णिक छंद | 
जिन छंद की रचना वर्णों की गणना के आधार पर होती है, उसे वर्णिक छंद  या ‘वर्ण-वृत’ कहते हैं।

वर्णिक छंद के भेद  दो प्रकार के होते हैं-

साधारण
दण्डक

मुक्तक छंद | 
जिन छंद में वर्ण और मात्राओं की गणना न हो, उसे मुक्तक छंद  कहते हैं।

उदाहरण-

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून।।

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मुक्तक छंद की विशेषताएं | 

इसका प्रत्येक चरण अपने आप में स्वतंत्र होता है।
इसमें एक चरण का दूसरे चरण से कोई संबंध नहीं होता है।
यह छंद नियमवध्द नहीं होते है।

 

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