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प्रश्न 1. उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं ?
उत्तर – तटस्थ प्रजा उत्सव मना रही है। ऐसा राज्यादेश है । प्रजा अंधानुकरण और गैर जबाबदेही का शिकार है ।
प्रश्न 2. नागरिक क्यों व्यस्त हैं ? क्या उनकी व्यस्तता जायज है ?
उत्तर- नागरिकों को पेट की चिन्ता है । नागरिक स्वार्थी हैं। वे देश की चिन्ता से लापरवाह हैं। स्वार्थ और अज्ञानता ने राष्ट्रीय समस्याओं से उन्हें दूर कर दिया है। वे अपने निजी सुख-दुख में ही व्यस्त हैं जो जायज नहीं है ।
प्रश्न 3. किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की ? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है ? यह विजय किनकी है ? आप क्या सोचते हैं ? बताएँ ।
उत्तर- किसी की विजय नहीं हुई। विजय प्रतिपक्ष की हुई । कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिंतन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ-मूठ के आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है। यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता। यानि सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।
प्रश्न 4. ‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है ?’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है बताइए |
उत्तर – कवि कहना चाहता है कि खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है, यानि आजादी की लड़ाई में जिन-जिन लोगों ने कुरबानी दी है उनका सही आकलन एवं मूल्यांकन नहीं किया गया है। शहीदों का पूरा ब्योरेवार इतिहास अभी भी अपूर्ण है। राष्ट्र के लिए जिन राष्ट्रवीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया आज हम उन्हें भुला बैठे हैं। उनका न उचित सम्मान राष्ट्र की ओर से मिला, न हम याद ही रख पाते हैं। उनके प्रति कृतज्ञ न होकर हम कृतघ्न हो गए । इसमें इतिहास की और शहीदों की शहादत की ओर कवि ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है ।
प्रश्न 5. सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?
उत्तर- ‘सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है ?’ इस पंक्ति में राष्ट्र के श्रमिक वर्ग की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है। हमारे देश के श्रमिकों/मजदूरों/किसानों की स्थिति आजादी के इतने वर्षों बाद भी दयनीय है। राष्ट्र के निर्माण में उनका श्रम लग रहा है किन्तु उन्हें यथोचित लाभ एवं सम्मान नहीं मिल रहा है। यह बात अत्यंत ही दुःखद और पीड़ादायी है। सड़कों यानि पूरे देश के निर्माण, विकास और खुशहाली के लिए ये ईमानदारी से लगे हुए हैं, फिर भी देश की वस्तुस्थिति से अनभिज्ञ हैं ।
प्रश्न 6. बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है ?
उत्तर – बूढ़ा मशकवाला प्रतीक प्रयोग है । वह देश के बुद्धिजीवी वर्ग से तात्पर्य रखता है। वह वास्तविक स्थिति से अवगत है । वह कहता है कि किसी की भी जीत नहीं हुई है। सेना विजयी नहीं है बल्कि हारी हुई सेना है। इन पंक्तियों में बूढ़ा मशकवाला देश की जो भयावह स्थिति है, उससे वह अवगत होते हुए सत्य के निकट है। सभी लोग तो धोखा में जी रहे हैं लेकिन मशकवाला यथार्थ का जानकार है। इसीलिए वह कहता है कि जीत न शासक की, न नागरिक की, न सेना की हुई । ये सारी बातें झूठे प्रचार तंत्र का खेल है । प्रजा के साथ छल है, धोखा है। सबको धोखे में रखा जा रहा है और सत्य को छिपाया जा रहा है ।
प्रश्न 7. बूढ़ा, मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है ? सोचिए, अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या होता ?
उत्तर – बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति में हिस्सा लेने से वंचित है। अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता । वह सत्य प्रकट करता । उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है। यही उसकी जिम्मेवारी है । सत्य लिखने और बोलने की मनाही है। इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा है । वह विवश है, विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देता केवल सींचने से ही मतलब रखता है। इसमें बौद्धिक वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती तथा झूठी बातों और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता । जीवन के हर क्षेत्र में अमन-चैन, शिक्षा-दीक्षा, विकास की धारा बहती। अबोधता और अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती ।
प्रश्न 8. ‘जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं’ ‘जिन’ किनके लिए आया है ? वे सेना के साथ कहाँ से आ रहे हैं ? वे सेना के साथ क्यों थे ? वे क्या जीतकर लौटे है ? बताएँ ।
उत्तर – इन पंक्तियों में ‘जिन’ नेताओं के लिए प्रयोग हुआ है । वे लड़ाई के मैदान से लौट रहे हैं। वे सेना के साथ इसलिए हैं कि सेना सच न बोले। वे हारकर लौटे हैं। इन पंक्तियों में नेताओं के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। उनका जीवन चरित्र कितना भ्रम में डालने वाला है। कथनी-करनी में कितना अंतर है ? झूठी प्रशंसा और अविश्वनीय कारनामों के बीच उनका समय कट रहा है। उनके व्यवहार और विचार में काफी विरोधाभास है। तनिक समानता और स्वच्छता नहीं दिखायी पड़ती । “
प्रश्न 9. गद्य कविता किसे कहते हैं ? इसकी क्या विशेषताएँ हैं ? इस कविता को देखते-परखते हुए बताएँ।
उत्तर – हिन्दी साहित्य में गद्य काव्य या गद्य कविता का भी सृजन आधुनिक काल में अधिक हुआ है। गद्य – कविता या गद्य-काव्य की परिभाषा अनेक विद्वानों ने अपने-अपने विचारानुसार प्रकट की है।
गद्य काव्य को विद्वानों ने भावात्मक निबंधों की श्रेणी के अंतर्गत रखा है। किन्तु दोनों में भावना की प्रधानता तो रहती है किन्तु भावात्मक निबंधों की अपेक्षा गद्य काव्य में कुछ वैयक्तिकता और एक-तथ्यता अधिक रहती है। गुलाब राय जी कहते हैं कि गद्य काव्य की भाषा गद्य की होती है किन्तु भाव प्रगीत काव्यों के होते हैं। गद्य शरीर में पद्य की आत्मा बोलती दिखायी पड़ती है । भाषा का प्रभाव भी साधारण गद्य की अपेक्षा कुछ अधिक सरल और संगीतमय होता है ।
उपरोक्त परिभाषाओं के निष्कर्ष के आधार पर ‘हार-जीत’ गद्य कविता का अगर हम परीक्षण करें तो उसकी कई विशेषताएँ परिलक्षित होंगी। अशोक वाजपेयी जी ने हार-जीत में जीवन की विविध समस्याओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। राष्ट्र की वस्तुस्थिति का सही चित्रण अपने शब्द-साधना द्वारा प्रस्तुत कर हमें बताने का प्रयास किया है कि राष्ट्र ज्वलंत समस्याओं से घिरा है और जिसे चिंता करनी चाहिए, सजग रहना चाहिए वह सोया हुआ है । बेखबर है ।
गद्य-कविता के सृजन में कवि सिद्ध हस्त है । शब्दों के प्रयोग में कवि प्रवीण है । सरल और सहज शब्दों द्वारा भावों का सम्यक् चित्रण करने में कवि को सफलता मिली है । सांकेतिक तत्वों एवं प्रयोगों द्वारा कवि ने गद्य कविता में जान फूंक दी है। सरल रूप में यह कविता सबको ग्राह्य है। अर्थ ग्रहण करने में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं होती है । अभिव्यक्ति में भी कवि को सफलता मिली है । लोक जीवन या राष्ट्र जीवन का सही मूल्यांकन हार-जीत कविता में हुआ ।
प्रश्न 10. कविता में किस प्रश्न को उठाया गया है ? आपकी समझ में इसके भीतर से और कौन से प्रश्न उठते हैं ?
उत्तर – प्रस्तुत कविता में देश की ज्वलंत समस्याओं की ओर कवि ध्यान आकृष्ट किया है। इस देश की जनता अबोध और चेतनाविहीन है । वह अंधविश्वासों, अफवाहों में जी रही है। देश के नीति-नियम सत्य से कोसों दूर एवं पाखंडपूर्ण हैं । सिद्धान्त और व्यवहार में काफी असमानता है ।
कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। जनता की हालत दयनीय है। श्रमिक वर्ग कष्ट में जी रहा है। बौद्धिक वर्ग संकट में जी रहा है। उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली है। संस्कृति पर खतरा दिखायी पडता है। शासक वर्ग बेपरवाह तथा मौज- मस्ती, जश्न में अपना समय व्यतीत कर रहा है और नागरिक भूख की ज्वाला में तड़प रहा है। सुरक्षा देनेवाले भी गैर जिम्मेवार हैं। झूठ-मूठ के भुलावा में सभी लोग जी रहे हैं । सत्य से प्रजा को दूर रखने की कोशिश हो रही है। बौद्धिक वर्ग सर्वाधिक संकट में जी रहा है । वह राष्ट्र निर्माण में संकल्पित होकर तो लगा है लेकिन उसे उचित सम्मान और स्थान नहीं मिलता । इतिहास हम भूल रहे हैं । दिग्भ्रमित होकर भटकाव की स्थिति में जी रहे हैं । ।