‘छप्पय

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प्रश्न 1. नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? उनकी क्रम से सूची बनाइए ।

उत्तर- अपने ‘छप्पन’ कविता में नाभादासजी ने कबीर की जिन-जिन विशेषताओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया है – वे निम्नांकित हैं

कबीर का व्यक्तित्व अक्खड़ था । उन्होंने भक्ति विमुख तथा कथित धर्मों की खूब धज्जी उड़ा दी है।

कबीर ने धर्म की स्पष्ट व्याख्या की है। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्व का सटीक वर्णन किया है। उन्होंने अपनी काव्य कृतियों यानी साखी, शब्द, रमैनी में हिन्दू-तुर्क के बीच समन्वय और एकता का बीज बोया है ।

कबीर पक्षपात नहीं करते हैं। वे मुँह देखी बात भी नहीं करते हैं। उन्होंने वर्णाश्रम व्यवस्था की कुरीतियों की ओर सबका ध्यान खींचा है। उन्होंने षट्दर्शन की दुर्बलताओं की पुरजोर आलोचना की है। उपर्युक्त विवेचना के आधार पर कबीर का व्यक्तित्व प्रखर स्पष्टवादी एवं क्रांतिकारी कवि का है। इन्होंने अपने काव्य-सृजन कर्म द्वारा सामाजिक कुरीतियों को करने और समन्वय संस्कृति की रक्षा करने में महती भूमिका निभायी है ।

प्रश्न 2. ‘मुख देखी नाहिन भनी’ का क्या अर्थ है ? कबीर पर यह कैसे लागू होता है ?

उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश में कबीर के अक्खड़ व्यक्त्वि पर प्रकाश डाला गया है । कबीर ऐसे प्रखर चेतना संपन्न कवि हैं जिन्होंने कभी भी मुँह देखी बातें नहीं की। उन्हें सच को सच कहने में तनिक भी संकोच नहीं था । राज सत्ता हो या समाज की जनता, पंडित हों या मुल्ला-मौलवी सबकी बखिया उधेड़ने में उन्होंने तनिक भी कोताही नहीं की। उन्होंने इसीलिए अपनी अक्खड़ता, स्पष्टवादिता, पक्षपातरहित कथन द्वारा लोकमंगल के लिए अथक संघर्ष किया।

प्रश्न 3. सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है ?

उत्तर- सूरदासजी की कविता में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन है। उन्होंने कृष्ण के जीवन से लेकर स्वर्गधाम तक की लीलाओं का सम्यक् वर्णन किया है। उनकी कविता में क्या नहीं है यानी रूप माधुरी और गुण माधुरी सबका समन्वय है। सूर की काव्य दृष्टि प्रशंसनीय है। अपनी दिव्यता का सम्यक परिचय उन्होंने अपनी कविता में दिया है। गोप-गोपियों के बीच के गणित इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा जनमानस को कराया है ।

कृष्ण की बाललीला हो या रासलीला सर्वत्र सूरदास की काव्य प्रतिभा दृष्टिगत होती है। सूरदास वात्सल्य औरंगार के बेजोड़ कवि हैं। इनकी कविताओं में प्रेम, त्याग और समर्पण का चित्रण सांगोपांग हुआ है। इस प्रकार सूरदास की कविताएँ अत्यंत ही मनोमुग्धकारी है उनकी शिल्पगत विशेषताएँ भी विवेचनीय है। कथन को प्रस्तुत करने की कलाकारी कोई सूरदासजी से सीखे। सूरदास भारतीय वाङ्गमय के महान कवि हैं ।

प्रश्न 4. अर्थ स्पष्ट करें

( क ) सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहीं शिरचालन करै |

उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ नाभादासजी द्वारा रचित कविता पाठ से ली गयी हैं इन पंक्ति में नाभादासजी ने महकवि सूरदास जी की काव्य प्रतिभा की प्रशंसा की है। नाभादासजी क हैं कि सूरदासजी की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो अपनी प्रसन्नता नहीं जाहिर करे। रासलील यानि भाव-विभोर हो सिर न हिलाने लगे । सूर की कविता में लालित्य, वात्सल्य, का सांगोपांग वर्णन हुआ है जिसका रसास्वादन कर रसिक जन भाव विभोर हो जाते हैं । झ प्रकार नाभादासजी ने उनके सफल कवि होने का ठोस उदाहरण दिया है।

( ख ) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।

उत्तर–प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि नाभादासजी द्वारा विरचित काव्य कृति भक्तमाल से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में नाभादासजी ने महाकवि कबीर के काव्य-प्रतीक की चर्चा की है। कबीर की अक्खड़ता स्पष्टवादिता, पक्षपातरहित कथन की ओर कवि ने जनमानस का ध्यान आकृष्ट किया है ।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कथन है कि कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने धर्म की सही और लोकमंगलकारी व्याख्या की है। पाखंड का पर्दाफाश किया है | इस प्रकार कबीर अक्खड़ कवि थे ।

प्रश्न 5. ‘पक्षपात नहीं वचन सबहिके हित की भाखी ।’ इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है ?

उत्तर–प्रस्तुत पंक्तियाँ महाकवि नाभादासजी द्वारा विरचित ‘भक्तभाल’ काव्य कृति से कि ली गयी हैं। इन पंक्तियों में भक्त कवि ने महाकवि कबीर के व्यक्तित्व का स्पष्ट चित्रण किय, वि है । कबीर के जीवन की विशेषताओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है ।

क्या हिन्दू और क्या तुरक, सभी के प्रति कबीर ने आदर भाव प्रदर्शित किया और मानवीय पक्षों के उद्घाटन में महारत हासिल की। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है । वे सबके हित की बातें सोचते हैं और वैसा ही आचरण करने के लिए सबको कविता द्वारा जगाते हैं। सत्य को सत्य कहने में तनिक झिझक नहीं, भय नहीं, लोभ नहीं। इस प्रकार क्रांतिकारी कबीर का जीवन-दर्शन सबके लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। लोकमंगल की भावना जगानेवाले इस तेजस्वी कवि की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी ही होगी ।

कबीर क्रांतिकारी कवि, प्रखर चिंतक तथा महान दार्शनिक थे ।

प्रश्न 6. कविता में तुक का क्या महत्त्व है ? इनका छप्पयों के संदर्भ में स्पष्ट करें

उत्तर – कविता में ‘तुक’ का अर्थ अन्तिम वर्णों की आवृत्ति है । कविता के चरणों के अंत में वर्णों की आवृत्ति को ‘तुक’ कहते हैं । साधारणतः पाँच मात्राओं की ‘तुक’ उत्तम मानी गयी है ।

संस्कृत छंदों में ‘तुक’ का महत्व नहीं था, किन्तु हिन्दी में तुक ही छन्द का प्राण है

‘छप्पय’ – यह मात्रिक विषम और संयुक्त छंद है। इस छंद के छह चरण होते हैं इसलिए इसे ‘छप्पय’ कहते हैं ।

प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के, प्रथम द्वितीय और तृतीय चतुर्थ के योग होते हैं। छप्पय में उल्लाला के सम-विषम (प्रथम-द्वितीय और तृतीय-चतुर्थ) चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला ही अधिक प्रचलित है। जैसे-

भगति विमुख जे धर्म सु सब अधरम करि गाए ।

योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन बिनु, तुच्छ, दिखाओ ।

प्रश्न 7. ‘कबीर कानि राखी नहिं’ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – कबीरदास महान क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने सदैव पाखंड का विरोध किया। भारतीय षड्दर्शन और वर्णाश्रम की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक धर्म था – षडदर्शन । भारत के प्रसिद्ध छः दर्शन हिन्दुओं के लिए अनिवार्य थे । इनकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कबीर ने षड्दर्शन की बुराइयों की तीखी आलोचना की और उनके विचारों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया यानी कानों से सुनकर ग्रहण नहीं किया बल्कि उसके पाखंड की धज्जी-धज्जी उड़ा दी । कबीर ने जनमानस को भी षड़दर्शन द्वारा पोषित वर्णाश्रम की बुराइयों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया और उसके विचारों को मानने का प्रबल विरोध किया ।

प्रश्न 8. कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया ?

उत्तर-कबीर ने अपनी सबदी, साख और रमैनी द्वारा धर्म की सटीक व्याख्या प्रस्तुत की। लोक जगत में परिव्याप्त पाखंड, व्यभिचार, मूर्तिपूजा, जाति-पाँति और छुआछूत का प्रबल विरोध किया। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन की सही व्याख्या कर उसके समक्ष उपस्थित किया ।

कबीर ने भक्ति में पाखंडवादी विचारों की जमकर खिल्लियाँ उड़ायी और मानव-मानव के बीच समन्वयवादी संस्कृति की स्थापना की। लोगों के बीच भक्ति के सही स्वरूप की व्याख्या की । भक्ति की पवित्र धारा को बहाने, उसे अनवरत गतिमय रहने में कबीर ने अपने प्रखर विचारों से उसे बल दिया। उन्होंने विधर्मियों की आलोचना की । भक्ति विमुख लोगों द्वारा की परिभाषा गढ़ने की तीव्र आलोचना की । भक्ति के सत्य स्वरूप का उन्होंने उद्घाटन और जन-जन के बीच एकता, भाईचारा प्रेम की अजस्र गंगा बहायी । वे निर्गुण के तेजस्वी कवि थे। उन्होंने ईश्वर के निर्गुण स्वरूप का चित्रण किया । उसका सही व्याख्या की। सत्य स्वरूप का सबको दर्शन कराया ।

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