सूरदास

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सूरदास जी भक्तिकाल के सगुण धारा के महान कवि होने के साथ-साथ महान संगीतकार भी थे। उन्होंने अपनी कृतियों श्री कृष्ण के सुंदर रुपों, बाल स्वरुप और उनकी महिमा को ममस्पर्शी वर्णन किया है। भक्ति और श्रंग्रार रस को मिलाकर सूरदास जी ने कई कविताएं और पद लिखे हैं, जिन्हें पढ़कर हर किसी का ह्र्दय भावभिवोर हो उठता है। यह सूरदास के पद Class 7, Class 8 Class 9 और Class 10 के कक्षा के पाठ्यक्रम में भी पठाए जाते हैं।

सूरदास जी ने अपने जीवन में सवा लाख से भी ज्यादा पदों की रचनाएं की, लेकिन सूरदास द्धारा रचित पांच ग्रंथ प्रमुख माने जाते हैं, जिनमें सूरसागर, ब्याहलो, नल दमयंती, सुरसारावाली, साहित्य-लहरी प्रमुख हैं।

प्रश्न 1. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है ?
उत्तर :- सूरदास रचित “प्रथम पद” में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है । वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है ।

प्रश्न 2. गायें किस ओर दौड़ रही हैं ?
उत्तर :- भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं, कमल के फूल खिल उठे हैं, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ीं ।

प्रश्न 3. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर :-
 अथवा, पठित पाठ से ‘सूरदास’ के एक पद का सारांश अपने शब्दों में लिखिए ।

प्रश्न 4. पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर :-
 सूर के काव्य के तीन प्रधान विषय हैं- विनय भक्ति, वात्सल्य और प्रेम-गार । इन्हीं तीन भाव-वृत्तों में उनका काव्य सीमित है। उसमें जीवन का व्यापक और बहुरूपी विस्तार नहीं है, किन्तु भावों की ऐसी गहराई और तल्लीनता है कि व्यापकता और विस्तार पीछे छूट जाते हैं । वात्सल्य के सूर ही विश्व में अद्वितीय कवि हैं। बालक की प्रकृति का इतना स्वाभाविक वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है। बाल स्वभाव के बहुरंगी आयाम का सफल एवं स्वाभाविक चित्रण उनके काव्य की विशेषता है। बालक की बाल सुलभ प्रकृति-उसका रोना, मचलना, रूठना, जिद करना आदि प्रवृत्तियों को उन्होंने अपने काव्य में बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से सजाया है ।

पाठ्य पुस्तक से संकलित पदों में सूरदासजी ने वात्सल्य रस की अनेक विशेषताओं वर्णन किया है। बालक कृष्ण सोए हुए हैं, भोर हो गई है। उन्हें दुलार से जगाया जा रहा है। जगाने के स्वर भी मधुर हैं। चहचहाते पक्षियों के, कमल के फूलों के, बोलती और दौड़ती हुई गायों के उदाहरण देकर बालक कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है ।

दूसरे पद में भी वात्सल्य रस की सहज अभिव्यक्ति के क्रम में अनेक विशेषताओं को निरूपित किया गया है। नंद बाबा की गोद में बालक कृष्ण भोजन कर रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ धरती पर गिरा रहे हैं । बालक कृष्ण को मना-मनाकर खिलाया जा रहा है । विविध प्रकार के व्यंजन दिए जा रहे हैं। यहाँ पर वात्सल्य रस अपने चरम उत्कर्ष पर है । सूरदासजी लिखते हैं |

“जो रस नंद-जसोदा विलसत, सो नहिं विहुँ भुवनियाँ ।”

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प्रश्न 5. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें
(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ ।
(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्हौं माँगत सूर जुठनियाँ |
(ग) आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छवि कहत न बनियाँ ।

उत्तर–

( क ) काव्य सौन्दर्य – प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यंत स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है । अतः, यह पंक्ति काव्य-सौंदर्य से परिपूर्ण है।
इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ |

(ख) काव्य सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं । यह देख सूरदासजी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूटन नंदजी से माँगते हैं । इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है ।

(ग) काव्य सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है । कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है। –

प्रश्न 6. कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं ?
उत्तर :- (क) 1478 ई०उत्तर- बालक कृष्ण अपने बालसुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जो रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही हैं। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अगणित प्रकार के व्यंजन हैं।

बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगता है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही ‘ विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता । इस प्रकार, कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं।

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सूरदास जी हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के महान कवि थे। उन्होंने श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर कई रचनाएं कीं और कविताएं पद लिखें, उनकी कविताओं में श्री कृष्ण के प्रति उनका प्रेम भाव झलकता है, उन्होंने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन इस तरह किया है कि मानो खुद उन्होंने बाल गोपाल को देखा हो।श्री कृष्ण के प्रति गहरी आस्था रखने वाले महान कवि सूरदास जी के जन्म और मृत्यु दोनों को लेकर मतभेद हैं, लेकिन उनका जन्म 1478 ईसवी में रुनकता के पास किरोली गांव में माना जाता है। वे महान विद्दान वल्लभाचार्य के शिष्य थे, ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण वल्लभाचार्य जी ने भी सूरदास जी को श्री कृष्ण की भक्ति की तरफ अग्रसर किया था, जिसके बाद ही सूरदास जी ने खुद को पूरी तरह श्री कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया और फिर श्री कृष्ण के प्रति अपनी भावनाओं का वर्णन दोहों पद, कविताओं आदि के माध्यम से किया है। उनकी ज्यादातर रचनाएं ब्रज भाषा में हैं।वहीं सूरदास जी की रचनाओं में भगवान कृष्ण की महिमा का दिल को छू जाने वाला वर्णन हैं, वहीं सूरदास जी की रचनाओं को आप अपने सोशल मीडिया अकाउंट इंस्टागाम, व्हास्ऐप, फेसबुक आदि पर भी शेयर कर सकते हैं।

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