यूरोप में राष्ट्रवाद
यूरोप में राष्ट्रवाद का ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर इस पेज में दिया गया है तथा भारत में राष्ट्रवाद का मॉडल पेपर भी वेबसाइट पर आपको आसानी से मिल जाएगाl | Class 10th Social
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रश्नोतर अति लघु उत्तरीय प्रश्न ( 20 शब्दों में उत्तर दें ) :
1 . राष्ट्रवाद क्या है ?
उत्तर – किसी विशेष भौगोलिक , सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में उत्पन्न होने वाली राजनैतिक चेतना ( जागृति ) ही राष्ट्रया है ।
2. मेजनी कौन था ?
उत्तर – मेजनी इटली का एक साहित्यकार , गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य रोनापति था । वह सम्पूर्ण इटली का एकीकरण करना चाहता था ।
3. जर्मनी के एकीकरण की बाधाएँ क्या थी ?
उत्तर – जर्मनी करीब 300 छोटे राज्यों में विखंडित था और उनमें राजनीतिक , सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएँ थीं । राष्ट्रवाद की भावना की भी कमी थी ।
4. मेटरनिक युग क्या है ?
उत्तर – मेटरनिक आस्ट्रिया का चासलर था । इसके शासन काल को मेटरनिक युग कहा जाता है । इसने इटली के एकीकरण का विरोध किया था । ( 1830-1848 )
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यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रश्नोतर लघु उत्तरीय प्रश्न ( 60 लगभग शब्दों में उत्तर दें ) :
1 . 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के कारण क्या थे ?
उत्तर -1848 ई 0 का फ्रांसीसी क्रांति शासक वर्ग की निरंकुशता और अभिजात्य वर्ग की तानाशाही का परिणाम था । फ्रांसीसी जनता पर पुरातनपंथी विचार एवं प्रतिक्रियावादी विचारों को थोपने का प्रयास किया गया । फलस्वरूप मध्यम वर्ग जिसमें कि राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो चुकी थी , ने इसका विरोध किया और इस विरोध ने 1848 ई ० में एक आन्दोलन का रूप ले लिया जिसे हम 1848 ई 0 का क्रांति कहते हैं जिसके दूरगामी परिणाम हुए ।
2. इटली , जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया की भूमिका क्या थी ?
उत्तर – इटली और जर्मनी के एकीकरण में आस्ट्रिया की भूमिका रचनात्मक नहीं थी । आस्ट्रिया इटली के एकीकरण का विरोधी था और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से भी नहीं चुकता था । 13 काबूर के सरम नेपोलियन ii से भी संधि कर ली । उत्तर और मध्य इटली की जनता आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने इटली के राष्ट्रवादी आन्दोलनों को दबा लिया । जर्मनी एकीकरण में इटली और आस्ट्रिया के बीच युद्ध हुआ तथा आस्ट्रिया ने 1866 ई . में प्र के साथ भी युद्ध छेड़ दिया । इस प्रकार दोनों तरफ से युद्ध में फंसकर आस्ट्रिया की पराजय हुई । इस तरह जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
3. यूरोप में राष्ट्रवाद फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ ?
उत्तर– यूरोप में राष्ट्रवाद फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट का अहम रोल था । जर्मनी में यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना का घोर अभाव था , जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा नागरिकों के समक्ष नहीं था । वस्तुतः जर्मनी एकीकरण की पृष्ठभूमि का निर्माण का श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को ही जाता है । इस प्रकार जर्मनी में राष्ट्रवाद के उदय के बाद हंगरी , यूनान , पोलैंड में राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ और मूर्तरूप में यूरोपीय राज्यों में एकीकरण के रूप में सामने आया ।
4. गैरीबाल्डी के कार्यों की चर्चा करें ।
उत्तर – गैरीबाल्डी एक राष्ट्रीय नेता था । उसने अपनी सेना बनाकर ब्रूर्वो राजवंश को हराकर सिसली तथा नेपल्स में अपनी सत्ता स्थापित की । गैरीबाल्डी ने मि पर आक्रमण करने की योजना बनाई लेकिन काबूर से मेंट होने पर इस योजना को त्याग दिया । दक्षिणी इटली के शासक बनने का प्रस्ताव भी उसने अस्वीकार कर दिया । गैरीबाल्डी ने अपनी सारी सम्पत्ति राष्ट्र को सौप दिया और साधारण किसान की भाँति जीवन जीने लगा । इस तरह वह त्याग और बलिदान का प्रतिमूर्ति था ।
5. विलियन I के बगैर जर्मनी का एकीकरण विस्मार्क के लिए असंभव था कैसे ?
उत्तर – विलयम । राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था । उसने अनेक सुधार किये फलस्वरूप जर्मनी में औद्योगिक क्रांन्ति की हवा तेज हो गयी । विलियम के प्रयासों से ही जर्मन राष्ट्रों को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास तेज हुआ । इस प्रकार विलियन के राष्ट्रवादी नीतियों और कार्यों के बाद ही विस्मार्क जर्मनी का एकीकरण करने में सफल हो पाया ।
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रश्नोतर दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें ) :
1. इटली के एकीकरण में मेजनी , काबूर और गैरीवाल्डी के योगदानों को बतावें ?
उत्तर – इटली के एकीकरण में मेज़नी काबूर और गैरीवाल्डी तीनों का महत्त्वपूर्ण योगदान था । सर्वप्रथम मेजनी ने 1820 में इसके लिये प्रयास शुरू किया और एक गुप्तदल काब्रोनारी का गठन किया , जो राष्ट्रवादियों का दल था और छापामार शुद्धकर एक गणराज्य की स्थापना करने की कोशिश की । मेजनी को आस्ट्रिया के विरोध का सामना करना पड़ा . और वह दो बार आस्ट्रिया के शासकों से हार गया । परन्तु भेजनी के प्रयासों से इटली में राष्ट्रभावना का उदय हो चुका था । काबूर एक सफल कूटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था । वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा आस्ट्रिया को मानता था , इसके लिये उसने फ्रांस से हाथ मिलाया । काबूर ने अपने कूटनीति से इटली के एकीकरण को पूरे यूरोप की समस्या बना दिया । काबूर मे नेपोलियन II से भी संधि कर ली । उत्तर और मध्ये इटली की जनता के समर्थन में एकीकरण के लिये प्रयासरत थी और इस प्रकार एक बड़े राज्य के रूप में इटली सामने आया । परन्तु काबूर का ध्यान मध्य और इटली के एकीकरण पर था । गैरीवाल्डी महान क्रांतिकारी था । परन्तु उसके विचार काबूर से नहीं मिलते थे । उद्देश्य एक होने की वजह से दोनों में समझौता हो गया परन्तु तब तक राष्ट्रवादी चेतना अपने चरम सीमा पर थी । इस प्रकार 1871 ई 0 में इटली का एकीकरण मेजनी , काबूर और गैरीवाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के योगदान के कारण पूर्ण हुआ ।
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रश्नोतर
3. जर्मनी के एकीकरण में विस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें ।
उत्तर – विस्मार्क एक सफल कूटनीतिज्ञ और सेनापति था । जर्मन डायट में प्रशा का प्रतिनिधि रहते हुए उसने अपनी सफल कूटनीति का परिचय दिया । वह जर्मन एकीकरण में सैन्य शक्ति के महत्त्व को समझता था । अतः इसके लिये उसने रक्त और लौह नीति का अवलम्बन किया । उसने अपने देश में अनिवार्य सैन्य सेवा लागू कर दिया । विस्मार्क ने अपनी नीतियों से प्रशा का सुदृढ़ीकरण किया और इस कारण प्रशा उस समय के सबसे मजबूत आस्ट्रिया से किसी मामले में कम न नहीं था । विस्मार्क ने इटली से संधि कर आस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध लड़ा और आस्ट्रिया को पराजित किया . इससे आस्ट्रिया का जर्मन क्षेत्रों से प्रभाव खत्म हो गया और जर्मनी एकीकरण का दो तिहाई कार्य पूरा हो गया । शेष के लिये उसे फ्रांस से युद्ध करना पड़ा और सेडान की लड़ाई में फ्रांसीसियों की जबर्दस्त हार हुई । अंततोगत्वा जर्मनी 1871 ई 0 तक एकीकृत राष्ट्र के रूप में आया ।
यूरोप में राष्ट्रवाद के प्रश्नोतर
3. राष्ट्रवाद के उदय के कारणों एवं प्रभाव की चर्चा करें ।
उत्तर – राष्ट्रवाद एक भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक , सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों की एकता एवं राजनैतिक जागृति का प्रतिफल है । यूरोप में राष्ट्रवाद के कारण भी यथेष्ट थे और इसके प्रभाव भी युगान्तकारी हुए । यूरोप में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में नेपोलियन के आक्रमणों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया । फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीति को अभिजात्यवर्गीय परिवेश से बाहर कर उसे सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया । उसके फलस्वरूप प्रतिक्रियावादी एवं सुधारवादी शक्तियों का विकास हुआ । इस बीच शासक वर्ग निरंकुश एवं जनभावनाओं को दबाने वाले थे । इन्ही सब कारणों की वजह से राष्ट्रवाद का प्रादुर्भाव हुआ और उसका मूर्तरूप यूरोपीय राज्यों के एकीकरण के रूप में आया । इसके फलस्वरूप कई बड़े और छोटे राज्यों का उदय हुआ । इस राष्ट्रवाद ने यूरोप को ही नहीं वरन पूरे विश्व को चैतन्य बनाया जिसके कारण अफ्रीकी और एशियाई राज्यों में विदेशी सत्ता के खिलाफ मुक्ति के लिये राष्ट्रीयता की लहर उपजी । इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यूरोपीय राष्ट्रवाद के उपरान्त पूरे विश्व के मानचित्र में बदलाव आ गया ।
4. जुलाई 1830 की क्रांति का विवरण दें ।
उत्तर – फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता की भावना जन – जन तक पहुंच चुकी थी और उसका समर्थन अनेक उदारवादी एवं सुधारवादी लोग कर रहे थे । परन्तुं चार्ल्स दशम जो निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था , ने उसको दबाने का कार्य किया । संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना न हो इस राह में उसने कई गतिरोध उत्पन्न किये । उसके प्रधानमंत्री पॉलीगेनिक ने समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग की स्थापना की तथा उन्हें विशेषाधिकार प्रदान किये । उसके इस कार्य से उदारवादियों में पोलिग्नेक के विरुद्ध 28 जुलाई 1830 ई 0 को चार अध्यादेशों के द्वारा उदार तत्वों का गला घोट दिया । फलस्वरूप फ्रांस में 28 जून 1830 ई ० से गृहयुद्ध आरम्भ हो गया इसे ही जुलाई 1830 ई 0 की क्रांति कहते हैं । इसका प्रभाव पूरे यूरोप पर पड़ा और राष्ट्रीयता की भावना का प्रस्फुटन हुआ उसमें सभी यूरोपीय राष्ट्रों के राजनैतिक एकीकरण संवैधानिक सुधारों तथा राष्ट्रवाद के विकास का मार्ग प्रशस्त किया ।
5. यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें ।
उत्तर – यूनान का अपना गौरवमय इतिहास रहा है । जिससे उसे पाश्चात्य का मुख्य सोत माना जाता रहा है । यूनानी सम्यता की साहित्यिक प्रगति विचार दर्शन , कला , चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्रों की उपलब्धियों उनके प्रेरणास्रोत थे । इसके बाद भी के अधीन था । फ्रांसीसी क्रांति से संस्कृति के आधार पर जिसका उद्देश्य तुर्की शासन से यूनान को स्वतंत्र करना था । यूनान सारे यूरोपवासिया के लिये प्रेरणा एवं सम्मान का पर्याय की स्वतंत्रता के पक्ष में था । 1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जारवाही का निर्णय लिया । नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया । रूस का जार भी व्यक्तिगत रूप से यूनान तुर्की के समर्थन में सिर्फ मिश्र था । युद्ध में तुर्की की सेना बुरी तरह पराजित हुई । जिसके फैलस्वरूप यूनान को स्वायतता देने की बात हुई । फलतः 1832 ई ० में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया और बवेरिया का शासक ‘ ओटो को राजा बनाया