प्रेस – संस्कृति एवं राष्ट्रवाद

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न ( 20 शब्दों में उत्तर दें ) : – निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें :
( क ) छापाखाना – छापाखाना के आविष्कार का महत्व इस भौतिक संसार में आग पहिया और लिपि की तरह है जिसने अपनी उपस्थिति से पूरे विश्व की जीवन शैली को एक नया आयाम दिया ।

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( ख ) गुटेनबर्ग – गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संघटित एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिए पंच , मेट्रिक्स मोल्ड आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारंभ किया ।
( ग ) बाइबिल -421 लाइन वाले बाइबिल का मुद्रण गुटेनबर्ग द्वारा शुरू किया गया लेकिन फस्ट और शुओफर द्वारा इसे पूर्ण किया गया क्योंकि दोनों ने गुटेनबर्ग के प्रेस को कोर्ट की डिग्री द्वारा अपने अधिकार में कर लिया था । इसके पश्चात गुटेनबर्ग ने पुनः मुद्र एवं हैण्ड प्रेस का विकास कर 36 लाइन में बाइबिल को 1448 ई ० में छापा ।

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( घ ) रेशम मार्ग – समरकन्द – पर्शिया – सिरिया मार्ग को ही रेशम मार्ग कहा जाती था । इसी मार्ग से मुद्रण कला का प्रसार एशिया से यूरोप गया ।
( ङ ) मराठा – बॉल गंगाधर तिलक के संपादन में 1881 ई 0 में बंबई से अंग्रजी भाषा में मराठा नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ ।
( च ) यंग इंडिया – महात्मा गांधी द्वारा संपादित यंग इन्डिया समाचार पत्र ने राष्ट्रवार्दी आंदोलन का प्रचार – प्रसार किया ।
( छ ) वर्नाक्यूलर प्रेस ऐक्ट- 1878 ई ० में लिटन द्वारा देशी भाषा के समाचार पत्रों पर नियंत्रण करने के लिये यह प्रेस ऐक्ट लाया गया ।
( ज ) सर सैयद अहमद -1857 ई 0 के बाद उर्दू प्रेस में सर सैयद अहमद खाँ राष्ट्रीय राजनीति में उभर कर आये । उनके विचार कांग्रेस के विचारों से मेल नहीं खाते थे ।
( झ ) प्रोटेस्टेन्टवाद – मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों को प्रेस के माध्यम से उजागर किया । इसी कारण चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेटवाद का अभ्युदय हुआ ।
( ज ) मार्टिन लूथर – लूथर एक धर्म सुधारक था जिसने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना की और उसकी एक प्रति गिरिजाघर में टांग दिया । आम लोगों मैं लूथर के लेख काफी लोकप्रिय हुए ।

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लघु उत्तरीय प्रश्न ( 60 शब्दों में उत्तर दें ) : –
1. गुटेनबर्ग ने मुद्रणयंत्र का विकास कैसे किया ?

उत्तर – गुटेनकी ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रणकला के ऐतिहासिक शोध को संघटित एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिये पंच , मैट्रिक्स , मोल्ड आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारंभ किया । मुद्रा बनाने के लिये विभिन्न धातुओं का उपयोग किया । फिर मुद्रण स्याही बनायी तथा हैण्ड प्रेस बनाकर उसका प्रयोग किया । कम्पोज किया हुआ टाइप मैटर बेड पर कस किया जाता था और उस पर स्याही लगाकर तथा कागज रखकर प्लेट्स द्वारा द्वाकर मुद्रित किया जाता था ।

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2 . छापाखाना यूरोप में कैसे पहुँचा  ?
उत्तर – छापाखाना ( मुद्रण कला ) के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन् को जाता है । परन्तु उस कला का प्रसार जब यूरोप में हुआ तो उसका विकास बहुत तेजी से हुआ । उसका कारण था कि चीनी भाषा में करीब 40 हजार वर्णाक्षर थे . सभी वर्गों का ब्लाक बनौकर उपयोग करना कठिन कार्य था । यह मुद्रणकला समरकुन्द – पर्शिया – सिरिया मार्ग से रिशम् मागी व्यापारियों द्वारा यूरोप में प्रशस्त हुआ । सर्वप्रथम रोम में आया । फिर जर्मनी इत्यादि देशों में आया ।

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3. ईन्क्वीजीशन से आप क्या समझते है । इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर – ईश्वर एवं सृष्टि के बारे में रोमन कैथोलिक चर्च की मान्यताओं के विपरीत विचार आने से कैथोलिक चर्च क्रुद्ध हो गया तथाकथित धर्मविरोधी विचारों को दबाने की प्रक्रिया को ही एक्वीजीशन कहते हैं जिसके माध्यम से विरोधी विचारधाराओं के प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाकर उनके विचारों को आम जनता में फैलने से रोकना था ।

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4. पाण्डुलिपि क्या है ? इसकी क्या उपयोगिता है ?

उत्तर – हाथ से लिखी हुई लिपी या वाक्यों को जो पत्रों चिन्हित होते थे , को पाण्डुलिपि कहते हैं । छापाखाना के आविष्कार से पहले भारत में इसकी पुरानी एवं समृद्ध परंपरा थी । पाण्डुलिपियाँ काफी मँहगी और नाजुक होती थी । इसकी लिखावट कठिन होने और प्रचुरता से उपलब्ध नहीं होने के कारण यह आम जनता के पहुँच से बाहर थी ।
5. लॉर्ड लिटन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिमान बनाया । कैसे ?
उत्तर -1878 ई ० में लार्ड लिटन ने देशी – भाषा समाचार पत्र अधिनियम प्रेस ऐक्ट लागू किया जिसे वर्नावयुलर एक्ट् कहा गया । इस अधिनियम के अनुसार समाचार पत्रों को और अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया गया । यह अधिनियम् देशी भाषा समाचार पत्रों के लिये मुहबंद करने वाला एवं भेदभाव पूर्ण था । नियंत्रण के वजाय इस ऐक्ट ने राष्ट्रीयता की भावना एवं जन असंतोष की भावना को गति ही प्रदान की ।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 150 शब्दों में उतर दें :

1. मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर – मुद्रण क्रान्ति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी वर्गों तक पहुँच गयी और पाठकों का एक नया वर्ग पैदा हुआ क्योंकि साक्षर ही पुस्तकों को पढ़ सकते थे । पढ़ने से पाठकों के अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ । पठन पाठन से विचारों का व्यापक प्रचार – प्रसार हुआ तथा तर्कवाद और मानवतावाद का द्वारा खुला । स्थापित विचारों से असहमत होनेवाले लोग भी अपने विचारों को फैला सकते थे । मुद्रण से नए बौद्धिक वातावरण का निर्माण हुआ एवं धर्म सुधार आंदोलन के नये विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक हुआ । अब गांव के गरीब भी सस्ती किताबों , चैपबुक्स , पंचांग एवं इतिहास आदि की किताबों को पढ़ना शुरू किये । वैज्ञानिक न्युटन , टामसपैन , वाल्टेयर आदि की पुस्तकें भारी संख्या में पढी जाने लगी । इस तरह हम कह सकते हैं कि मुद्रण क्रान्ति ने आधुनिक विश्व को केवल प्रभावित ही नहीं किया अपितु बदल दिया ।

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2. 19 वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें ।
उत्तर -19 वीं सदी में प्रेस के विकास के परिणाम स्वरूपू भारत में समाचार पत्रों का उदय । यह न सिर्फ विचारों को तेजी से फैलानेवाला अनिवार्य सामाजिक संस्था बन गया बल्कि ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने उसकी नीतियों एवं शोषण के विरूद्ध जागृति लाने एवं देश प्रेम की भावना जागृत कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया । 19 वीं सदी ( 1816 ई 0 ) में सर्वप्रथम सप्ताहिक बंगाल गजर्ट गगाधर भट्टाचार्य द्वारा प्रकाशित किया गया । 1821 ई 0 में बंगला में संवाद कौमुदी तथा फारसी में मिरातुल अखबार का प्रकाशन शुरू किया गया 19 वीं सदी में ही अंग्रेजों द्वारा संपादित कई सैमचारपत्र थे । जैसे टाइम्स ऑफ इण्डिया स्टेटमैन , इग्लिसमैन , पायनियर इत्यादि । इस सदी में उर्दू प्रेस का भी विकास हुआ । प्रकाशन किया । गांधी जी ने यग इण्डिया और हरिजन के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रीय आदोलन का प्रचार किया ।

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3. भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें ।
उत्तर -19 वीं सदी के में जागरूकता के अभाव के कारण सामान्य जनता से लेकर पत्रकारिता घाटे व्यापार था । समाचार पत्रों का जनमत पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होन निर्णयों में पक्षपात , धार्मिक हस्तक्षेप और प्रजातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं कारण अंगरेज प्रशासक भी परवाह नहीं करते थे । फिर भी समाचार पत्रों द्वारा न्यायिक सामाजिक आंदोलन को बल मिला तथा भारतीय जनमत जागूत हुआ । भारत में दो प्रकार के प्रेस थे ” ऍग्लोइन्डियन प्रेस की प्रकृति और आकार विदेशी था यह भारतीयों में फूट डालो और शासन करो का पक्षधर था । भारतीय प्रेस अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं प्रकाशित होते थे । 19 वीं तथा 20 वीं सदी में राम मोहन राय , सुरेन्द्र नाथ बनर्जी गंगाधर तिलक आदि ने भारतीय प्रेस को शक्तिशाली तथा प्रभावकारी बनाया।

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4. राष्ट्रीय आन्दोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर – देश के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा देने एवं राष्ट्रनिर्माण में भी प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही । प्रतस ने सरकार की नीतियों की समीक्षा तथा जनमत का निर्माण कर लोकतांत्रिक तरीके से उसके विरोध का मार्ग प्रशस्त किया । संपूर्ण देश के लोगों के बीच सामाजिक कुरीतियों को करने , राजनैतिक एवं सामाजिक एकता स्थापित करने का कार्य भी किया गया । विदेशी लिटन ने वर्नावयूलर प्रेस ऐक्ट के माध्यम से समाचार पत्रों पर प्रतिबंध में भी राष्ट्रीय आंदोलन एवं जनमानस को उद्वेलित किया । इस काल में हिन्दू – मुस्लिम दोनों प्रेस ने इसाइयों के विरुद्ध हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एकता लाने का प्रयास किया । प्रेस ने संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाधने , विभिन्न समुदाओं के बीच की दूरी समाप्त करने एवं शोषण के विरुद्ध जनमत तैयार करने का कार्य कर राष्ट्रीय आंदोलन एवं राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को तीव्र किया ।

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5. मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें । यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा ?
उत्तर – आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है । अतः सूचना की आवश्यकता ने आविस्कार हेतु ज्ञान जगत को प्रेरित किया । हलांकि यह आविष्कार कोई अचानक या एक दिन की घटना नहीं है बल्कि सदियों के अनवरत विकास क्रम की कहानी है । सर्वप्रथम ब्लॉक प्रिंटिंग का ज्ञान हुआ । 1005 ई. में कपास और मलमल की पट्टियों से कागज बनाया गया । मुद्रण कला के आविष्कार का श्रेय चीन को जाता है । 1041 ई . में एक चीनी पि – शेंग ने मिट्टी के मुद्र बनाए और इसने ब्लॉक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया । तत्पश्चात् धातु पर खोदकर टाइप बनाया गया । इस प्रकार 13 वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य कोरिया में पहली पुस्तक छापी गयी । मुद्रण कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ । लकड़ी तथा मूवेबल टाइपों का प्रसार तेजी से हुआ । इसी बीच कागज बनाने की कला 11 वीं सदी में पूरब से यूरोप पहुँची । 1336 ई 0 में प्रथम पेपरमिल की स्थापना जर्मनी में हुई । तत्पश्चात गुटेनबर्ग ने मुद्रण स्याही बनायी तथा हैण्डप्रेस का प्रथम बार मुद्रण कार्य सम्पन्न करने में प्रयोग किया । इस प्रकार एक सुस्पष्ट , सस्ता और शीघ्र कार्य करने वाला गुटेनबर्ग का ऐतिहासिक मुद्रण शोध 1440 ई में शुरू हुआ तथा आधुनिक प्रेस का सफर प्रारंभ हुआ । उसके बाद भी अनँवरत उसमें सुधार होता आ रहा है ।

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