जन-जन का चेहरा एक

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प्रश्न 1. “जन-जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है ? अथवा, “जन-जन का चेहरा एक” शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें ।

उत्तर- “जन-जन का चेहरा एक” अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं । कवि पीड़ित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है । उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है, किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दीखता, आर्थात् उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से जूझने ( संघर्ष करने) का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है ।

कहने का तात्पर्य यह है कि यह जनता दुनियाँ के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है अथवा इस प्रकार कहा जाए कि विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर- सभी स्थान के “जन-जन ” (प्रत्येक व्यक्ति) के चेहरे एक समान हैं। उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है । आशय स्पष्ट है विश्वबंधुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत् है उसी की पीड़ा का वर्णन कवि कर रहा है।

प्रश्न 2. बँधी हुई मुट्टियों का क्या लक्ष्य है ?

उत्तर- विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता की संकल्पशीलता ने उनकी मुट्ठियों को जोश में बाँध दिया है। कवि ऐसा अनुभव कर रहा है मानो “जन-जन” (समस्त जनता) अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण ऊर्जा से लबरेज अपनी मुट्ठियों द्वारा संघर्षरत है । प्रायः देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति क्रोध की मनोदशा में रहता है, अथवा किसी कार्य को सम्पादित करने की दृढ़ता तथा प्रतिबद्धता के भाव में जाग्रत होता है तो उसकी मुट्ठियाँ बँध जाती हैं। उसकी भुजाओं में नवीन स्फूर्ति का संचार होता है। यहाँ पर “बँधी हुई मुट्ठियों” का तात्पर्य कार्य के प्रति दृढ़ संकल्पशीलता तथा अधीरता (बेताबी) से है. जैसा इन पंक्तियों में वर्णित है, “जोश में यों ताकत से बँधी हुई मुठ्ठियों का लक्ष्य एक ।”

प्रश्न 3. कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है ? सितारे का इशारा किस ओर है ?

उत्तर- कवि ने अपने मन्तव्य (विचार) को प्रकट करने के लिए काफी हद तक प्रवृति का भी सहारा लिया है। कवि विश्व के जन-जन (प्रत्येक व्यक्ति) की पीड़ा, शोषण तथा अन्य समस्याओं का वर्णन करने के क्रम में अनेकों दृष्टान्तों का सहारा लेता है। इस क्रम में वह आकाश में भयानक सितारे की ओर इशारा करता है । वह सितारा जलता हुआ है और उसका रंग लाल है । प्रायः कोई वस्तु आग की ज्वाला में जलकर लाल हो जाती है। लाल रंग हिंसा, खून तथा प्रतिशोध का परिचायक है । इसके साथ ही यह उत्पीड़न, दमन, अशांति एवं निरंकुश पाशविकता की ओर भी संकेत करता है ।

‘जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक उद्दीपित उसका विकराल से इशारा एक । ” उपरोक्त पंक्तियों में एक लाल तथा भयंकर सितारा द्वारा विकराल सा इशारा करने की कवि की कल्पना है । आकाश में एक लाल रंग का सितारा प्रायः दृष्टिगोचर होता है, “मंगल” तारा (ग्रह) । संभवतः कवि का संकेत उसी ओर हो, क्योंकि उस तांरा की प्रकृति भी गर्म है । कवि ने जलता हुआ भयानक, सितारा जो लाल है- इस अभिव्यक्ति द्वारा सांकेतिक भाषा में उत्पीड़न, दमन एवं निरंकुश शोषकों द्वारा जन-जन के कष्टों का वर्णन किया है ।

इस प्रकार कवि विश्व की वर्तमान विकराल दानवी प्रकृति से संवेदनशील (द्रवित) हो गया प्रतीत होता है ।

प्रश्न 4. नदियों की वेदना का क्या कारण है ?

उत्तर- नदियों की वेगवती धारा में जिन्दगी की धारा के बहाव, कवि के अन्त: मन की वेदना को प्रतिबिम्बित करता है। कवि को उनके कल-कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा, इरावती, नील, आमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना को प्रकट करती है, जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। जनता की पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं ।

प्रश्न 5.अर्थ स्पष्ट करें:

( क ) आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार,

चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;

जन-जन का मित्र एक

उत्तर – आशा से परिपूर्ण लाल-लाल किरणों से अंधकार को चीरता हुआ मित्र का एक स्वर्ग । वह जन-जन का मित्र है। कवि के कहने का अर्थ यह है कि सूर्य की लाल किरणें अंधकार का नाश करते हुए मित्र के स्वर्ग के समान हैं। समस्त मानव समुदाय का वह मित्र है । विशेष अर्थ यह प्रतीत होता है कि विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता जो अपने अधिकारों की प्राप्ति, न्याय, शांति एवं बंधुत्व के लिए प्रयत्नशील है, उसे आशा की मनोहारी किरणें स्वर्ग के आनन्द के समान दृष्टिगोचर हो रही हैं।

(ख) एशिया के, यूरोप के, अमरीका के

भिन्न-भिन्न वास स्थान;

भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद,

सभी ओर हिन्दुस्तान, सभी ओर हिन्दुस्तान

उत्तर – भौगोलिक तथा ऐतिहासिक बन्धनों में बँधे रहने के बावजूद एशिया, यूरोप, अमरीका आदि जो विभिन्न स्थानों में अवस्थित हैं, उनमें केवल हिन्दुस्तान के ही शोहरत है । इसका आशय यह है कि एशिया, यूरोप, अमरीका आदि विभिन्न महादेशों में भारत की गौरवशाली तथा बहुरंगी परंपरा की धूम है, सर्वत्र भारतवर्ष (हिन्दुस्तान) की सराहना है । भारत विश्वबंधुत्व, मानवता, सौहार्द, करुणा, सच्चरित्रता आदि मानवोचित गुणों तथा संस्कारों का प्रणेता है । अतः सम्पूर्ण विश्व की जनता (निवासी) आशा तथा दृढ़ विश्वास के साथ इसकी ओर निहार रहो हैं ।

प्रश्न 6. “दानव दुरात्मा” से क्या अभिप्राय है ?

उत्तर – पूरे विश्व की स्थिति अत्यन्त भयावह, दारुण तथा अराजक हो गई है। दानव और दुरात्मा का अर्थ है- जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं, जिनका आचरण पाशविक होता है उन्हें दानव कहा जाता है । जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ‘दुरात्मा’ कहते हैं । वस्तुतः दोनों में कोई भेद नहीं है, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं । ये सर्वत्र पाए जाते हैं ।

प्रश्न 7. ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे “अतिक्रुद्ध” क्यों कहा है ?

उत्तर-ज्वाला का उद्गम स्थान मस्तिष्क तथा हृदय के अन्तर की उष्मा है । इसका अर्थ यह होता है कि जब मस्तिष्क में कोई कार्य योजना बनती है तथा हृदय की गहराई में उसके प्रति तीव्र उत्कंठा की भावना निर्मित होती है तब वह एक प्रज्जवलित ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। “अतिक्रुद्ध” का अर्थ होता है अत्यन्त कुपित मुद्रा में । आक्रोश की अभिव्यक्ति कुछ इसी प्रकार होती है । अत्याचार, शोषण आदि के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान हृदय की अतिक्रुद्ध ज्वाला की मनःस्थिति में होता है ।

प्रश्न 8. समूची दुनिया में जन-जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?

उत्तर – सम्पूर्ण विश्व में जन-जनका युद्ध जन मुक्ति के लिए चल रहा है । शोषक, खूनी चोर तथा अन्य अराजक तत्त्वों द्वारा सर्वत्र व्याप्त असन्तोष तथा आक्रोश की परिणति जन-जन के युद्ध अर्थात जनता द्वारा छेड़े गए संघर्ष के रूप में हो रहा है ।

प्रश्न 9. कविता का केन्द्रीय विषय क्या है ?

उत्तर – कविता का केन्द्रीय विषय पीड़ित और संघर्षशील जनता है । वह शोषण, उत्पीड़न तथा अनाचार के विरूद्ध संघर्षरत है। अपने मानवोचित अधिकारों तथा दमन की दानवी क्रूरता के विरूद्ध यह उसका युद्ध का उद्घोष है। यह किसी एक देश की जनता नहीं है, दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत जन-समूह है जो अपने संघर्षपूर्ण प्रयास से न्याय, शान्ति, सुरक्षा, बंधुत्व आदि की दिशा में प्रयासरत है । सम्पूर्ण विश्व की इस जनता (जन-जन) में अपूर्व एकता तथा एकरूपता है ।

प्रश्न 10. प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारू से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – गंगा, इरावती, नील, आमेजन आदि नदियाँ अपने अन्तर में समेटे हुए अपार जलराशि निरन्तर प्रवाहित कर रही हैं। उनमें वेग है, शक्ति है तथा अपनी जीवन धारा के प्रति एक बेचैनी है। प्यार भी है, क्रोध भी है। प्यार एवं आक्रोश का अपूर्व संगम है। उनमें एक करूणाभरी ममता है तो अत्याचार, शोषण एवं पाशविकता के विरूद्ध दोधारी आक्रमकता भी है। प्यार का इशारा तथा क्रोध की दुधारू का तात्पर्य यही है ।

प्रश्न 11. पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार किया है ?

उत्तर – पृथ्वी के प्रसार को दुराचारियों तथा दानवी प्रकृति वाले लोगों ने अपनी सेनाओं द्वारा गिरफ्तार किया है। उन्होंने अपने काले कारनाओं द्वारा प्रताड़ित किया है। उनके दुष्कर्मों तथा अनैतिक कृत्यों से पृथ्वी प्रताड़ित हुई है। इन मानवता के शत्रुओं ने पृथ्वी को गम्भीर यंत्रणा दी है ।

प्रश्न 12. ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का सारांश लिखिए ।

उत्तर – उत्तर के लिए कविता का सारांश देखें ।

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