प्रश्न 1. प्रातः काल का नभ कैसा था ?
अथवा, ‘उषा’ कविता के आधार पर प्रातःकालीन सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए ।
उत्तर – प्रातः काल का दृश्य बड़ा मोहक होता है । उस समय श्यामलता, श्वेतिमा तथा लालिमा का सुन्दर मिश्रण दिखाई देता है । रात्रि की नीरवता समाप्त होने लगती है। प्रकृति में नया निखार आ जाता है। आकाश में स्वच्छता, निर्मलता तथा पवित्रता व्याप्त दिखाई देती है । सरोवरों तथा नदियों के स्वच्छ जल में पड़नेवाले प्रतिबिम्ब बड़े आकर्षक तथा मोहक दिखाई देते हैं । आकाश लीपे हुए चौके के समान पवित्र, हल्की लाल केसर से युक्त सिल के समान तथा जल में झलकनेवाली गोरी देह के समान दिखाई देता है ।
प्रश्न 2. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर- सूर्योदय के समय आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा गीला चौका- सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है । कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिये बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके ।
प्रश्न 3. बिंब स्पष्ट करें-
"बहुत काली सिल जरा से लाल केसर कि जैसे धुल गई
उत्तर – प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्री शमशेर बहादुर सिंह की काव्यकृति के ‘उषा’ शीर्षक से उद्धृत की गयी है। शमशेर बहादुर सिंह प्रभाववादी कवि हैं। यही कारण है कि वह व्यक्तिगत अनुभूति तथा उसकी भावात्मक अभिव्यक्ति पर बल देते हैं। भावाभिव्यक्ति के लिए प्रतीकों, तथा बिंबों का आधार लिया है, किन्तु कवि में युद्ध अनुभूति से अधिक रोमांटिक भाव मिलता है। इस रोमांटिक भाव को आधुनिक जीवन बोध का परिणाम नहीं, बल्कि छायावादी प्रभाव कहा जाएगा। अतः कवि के बिंब प्रकृति का रूपांकन और व्यक्तिगत अनुभूति का सम्मूर्तन करते हैं। कवि ने अपनी संपूर्ण कविता में नाना बिंबों को प्रस्तुत किया है ।
उपरोक्त पंक्तियों में ‘उषा’ का चित्रण है। उक्त कविता में भाव-बिंब का प्रयोग किया गया है। कवि ने भाव-बिंबों में मूर्त का मूर्तिकरण किया है ।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने प्रकृति के रूपों का तुलनात्मक वर्णन करते हुए ‘उषा’ और नभ के रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया है । रचना-प्रक्रिया की दृष्टि से शमशेर मानवतावादी भावनाओं के कवि हैं। अपनी संवेदना और ज्ञान के द्वारा प्रकृति-रूप का मनोहारी वर्णन किया है ।
प्रश्न 4. उषा का जादू कैसा है ?
उत्तर- उषा का उदय आकर्षक होता है । नीले गगन में फैलती प्रथम सफेद लाल प्रातः काल की किरणें हृदय को बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। उसका बरबस आकृष्ट करना ही जादू है । सूर्य उदित होते ही यह भव्य प्राकृतिक दृश्य सूर्य की तरुण किरणों से आहत हो जाता है। उसका सम्मोहन और प्रभाव नष्ट हो जाता है ।
प्रश्न 5. ‘लाल केसर’ और ‘लाल खड़िया चाक’ किसके लिये प्रयुक्त है ?
उत्तर – लाल केसर- सूर्योदय के समय आकाश की लालिमा से कवि ने लाल केसर से तुलना की है। रात्रि को उन्होंने काली सिल से तुलना की है। काली सिल को लाल केसर से मलने पर सिलवट साफ हो जाती है । उसी प्रकार सूर्योदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है एवं आकाश में लालिमा छा जाती है ।
लाल खड़िया चाक-लाल खड़िया चाक उषाकाल के लिये प्रयुक्त हुई है । उषाकाल में हल्के अंधकार के आवरण में मन का स्वरूप ऐसा लगता है मानो किसी ने स्लेट पर लाल खली घिस दी हो।
प्रश्न 6. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथनों को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – पवित्रता – जिस स्थान पर मंगल कार्य करना हो, उसे राख से लीप कर पवित्र बना लिया जाता है। लीपे हुए चौके के समान ही प्रातः कालीन आकाश भी पवित्र है ।
निर्मलता – कालापन मलिन अथवा दोषपूर्ण माना जाता है। उसको निर्मल बनाने के लिए उसे जल आदि से धो लेते हैं। जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर रगड़ने से तथा बाद में उसे धोने से उस पर झलकनेवाली लालिमा उसकी निर्मलता की सूचक बन जाती है, उसी प्रकार प्रातः कालीन आकाश भी हल्की लालिमा से युक्त होने के कारण निर्मल दिखाई देता है ।
उज्ज्वलता – जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर उज्ज्वल चमक से युक्त तथा मोहक लगता है उसी प्रकार प्रातःकालीन आकाश भी उज्वल प्रतीत होता है ।
उज्ज्वलता – “नील जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो ।
प्रश्न 7. इस कविता में बिंब-योजना पर टिप्पणी लिखें ।
उत्तर – श्री शमशेर बहादुर सिंह ‘तार सप्तक’ के प्रमुख कवि हैं । ‘तारसप्तक’ के कवियों ने विंब – विधान की ओर तो पर्याप्त ध्यान दिया है, किन्तु काव्य बिंब पर सैद्धांतिक कम ही किया है। सामान्यतः तार सप्तक के कवि काव्य में बिंब के महत्व की स्वीकृति के प्रति एकमत हैं। उनके अनुसार बिंब-विधान काव्य की विषय वस्तु से और उसके रूप से घनिष्ठ रूप में सम्बद्ध है। साथ ही वे काव्य में बिंबों के साहचर्य से विषय में संक्षिप्तता और रूप में मूर्तता तथा दीप्ति का सन्निवेश भी मानते हैं ।
शमशेर ने अपनी ‘उषा’ कविता में अनेक बिंबों का प्रयोग किया है। बिंबों के द्वारा कल्पना को अमूर्त्तन स्वरूप देने में उन्होंने सफलता पायी है। आकाश का मानवीकरण करते हुए प्रातः कालीन नभ और उषा के प्रथम स्वरूप का सही चित्रण करते हुए कवि ने चाक्षुष बिंब का प्रयोग किया है । इन पंक्तियों में रंग योजना का सटीक प्रयोग हुआ है। प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण करते समय कवि की दृष्टि भूमि, पर्वत, सरिताओं, झीलों, मेघों और आकाश की ओर रहती है । कवि ने अपनी रंग योजना द्वारा अपने चाक्षुष बिंबों को अत्यंत कलात्मक बना दिया है। “बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई है।”
इन पंक्तियों में कवि ने भाव बिंब का चित्रण किया है । –
‘नील जल में या किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही है । “
निम्न पंक्तियों में कवि ने अपनी सूक्ष्म कल्पना शक्ति द्वारा प्रकृति के रूपों का मानवीकरण करते हुए उषा की तुलना गौर वर्ण वाले झिल-मिल जल में हिलते हुए अवतरित होने वाली नारी से किया है ।
और..
जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है । “
शमशेर की कविता में बिंब प्रयोग सटीक और सही हुआ है। कवि ने प्रकृति के सूक्ष्म रूपों का मनोहारी और कल्पना युक्त मूर्त्तन कर दक्षता प्राप्त की है । प्राकृतिक बिंबों द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति को मानवीकरण करके लोक जगत को काव्य रस से आप्लावित किया है । इनकी कविताओं में लय है, संक्षिप्तता भी है ।
प्रश्न 8. प्रातः नभ’ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यों की गई है ?
उत्तर- प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला शंख से की गयी है क्योंकि कवि के अनुसार प्रातः कालीन आकाश (नभ) गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह नीले शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। नीला शंख पवित्रता का प्रतीक है। प्रातःकालीन नभ भी पवित्रता का प्रतीक है। लोग उषाकाल में सूर्य नमस्कार करते हैं। शंख का प्रयोग भी पवित्र कार्यों में होता है। अतः, यह तुलना युक्तिसंगत है।
प्रश्न 9. नील जल में किसकी गौर देह हिल रही है ?
उत्तर- नीले आकाश में सूर्य की प्रातःकालीन किरण झिलमिल कर रही है मानो नीले जल में किसी गौरांगी का गौर शरीर हिल रहा हो।
प्रश्न 10. सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर – कवि ने आकाश के रंग के बारे में सिल का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि यह आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी काली सिल पर से केसर धुल गई हो । स्लेट का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया मिट्टी मल दी हो। इस उदाहरण द्वारा कवि ने श्वेतिमा तथा कालिमा के समन्वय का वर्णन कर आकाश की शोभा का वर्णन किया है ।
प्रश्न 11. भोर के नभ को राख से लीपा गया चौका के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर – भोर के नभ का रंग नीला होता है, पर साथ ही उसमें सफेदी भी झलकती है । राख से लीपे हुए चौके में भी नीलिमा अथवा श्यामलता के साथ सफेदी का मिश्रण होता है । यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लीपे की संज्ञा दी है । राख के ताज़े लीपे चौके में नमी भी होती है। भोर के नभ में भी ओस के कारण गीलापन है ।
प्रश्न 12. कविता में आरंभ से लेकर अंत तक बिंब योजना में गति का चित्रण कैसे हो सका है ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा, “उषा” शीर्षक कविता के बिम्बों को स्पष्ट करें।
उत्तर- शमशेर बिंबों और प्रतीकों के प्रयोग में भी विशिष्ट हैं। सामान्य बिंब भी उनकी कविताओं में विशेष होकर आते हैं। चाहे वह किसी प्रकार के बिंब और रूपाकार हों। ‘उषा’ ऐसी ही इनकी कविता है। इसमें कवि ने अनेक बिंबों के माध्यम से अपनी अनुभूति को अभिव्यक्त किया है। ‘उषा’ शीर्षक कविता में गतिमयता का चित्रण हुआ । प्रातःकालीन समय में नीला आकाश शंख सदृश्य भोर और राख से लीपा हुआ चौका उपमान के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। प्रातःकालीन उषा के निकलने के वक्त आकाश का रंग कैसा होता है, उसकी तुलना कवि ने शंख और राख से लीपा हुआ चौका से किया है। यहाँ पर कवि ने भाव बिंब का प्रयोग किया है। चाक्षुष बिंब की भी झलक मिलती है। आकाश के स्वरूप की तुलना कवि ने काली सिल पर रगड़ी गयी खड़िया के रंग-रूप से की है। इस पंक्ति में रूपात्मकता का चित्रण हुआ है। शमशेर की कविताओं में ‘उषा’ कविता के प्रारंभ से लेकर अंत तक गति का चित्रण हुआ है क्योंकि शमशेर एक मानवतावादी कवि हैं । शमशेर की काव्य रचना में वैष्णव भावना भी समाहित है जिसका प्रभाव उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखायी पड़ता है। नीले नभ में उषा का अवतरण ऐसे हो रहा है मानो कोई नारी नीले सागर के जल से झिलमिल रूप में हिलते हुए धरा पर अवतरित हो रही हैं। इसमें चाक्षुष और भाव बिंबों की कल्पना है । इन काव्य पंक्तियों में गतिमयता है क्योंकि ‘उषा’ का अवतरण अचानक नहीं हो जाता है, बल्कि धीरे-धीरे नील नभ के जल में गौर वर्ण वाली सुन्दर नारी के रूप में ।
प्रातः, नभ था बहुत नीला, शंख जैसे, भोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है )
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर ‘ कि जैसे धुल गई है।
निम्न काव्य पंक्तियों में कवि ने प्रकृति स्वरूप का मनोहारी चित्रण किया है। इसमें भाव विंब का प्रयोग हुआ है ।
नील जल में या किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो
और जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है।
निम्न पंक्तियों में कवि ने ‘उषा’ के नभ से अवतरित होते हुए स्वरूप का चित्रण करते हुए उसके रूप सौन्दर्य का चित्रण किया है। इसमें प्राकृतिक बिंब का वर्णन है। प्रकृति के स्वरूप का मानवीकरण किया गया है। इसे चाक्षुष बिंब भी कह सकते हैं क्योंकि इसमें कवि ने सूक्ष्म रूपाकारों की सृष्टि की है।
कवि का रचना संसार बिंबवादी है और सूक्ष्म रूपकारों की सृष्टि करता है। यह शमशेर के काव्य का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, पर इसके साथ ही वे यथार्थ और वाह्य तथ्यों को अपेक्षाकृत स्थूल रूपकारों द्वारा व्यक्त करते हैं। यही नहीं वे सृजनात्मकता को बहुआयामी बनाते हैं। शमशेर की इस जैविक एवं समष्टि दृष्टि को रेखांकित ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र से अपनी एवं विवेचित कर अनेक आलोचकों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। कवि के निजत्व और विशिष्ट संवेदन का उनकी कविताओं में सफल चित्रण हुआ है। इस प्रकार शमशेर अपनी कविताओं में गतिमयता का परिचय देते हैं।