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इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड संस्कृत कक्षा 10 पाठ तीनअलसकथा (Alas katha sanskrit class 10) के प्रत्येक पंक्ति के अर्थ के साथ उसके वस्तुनिष्ठ और विषयनिष्ठ प्रश्नों के व्याख्या को पढ़ेंगे।
3. अलसकथा (आलसी की कहानी)
पाठ परिचय- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ में संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।
आलस- किसी भी काम को देर से करने या उसके करने से बचने को कहा जाता है।
आलसी- जो सुस्त यानी निकम्मा होता है उसे आलसी कहा जाता है। आलसी व्यक्ति जीवन में सक्रिय नहीं होता है और समय पर अपना काम नहीं करता है। इस स्वभाव के लोग काम से बचने के बहाने ढ़ूँढ़ते हैं या फिर अपना काम दूसरों से करवाते हैं।
तृतीय पाठः अलस कथा (आलसी की कहानी)
अयं पाठः विद्यापतिकृतस्य कथाग्रन्थस्य पुरुषपरीक्षेतिनामकस्य अंशविशेषो वर्तते। पुरुषपरीक्षा सरलसंस्कृतभाषायां कथारूपेण विभिन्नानां मानवगुणानां महत्त्वं वर्णयति, दोषाणां च निराकरणाय शिक्षां ददाति।
यह पाठ विद्यापति रचित कथा ग्रन्थ पुरूष परीक्षा नामक ग्रंथ का अंश विशेष है। पुरूष परीक्षा कथा ग्रंथ में मानवीय गुणों पर प्रकाश डाला गया है और दोषों को दुर करने की शिक्षा दी गयी है ।
विद्यापतिः लोकप्रियः मैथिलीकविः आसीत्। अपि च बहूनां संस्कृतग्रन्थानां निर्मातापि विद्यापतिरासीत् इति तस्य विशिष्टता संस्कृतविषयेऽपि प्रभूता अस्ति। प्रस्तुते पाठे आलस्यनामकस्य दोषस्य निरूपणे व्यंगयात्मिका कथा प्रस्तुता विद्यते। नीतिकाराः आलस्यं रिपुरूपं मन्यन्ते।
विद्यापति लोकप्रिय मैथली कवि थे और अनेक संस्कृत ग्रंथों के निर्माता भी विद्यापति थे। उनकी विशेषता संस्कृत विषय में भी बहुत है। प्रस्तुत पाठ में आलस्य दोष है। इसे साबित करने के लिए व्यंग्यात्मक कथा प्रस्तुत किया गया है। नीतिकार लोग आलस्य को शत्रु मानते हैं। Alas katha sanskrit class 10
तृतीय पाठः अलस कथा (आलसी की कहानी)
आसीत् मिथिलायां वीरेश्वरो नाम मन्त्री। स च स्वभावाद् दानशीलः कारुणिकश्च सर्वेभ्यो दुर्गतेभ्योऽनाथेभ्यश्च प्रत्यहमिच्छाभोजनं दापयति। तन्मध्येऽलसेभ्योऽप्यन्नवस्त्रे दापयति। यतः –
मिथिला मे वीरेश्वर नाम का एक मंत्री था। वह स्वभाव से दानी और दयावान था। वह दीन-दु:खीयों तथा अनाथ लोगों को प्रतिदिन इच्छा भर भोजन देता था। वह आलसीयों को भी अन्न-वस्त्र देता था। क्योंकि-
निर्गतीनां च सर्वेषामलसः प्रथमो मतः।
किंचिन्न क्षमते कर्तुं जाठरेणाऽपि वहि्नना ।।
दुखी मनुष्यों में पहला स्थान आलसीयों का होता है। इनका मुख्य सिद्धांत भूखे रहना अच्छा है लेकिन कोई काम नहीं करना है। अर्थात् आलसी लोग पेट की आग सह लेते है किंतु परिश्रम करना नहीं चाहते हैं।
ततोऽलसपुरुषाणां तत्रेष्टलाभं श्रुत्वा बहवस्तुन्दपरिमृजास्तत्र वर्त्तुलिबभूवुः यतः –
इसके बाद आलसी व्यक्ति को वहाँ खूब धन लाभ सुनकर बहुत से तोंद बढ़े लोग जमा हो गये। क्योंकि-
स्थितिः सौकर्यमूला हि सर्वेषामपि संहते।
सजातीनां सुखं दृष्ट्वा के न धावन्ति जन्तवः।।
सुविधाजनक स्थिति को देखकर सभी लोग उसे प्राप्त करना चाहते हैं। कौन ऐसा जीव है जो अपने जाति का सुख देखकर नहीं दौड़ता हो। अर्थात् सभी कोई अपने जाति का सुख देखकर आकृष्ट होते हैं।
पश्चादलसानां सुखं दृष्ट्वा धूर्ता अपि कृत्रिममालस्यं दर्शयित्वा भोज्यं गृह्णन्ति। तदनन्तरमलसशालायां बहुद्रव्यव्ययं दृष्ट्वा तन्नियोगिपुरुषैः परामृष्टम् – यदक्षमबुद्ध्या करुणया केवलमलसेभ्यः स्वामी वस्तूनि दापयति, कपटेनाऽनलसा अपि गृह्णन्ति इत्यस्माकं प्रमादः।
बाद में आलसियों का सुख देखकर धूर्त भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन करते थे। इस बीच आलसियों पर अधिक खर्च देखकर राज पुरूषों के द्वारा विचार किया गया कि बुद्धि से हीन पर दया करके स्वामी द्वारा केवल आलसियों को वस्तुएँ दी जाती हैं। कपट से आलस्यहीन भी वस्तुएँ पाते हैं। यह हमारे आलस्य हैं ।
यदि भवति तदालसपुरुषाणां परीक्षां कुर्मः इति परामृश्य प्रसुप्तेषु अलसशालायां तन्नियोगिपुरुषाः वह्निं दापयित्वा निरूपयामासुः।
इसलिए उन आलस्यहीनों की जाँच की जाए, ऐसा विचारकर सोए अवस्था में आलसियों के घर में आग लगाकर जाँचा जाता है।
ततो गृहलग्नं प्रवृद्धमग्निं दृष्ट्वा धूर्ताः सर्वे पलायिताः। पश्चादीषदलसा अपि पलाचिताः।
इसके बाद घर में लगे आग को बढ़ते देखकर सभी धूर्त्त लोग भाग गये। इसके बाद कुछ आलसी लोग भी भाग गये।
चत्वारः पुरुषास्तत्रैव सुप्ताः परस्परमालपन्ति। एकेन वस्त्रावृतमुखेनोक्तम्- अहो कथमयं कोलाहलः ? द्वितीयेनोक्तम्- तर्क्यते यदस्मिन् गृहे अग्निर्लग्नोऽस्ति। तृतीयेनोक्तम्- कोऽपि तथा धार्मिको नास्ति य इदानीं जलाद्रैर्वासोभिः कटैवांस्मान् प्रावृणोति ? चवुर्थेनोक्तम्- अये वाचालाः। कति वचनानि वक्तुं शक्नुथ ? तूष्णीं कथं न तिष्ठथ ?
चार व्यक्ति वहीं सोये थे तथा परस्पर बात कर रहे थे। एक ने कपड़े से मुख ढ़क कर बोला- अरे हल्ला कैसा ? दूसरे ने कहा-लगता है कि इस घर में आग लग गयी है। तीसरे ने कहा- कोई भी ऐसा धार्मिक नहीं है, जो इस समय पानी से भीगें वस्त्रों से या चटाई से हमलोगों को ढ़क दे। चौथे ने कहा- अरे, बक-बक करने वालों कितनी बातें करते हो? चुपचाप क्यों नही रहते हो?
ततश्चतुर्णामपि तेषामेवं परस्परालापं श्रुत्वा वह्निं च प्रवृद्धमेषामुपरि पतिष्यन्तं दृष्ट्वा नियोगिपुरुषैर्वधभयेन चत्वारोऽप्यलसाः केशेष्वावाकृष्य गृहीत्वा गृहाद् बहिःकृताः। पश्चात्तानालोक्य तैर्नियोगिभिः पठितम्-
तब चारों की आपसी बात सुनकर और उसके ऊपर फैली हुई आग को देखकर नियोगी पुरूष की मृत्यु होने की भय से चारों आलसी को बाल पकड़ कर खींचते हुए बाहर निकाला गया तब उन्हें इस प्रकार देखकर नियोगी पुरूष द्वारा कहा गया-
पतिरेव गतिः स्त्रीणां बालानां जननी गतिः।
नालसानां गतिः काचिल्लोके कारुणिकं बिना।।
स्त्रियों का रक्षक पति होता है, बच्चों का रक्षक माँ होती है, लेकिन आलसियों का रक्षक दयावान पुरूष के अलावा संसार में और कोई नहीं होता है।
पश्चातेषु चतुर्ष्वलसेषु ततोऽप्यधिकतरं वस्तु मन्त्री दापयामास।
और बाद में उन चारों को पहले से भी अधिक वस्तुएँ मंत्री द्वारा दी जाने लगी। Alas katha sanskrit class 10
अलसकथा Objective Questions
प्रश्न 1. वीरेश्वर कौन था?
(A) मिथिला का राजा
(B) मिथिला का मंत्री
(C) मिथिला का राजकुमार
(D) मिथिला का संतरी
उत्तर- (B) मिथिला का मंत्री
प्रश्न 2. अलसशाला में आग क्यों लगाई गई ?
(A) आलसियों को भगाने के लिए
(B) आलसियों के परीक्षा करने के लिए
(C) अलसशाला के संपत्ति को हड़पने के लिए
(D) इनमें से किसी के लिए नहीं
उत्तर- (B) आलसियों के परीक्षा करने के लिए
प्रश्न 3. अलसकथा के रचयिता कौन है ?
(A) कालिदासः
(B) विद्यापतिः
(C) विष्णु शर्मा
(D) नारायण पण्डितः
उत्तर- (B) विद्यापतिः
प्रश्न 4. अलसशाला में आग लगने पर भी कितने लोग नहीं भागे ?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर- (D) 4
प्रश्न 5. संसार में बच्चों का सच्चा रक्षक कौन होता है?
(A) माता
(B) पिता
(C) भाई
(D) बहन
उत्तर- (A) माता
प्रश्न 6. घर में लगी आग को देखकर कौन लोग पलायन हो गये ?
(A) आलसी लोग
(B) समझदार लोग
(C) फुर्तीले लोग
(D) धूर्त लोग
उत्तर- (D) धूर्त लोग
प्रश्न 7. चारों आलसीयों को कैसे बाहर निकाला गया ?
(A) पैर पकड़कर
(B) हाथ पकड़कर
(C) केश पकड़कर
(D) बाँह पकड़कर
उत्तर- (C) केश पकड़कर
प्रश्न 8. बनावटी आलस्य दिखाकर कौन भोजन ग्रहण करते थे ?
(A) विद्वान
(B) धुर्त
(C) मुर्ख
(D) जानकार
उत्तर- (B) धुर्त
प्रश्न 9. ‘स्थितिः सौकर्यमूला हि ….. के न धावन्ति जन्तवः‘ यह उक्ति किस पाठ से संकलित है ?
(A) अलसकथा
(B) संस्कृत साहित्य लेखिकाः
(C) नीतिश्लोकाः
(D) व्याघ्र पथिक कथा
उत्तर- (A) अलसकथा
प्रश्न 10. वास्तविक आलसियों की संख्या कितनी थी?
(A) 1
(B) 2
(C) 3
(D) 4
उत्तर- (D) 4
लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय
प्रश्न 1. ’अलसकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है ? (2011C, 2015A 2020A І)
अथवा, ’अलसकथा’ पाठ के लेखक कौन हैं तथा उस कथा से क्या शिक्षा मिलती है? (2016A)
उत्तर- मैथिली कवि विद्यापति रचित ’अलसकथा’ में आलसियों के माध्यम से शिक्षा दी गयी है कि उनका भरण-पोषण करुणाशीलों अर्थात दयावानों के बिना संभव नहीं है। आलसी काम नहीं करते, ऐसी स्थिति में कोई दयावान् ही उनकी व्यवस्था कर सकता है। इसप्रकार आत्मनिर्भर न होकर वे दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं। आलस एक शत्रु है, उसे त्याग देना चाहिए।
प्रश्न 2. अलसशाला के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों ली ? (2020AІІ)
उत्तर- अलसशाला में बहुत सारे बनावटी आलस ग्रहण कर अन्न और वस्त्र प्राप्त करने लगे, जिससे अलसशाला का खर्च बढ़ गया । अधिक खर्च को देखकर को देखकर वहाँ के कर्मियों ने आलसियों की परीक्षा ली।
प्रश्न ३. अलसशला के कर्मियों ने आलसियों को आग से कैसे और क्यों निकाला ? (2020AІІ)
उत्तर- अलसशाला में बनावटी आलस ग्रहण कर लोग अन्न और वस्त्र ग्रहण करने लगे। तब वहाँ के कर्मियों ने अलसशाला में आग लगा दिया। वहाँ लगे आग को देखकर कृत्रिम आलसी भाग गये, लेकिन चार आलसी वहीं सोये रह गये। शोरगुल के बाद भी चारों आलसी सोये अवस्था में बातचीत कर रहे थे। वहाँ के कर्मियों ने सोचा कि अगर इन्हें नहीं निकाला जायेगा, तो ये जल जायेंगे। इसलिए अलसशाला के कर्मियों ने चारों आलसियों को उनके बाल पकड़कर बाहर निकाला।
प्रश्न 4. अलसशाला में आग लगने पर क्या हआ? (2018A)
उत्तर- अलसशाला में आग लगने पर सभी धूर्त आलसी तथा कृत्रिम आलस वाले भाग गए। लेकिन चार आलसी सोये हुए रह गए और आपस में बातें कर रहे थे। फैली आग को देखकर नियोगी पुरुष को दया आ गया। उन लोगों ने सोचा कि अगर इन्हें नहीं निकाला जाएगा तो जल जाऐंगे। तब उनलोगों ने चारों आलसियों के बाल पकड़कर खींचते हुए बाहर निकाला।
प्रश्न 5. मिथिला राज्य का मंत्री कौन था ? उन्होंने कृत्रिम आलसी की परीक्षा कैसे ली तथा अग्निलग्न घर देखकर कितने आलसी बच गये? (2016A)
उत्तर- मिथिला का मंत्री वीरेश्वर था। उन्होंने घर में आग लगाकर कृत्रिम आलसी की परीक्षा ली। अग्निलगन घर देखकर चार आलसी बच गए।
Bihar board class 10 sanskrit chapter 3 Alas katha sanskrit class 10
प्रश्न 6. विद्यापति कौन थे ? उन्होंने किस ग्रंथ की रचना की? पठित पाठ के आधार पर लिखें।
उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है तथा दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता भी थे। इनकी ख्याति मैथली विषयों के साथ-साथ संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।
प्रश्न 7. अलसकथा’ का क्या संदेश है?
अथवा, ’अलसकथा’ पाठ में किस पर चर्चा की गयी है? (2016A)
उत्तर- अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान रोग है। जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान शत्रु है जिससे अपना, परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है।
प्रश्न 8. किनकी क्या-क्या गतियाँ हैं? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें। (2018A)
उत्तर- गति को विद्यापति रचित पाठ ‘अलसकथा’ में व्याख्या किया गया है। स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की गतियाँ अलग-अलग हैं। स्त्रियों की गति पति हैं, बच्चों की गति माँ है तथा आलसियों की गति कारुणिकता (दयालुता) है। अर्थात् स्त्रियों की जीवनभंगिमा उसके पति पर निर्भर करती है। बच्चों की जीवनवृत्ति उसकी माँ ही होती है। आलसियों की जीवनवृत्ति दयालुओं पर ही निर्भर होती है।
प्रश्न 9. अलसकथा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ से संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।
प्रश्न 10. आलसशाला के कर्मचारियों ने आलसियों की परीक्षा क्यों और कैसे ली? (2018C)
उत्तर- अलसशाला में आलसियों की सुख-सुविधाओं को देखकर कम आलसी एवं कृत्रिम आलसियों की भीड़ जुटी थी। बड़े-बड़े तोंद वाले लोग भी बनावटी आलस्य ग्रहण कर भोजन और वस्त्र ग्रहण करने लगे। जिससे अलसशाला का खर्च बेवजह बढ़ गया था। अतः अलसशाला के व्यर्थ खर्च को रोकने तथा सही आलसियों की पहचान के लिए अलसशाला में आग लगा दी गई, जिससे नकली आलसी भाग खड़े हुए।
प्रश्न 11. चारों आलसियों के वार्तालाप को अपने शब्दों में लिखें। (2018A)
उत्तर- चारों आलसी निश्चय ही अपने आलसपन को सिद्ध कर रहे थे। एक ने मुंह ढंककर कहा-अरे हल्ला कैसा? दूसरे ने कहा-लगता है इस घर में आग लग गई है। तीसरे ने कहा-कोई धार्मिक व्यक्ति नहीं है, जो पानी से भींगे वस्त्रों से ढंक दे। चौथे ने कहा-अरे बक-बक करनेवालों ! कितनी बातें करते हो ? चुपचाप क्यों नहीं रहते हो !
प्रश्न 12. विद्यापति कौन थे? उन्होंने किस ग्रन्थ की रचना की तथा ’अलसकथा’ में किसकी कहानी है ? छः वाक्यों में लिखें। (2017A)
उत्तर- विद्यापति एक महान मैथली कवि एवं लेखक थे। इन्होंने पुरुष परीक्षा नामक ग्रंथ की रचना की। संस्कृत भाषा में लिखित पुरुष परीक्षा में कथारूप में अनेक मानवीय गुणों के महत्व का वर्णन है। दोष के निराकरण के लिए शिक्षा दी गयी है। विद्यापति एक लोकप्रिय मैथिलकवि थे। ये संस्कृत ग्रंथों के रचयिता थे। उनकी ख्याति संस्कृत विषयों में अत्यधिक थी।
प्रश्न 13. चारों आलसी पुरुष आग से किस प्रकार बचना चाहते थे?
अथवा, ’अलस कथा’ पाठ के आधार पर बताइए कि आलसी पुरुषों को किसने और क्यों निकाला? (2014A)
उत्तर- चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर हमारे ऊपर भींगे हुए वस्त्र या कंबल डाल दे। जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ। चूँकि आलसी व्यक्ति आग से बचने के लिए भी नहीं भाग सके इसलिए नियोगी पुरुष ने उनकी प्राण रक्षा के लिए उन्हें घर से बाहर किया।
प्रश्न 14. अलसकथा का सारांश लिखें। (2012A)
उत्तर- मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनाथों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोग बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गए। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त लोग भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक खर्च को देखकर अलसशाला चलाने वाले लोगों ने विचार किया कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं। यह हमलोगों की गलती है।
अतः उन आलसियों का परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर वैसे ही बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई आग की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे दयावान लोगों की दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहले से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।लहरी, कथा मुवक्ताली, विचित्र परिषद्यात्रा, ग्रामज्योति इत्यादि अनेक गद्य-पद्य की रचना की। इस समय लेखन कार्य में संलग्न कवित्रियों में पुष्पादीक्षित, वनमाला भवालकर, मिथिलेश कुमारी मिश्र आदि आए दिन संस्कृत साहित्य को पूरा करते है।
1. अलसकथा का वर्णय विषय क्या है ?
उत्तर- विद्यापति द्वारा रचित कथाग्रंथ ‘पुरुष परीक्षा’ नामक पुस्तक से लिया गया ‘अलसकथा’ मानव महत्व एवं दोषों के निराकरण की शिक्षा देता है। आलसियों को दान देने की इच्छा रखनेवाले बीरेश्वर ने यह जानने की उत्कंठा प्रकट की थी कि आलसी जीवन जीने की कला का कैसे निर्वहन करते हैं। इष्ट लाभ के लिए मेहनती भी आलसी का रूप लेकर पहुँचने लगते हैं। उनकी परीक्षा के लिए दानगृह में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। आलसी भागने के क्रम में गीले कपड़े से ढकने, घर में आग लगी है, यहाँ कोई धार्मिक नहीं है आदि की चर्चा करते हैं। आलसी केवल करूणा के पात्र होते हैं।
2. किनकी क्या-क्या गतियाँ हैं ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें ।
उत्तर- गति को यहाँ विशेष रूप से विश्लेषित किया गया है । स्त्री, पुरुष एवं बच्चों की गतियाँ अलग-अलग हैं। स्त्रियों की गति पति हैं, बच्चों की गति माँ है तथा आलसियों की गति कारुणिकता (दयालुता) है। अर्थात् स्त्रियों की जीवनभंगिमा उसके पति पर निर्भर करती है। बच्चों की जीवनवृत्ति उसकी माँ ही होती है। आलसियों की जीवनवृत्ति दयालुओं पर ही निर्भर होती है।
3.अलसकथा पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर- यह पाठ विद्यापति द्वारा रचित पुरुषपरीक्षा नामक कथाग्रन्थ से संकलित एक उपदेशात्मक लघु कथा है। विद्यापति ने मैथिली, अवहट्ट तथा संस्कृत तीनों भाषाओं में ग्रन्थ-रचना की थी। पुरुषपरीक्षा में धर्म, अर्थ, काम इत्यादि विषयों से सम्बद्ध अनेक मनोरंजक कथाएँ दी गयी हैं। अलसकथा में आलस्य के निवारण की प्रेरणा दी गयी है। इस पाठ से संसार की विचित्र गतिविधि का भी परिचय मिलता है।
4.“अलसकथा’ से क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर- मैथिली कवि विद्यापति रचित “अलसकथा” में आलसियों के माध्यम से शिक्षा दी गयी है कि उनका भरण-पोषण करुणाशीलों के बिना संभव नहीं है। आलसी काम नहीं करते, ऐसी स्थिति में कोई दयावान् ही उनकी व्यवस्था कर सकता है। अतएव आत्मनिर्भर न होकर दूसरे पर वे निर्भर हो जाते हैं।
5. “अलसकथा’ का क्या संदेश है ?
उत्तर- अलसकथा का संदेश है कि आलस्य एक महान् रोग है। आलसी का सहायक प्रायः कोई भी नहीं होता । जीवन में विकास के लिए व्यक्ति का कर्मठ होना अत्यावश्यक है। आलस्य शरीर में रहनेवाला महान् शत्रु है जिससे अपना, परिवार का और समाज का विनाश अवश्य ही होता है। यदि जीवन में विकास की इच्छा. रखते हैं तब आलस्य त्यागकर उद्यम को प्रेरित हों।
6. आलसी पुरुषों को आग से किसने निकाला ?
उत्तर- जब चार आलसी परुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे तब एक योगी पुरुष ने आकर उनके केशों को पकड़कर उन्हें ढकेलते हुए बाहर किया। इस प्रकार आलसी पुरुष आग से बचे।
7. चारों आलसी पुरुष आग से किस प्रकार बचना चाहते थे ?
उत्तर- चारों आलसी पुरुष आग लगने पर भी घर से नहीं भागे। शोरगुल सुनकर वे जान गए थे कि घर में आग लगी हुई है। वे चाहते थे कि कोई धार्मिक एवं दयालु व्यक्ति आकर आग पर जल, वस्त्र या कंबल डाल दे, जिससे आग बुझ जाए और वे लोग बच जाएँ।
8. ‘अलसकथा’ पाठ के आधार पर लेखक के विचार स्पष्ट करें।
उत्तर- ‘अलसकथा’ पाठ में लेखक विद्यापति ने अपने विचार को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि आलसी व्यक्ति बिना परिश्रम किए हुए जीवन व्यतीत करना चाहता है । कारूणिक व्यक्ति के बिना वह अपने को मौत से भी नहीं बचा पाता है । आलस्य शत्र के समान है।
9. अलस कथा का सारांश लिखें।
उत्तर- मिथिला में वीरेश्वर नामक मंत्री था। वह स्वभाव से दानशील और दयावान था। वह अनाथों और निर्धनों को प्रतिदिन भोजन देता था। इससे आलसी भी लाभान्वित होते थे। आलसियों को इच्छित लाभ की प्राप्ति को जानकर बहुत से लोक बिना परिश्रम तोन्द बढ़ानेवाले वहाँ इकट्ठे हो गये। इसके पश्चात् आलसियों को ऐसा सुख देखकर धूर्त लोक भी बनावटी आलस्य दिखाकर भोजन प्राप्त करने लगे। इसके बाद अत्यधिक धन-व्यय देखकर शाला चलाने वाले लोग विचार किये कि छल से कपटी आलसी भी भोजन प्राप्त करते हैं यह हमलोगों की गलती है। अतः उन आलसियों की परीक्षण करने हेतु उन्होंने आलसीशाला में आग लगाकर हल्ला कर दिया। इसके बाद घर में लगी आग को बढ़ती हुई देखकर सभी धूर्त भाग गये। लेकिन चार पुरुष अग्नि का आभास पाकर भी अपने स्थान पर यथावत बने रहकर बात करने लगे कि उन्हें कोई इस अग्नि से निकाल देता। अंततः व्यवस्थापक इस संबंध में उनकी आपस की वार्तालाप को सुनकर बढ़ी हुई अग्नि की ज्वाला से रक्षण हेतु उन्हें निकाल दिया। असली आलसियों की पहचान करते हुए उन्होंने पाया कि आलसी स्वयं अपना पोषण नहीं कर सकते। वे देव या दयावान लोगों की दया पर ही जीवित रह सकते हैं। अतः उन्हें मदद की पूर्ण जरूरत है। इसके बाद उन चारों आलसियों को पहन से अधिक चीजें मंत्री देने लगे।