Bihar Board Class 10 Sanskrit Chapter 14 शास्त्रकारा पीयूषम् भाग 2 | Sanskrit Objective Question 2025
इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड संस्कृत कक्षा 10 पाठ 14 शास्त्रकाराः (शास्त्र रचयिता) (Shastrakara class 10 sanskrit) के प्रत्येक पंक्ति के अर्थ के साथ उसके वस्तुनिष्ठ और विषयनिष्ठ प्रश्नों के व्याख्या को पढ़ेंगे।
14. शास्त्रकाराः (शास्त्र रचयिता)
पाठ परिचय- यह पाठ नवनिर्मित संवादात्मक है जिसमें प्राचीन भारतीय शास्त्रों तथा उनके प्रमुख रचयिताओं का परिचय दिया गया है। इससे भारतीय सांस्कृतिक निधि के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी- यही इस पाठ का उद्देश्य है।
(भारते वर्षे शास्त्राणां महती परम्परा श्रूयते। शास्त्राणि प्रमाणभूतानि समस्तज्ञानस्य स्रोतःस्वरूपाणि सन्ति। अस्मिन् पाठे प्रमुखशास्त्राणां निर्देशपूर्वकं तत्प्र वर्तकानाञ्च निरूपणं विद्यते। मनोरञ्जनाय पाठेऽस्मिन् प्रश्नोत्तरशैली आसादिता वर्तते।)
भारतीय शास्त्रों की बहुत बड़ी परम्परा सुनी जाती है। शास्त्र प्रमाण स्वरूप समस्त ज्ञान का स्त्रोत स्वरूप है। इस पाठ में प्रमुख शास्त्रों का निर्देशपूर्वक उसके प्रवर्त्तकों का निरूपण है। इस पाठ में मनोरंजन के लिए प्रश्नोत्तर शैली अपनायी गयी है।
14. शास्त्रकाराः (शास्त्र रचयिता)
(शिक्षकः कक्षायां प्रविशति, छात्राः सादरमुत्थाय तस्याभिवादनं कुर्वन्ति ।)
(शिक्षक वर्ग में प्रवेश करते हैं छात्र लोग, आदरपूर्वक उठकर उनका अभिवादन करते हैं।)
शिक्षकः- उपविशन्तु सर्वे। अद्य युष्माकं परिचयः संस्कृतशास्त्रैः भविष्यति।
शिक्षकः- सभी लोग बैठ जाएँ। आज आपलोगों का परिचय संस्कृत शास्त्रों से होगा।
युवराजः- गुरुदेव । शास्त्रं किं भवति ?
युवराजः- गुरुदेव ! शास्त्र क्या होता है।
शिक्षकः- शास्त्रं नाम ज्ञानस्य शासकमस्ति। मानवानां कर्त्तव्याकर्त्तव्यविषयान् तत् शिक्षयति। शास्त्रमेव अधुना अध्ययनविषयः (Subject) कथ्यते, पाश्चात्यदेशेषु अनुशासनम् (discipline) अपि अभिधीयते। तथापि शास्त्रस्य लक्षणं धर्मशास्त्रेषु इत्थं वर्तते –
शिक्षकः- शास्त्र नाम का चीज ज्ञान का शासक है। मनुष्य के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य विषयों की वह सीख देता है। शास्त्र ही आजकल अध्ययन विषय कहा जाता है। पश्चिमी देशों में अनुशासन भी कहा जाता है । इसके बाद भी शास्त्र का लक्षण धर्मशास्त्रों में है-
प्रवृत्तिर्वा निवृत्तिर्वा नित्येन कृतकेन वा।
पुंसां येनोपदिश्येत तच्छास्त्रमभिधीयते।
मनुष्यों को जिससे सांसारिक विषयों में अनुरक्ति अथवा विरक्ति अथवा मानव रचित विषयों का उचित ज्ञान मिलता है, उसे धर्म शास्त्र कहा जाता है। तात्पर्य यह कि जिस शास्त्र से किस आचरण को अपनाया जाए तथा किस आचरण को त्यागा जाए का ज्ञान प्राप्त हो, उसे धर्मशास्त्र कहते हैं।
Shastrakara class 10 Sanskrit
अभिनवः- अर्थात् शास्त्रं मानवेभ्यः कर्त्तव्यम् अकर्तव्यञ्च बोधयति। शास्त्रं नित्यं भवतु वेदरूपम्, अथवा कृतकं भवतु ऋष्यादिप्रणीतम्।
अभिनवः- अर्थात् शास्त्र मानवों के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का बोध कराता है। वेदरूप शास्त्र नित्य होता है अथवा ऋषियों द्वारा रचित शास्त्र कृत्रिम होता है।
शिक्षकः- सम्यक् जानासि वत्स ! कृतकं शास्त्रं ऋषयः अन्ये विद्वांसः वा रचितवन्तः। सर्वप्रथम षट् वेदाङ्गानि शास्त्राणि सन्ति। तानि – शिक्षा, कल्पः, व्याकरणम्, निरुक्तम्, छन्दः ज्योतिषं चेति।
शिक्षकः- सही जाने वत्स ! कृत्रिम शास्त्र ऋषियों या अन्य विद्वानों से रचा गया है। सर्वप्रथम वेद के अंग स्वरूप छः शास्त्र हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष।
इमरानः- गुरुदेव ! एतेषां विषयाणां के-के प्रणेतारः ?
इमरानः- गुरुदेव। इन विषयों के कौन- कौन रचयिता हैं।
शिक्षकः- शृणुत यूयं सर्वे सावहितम्। शिक्षा उच्चारणप्रक्रियां बोधयति। पाणिनीयशिक्षा तस्याः प्रसिद्धो ग्रन्थः। कल्पः कर्मकाण्डग्रन्थः सूत्रात्मकः। बौधायन-भारद्वाज-गौतम वसिष्ठादयः ऋषयः अस्य शास्त्रस्य रचयितारः। व्याकरणं तु पाणिनिकृतं प्रसिद्धम्।
शिक्षकः- तुमलोग सावधान होकर सुनो। शिक्षा उच्चारण क्रिया का ज्ञान कराता है। पाणिनी शिक्षा उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कल्प सूत्रात्मक कर्मकाण्ड ग्रन्थ है। बौद्धायन- भारद्वाज-गौतम-वसिष्ठ आदि ऋषि इस शास्त्र के रचनाकार हैं। व्याकरण तो पाणिनीकृत प्रसिद्ध है।
निरुक्तस्य कार्य वेदार्थबोधः। तस्य रचयिता यास्कः। छन्दः पिङ्गलरचिते सूत्रग्रन्थे प्रारब्धम्। ज्योतिषं लगधरचितेन वेदाङ्गज्योतिषग्रन्थेन प्रावर्तत।
निरुक्त का कार्य वेद के अर्थ को बोध कराना है। उसके रचयिता यास्क हैं। छन्दशास्त्र पिङ्गल रचित ग्रन्थ है। ज्योतिषशास्त्र को लगध के द्वारा रचित वेदांग ज्योतिष ग्रन्थ से लिखा गया।
अब्राहमः- किमेतावन्तः एव शास्त्रकाराः सन्ति ?
अब्राहमः- क्या ये सब ही शास्त्रकार लोग हैं।
शिक्षकः- नहि नहि। एते प्रवर्तकाः एव। वस्तुतः महती परम्परा एतेषां शास्त्राणां परवर्तिभिः सञ्चालिता। किञ्च, दर्शनशास्त्राणि षट् देशेऽस्मिन् उपक्रान्तानि।
शिक्षकः- नहीं नहीं ! ये सभी संस्थापक ही हैं। वस्तुतः बहुत बड़ी परम्परा इन शास्त्रों को पूर्व के लोगों के द्वारा चालायी गयी है। क्योंकि इस देश में छः दर्शनशास्त्र को चलाया गया।
श्रुतिः- आचार्यवर ! दर्शनानां के-के प्रवर्तकाः शास्त्रकाराः ?
श्रुतिः- आचार्य श्रेष्ठ ! दर्शनशास्त्र को चलाने वाले कौन-कौन शास्त्रकार हैं।
शिक्षकः- सांख्यदर्शनस्य प्रवर्तकः कपिलः। योगदर्शनस्य पतञ्जलिः। एवं गौतमेन न्यायदर्शनं रचितं कणादेन च वैशेषिकदर्शनम्। जैमिनिना मीमांसादर्शनम्, बादरायणेन च वेदान्तदर्शनं प्रणीतम्। सर्वेषां शताधिकाः व्याख्यातारः स्वतन्त्रग्रन्थकाराश्च वर्तन्ते।
शिक्षकः- सांख्य दर्शन को चलाने वाले कपिल हैं। योगदर्शन के पतंजलि हैं। उसी प्रकार गौतम के द्वारा न्याय दर्शन को रचा गया, कनाद के द्वारा वैशेषिक दर्शन की रचना हुई। जैमिनि के द्वारा मीमांशा दर्शन की रचना हुई और बादरायण के द्वारा वेदांत दर्शन लिखा गया। सबों में सौ से अधिक व्याख्याता और स्वतंत्र ग्रन्थाकार हैं।
गार्गी- गुरुदेव ! भवान् वैज्ञानिकानि शास्त्राणि कथं न वदति ?
गार्गी- गुरुदेव ! वैज्ञानिक शास्त्र के बारे में क्यों नहीं बोलते हैं ?
शिक्षकः- उक्तं कथयसि । प्राचीनभारते विज्ञानस्य विभिन्नशाखानां शास्त्राणि प्रावर्तन्त। आयुर्वेदशास्त्रे चकरसहिता, सुश्रुतसंहिता चेति शास्त्रकारनाम्नैव प्रसिद्ध स्तः। तत्रैव रसायनविज्ञानम्, भौतिकविज्ञानञ्च अन्तरर्भू स्तः। ज्योतिषशास्त्रेऽपि खगोलविज्ञानं गणितम् इत्यादीनि शास्त्राणि सन्ति। आर्यभटस्य ग्रन्थः आर्यभटीयनामा प्रसिद्धः ।
शिक्षकः- कहा जाता है । प्राचीन भारत में विज्ञान के विभिन्न शाखाओं के शास्त्रों को रचा गया। आयुर्वेद शास्त्र में चरक संहिता और सुश्रुतसंहिता शास्त्रकार के नाम से दोनों प्रसिद्ध हैं। उसमें ही रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान समाहित है। ज्योतिष शास्त्र में भी खगोल विज्ञान गणित इत्यादि शास्त्र हैं। आर्यभट का ग्रन्थ आर्यभटीयनामा प्रसिद्ध हैं।
एवं वराहमिहिरस्य बृहत्संहिता विशालो ग्रन्थः यत्र नाना विषयाः समन्विताः। वास्तुशास्त्रमपि अत्र व्यापक शास्त्रमासीत्। कृषिविज्ञानं च पराशरेण रचितम्। वस्तुतो नास्ति शास्त्रकाराणाम् अल्पा संख्या।
वास्तुशास्त्र भी यहाँ बहुत बड़ा शास्त्र था। और कृषि विज्ञान को पराशर के द्वारा रचना की गयी। इसी प्रकार वराहमिहिर का वृहतसंहिता विशाल ग्रन्थ है जिसमें अनेक विषय समन्वित हैं।
वर्गनायकः- गुरुदेव ! अद्य बहुज्ञातम्। प्राचीनस्य भारतस्य गौरवं सर्वथा समृद्धम्।
वर्गनायकः- गुरुदेव! आज बहुत जानकारी हुई। प्राचीन भारत का गौरव हमेशा समृद्ध रहा है।
(शिक्षकः वर्गात् निष्क्रामति। छात्राः अनुगच्छन्ति)
(शिक्षक वर्ग से निकलते हैं। उनके पीछे-पीछे छात्र भी निकलते हैं।) Chapter 14 Shastrakara class 10 sanskrit
शास्त्रकाराः Objective Questions
1. शास्त्र क्या है ? पठित पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर- शास्त्र का अर्थ ज्ञान का शासक या निर्देशक तन्त्र है। मनुष्यों के कर्तव्य और अकर्तव्य विषयों की वह शिक्षा देता है। शास्त्र को ही आजकल अध्ययन । विषय कहते हैं। पश्चिमी देशों में शास्त्र को अनुशासन कहा जाता है। सांसारिक । विषयों में अनुरक्ति अथवा विरक्ति, नित्य मानव रचित, कृतियों के द्वारा मानव को जो उपदेश दिया जाता है उसे शास्त्र कहा जाता है। शास्त्र नित्य वेदरूप या मानव रचित ऋषियों आदि द्वारा प्रणीत होता है।
2.वेदांङ्गशास्त्र कितने और कौन-कौन हैं ? इनके क्या उद्देश्य हैं।
उत्तर-वेदांङ्गशास्त्र छः हैं। वे शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्द और ज्योतिष हैं। शिक्षा उच्चारण प्रक्रिया का ज्ञान कराती है। कल्प सूत्रात्मक कर्मकाण्ड ग्रंथ है। व्याकरण वर्ण, शब्द, वाक्य आदि का अध्ययन कराता है। निरूक्त का कार्य वेद के अर्थ का बोध कराना है। छन्द सूत्र ग्रंथ है। ज्योतिष वेदांग ज्योतिष ग्रंथ है।
3. शास्त्रकाराः पाठ का पाँच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर- यह नवनिर्मित संवादात्मक पाठ है जिसमें प्राचीन भारतीय शास्त्रों तथा उनके प्रमुख रचयिताओं का परिचय दिया गया है। इससे भारतीय सांस्कृतिक निधि के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होगी- यही इस पाठ का उद्देश्य है। इस वार्तालाप का उपयोग कक्षा में हो सकता है।
4. . ‘शास्त्रकाराः’ पाठ के आधार पर शास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर-सांसारिक विषयों से आसक्ति या विरक्ति, स्थायी, अस्थायी या कृत्रिम उपदेश जो लोगों को देता है उसे शास्त्र कहते हैं । यह मानवों के कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध कराता है । यह ज्ञान का शासक है। आजकल अध्ययन विषय को भी शास्त्र कहा जा सकता है। पाश्चात्य देशों में अनुशासन को ही शास्त्र कहते हैं।
5. वेदरूप शास्त्र और कृत्रिम शास्त्र में क्या अंतर है ?
उत्तर-जो शास्त्र ईश्वरप्रदत्त है, नित्य है, उस शास्त्र को वेदरूप शास्त्र कहते हैं। कृत्रिम शास्त्र उस शास्त्र को कहते हैं, जो ऋषियों द्वारा लिखे गए हैं, अथवा विद्वानों द्वारा रचे गए हैं । ‘वेद’ वेदरूप शास्त्र का उदाहरण है तथा ‘रामायण’ कृत्रिम शास्त्र का उदाहरण है।
6. वेद के अङ्गों तथा उसके प्रवर्तकों के नाम लिखें।
उत्तर-वेद के छ: अङ्ग हैं-(i) शिक्षा (ii) कल्प (iii) व्याकरण (iv) निरुक्त (v) छन्द और (vi) ज्योतिष । शिक्षा अङ्ग उच्चारण-प्रक्रिया का बोध कराता है। इसके प्रवर्तक पाणिनी हैं। कल्प अङ्ग में सूत्रात्मक कर्मकांड ग्रंथ है जिसके प्रवर्तक बौधायन, भारद्वाज, गौतम, वशिष्ठ आदि ऋषि हैं । व्याकरण अङ्ग के प्रवर्तक पाणिनी हैं । निरुक्त वेद अर्थ का बोध कराता है। इसके प्रवर्तक यास्क हैं। छन्द अङ्ग सूत्रग्रंथ है, जिसके प्रवर्तक पिङ्गल हैं तथा ज्योतिष अङ्ग के प्रवर्तक लगधर ऋषि हैं।
7. भारतीय दर्शनशास्त्रों तथा उनके प्रवर्तकों की चर्चा करें।
उत्तर–भारत दर्शनशास्त्र छः हैं । सांख्य-दर्शन के प्रवर्तक कपिल, योग-दर्शन के प्रवर्तक पतञ्चलि. न्याय-दर्शन के प्रवर्तक गौतम. वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक कणाद मीमांसा-दर्शन के प्रवर्तक जैमिनी तथा वेदांत-दर्शन के प्रवर्तक बदरायण ऋषि हैं।
8. प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों एवं उनके द्वारा रचित पुस्तकों का वर्णन करें।
उत्तर—प्राचीन भारत में अनेक वैज्ञानिक ऋषि थे, जिन्होंने विज्ञान-संबंधी रचनाएँ लिखीं। आयुर्वेदशास्त्र में चरक-रचित चरक-संहिता एवं सुश्रुत-रचित सुश्रुतसंहिता अति प्रसिद्ध है। इनमें रसायनविज्ञान और भौतिकविज्ञान का भी वर्णन है। आर्यभट्ट का ग्रंथ ‘आर्यभट्टीयम्’ अति प्रसिद्ध है जिसमें खगोलविज्ञान एवं गणितशास्त्र की विस्तृत व्याख्या है। वराहमिहिर रचित वृहदसंहिता एक विशाल ग्रंथ है। जिसमें अनेक विषयों का वर्णन है। कृषिविज्ञान के रचयिता महर्षि पराशर हैं। इसमें वैज्ञानिक कृषि का वर्णन है
9. ‘शास्त्राकाराः’ पाठ में प्रश्नोत्तर शैली क्यों अपनाई गई है ?
उत्तर-भारतवर्ष में शास्त्रों की बहुत बड़ी परंपरा है। मनोरंजन के लिए शास्त्रकाराः पाठ में प्रश्नोत्तर शैली अपनाई गई है।
10. ‘शास्त्रकाराः’ पाठ में शास्त्रों में प्रवर्तकों का वर्णन क्यों है ?
उत्तर-भारत प्राचीन काल में ज्ञान के क्षेत्र में आगे था। विज्ञान दर्शन के क्षेत्र में यह विश्व को ज्ञान देता था। प्राचीन शास्त्र मात्र पूजा एवं कर्मकांड तक ही सीमित नहीं था। इसलिए शास्त्रकाराः पाठ में प्राचीन शास्त्रों एवं उनके प्रवर्तकों का वर्णन है।
11. ‘शास्त्रकाराः’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर-प्रस्तुत पाठ में लेखक ने बताया है कि भारतवर्ष में शास्त्रों की महती परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। समस्त ज्ञान के स्रोत शास्त्र ही हैं। शास्त्र के प्रवर्तक शास्त्रों के माध्यम से सद्गुणों को ग्रहण करने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। इससे हम अच्छे संस्कार और यश प्राप्त करते हैं। प्रश्नोत्तर शैली के कारण हमारा मनोरंजन भी होता है।
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