जित-जित मैं निरखत हूँ

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 प्रश्न 1. लखनऊ और रामपुर से बिरजू महाराज का क्या संबंध है ?
उत्तर-
लखनऊ में बिरजू महाराज का जन्म हुआ था। और बहनों का जन्म रामपुर में। रामपुर में बिरजू महाराज काफी दिन रहे।

प्रश्न 2. रामपुर के नवाब की नौकरी छुटने पर हनुमान जी को प्रसाद क्यों चढ़ाया ?
उत्तर-
रामपुर के नवाब की नौकरी छूटने पर हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया क्योंकि महाराज जी छह साल की उम्र में नवाब साहब के यहाँ नाचते थे। अम्मा परेशान थी। बाबूजी नौकरी छूटने । के लिए हनुमान जी का प्रसाद माँगते थे। नौकरी से जान छूटी इसलिए हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाया गया।

 

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 प्रश्न 3. नृत्य की शिक्षा के लिए पहले-पहल बिरजू महाराज किस संस्था से जुड़े और वहाँ किनके सम्पर्क में आए ?
उत्तर-
पहले-पहल उन्होंने निर्मला जी के स्कूल दिल्ली में हिन्दुस्तानी डान्स म्यूजिक से जुड़े। वहाँ वे कपिला जी, लीला कृपलानी आदि के संपर्क में आये।

 प्रश्न 4. किनके साथ नाचते हुए बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला?
उत्तर-
कलकत्ता में बिरजू महाराज को पहली बार प्रथम पुरस्कार मिला। इसमें शम्भू महाराज चाचा जी और बाबू जी दोनों नाचे।

 

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प्रश्न 5. बिरजू महाराज के गुरु कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर-
बिरजू महाराज के गुरु उनके बाबूजी थे। वे अच्छे स्वभाव के थे। वे अपने दुःख को व्यक्त नहीं करते थे। उन्हें कला से बेहद प्रेम था। जब बिरजू महाराज साढ़े नौ साल के थे, उसी समय बाबूजी की मृत्यु हो गई। महाराज को तालीम बाबूजी ने ही दिया।

 

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 प्रश्न 6. बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा किसे और कब देने शुरू की?
उत्तर-
बिरजू महाराज ने नृत्य की शिक्षा रश्मि जी को करीब 56 के आसपास जब उन्हें सीखने वाले की खोज थी, देनी शुरू की। उस समय महाराज को सही पात्र की खोज थी।

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 प्रश्न 7. बिरजू महाराज के जीवन में सबसे दुःखद, समय कब आया ? उससे संबंधित प्रसंग का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जब महाराज जी के बाबूजी की मृत्यु हुई तब उनके लिए बहुत दुखदायी समय व्यतीत हुआ। घर में इतना भी पैसा नहीं था कि दसवाँ किया जा सके। इन्होंने दस दिन के अन्दर दो प्रोग्राम किए। उन दो प्रोग्रामों से 500 रु० इकट्ठे हुए तब दसवाँ और तेरह की गई। ऐसी हालत में नाचना एवं पैसा इकट्ठा करना महाराजजी के जीवन में दु:खद समय आया।

 

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प्रश्न 8. शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज के संबंध में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
शंभू महाराज के साथ बिरजू महाराज बचपन में नाचा करते थे। आगे भारतीय कला केन्द्र में उनका सान्निध्य मिला। शम्भ महाराज के साथ सहायक रहकर कला के क्षेत्र में विकास किया। शम्भू महाराज उनके चाचा थे। बचपन से महाराज को उनका मार्गदर्शन मिला।

 

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 प्रश्न 9. कलकत्ते के दर्शकों की प्रशंसा का बिरजू महाराज के नर्तक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
कलकत्ते के एक कांफ्रेंस में महाराजजी नाचे। उस नाच की कलकत्ते के श्रोताओं दर्शकों ने प्रशंसा की। तमाम अखबारों में छा गये। वहाँ से इनके जीवन में एक मोड़ आया। उस समय से निरंतर आगे बढ़ते गये।

प्रश्न 10. संगीत भारती में बिरजू महाराज की दिनचर्या क्या थी?
उत्तर-
संगीत भारती में प्रारंभ में 250 रु० मिलते थे। उस समय दरियागंज में रहते थे। वहाँ से प्रत्येक दिन पाँच या नौ नंबर का बस पकड़कर संगीत भारतीय पहुँचते थे। संगीत भारती में इन्हें प्रदर्शन का अवसर कम मिलता था। अंततः दुःखी होकर नौकरी छोड़ दी।

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प्रश्न 11. बिरजू महाराज कौन-कौन से वाद्य बजाते थे।
उत्तर-
सितार, गिटार, हारमोनियम, बाँसुरी, तबला और सरोद।

 

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प्रश्न 12. अपने विवाह के बारे में बिरजू महाराज क्या बताते हैं ?
उत्तर-
बिरजू महाराज की शादी 18 साल की उम्र में हुई थी। उस समय विवाह करना महाराज अपनी गलती मानते हैं। लेकिन बाबूजी की मृत्यु के बाद माँ ने घबराकर जल्दी में शादी कर दी। शादी को नुकसानदेह मानते हैं। विवाह की वजह से नौकरी करते रहे।

 

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प्रश्न 13. बिरजू महाराज की अपने शागिर्दो के बारे में क्या राय है?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपने शिष्या रश्मि वाजपेयी को भी अपना शार्गिद बताते हैं। वे उन्हें शाश्वती कहते हैं। इसके साथ ही वैरोनिक, फिलिप, मेक्लीन, टॉक, तीरथ प्रताप प्रदीप, दुर्गा इत्यादि को प्रमुख शार्गिद बताये हैं। वे लोग तरक्की कर रहे हैं, प्रगतिशील बने हुए हैं, इसकी भी चर्चा किये हैं।

 

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प्रश्न 14.
व्याख्या करें
(क) पांच सौ रुपए देकर मैंने गण्डा बंधवाया।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज से है।
बिरजू महाराज को शिक्षा उनके पिताजी से ही मिली थी। वे ही उनके आरंभिक गुरु थे। गुरु-दक्षिणा में पिताजी ने अम्मा से कहा कि जबतक तुम्हारा लड़का नजराना यानी गुरु दक्षिणा नहीं देगा तबतक मैं उसे गण्डा नहीं बांधूंगा। बिरजूजी को 500/- पाँच सौ रुपये के दो प्रोग्राम मिले थे। जब बिरजूजी ने 500 रुपये पिताजी को दिया, तभी पिताजी ने गंडा बाँधा। उन्होंने कहा कि यह दक्षिणा मेरी है अतः, इसमें से एक भी पैसा नहीं दूंगा। मैं इसका गुरु हूँ और इसने नजराना मुझे दिया है तब 500 रुपये देकर बिरजूजी ने अपने पिता से गंडा बंधवाया।

इन पंक्तियों से आशय यह झलकता है कि गुरु-शिष्य की परंपरा बड़ी पवित्र परंपरा है। इसकी मर्यादा रखनी चाहिए। तभी तो पिता-पुत्र का संबंध रहते हुए बिरजू महाराज के पिताजी ने गुरु-शिष्य का संबंध रखा, पिता-पुत्र का नहीं। गुरु-दक्षिणा में 500/- रुपये लेकर ही गंडा बाँधा। इस प्रकार गुरु की महिमा बड़ी है। मर्यादायुक्त है, उसकी रक्षा होनी चाहिए।

(ख) मैं कोई चीज चुराता नहीं हूँ कि अपने बेटे के लिए ये रखना है, उसको सिखाना है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक से ‘जित जित मैं निरखत हूँ’ पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध बिरजू महाराज के गुरु-शिष्य संबंध से है। जब बिरजूजी किसी को नृत्य सिखाते थे तो कोई भी कला चुराते नहीं थे। यानी लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं रखते थे। समान व्यवहार और समान शिक्षा देते थे। यह नहीं कि किसी को किसी भाववश कुछ सिखाया और कुछ चुरा लिया। अपने बेटे और अन्य शिष्यों में भी कोई भेदभाव नहीं रखते थे।

उनकी शिष्यों के प्रति उदार भावना थी और भीतर मन में किसी भी प्रकार की कलुषित भावना नहीं थी।
उनमें यह भेद नहीं था कि बेटे के लिए अच्छी चीजों को चुराकर रखना है, दूसरों को आधी-अधूरी शिक्षा देनी है।
इन पंक्तियों में बिरजूजी के मनोभावों का पता चलता है। उनमें पुत्र-शिष्य का लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं था। विचार में पवित्रता और गुरु की सदाशयता थी।

(ग) मैं तो बेचारा उसका असिस्टेंट हूँ। उस नाचने वाले कार
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जित-जित मैं निरखत’ हूँ। पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध लेखक के नृत्य और उनके व्यक्तिगत जीवन से है। बिरजूजी का कहना है कि मेरे नाच पर बहुत लोग खुश हो जाते हैं, देखने आते हैं, ये मेरे चाहनेवाले हैं, मरे आशिक हैं। लेकिन फिर बिरजू महाराज स्वयं को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि मेरा क्या? लोग तो मेरे
नृत्य की वजह से मेरी तारीफ करते हैं, मुझे चाहते हैं। मेरे और लोगों के बीच जो प्रेम-संबंध है वह तो नाच के कारण है। उसमें मैं कहाँ। वहाँ तो कला है, नाच है। मैं तो उस नाच का ‘ असिस्टेंट हूँ। सहायक हूँ।

इन पंक्तियों में बिरजूजी अपने को और नाच के बीच लोगों के प्यार, स्नेह, सम्मान की चर्चा करते हुए कहते हैं कि सम्मान मेरा नहीं मेरे नाच का है। मैं तो उसका सहायक हूँ। इस प्रकार कला या गुण सर्वोपरि है। आदमी कुछ नहीं है। उसकी गुणवत्ता की पूजा होती है, सम्मान मिलता है।

प्रश्न 15. विग्ज महाराज अपना सबसे बड़ा जज किसको मानते थे?
उत्तर-
बिरजू महाराज अपना सबसे बड़ा जज अपनी अम्मा को मानते थे। जब वे नाचते थे और अम्मा देखती थी तब वे अम्मा से अपनी कमी या अच्छाई के बारे में पूछा करते थे। उसने बाबूजी से तुलना करके इनमें निखार लाने का काम किया।

प्रश्न 16. पुराने और आज के नर्तकों के बीच बिरजू महाराज क्या फर्क पाते हैं ?
उत्तर-
पुराने नर्तक कला प्रदर्शन करते थे। कला प्रदर्शन शौक था। साधन के अभाव में भी उत्साह होता था। कम जगह में गलीचे पर गड्ढा, खाँचा इत्यादि होने के बावजूद बेपरवाह होकर कला प्रदर्शन करते थे। लेकिन आज के कलाकार मंच की छोटी-छोटी गलतियों को ढूंढते हैं। चर्चा का विषय बनाते हैं। उस समय न एयर कंडीशन होता, न ही बहुत अधिक अन्य सुविधाएँ। उसके बावजूद उत्साह था, लेकिन आज सुविधा की पूर्णता होते हुए भी मीन-मेख निकालने की परिपाटी विकसित हुई है।

प्रश्न 17. पांच सौ रुपए देकर गण्डा बंधवाने का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बिरजू महाराज के पिता ही उनके गुरु थे। उनके पिता में गुरुत्व की भावना थी। बिरजू महाराज अपने गुरु के प्रति असीम आस्था और विश्वास व्यक्त करते हुए अपने ही शब्दों में कहते हैं कि यह तालीम मुझे बाबूजी से मिली है। गुरु दीक्षा भी उन्होंने ही मुझे दी है। गण्डा भी उन्होंने ही मुझे बांधा। गण्डा का अभिप्राय यहाँ शिष्य स्वीकार करने की एक लौकिक परंपरा का स्वरूप है। जब बिरजू महाराज के पिता उन्हें शिष्य स्वीकार कर लिये तो बिरजू महाराज ने गुरु दक्षिणा के रूप में अपनी कमाई का 500 रुपये उन्हें दिये।

 

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