शिक्षा पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ जे. कृष्णमूर्ति का एक संभाषण है। वह प्रायः लिखते नहीं थे। वे बोलते थे, संभाषण करते थे, प्रश्नकर्ताओं का उत्तर देते थे।
इस पाठ में उसने शिक्षा के अर्थ को बताया है। लेखक कहते हैं कि शिक्षा का अर्थ कुछ परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लेना और गणित, रसायणशास्त्र अथवा अन्य किसी विषय में प्रवीणता प्राप्त कर लेना नहीं है, बल्कि जीवन को अच्छी तरह से समझना ही शिक्षा है।
शिक्षा का कार्य है कि वह संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी सहायता करें, न कि कुछ व्यवसाय या ऊँची नौकरी के योग्य बनाए।
लेखक कहते हैं कि बच्चों को हमेशा ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। अधिकांश व्यक्ति त्यों-ज्यों बड़ा होते जाते हैं, त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम सब जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी छूटने से, परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी, पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं।
हम बचपन से ऐसे वातावरण में रहें जहाँ स्वतंत्रता हो- ऐसे कार्य की स्वतंत्रता जहाँ आप जीवन की संपर्ण प्रक्रिया को समझ सकें। जीवन की ऐश्वर्य की, इसकी अनंत गहराई और इसके अद्भुत सौंदर्य की धन्यता को तभी महसुस कर सकेंगे जब आप प्रत्येक वस्तु के खिलाफ विद्रोह करेंगे-संगठित धर्म के खिला, परंपरा के खिलाफ और इस सड़े हुए समाज के खिलाफ ताकि आप एक मानव की भाँति अपने लिए सत्य की खेज कर सकें।
कक्षा 12 हिन्दी उसने कहा था
जिंदगी का अर्थ है अपने लिए सत्य की खोज और यह तभी संभव है जब स्वतंत्रता हो। आज पूरा विश्व अंतहीन युद्धों में जकड़ा हुआ है। यह दुनिया वकीलों, सिपाहीयों और सैनिकों की दुनिया है। यह उन महत्वाकांक्षी स्त्री-पुरूषों की दुनिया है जो प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ रहे हैं और इसे पाने के लिए एक दूसरे के साथ संघर्षरत है। प्रत्येक मनुष्य किसी-न-किसी के विरोध में खड़ा है।
कवि कहते हैं कि इस सड़े हुए समाज के ढाँचे के बदलने के लिए प्रत्येक मनुष्य को स्वतंत्रतापूर्वक सत्य की खोज करना चाहिए नहीं तो हम नष्ट हो जाऐंगें। बच्चों में ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जिससे एक नूतन भविष्य का निर्माण हो सके।
कक्षा 12 हिन्दी बातचीत सम्पूर्ण व्याख्या
लेखक कहते हैं कि हम अपना संपूर्ण जीवन सीखते हैं। तब हमारे लिए कोई गुरू नहीं रहता है। प्रत्येक वस्तु हमको कुछ-न-कुछ सिखाती है-एक सुखी पत्ता, एक उड़ती हुई चिड़िया, एक खुशबु, एक आँसु, एक धनी, वे गरीब जो चिल्ला रहे हैं, एक महिला की मुस्कुराहट, किसी का अहंकार। हम प्रत्येक वस्तु से सिखते हैं, उस समय मेरा कोई मार्गदर्शक नहीं, कोई दार्शनिक नहीं, कोई गुरू नहीं होता है। तब मेरा जीवन स्वयं गुरू है और हम सतत सिखते हैं।