जन-जन का चेहरा एक
कवि- गजानन माधव मुक्तिबोध
लेखक–परिचय
जीवनकाल : 13 नवंबर 1917-11 सितंबर 1964
जन्मस्थान : श्योपुर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
माता-पिता : पार्वती बाई और माधवराज मुक्तिबोध
शिक्षा : उज्जैन, विदिशा, अमझरा, सरदारपुर में प्रारम्भिक शिक्षा
1930 में उज्जैन के माधव कॉलेज से ग्वालियर बोर्ड की मिडिल परीक्षा में असफल 1931 में सफलता प्राप्त, 1935 में माधव कॉलेज से इंटरमीडीएट। 1937 में बी.ए में असफल, 1938 में सफलता, 1953 में नागपुर में हिन्दी से एम.ए
अभिरुचि : अध्ययन-अध्यापन, लेखन, पत्रकारिता, राजनीति
कृतियाँ : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, नई कविता का आत्मसंघर्ष, मुक्तिबोध रचनावली, (6 खंडों में)
जन-जन का चेहरा एक
चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है | कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है।
एशिया की, यूरोप की अमरीका की
गलियों की धूप एक ।
कष्ट-दुख संताप की
चेहरों पर पड़ी हई झरियों का रूप एक !
जोश में यों ताकत से बंधी हुई
मुठियों का एक लक्ष्य !
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है। एशिया यूरोप अमेरिका सभी जगह सूर्य अपनी किरणें समान रूप से बिखेरता है। कष्ट अथवा दुख में व्यक्ति के चेहरे पर पड़ने वाली रेखाएँ, झुर्रियां एक समान होती है जोश में अथवा ताकत में बंधी मुठियाँ एक समान होती है और उनका लक्ष्य भी एक होता है।
पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष ।
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक
उद्दीपित उसका विकराल सा इशारा एक ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्राणियों की समस्याओं की चर्चा की है। कवि कहते हैं कि सभी प्राणियों की समस्याएँ, भावनाएं समान है लेकिन इस संसार में विभिन्नता है। कवि कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार सारे संसार में सूर्य एक है और अपनी रौशनी सभी चीजों पर समान रूप से बिखेरता है।
गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गति हुई
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुद्धारा एक।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है कवि कहते हैं कि गंगा, इरावती, मिनाम, नील, आमेजन, मिसौरी इन सब में अपार जल प्रवाहित होता रहता है। इनके जलों में कोई मौलिक अंतर नहीं है। ये नदियाँ मनुष्य को निरंतर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। ये नदियाँ प्यार और क्रोध दोनों का संदेश देती है।
पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्र एक ।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि इस संसार में दुष्ट लोग अनेक अत्याचार करते है। वे अपनी काली छाया सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैला रहे हैं। ये लोग मानवता के दुश्मन है और इन्होंने अपनी अमानवीय कार्यों तथा शोषण का किला खड़ा कर दिया है। जनता का शोषण करने वाले ये सभी शत्रु एक है।
आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;
जन-जन का मित्र एक।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि आज दुनिया में आर्थिक विषमता और शोषण का अंधकार छाया हआ है। इस अंधकार को आशामयी लाल किरणें अर्थात समाजवाद द्वारा ही दूर किया जा सकता है। कवि कहते हैं कि इस अंधकार के समाप्त होते ही सर्वत्र स्वर्ग की तरह शांति हो जाएगी।
विराट प्रकाश एक क्रांति की ज्वाला एक
धड़कते वृक्षों में है सत्य का उजाला एक
लाख-लाख पैरों की मोच में है वेदना का तार एक,
हिये में हिम्मत का सितारा एक।
चाहे जिस देश प्रांत पर का हो
जन-जन का चेहरा एक।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि प्रकाश का रूप एक है | सभी जगह होने वाली क्रांति की ज्वाला एक है। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में एक ही प्रकार के सत्य का संचार हो रहा है। लाखों लोगों के पैरो में एक ही प्रकार के मोच का अनुभव हो रहा है। शोषण के खिलाफ सभी के हृदय में एक ही प्रकार का साहस है।
एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न-भिन्न वास स्थान
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनो के बावजूद,
सभी ओर हिंदुस्तान सभी ओर हिंदुस्तान।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले एशिया, यूरोप तथा अमेरिका में भौगोलिक और ऐतिहासिक विशिष्टता के बावजूद वे भारत की जीवन शैली से प्रभावित है।
सभी ओर बहनें है सभी ओर भाई है
सभी ओर कन्हैया ने गायें चराई है
जिंदगी की मस्ती की अकुलाती भोर एक
बंसी की धुन सभी ओर एक।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते है कि भारत की संस्कृति में प्रत्येक स्थान पर भाई-बहन सा प्रेम है। यहाँ भगवान कृष्ण की छवि चारों ओर व्याप्त है। यहाँ हर जगह कृष्ण ने गाय चराई है। यहाँ जिंदगी में मस्ती भरी पड़ी है। सभी ओर कृष्ण के बंसी की धुन व्याप्त है।
दानव दुरात्मा एक,
मानव की आत्मा एक
शोषक और खूनी और चोर एक
जन-जन के शीर्ष पर,
शोषण का खड्ग अति घोर एक
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युद्ध एक
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि पूरे विश्व में दानव और दुरात्मा एक है। शोषक, खूनी और चोर एक है तथा दुनिया के हरेक हिस्से में दुरात्माओं, चोरों के खिलाफ युद्ध भी एक है।
मस्तक की महिमा
व अंतर की ऊष्मा से उठती है ज्वाला अति क्रुद्ध एक।
संग्राम का घोष एक,
जीवन का संतोष एक।
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि सभी जन समूह के मस्तिष्क की चिंता एक है और उनके हृदय की प्रबलता भी एक सी है। उनके भीतर क्रोध की ज्वाला भी एक सी है।
क्रांति का, निर्माण का, विजय का चेहरा एक,
चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !
प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि क्रांति निर्माण और विजय का सेहरा एक जैसा होता है। चाहे वह किसी देश, किसी भी प्रांत और किसी भी गाँव का क्यों न हो ! आम आदमी का शोषण के खिलाफ जो संघर्ष है उसका मूल स्वर एक ही होता है।